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राजकुमार जा रहा था. किंतु रास्ते में एक विशाल गिद्ध उस पर झपटा. राजकुमार ने बचना चाहा पर वह उसकी चपेट में आ गया. राजकुमार को विपदा में देख नेवले और चूहे ने गिद्ध के पंजे को कुतरना शुरू किया पर गिद्ध के कोई असर नहीं हुआ. चलते-चलते गिद्ध एक स्थान पर रुका. वह एक संगमरमर की सी सफेद चट्टान पड़ी थी. गिद्ध उस पर आकर बैठ गया. वह शायद उस गिद्ध का अंडा था.

राजकुमार ने देखा उस स्थान पर चंदन के पेड़ अधिक थे. उन पर सर्प लटके थे. राजकुमार नेवले व चूहे को लेकर अदृश्य हो गया. तभी उसे चीख सुनाई दी उसने देखा कि गिद्ध ने एक सुंदर सी स्त्री को मुंह में पकड़ लिया है. राजकुमार ने जादू की तलवार से गिद्ध का पैर काट दिया और तलवार पेट में चुभो दी. गिद्ध जलकर भस्म हो गई.

वह स्त्री वैसे ही वहां खड़ी थी. वह बोली:-

"तुम मेरे भाई के समान हो."

वह राजकुमार को लेकर उस चमकती की चट्टान के पास आई. आकर चट्टान पर थाप मारी. तुरंत चट्टान गायब हो गई. वहां एक बहुत सुंदर मकान था. वह उसमें चली गई. आगे एक सुसज्जित कमरा आया. उसने राजकुमार को उसमें बैठाया और स्वयं चली गई. कुछ देर बाद एक युवक उस कमरे में आया. वह बोला:-

"तुमने मेरी बेटी की जान बचाई है. वह घूमने निकली थी. तुम कुछ दिन यहीं आराम करो."

तीन दिन तक राजकुमार वहां रहा चौथे दिन. उसने जाने की आज्ञा मांगी. चलते वक्त वह युवक बोला:-

"मैं वन देवता हूँ. कभी अपनी बहन को याद करना."

राजकुमार वहां से विदा लेकर चला आखिर वह उस टापू पर पहुँच गया. उसके राज्य के चारों ओर आग थी.

अब राजकुमार कैसे अंदर जाए?

तभी उसे तरकीब सूझी. उसने नेवले व चूहे से धरती के नीचे सुरंग बनवाई. वह काफी चौड़ी थी. उसमें आग नहीं थी. वह राज्य के अंदर प्रवेश कर गया. अंदर पहुंच कर उसने नेवले व चूहे को जेब में रखा और अदृश्य हो गया. वहां एक बहुत बड़ा किला था. वह उसमें जाने का सोचने लगा.