आज जब सखी उठी ।आज वो किसी जल्दी में नहीं थी।आज वो तरो ताज़ा महसूस कर रही थी।वो आज खुश थी।क्या था जो उसे इतना खुश कर रहा था , कहीं कुशल तो इसका कोई राज़ नहीं।
अरे नहीं ,कुछ भी आप भी एक ही सोच बना लेते हो।ऐसा कुछ भी नहीं है।कुशल का इस खुशी से कोई लेना देना ही नहीं है।वो आज इसलिए खुश थी क्योंकि उसकी पहली कविता आज एक मैगज़ीन में छपने वाली थी। इसके लिए उसे मैगज़ीन के दफ्तर जाना था।
आज शायद उसका को सपना जो उसने कभी देखा था वो पूरा होने वाला था।उसके पंखों को आसमान मिलने वाला था।आज वो सारे काम खत्म करके जल्दी ही फ्री हो गई।फिर तैयार होने के लिए कमरे में चली गई। फिर कुछ देर बाद निकली तो उसने सास को आवाज लगाई की मां जी मैं जरा मैगज़ीन के दफ्तर जा कर आती हूं। सासू मां जी ने भी हांमी भरी।
आज उसके चहेरा की रौनक देखते ही बनती थी।
वो जैसे ही दफ्तर पहुंची उसे गिरधर नज़र आया।वो सोचने लगी की वो गिरधर ही है या उसको भ्रम हो रहा है।
वो दोबारा देखने को मुड़ी की इतने में ही मैनेजर साहब ने उसे बुला लिया।
उसकी कविता मैगज़ीन में छप गई थी।उसी के लिए मैगज़ीन वालो ने उसे दफ्तर बुलाया था। वो अपनी ही कविता को देख कर फुली नहीं समा रही थी।आज वही महसूस कर रही थी जब उसने पहली बार स्कूल में इनाम जीता था।
वो धन्यवाद कर घर जाने को निकली तो देखा की बाहर कोई खड़ा है ।अरे ये तो कुशल है।हम्म्म्म... असहज सा महसूस कर रही थी। मन में सोच रही थी कल तो कुछ अटपटा नहीं लगा बात करने में तो आज ये असहजता कैसी है। पता नहीं गर छोड़ो। सीधा घर जाना है क्यूं इतना सोचूं। इतने में कुशल ने भी सखी को देख लिया । वो सखी की तरफ बढ़ चला।उसने सखी को बुलाते हुए कहा यहां कैसे।
सखी ने बताया बस मेरी कविता छपी थी उसी के लिया यहां आई थी। ओह! तुम कविताएं लिखती हो, कुशल जाने के लिए उत्सुक था। हां बस लिख लेती हूं। दिखाओ कहां है ,कुशल ने जल्दी से उसकी मैगज़ीन को उसके हाथों से खींचा।सखी मन में सोच रही थी की ये क्या बदतमीज़ी है।एक स्त्री से ऐसे बर्ताव करते हैं क्या वो भी जो आपकी कुछ नही लगती । पहले कभी कुशल ने ऐसा नहीं किया। कुशल ने उसकी कविता पढ़ी और मैगज़ीन सखी को वापस कर सी। लेकिन कुछ बोला नहीं ।फिर मुस्कुराया और वहां से चला गया ।
और सखी सोच रही थी कि उसने कविता के बारे में कुछ बताया नहीं।क्या पता ये उसने बाहर जाने पर , सीख ली हो। काफी कम समय ही तो हुआ था इससे मिले जब ये बाहर चला गया था।हो सकता है वैसा ही हो में इसे जान ही नहीं पाई। इसी उधेड़ बुन में वो घर पहुंच गई ।खुश हो कर वो अपनी सास को बता रही थी, कि कविता मैगज़ीन में छप गई है। मां जी भी इस खबर से बहुत खुश थी।उन्होंने कविता को आशीर्वाद दिया। बस आज सखी को कुछ नही दिख रहा था,वो और उसकी नई उड़ान की कविता।