राजकुमार को मालूम हुआ कि नीलदेव आ रहा है तो उसने एक पेड़ के पांच पत्ते तोड़े और मंत्र से उसके चूहे बनाकर वहां रख दिए. वह सैनिकों सहित चिड़िया बन गया. जैसे ही नीलदेव ने बाग में प्रवेश किया, उसे वह पांचों चूहे दिख गए. वह दांत पीसते हुआ वहां आया और पांचों को पकड़ लिया. दूसरे दिन दरबार में आकर उन्हें मेज पर रख कर मंत्र फूंका. पर चूहों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. उधर राजकुमार चारों सैनिकों को वहीं छोड़ दरबार में आया. उसने देखा कि नीलदेव मंत्र पर मंत्र फूंके जा रहा है तो उसने उसका मुकुट उठाकर ले लिया. नीलदेव चौंका. राजकुमार अदृश्य था तो मुकुट भी अदृश्य हो गया था.
राजकुमार सामने प्रकट हो गया. यह देखकर नीलदेव ने तेज फूंक मारी. अगर वह एक तरफ नहीं होता तो जलकर भस्म हो जाता. उसकी फूंक एक पेड़ से टकराई जो हरा-भरा होते हुए भी जलकर राख हो गया. राजकुमार ने मंत्र फूंककर मुकुट फेंका तो वह मुकुट एक भयंकर सर्प बनकर उसके शरीर पर लिपट गया. राजकुमार गायब होकर नीलदेव के पास आ गया. वह सर्प से किसी तरह से छूट नहीं पा रहा था. विपदा के समय वह सारे मंत्र भूल गया. फूंक को भी वह सर्प बचा गया. अब नीलदेव पर कसाव बढ़ता गया. उसे बेहोशी आने लगी. उसने अपने गुरु कण्णक देव को याद किया और बेहोश हो गया.