वह चली गई

न केवल उसकी साख गिर जाती, बल्कि वु शुआंग को भी इसकी कीमत चुकानी होती।

चेंगवेन की कई करोड़ों की विरासत थी, फिर वह इस छोटे से बंगले पर भला क्यों अटकी रहती?

वू रोंग मन ही मन जिंगे पर हॅंसी।

क्या हुआ,अगर इस कमीनी ने बंगला उससे छीन लिया? अंततः, विरासत उसके नाम पर थी।

जब तक मेरी साँस चल रही है, तब तक उस शैतान औरत को शिया परिवार की विरासत कभी नहीं मिलेगी।

वो समझेगी की उसने यह बंगला एक भिखारी को दान के रूप में दे दिया।

वू रोंग के चेहरे पर जीत की मुस्कान आ गई, उसने जो सोचा था वह कर दिखाया। वह जानबूझकर जिंगे को बार-बार भिखारिन कहकर बुला रही थी, ताकि वह आपा खो दे।

जिंगे ने उसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया।

जिंगे ने वू रोंग के शब्द ही उसे पुनः भेंट कर दिए, "अगर तुम्हारा काम हो गया है, तो दरवाज़ा वहॉं है।तुम यहाँ मत रुको ,तुम्हारी बदबू से यह घर दूषित हो रहा है।"

अपना सामान पैक करने से पहले वू रोंग ने तिरस्कार के साथ फर्श पर थूक दिया।

उसने केवल कुछ ही कीमती सामान पैक किया, और बाकी उसने भिखारी जिंगे को दान के रूप में दे दिया।

फिर भी, चाहे वह खुद को कितना भी सांत्वना दे ले, फिर भी वह अपमानित महसूस कर रही थी।

घर वास्तविक रूप से उसका था, और उसे जिंगे को घर से बहार निकालना चाहिए था,लेकिन अब ये घर किसी और का था और वह बाहर जा रही थी।

वह हमेशा से जानती थी कि विला जिंगे के नाम से है, लेकिन क्योंकि उसे वास्तविक दस्तावेज नहीं मिले थे और जिंगे ने भी उसकी याददाश्त खो दी थी, तो उसे लगा कि वह इसे हज़म कर जाएगी।

कौन जानता था कि ​​जिंगे की याददाश्त वापस आते ही, वह वापस आ जाएगी।

शुक्र है कि चेंगवेन की मौत अचानक हुई थी, इसलिए उसके पास एक वैध वसीयत नहीं थी। कुछ कुटिल चालें चलकर वह सारी संपत्ति अपने नाम पर कराने में सफल रही थी।

वू रोंग ने अपने सूटकेस को सीढ़ियों से नीचे घसीटा। जब उसने श्रीमती चान की चौंका देने वाली वाले नज़र पाकर उसे बहुत अपमानित महसूस हुआ।

वू रोंग ने श्रीमती चान पर गुस्से में अपना सूटकेस फेंक दिया और आदेश दिया, "मेरे पीछे आओ और मेरे सूटकेस को ध्यान से रखो।"

"हम कहॉं जा रहे हैं?" श्रीमती चान ने अचम्भे से पूछा।

वू रोंग ने जोर देकर कहा, " तुम फिक्र क्यों कर रही हो? मैं वादा करती हूँ कि यह इस जगह से बेहतर है।" वह जिंगे को यह बताना चाहती थी कि वह अभी भी अपने पिता की दौलत पर बैठी है, जिंगे भले आज उसपर भारी पड़ी, पर आखिर में जीत उसीकी होनेवाली थी।

श्रीमती चान ने तुरंत स्थिति को भांप लिया। उसने झिझकते हुए जिंगे की तरफ देखा जो दूसरी मंजिल से उन्हें घूर रही थी। एक बार के लिए उसकी युवा मालकिन का चेहरा मुरझा गया था।

उसके भाव से श्रीमती चान ने भॉंप लिया कि उनके रुकने या जाने की उसे कोई परवाह नहीं थी।

श्रीमती चान ने मन ही मन विचार किया।

भले ही उसकी आंतरिक आवाज ने उसे वू रोंग के साथ न जाने के लिए मना किया, लेकिन उन्होंने वही पक्ष चुना, जिससे उन्हें अधिक लाभ मिल सके।

"मैडम, कृपया एक पल के लिए रुकिए, मैं अपनी चीज़ें पैक करके आती हूँ। मैं जल्द ही आ जाऊंगी।" श्रीमती चान अपने कमरे में गईं और जल्द ही अपने सूटकेस के साथ वापस आ गईं।

वू रोंग का धैर्य ख़त्म हो रहा था। जितनी देर वह वहाँ रुकती, उतना ही अधिक अपमान महसूस करती।

जब उसने श्रीमती चान को फिर से देखा, वह ज़ोर से चिल्लाई, "पकड़ो!"

वह बाहर की ओर जाने लगी। श्रीमती चान, दो सूटकेस घसीटती हुईं, उसके पीछे चलने लगीं।

"वू रोंग ..." जिंगे ने सीढ़ियों के ऊपर से बुलाया जब वू रोंग ने दरवाजे की घुंडी पर हाथ रखा था।

वू रोंग ने उसे देखकर कहा, "तुम्हे और क्या चाहिए? तुम्हे मुझसे और कुछ नहीं मिलेगा कमीनी।"

जिंगे सीढ़ियों से धीरे-धीरे उतरी और उसके सामने रुक गई। उसने वू रोंग की आँखों में देखा, जब उसने कहा, "मैं सिर्फ तुम्हे बताना चाहती हूँ, आज से तुम मेरे घर में कदम नहीं रखना। इसके अलावा, मैं एक दिन वह सब कुछ पुनः प्राप्त कर लूंगी जो तुम्हारे पास है, जिसपर मेरा अधिकार है , और वो भी ब्याज के साथ।

वू रोंग उसके ऊपर हंसी। "सपने देख लो! लेकिन में तुम्हे सचेत करती हूँ कि मैं इस अपमान को कभी नहीं भूलूंगी।"