Chapter - 32
कृशव - आप चिंता मत करिए आप जान जाएंगी मुझे l
श्रीशि - क्या हुआ वैदेही क्या बात है तुम क्यों चिंतित हो l
वैदेही - वो.. वो..
कृशव - कुमारी इतना संकोच मत करो और डर वो तो बिलकुल भी नहीं जब बात तुम्हारे जीवन की है तो l
श्रीशि - क्या बात है वैदेही बोलो ?
वैदेही श्रीशि का हाथ पकड़ उसे मंदिर के पीछे ले गयी श्रीशि ने उसे रोक कहा - ऐसी क्या बात है जो तुम मुझे यहाँ लेकर आयी l
वैदेही पीछे की तरफ इशारा करती है श्रीशि देखती है तो सुव्रत आ रहा था वो उनके पास आया श्रीशि उसे देख हैरानी से कहती है - तुम.. तुम यहाँ l
वैदेही - मुझे तुम्हें यही बताना था कि मैं और सुव्रत एक दूसरे से प्रेम करते हैं l
श्रीशि ये सुनकर हैरान रह गयी - क्या तुम दोनों...
सुव्रत - हाँ और मैं तुमसे विवाह नहीं करना चाहता क्योंकि मैं वैदेही से विवाह करना चाहता हूँ और हम चाहते हैं कि तुम इस विवाह के लिए मना कर दो l
श्रीशि गुस्से से उसे देख कहती है - अच्छा मैं इस विवाह के लिए मना कर दूँ तुम दोनों को क्या लगता है मैं पागल हूँ l
और तुम ( सुव्रत ) तुम एक लड़के होकर मुझसे कह रहो की मैं मना कर दूँ उस दिन जब मेरे पिता और तुम्हारे पिता हमारे रिश्ते के बारे में बात कर रहे थे तो उसी वक़्त तुम मना नहीं कर सकते थे चुप क्यों थे और दो तीन दिवस बचा है तो तुम चाहते हो मैं विवाह के लिए मना कर दूँ l
वैदेही उसके पैरों में गिर जाती है और रोते हुए कहती है - हमें माफ कर दो लेकिन कृपा करके ये विवाह न करो l
श्रीशि उसे उठाती है और कहती है - क्या कर रही हो अच्छा ठीक है मैं इस विवाह के लिए मना तो नहीं कर सकती लेकिन तुम दोनों का विवाह मैं कराऊंँगी l
वैदेही उसे गले लगा लेती है और कहती है - तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद मैं प्रार्थना करूंगी की तुम्हारा प्रेम भी तुम्हें मिल जाए l
श्रीशि सोचने लगी जब ताई ने उसे साफ मना कर दिया था l
उसने कहा - नहीं ये तो कभी नहीं हो सकता अच्छा अब चलो बहुत सारा काम है माँ और मामी जी हमारी प्रतीक्षा कर रहीं होंगी l
वो मंदिर में वापस आ जाती हैं सुव्रत चला जाता है श्रीशि कहती है - चलें l
वैदेही कृशव को धन्यवाद कहती है l
कृशव मुस्कराते हुए कहता है - अरे कुमारी इसमे धन्यवाद की क्या जरूरत मन की बात कभी भी छुपाना नहीं चाहिए उसे बता देना ही सबसे बड़े बोझ से मुक्ति मिल जाती है और मन शांत रहता है नहीं तो उसी विचार में खोया हुआ परेशान होता रहता है l
वैदेही - तुमने सही कहा अब मुझे अच्छा लग रहा है l
सभी वापस महल लौट आते हैं कृशव रसोई घर की तरफ जाने लगता है उसके मित्र बैठे सब्जी काट रहे थे एक आटा गुंथ रहा था सत्या गुस्से से बोला - ये हमें तो फ़ंसा कर चला गया आया है खुद प्रेमिका का हृदय जितने लेकिन फ़ंसा हमको गया l
अगस्त्य - सही कहा तुमने जब से आए हैं ये कर दो वो कर दो इन सबने मुझे पागल बना दिया है कितना सारा काम है क्या क्या करें हम काम किसी और का है कर हम रहे हैं l
तभी आते हुए कृशव बोला - क्या हो रहा है मित्रों तुम सब मुझे बहुत याद कर रहे थे लो मैं आ गया l
सत्या - ये हमसे सब्जी वब्जी नहीं काटी जाती l
अगस्त्य - हाँ और ये खाना वाना मुझसे नहीं बनता l
कृशव - तुम सब मूर्ख हो तुमको लगता है मैं अपनी श्री को तुम लोगों के हाथ का बेस्वाद खाना खाने दूँगा l
सत्या - तो क्या करोगे तुम ?
