Chapter 07- शायद भगवान यही चाहते है

"खून उसने किया और तुम्हे लगा की तुमने किया। ", सोफे पे बैठे पीजे ने मुझसे कहा।

"क्या बात कर रहे हो यार! मै एक गैंगस्टर हूँ यहाँ पे।", मैंने उत्सुकता से पूछा।

"हाँ। "

"मतलब सभी लोग मुझसे डरते है! सुनने मे कितना सही लग रहा है। गैंगस्टर!", मैने खुद पे इम्प्रेस होके कहा।

"ओ भाई, ख्वाबोंसे बाहर आ। गैंगस्टर के कई सारे दुश्मन होते है। कब टपका देंगे, बता नहीं सकते। ", उसने कहा।

"अगर वो इतना क्राइम करता है तो, पुलिस उसे क्यू नहीं पकड़ती?", मैंने सवाल पूछा।

"यहाँ की पुलिस फ़ोर्स बस नाम की है। असलियत मे यहाँपे जिसके हाथ मे पावर, उसकी मर्जी चलती है।"

"अच्छा हुआ, यहाँ का सिस्टम मेरे दुनिया से उल्टा है। वर्णा अबतक तो मेरा एनकाउंटर कर चुके होते।", मैंने कहा।

"एनकाउंटर मतलब?", पीजे ने पूछा।

"अरे वो...पुलिस सीधा...शूट करती है ना क्राइम करने पर"

"अरे हां। उसे अपरकट बोलते है यहाँ पे।", पीजे ने कहा।

मै इस बात से बिलकुल नहीं चौंका, क्यूंकि पीजे के साथ बातचीत करके मुझे पैरेलल वर्ल्ड की अच्छी खासी जानकारी मिली थी।

रात के 8 बज गए थे।

मैंने पीजे से कहा, "यार पीजे, अब तो मेरी मदद कर दो।"

"what! ", मानो 440 का करंट लगा हो, ऐसा वो चिल्लाया।

"अरे यार अब डरने की क्या बात है। वो और मै एक ही तो है ना।", मैं उसे मनाने मे लग गया।

"ओह सुन ! दोनों एक नहीं हो। जमीन-आसमान का अंतर है तुम दोनों मे। समझें।"

"अरे सिर्फ रिक्वेस्ट ही तो करनी है। और मै उसे सब बता देता हूँ ना... "

उसने बिच मे बोला, "क्या बताएगा तू उसे? मै दूसरी दुनिया से आया हूँ और अब मुझे वापस जाना है तो वो सीरम देदो।", वो मेरी नक़ल करते हुए बोला।

"इसमें क्या हुआ? जो सच है, वही तो बता रहा हूँ।", मैंने कहा।

"यकीन करेगा वो तेरे ऊपर?", पीजे ने झटसे बोला।

पीजे की बात मे दम था। अगर मै उसे ये दूसरी दुनियावाली कहानी बताऊंगा, तो वो मुझपे यकीन नहीं करेगा। मैने थोड़ा सोचने के बाद बोला,

"मै उससे बोलूंगा की, मै उसका बिछड़ा भाई हूँ। उसे सच भी लगेगा।"

"घंटा सच लगेगा!",पीजे ने भड़कके बोला, "अगर उसे पता चल गया की, प्रॉपर्टी के अंदर हिस्सेदार आ गया है तो, तुझे छोड़, मुझे भी मार देगा। "

"यार, थोड़ा रिस्क तो लेना पड़ेगा ना यार।", मै उसके सामने गिड़गिड़ा रहा था।

"तो तू ले ना रिस्क! मुझे क्यू घसीट रहा है इसके अंदर!"

