काफी देर बाद उसकी आंख खुली तो अपने आप को एक पेड़ के नीचे पाया. राक्षस नगरी वहां नहीं थी. पास ही समुद्र लहरा रहा था. वह उठा और समुद्र के किनारे आया. वहां एक नाव खड़ी थी. वह उस में बैठ गया. तभी उसको एक भयंकर हंसी सुनाई दी. वह नाव चलाना चाहता था कि समुद्र में लहरें उठी और उसमें से एक भयंकर राक्षस का सिर निकला.
राक्षस हँसता हुआ बोला:-
"आजतक इस नाव में बैठने वाला कोई नहीं हुआ."
यह कहकर वह राजकुमार को लेकर पानी में चला गया. राजकुमार की आंखें मुंदने लगी. कुछ देर बाद उसने आँखें खोली तो? अपने आपको एक कमरे में पड़ा पाया. सामने तीन सिंहासन थे. उस पर एक युवक व एक सुंदरी बैठे थे. युवक बोला:- "मेरा नाम भंकुर है. मैं जल का राजा हूँ. तुम बहुत वीर हो मेरा एक काम करना पड़ेगा."
राजकुमार ने कहा:-
"क्या काम है?"
वह युवक बोला:-
"जो यह सुंदरी तुम देख रहे हो यह मेरी बहन है. यह मध्यपुर के राजा की पत्नी थी. उस समय वहां काफी सेना थी. यहां एक राजा जो बलवान है उसने इनके पति को कैद कर लिया है. तभी से मेरी बहन मेरे यहां रह रही है. वैसे तो उस राजा में ज्यादा बल नहीं है परंतु उसके पास एक मायासुर नाम की भयंकर शक्ति है. उस राक्षस के मुंह से आग निकलती है जिससे मैं हार जाता हूँ. तुम अगर इनके पति को छुड़ा लाओ तो हम तुम्हारी मुंह मांगी मुराद पूरी करेंगे."
राजकुमार ने कहा:-
"मुझे उस राजा तक पहुंचवा दो बाकी मैं देख लूंगा."
राजा ने ताली बजाई तो वही राक्षस आ गया जो उसे उठाकर लाया था.
वह उसे उठाकर ले गया और उसे एक राज्य के पास छोड़ आया. राजकुमार लाल मणि की सहायता से अदृश्य हो गया. वह पहले आग उगलने वाले राक्षस को ढूंढने लगा. परंतु वह कहीं दिखाई नहीं दिया. वह उस राजा की सभा में आ गया. राजा कह रहा था:-
"मंत्री! आज शाम को उस कैदी की काल देवी पर बलि चढ़ाएंगे. अतः उसे शाम को राजमंदिर में लाना."
मंत्री एक ओर चल दिया. राजकुमार ने मंत्री का पीछा किया. मंत्री एक पेड़ के पास आया और पेड़ उखाड़ कर एक तरफ रख दिया. वहां एक चौड़ी सुरंग थी. मंत्री उसमें चल गया. राजकुमार भी उसके पीछे-पीछे चल दिया. वह सुरंग एक महल में गई. वहां जाकर उसने देखा एक दुबला-पतला व्यक्ति बंधा पड़ा है. मंत्री बोला:-
"राजा कुम्भ! तुम जो चाहे खालो आज शाम तुम्हारी बलि दी जाएगी."
"मुझे मारो तो मारो, लेकिन यहां का गंदा भोजन नहीं खाता."
वह चीख पड़ा. मंत्री वापस चल पड़ा और बाहर आकर पेड़ उसी जगह पर रख दिया. राजकुमार ने सोचा
"जल्दी ही मायासुर को ढूँढना है"
वह ढूंढ रहा था कि एक पहाड़ की तलहटी में कोई जीव दिखाई दिया. वहां एक भयंकर राक्षस सो रहा था. उसने जादुई तलवार से उसका सर काट दिया. उसने सुरंग के मुंह पर पहुंचकर पेड़ हटाया और अंदर घुस गया. इस समय वह अदृश्य था. उसने उस कैदी के सारे बंधन खोल दिए और कहा:-
"तुम कुछ मत बोलना, मैं तुम्हें आजाद कराने आया हूँ."
यह कहकर उसने उसका हाथ पकड़ लिया. राजकुमार के हाथ में आते ही वह भी अदृश्य हो गया. दोनों बाहर निकल आए. अभी शाम नहीं हुई थी. दोनों राजा भंकुर के पास पहुंचे और कैदी को सौंप कर कहा:-
"मैं इन्हे ले आया हूँ. साथ ही तुम्हारे शत्रु मायासुर को मार आया हूँ. वहां का राजा इनकी बलि देना चाहता था, अब आप मुझे बाहर पहुंचा दें."
राजा भंकुर ने उसी दैत्य के साथ उसे बाहर भेज दिया.