कृशव - मैं उसके लिए भोजन बनाऊँगा तुम दोनों को तो पता ही है उसको मेरे हाथ का स्वाद पसंद है l
वो दोनों कृत्य लोक की कुछ बातें याद करने लगे और कहा - हाँ पता है बनाओ आज वो फिर से तुम्हारे हाथ का स्वाद चख ले l
कृशव - तो इसलिए मैं जो - जो बोल रहा हूँ वो चीजें मुझे देते जाओ l
कृशव कोई और नहीं बल्कि ( ताई ) ही था जो सत्या ( सिमी ) अगस्त्य ( जियांग ) था उन्होंने ही अपना भेष बदला था l
कृशव खाने की सारी सामग्रियां मांगता गया वो दोनों उसे देते गए उसने कुछ ही समय में सारा खाना तैयार कर दिया फिर कृशव ने खुद ही खीर बनाई जिसकी सुगंध से सत्या और अगस्त्य अपना आपा खो रहे थे l
सत्या - ये कितनी स्वादिष्ट लग रही है मुझसे इंतजार नहीं हो रहा है l
अगस्त्य - इसकी सुगंध से तो श्रीशि भी दौड़ी चली आएगी l
कृशव - थोड़ा और इंतजार करो l
तभी एक सेवक आया और बोला - क्या भोजन बन गया है सभी के खाने का समय हो गया है l
कृशव - हाँ भोजन तैयार है सभी को बाहर रखवा दो l
सभी सेवक खाने को बाहर लेकर जाते हैं और रख देते हैं l
थालियां लगा देते हैं सभी लोग खाने के लिए आ जाते हैं श्रीशि जब सीढियों से नीचे उतर रही थी तो उसे खीर की सुगंध आती है l
वो खाने के पास आती है वो देखना चाहती थी कि ये सुगंध किस चीज़ की है वो नजरें घुमाते हुए खाने को देखने लगी l
केशवी और सूर्य शेन ने उसे देखा सूर्य शेन ने केशवी को इशारे से पूछा - क्या हुआ इसे l
उसने न में सर हिला दिया और श्री से पूछा - श्रीशि बेटा क्या देख रही हो कुछ ढूँढ रही हो l
श्रीशि ने कहा - रुकिए न माँ l
अगस्त्य कृशव से कहता है - जरूर ये तुम्हारे उस स्वादिष्ट खीर को ढूँढ रही होगी l
कृशव हँसा और मुस्कराते हुए बोला - राजकुमारी जी आप अगर कुछ ढूंढ रहीं हैं तो मुझे बताइए मैं आपको ढूंढ़कर दे देता हूँ l
श्रीशि ने बिना उसे देखे कहा - नहीं नहीं तुम्हारी आवश्यकता नहीं है l
फिर श्रीशि सारे खाने के बर्तन को खोल खोलकर देखने लगी फिर उसे एक बर्तन दिखा उसने उसे खोला और उसे देख खुश हो गयी - खीर l
उसके मुँह से ये बात सुन सभी उसे अजीब तरह से देखने लगते हैं उसके मामा जी बोलते हैं - हाँ खीर है इसे जब भी खीर दो तब तो नहीं खाती आज इसे क्या हुआ खीर न होकर मानों कोई खजाना खोज देख लिया हो l
श्रीशि ने राघव की तरफ देखकर कहा - मामा जी आपको पता नहीं है ये खीर मेरे लिए खजाने से कोई कम नहीं है मुझे खीर बहुत पसंद है इतनी इतनी की मैं आपको शब्दों में नहीं बता सकती l
केशवी - अच्छा अब उसे ढक दो पहले भोजन कर लो उसके बाद खीर खाना ठीक l
श्रीशि ने बच्चों की तरह जिद्द करते हुए कहा - माँ...