"अरे तुम बात क्यू नहीं समझ रहे ! मुझे यहाँ का कुछ नहीं पता। एक तुम ही हो, जो मुझे गाइड कर सकते हो।"

"मै क्या गाइड करूँगा? बाहर जाके, किसी को भी पूछेगा ना विष का घर, बता देगा।"

"यार मेरी प्रॉब्लम समझ ना।", मै थोड़ा चिल्लाते हुए बोलने लगा।

"क्या है प्रॉब्लम!", उसने भी चिल्लाया।

"यार मुझे घर वापस जाना है। मेरी बात को समझ। घर पे मेरे माँ-पापा परेशान हो रहे होंगे।", मैंने मेरी परेशानी उसे समझाते हुए कहा।

"क्यू जाना है घर? यही पे रह। ये भी लगभग तेरी दुनिया जैसी है।"

"अरे मै नहीं रह सकता यहाँ पे।", मैंने फ्रस्ट्रेट होके कहा।

"क्यू नहीं रह सकता? यहाँ पे तुझे खाना मिल रहा है, रहने केलिए जगह मिल रही है। और क्या चाहिए!"

"अरे मुझे मेरे खुद के घर जाना है", मैंने गुस्से से बोला, "यहा पे नहीं रह सकता मै। एक बार खुद को मेरी जगह पे रख के देख।"

मेरी ऊँची आवाज पुरे कमरे मे गूंज गयी। पीजे मेरी तरफ बस देख रहा था। उसके चेहरे पर कोई हावभाव नहीं थे। बस देखे जा रहा था। मुझे मेरी गलती का एहसास हुआ।

"प्लीज... ", मैंने कहा।

"वो मुझे कुछ नहीं पता। मै अपने पैर पे कुरहाड़ि नहीं मारनेवाला।" कहके पीजे मुझसे मुँह फेर के, खिड़की के पास जा खड़ा हुआ।

मै समझ नहीं पा रहा की, पीजे को कन्वेंस कैसे करू? मुझे जितनी जल्द हो सके, वापस जाना था। पीजे वो इंसान था, जो मुझे वापस जाने मे मदद कर सकता था। पर उसने मुझसे मुँह फेर लिया। एक कहावत है की, घी अगर सीधी ऊँगली से ना निकले, तो ऊँगली टेड़ी करनी पडती है ! अब मुझे टेड़ा होने की जरुरत थी।

पुरे रूम मे सन्नाटा था। सन्नाटे मे घड़ी की आवाज हलकी सुनाई दे रही थी। मैंने घड़ी को देखा। 8:15 बज गए थे। मैंने दो मिनट केलिए अपनि आँखे बंद की। और एक गहरी सांस लेके, पीजे की ओर देखके कहा,

"ओके। ठीक है। तुम मेरी मदद नहीं करना चाहते। ठीक है। कोई प्रॉब्लम नहीं। "

पीजे मेरी तरफ नहीं मुडा।

"और वैसे भी, मै और विष एक ही है ना। उसके पास जाके मै सब सच बता दूंगा।"

"वो तेरी ऐसी बातो पे क्या ख़ाक यकीन करेगा।", पीजे ने मन मे कहा।

मैंने आगे बोलते हुए कहा,

"सारा का सारा उसे बोल दूंगा। मुझे वापस जाना है और तुम मेरी मदद नहीं कर रहे। मुझे डरा रहे थे। वो अपने पैर पे कूरहाडी मारने वाली बात, वो भी बोल दूंगा। फिर जो होगा, देखा जायेगा।"

मैंने मेरी बात खतम करके उसकी ओर देखने लगा। उसके रिप्लाई का वेट करने लगा। उसने मुँह नहीं फेरा था। मुझे उसकी कुछ खुस-पुस सुनाई दी।

"वो इस सबपे क्या ख़ाक यकीन करेगा।... अगर... अगर कर लिया तो...", उसने खुसपुस की।

मैंने पीजे को देखा। उसके खड़े होने का ढंग पहले से काफ़ी अलग था। मै उसकी बात का इंतजार कर रहा था। मुझे पता था की, जीत मेरे हाथ मे है। पर... वो मूडा नहीं...

"ओके। रहने दो। मै चलता हूँ।", ऐसा कहके मै दरवाजे की ओर बढ़ने लगा।

तभी पीछे से पीजे भागते हुए आया और मुझे रोकते हुए गिड़गिड़ाने लगा,

"अरे यार, क्यू मुझे मरवाने पे तुला है तू?"

