kha gye wo din

कहां गए वो दिन, जब एक परिवार हुआ करता था

पैसे नहीं थे फिर भी भाइयों का प्यार हुआ करता था

कोई शिक्षा नहीं ,फिर भी सदाचार हुआ करता था

छोटे बड़े सभी का सत्कार हुआ करता था

हर अनपढ़ में भी संस्कार हुआ करता था

कहां गए वह दिन जब एक परिवार हुआ करता था

पूरा परिवार एक साथ हुआ करता था

बार त्यौहार घर बाजार हुआ करता था

घर में बने खाने का इंतजार हुआ करता था

हर छोटे-बड़े की थाली का ख्याल हुआ करता था

खुशियां बंटती थी, चेहरे खिलते थे

पूरे गांव में त्यौहार हुआ करता था

कहां गए वो दिन पुराने ,

जब सब में भईया बरगा प्यार हुआ करता था

गाम मह चौपाल होया करदी।

होके की हुँकार होया करदी।

सारे लोगों की बात होया करदी।

खुशी 10 दिन पहले तो दुख पूरे गांम की रात होया करदी

इब टेम कसुता आ लिया ,

पड़ोसी कौन है इसका बेरा जा लिया । खुशी तो दूर की बात ,मरने के 10 दिन बाद बेरा पाटे,

इंसान तो जा लिया

एक दूसरे ने जानन का टेम भी जा लिया।

चार दीवारी में बंद होगे,घर कुण्म्बे ने खा लिया।

वो टेम पुराना जा लिया ।

कहां गए वो दिन,जब परिवार हुआ करता था

थोड़ा बहुत बचा हुआ है गामा में,

गामा ने भी शहरी रुख अपना लिया

भाई भाई ते न्यारा हो गया, घर-कुण्म्बा पाट लिया ।

छोड़ दूध दही का खाना , समोसे पे ध्यान टीका लिया

सब अपने-अपने व्यस्त हो गए ,

बुड्ढा ने भी इकट्ठा होना छोड़ दिया ।

बंद होगी बुजुर्गा की हड़ताल, जवाना ने चिलम ठा लिया

पर के फायदा ,वो टेम पुराना था ,जो जा लिया।

कहां गए वो दिन जिनकी आज जरूरत आन पड़ी है

म कहा जा कर ढूंढू उन दिना को

जिनकी आज एक कहानी बन रही ह।

Naresh panghal की कलम ने

फरियाद करे वो दिन ,

जब समाज नी ,एक परिवार होता था ।

लोगों के दिलों में नफरत नही,प्यार होता था ।

कहां गए वो दिन, जब एक परिवार होता था।

kha gye wo din

क्या दिन आ गए हैं ,पास बैठे लोग फोन पर बतला रहे हैं।

हाय,हेलो ,राम-राम कुछ नहीं,

वो तो बस नाड़ हिला कर काम चला रहे हैं

कभी-कभी हाथ मिला के, झूठा दिखावा दिखा रहे हैं

हमदर्दी कुछ भी नहीं है,वो खुद को हमदर्द बता रहे हैं

वाह क्या दिन आ गए हैं

कोई नहीं हैं साथ तुम्हारे,सब झूठे पांव चल आ रहे हैं

मिले हैं सब कुछ टाइम के लिए,

वो तोह बस अपना टाइम काट रहे हैं

दुख के समय कोई नहीं,दिखावे कि सब आंसू बहा रहे हैं।सुख के समय बिन बुलाए मेहमान भी आ रहे हैं

ताक रहे हैं सब ,वो तो अपना मतलब निकाल रहे हैं

सामने कुछ ओर, पीठ पीछे सब चाकू चला रहे हैं

वाह क्या दिन आ गए हैं

मां-बाप के सिवा,कोई अपना नहीं, कोई सच्चा नहीं

कोई इस बात को नहीं मान रहे है

दोस्तों को जान से बढ़कर चाहा रहे है ,

इन दोस्तों के चक्कर में कई दुनिया उजड़ी है

कहीं-कहीं तो इन दोस्तों ने ही दुनिया लूटी है

दोस्तों से ही तो ये शिक्षा मिली है ,।। बीत गया वो जमाना जहां सच्चा दोस्ताना हुआ करता था ।

आज तो बस ग्रुप वाजियां ही चल रही है

इसी को वो दोस्ती बता रहे हैं ,ऐसे यारियां चल रही है

वाह क्या दिन आ गए हैं ।

क्या दिन आ गए हैं,समाज की हालत बिगड़ गई है

50-60¥ का पिज़्ज़ा,बर्गर खाकर पार्टियां चल रही है

तो कहीं 250-300 की टिकट खरीदी जा रही हैं,

शायद घर पे उनके पता ही नही,उनकी भलाई च रही ह।

छोड़ घर का खाना उन्हें हवा अछि लग रही हैं

आजकल इन्हीं बातों की हवा चल रही हैं।

छाप रहे ह केक दूसरों के मुह पर,

ऐसी बर्थडे पार्टी चल रही हैं।

वाह क्या दिन आ गए हैं ।

क्या दिन आ गए हैं,इंसान को इंसान खा रहे है ।

कोई मुझसे आगे न निकल जाए,

इसलिए रात को मार कर सो रहे हैं ,पर

सुबह जिंदा पा रहे हैं

Naresh panghal का तो कब का मन भर चुका है

इस दुनिया से,,,,,, वह तो बस अपनी कलम चला रहे हैं।

वाह कया दिन आ गए हैं।

धन्यवाद।