केशवी - पहले खाना फिर खीर l
श्रीशि - ठीक है l
केशवी ने सबको खाना परोसा श्रीशि खीर को देखते हुए ही जल्दी - जल्दी अपना भोजन समाप्त करने लगी l
जैसे ही उसने अपना सारा खाना समाप्त किया कृशव ने वापस से उसकी थाली भर दी उसका ध्यान खीर से हटा तो उसने अपनी थाली भरी हुई पाई वो हैरानी से थाली को देखने लगी l
श्रीशि - ये क्या मैंने अभी - अभी तो समाप्त किया था ये अपने आप कैसे भर गया l
सूर्य शेन ने उसकी थाली भरी देखी तो कहा - अरे श्री तुमने अभी तक भोजन समाप्त नहीं किया l
केशवी - तुम अभी तक खीर को ही देख रही हो भोजन समाप्त करो उसके बाद जी भरकर खीर खा लेना l
सत्या - लगता है ज्यादा उत्साहित हैं इसीलिए l
श्रीशि ने फिर से सारा खाना समाप्त किया कृशव ने अपनी उंगली घुमाकर उसकी थाली वापस से भर दी श्रीशि ने देखा तो फिर हैरान रह गयी l
वो पलकें झपकते हुए अपनी थाली को देखने लगी सभी लोग खा कर उठ गए केशवी ने फिर उसकी थाली पूरी भरी पाकर कहा - श्री तुम खा क्यों नहीं रही हो इस खीर के चक्कर में अपना खाना खत्म नहीं कर रही अब ये तुम्हें तभी मिलेगी जब तुम पूरा भोजन समाप्त कर लोगी l
और उन्होंने खीर अपने पास रख ली श्रीशि बस हैरानी सी अपनी थाली को देखती रही उसने फिर से खाना शुरू कर दिया और इधर उधर नजरें घुमाकर देखने लगी l
फिर उसने सारा खाना खत्म किया उसका पेट बहुत ज्यादा भर चुका था केशवी ने उसके सामने खीर का बर्तन कर दिया l
श्रीशि ने मुँह बनाते हुए कहा - नहीं माता मुझे अब ये खीर नहीं खानी है मेरा पेट बहुत ज्यादा भरा हुआ है l
वो उठकर जाने लगी सत्या ने कहा - अरे ये क्या ये तो अब खीर खाने से रही l
अगस्त्य - वो तो जा रही है बिना तुम्हारे हाथ की खीर खाए कृशव मुस्कुराया और चुटकी बजायी श्रीशि रुक गयी वो खुद से बोली - मैंने तो अभी अभी ही इतना सारा खाया था वापस से भूख लग गयी क्या हो रहा है मेरे साथ l
श्रीशि वापस लौटकर आती है केशवी जो खीर को रखने जा रही थी और उसकी मामी खाने वो आकर केशवी के हाथ से खीर ले लेती है और खाने लगती है वो पहली बार जब खाती है तो उसे वो बहुत अच्छा लगता है और वो उसे खाने लगी जैसे कई दिनों से भूखी हो l
केशवी उसकी मामी जी और सभी उसे देख रहे थे केशवी उसे देख बोली - तुम तो कह रही थी कि तुम्हें अब भूख नहीं है तो फिर...
