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राजा का दरबार लगा था. राजा कालदेव इस समय नाच देख रहे थे कि एक जासूस ने सुचना दी महाराज पड़ोसी राजा ने आक्रमण कर दिया है. वो राजा अचरज में पड़ गए उन्होंने लालदेव को कई बार युद्ध में पराजित कर चुके थे. फिर भी उन्होंने सेना तैयार करने की आज्ञा दे दी. और दरबार समाप्त किया. एक तरफ चल दिए. आगे जाने के बाद एक कमरे में आए.

वहां एक संदूक थी. संदूक के अंदर एक तरबूज के समान नीली मणि थी. राजा उसके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए. कुछ देर बाद मणि से आवाज आई,

"कहो राजा! किसलिए आए हो?"

राजा ने कहा:-

"मणि मेरे दुश्मन ने आक्रमण कर दिया है, वहां का हाल बताओ."

राजा ने कहा ही था कि एकाएक धमाका हुआ और नीली मणि सफेद हो गई. फिर उसमें पहले उसके किले का चित्र आया, फिर जंगल का, फिर द्वार का और आखिरी में राजा लालदेव की सेना सहित तस्वीर उभर आई. राजा तस्वीरों को ध्यान से देख रहा था. उसने देखा लालदेव की सेना पहले जैसी थी परंतु उनमें दो राक्षस नए दिखाई पड़े.

"खैर कोई बात नहीं."

राजा ने सोचा. वह संदूक बंद कर बाहर आ गया. फिर महल में चला गया.

दूसरे दिन दोनों सेना आमने-सामने आ गई. राजकुमार ने पीली मणि को मुंह में रखा, तभी जैसे चमत्कार हो गया. राजकुमार को लगा जैसे उसमें नई शक्ति आ गई. राजकुमार और दुदंभी राक्षस आगे बढ़े. दोनों ओर के सेनापति सामने आ गए. देखते-देखते भयंकर मार-काट होने लगी. दुदंभी राक्षस सेनापति को मार चुका था. तभी एक और सेनापति आ गया. राजकुमार ने दुदंभी राक्षस को जाने के लिए कहा. दुदंभी तुरंत गायब हो गया. राजकुमार बीच में आ गया. कालदेव की सेना ने लाखों गदाएँ एक साथ फेंकी. सारी गदाएँ राजकुमार की छाती पर लगी. लगते ही टुकड़े-टुकड़े होकर गिर पड़ी. राजकुमार ने गुरु की मणि की सहायता से काफी भयंकर रूप धारण किया. यहां उसे हथियार की जरूरत नहीं थी. वह कालदेव की सेना को उठा-उठा कर फेंकने लगा. तीर, भाले, गदाओं का उस पर कुछ असर नहीं हो रहा था. तीर-भाले तिनके की तरह गिर पड़ते. शाम को एक तिहाई सेना रह गई थी. युद्ध बंद हो गया.