"अबे मरा तो मै जा रहा हूँ। एक तो तुम मेरी मदद नहीं कर रहे।"

"अरे भाई, मेरी बात सुन। यहा पे रह ले। बहुत अच्छी जगह है।",वो मुझे फुसलाते हुए बोला।

मैंने फ्रस्ट्रेट होके कहा, "अरे यार, मुझे नहीं रहना है यहाँपे। तुम एक ही बात पे अटके हो। मुझे नहीं रहना तो नहीं रहना। बस। सिर्फ तुम ही हो, जो मेरी मदद कर सकता है। वर्णा मुझे क्या पड़ी थी, तुम्हारे पीछे पड़ने की।"

"अरे भाई पर...", वो थोड़ा डरते हुए बोला।

"जरा मेरी जगह पर खुद को रखके देख ले। तुम्हे अंदाजा भी नहीं है, मेरी हालत का!", मैंने उसके कंधे को पकड़के कहा।

"पता है मुझे... "

"क्या घंटा पता है ! मुझे तो ये भी नहीं पता, कभी घर जा पाउँगा भी या नहीं। मेरी हालत को समझ यार। तू मेरी मदद कर सकता है। शायद...शायद भगवान भी यही चाहते होंगे!"

मेरे ऐसे बोलते ही, अचानक से उसका चेहरा थोड़ा बदल गया।

मै समझ गया की, यही वो मौका है, पीजे को जाल मे फ़साने का। मैंने उसके कंधों को जोर से पकड़ा और कहा,

"भगवान भी यही चाहते है भाई।"

"क्या चाहते है भगवान", वो मेरी आँखों मे देखते हुए किसी बच्चे की तरह बोला।

"यही चाहते है की, तू मेरी मदद करें। वर्णा मै इस दुनिया मे आकर, इतना घूमकर सिर्फ तुमसे ही क्यू मिला? पूछो क्यू?"

"क्यू?"

"क्यूंकि भगवान यही चाहते है। एक बात बताओ। साइंटिस्ट होकर भी तुमने अपनी जिंदगी मे क्या उखाड़ा?"

पीजे मुझे गौर से सुन रहा था।

"कुछ नहीं। अगर तुम मेरी मदद करोगे, तो इस दुनिया बस तुम्हारा नाम होगा। सबको पता चलेगा की, तुम कितने बड़े साइंटिस्ट हो। वार्महोल बनाने वाला इंसान... पीजे! दूसरी दुनिया के आदमी को उसके घर पहुँचानेवाला इंसान... पीजे। महान साइंटिस्ट... कौन?"

"पीजे?", उसने कतराते हुए कहा।

"yes. पीजे। मौका खुद आपके पास चलते आया है और आप हो की उससे मुँह फेर रहे हो। "

अब पीजे की रेल पटरी पर आने लगी। उसके आंखोमे मेरी कही बाते सपने की तरह झलकने लगी। उसने मेरी आँखों मे देखते हुए कहा,

"पता नहीं क्यू, पर तुम्हारी आँखों मे सच्चाई झलक रही है। इतने सालो मे मैंने आखिर क्या उखाड़ा।"

पीजे दिवार पे टंगे हुए, उसके फोटो के पास जा खड़ा हुआ। फोटो धूल से काफ़ी मैली हुई थी। वो फोटो को देखते हुए बोलने लगा,

"सच मे। वो जूनून... वो क्रेज़... सब खो चूका हूँ मै। इतने साल घिस के भी, मै कुछ हासिल न कर सका। तुमने सही कहा। यही वो मौका है, जिससे मै दुनिया को बता सकता हूँ की, मै एक काबिल साइंटिस्ट हूँ।"

मैंने उससे पूछा, "तो... तुम मेरी मदद करोगे ना?"

पीजे धीरे से मेरी ओर मुडा और उसने कहा,

"मुझे नहीं पता की आगे क्या होगा। पर तुम्हे तुम्हारे घर वापस भेजकर ही मै दम लूंगा। and thats my promise.", उसने अपना चस्मा पहनते हुए कहा।

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