श्रीशि - मैंने जितना भी खाया था वो सारी सृष्टि में बट गयी l
उसकी बात सुन वो दोनों उसे देखने लगी उसकी मामी जी ने कहा - हाँ क्यों तुम्हीं हो इस सृष्टि की कर्ता धर्ता मुझे भी खानी थी खीर l
श्रीशि खाते हुए - नहीं मामी जी आप दूसरी बनवा लीजिए क्योंकि अगर आप ने इसे छुआ भी तो ये आपके लिए हानिकारक हो सकता है l
सत्या ने कहा - वैसे कह तो सही ही रही है कड़वी ज़बान क्या जाने मीठे का स्वाद l
श्रीशि ने सारी खीर खा डाली और कहा - ये खीर मुझे बहुत पसंद आयी जिसने भी ये खीर बनाई है मैं चाहती हूँ वो हमेशा मुझे ये खीर बनाकर खिलाए पूरे जीवन भर l
श्रीशि की मामी जी ने कहा - ये तो नहीं हो सकता क्योंकि तुम और वो कभी साथ रहेंगे ही नहीं l
श्रीशि ये बात सुन उनकी तरफ देखने लगी उसे देख उसकी मामी जी ने कहा - ऐसे मत देखो क्योंकि ये कृशव ने बनाई है जो कि तुम हमेशा उसके साथ रहोगी तो है नहीं या वो तुम्हारे लिए खीर बनाएगा उसे दुनिया के और भी काम हैं l
कृशव अपनी आँसू भरी आँखों से श्रीशि को देख रहा था श्रीशि जब उसे देखती है तो वो अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लेता है श्रीशि ने शान्ति से उसकी तरफ देख पूछा - क्या ये तुमने बनाई थी बहुत अच्छी थी ऐसा लगा जैसे ये स्वाद जाना सा लगा इसे खाकर मैं तृप्त हो गयी l
कृशव फिर मुस्कुराया और उससे कहा - अगर आपको ये खीर पसंद आयी तो मैं आपके लिए ये जीवन भर बनाऊँगा
ये मेरा वचन है आपसे l
श्रीशि की मामी जी - क्यों तुम उसके ससुराल जाओगे l
कृशव ने श्रीशि को देखते हुए कहा - मैं तो इनके लिए कहीं भी जा सकता हूँ l
मामी हैरानी - हाँ...
कृशव ने कहा - मेरा कहने का मतलब है कि मैं इनके लिए खीर हमेशा बनाऊँगा और बनाकर चला जाऊँगा l
मामी - हाँ हाँ श्रीशि अब तुम जाओ अपने कमरे में कल सुबह तुम्हें कुछ रस्में करनी हैं l
श्रीशि जाने लगी और कृशव उसे जाते हुए देख मुस्करा रहा था श्री की मामी जी उन से बोलीं - अब तुम सब भी ये सारे काम निपटाकर जाओ सुबह बहुत काम है l
सभी ने काम निपटाया और रसोई घर में सारा सामान रखने चले गए सत्या - अरे मैं तो थक गया तुम्हारे प्रेम के चक्कर में मैं फ़ंसा ही क्यों l
कृशव - कैसे मित्र हो तुम सब क्या तुम मेरे लिए इतना सा भी नहीं कर सकते तुम्हें पता भी है अभी आगे भी कितना कुछ करना है अगर ऐसे आलसपन दिखाओगे तो भविष्य में क्या होगा तुम लोगों का l
अगस्त्य - क्या भविष्य में भी हम खाना बनाएंगे l
तभी कृशव ने कहा - जो सोच ले सोचने का सबका अपना - अपना तरीका होता है जैसे श्री ने मेरे बारे में सोचा l
सत्या - क्या वो तुमसे प्रेम नहीं करती l
कृशव - करती है बहुत पहले से लेकिन उसका विश्वास अभी मुझपर नहीं है वो उस समस्या से अभी तक जानकार नहीं हुई है जिससे मैं घिरा हुआ था l
मैं अपनी शिद्दत को ही पाने के लिए यहाँ आया हूँ और उसे उसकी भूल का एहसास दिलाऊंगा जिसे उसने किया था अब बारी है विश्वास की l
अच्छा तो तुम मेरी भूल का एहसास दिलाने आए हो, पीछे से श्रीशि ने गुस्से में कहा l
सभी उसकी तरफ देखने लगे l
Continue...
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