तुम्हें गिफ्ट पसंद है

"तुम्हें गिफ्ट पसंद है तो बात खत्म।" उसने साफ़-साफ़ तस्वीर खींचने से मना कर दिया।

"क्या जय डार्लिंग, तुम मास्क लगा लो।"

तभी जय की नज़र साइड में खड़ी लड़कियों पर गई।

"अब हम चलते हैं।" रेणुका ने कहा। वह जानवी का हाथ खींचकर उसे बाहर ले आई।

जय ने रेणुका को पहचान लिया। यह वही कैफ़े वाली लड़की थी। उसके साथ जो लड़की थी, जय उसे पहली बार देख रहा था। जब जानवी चेयर पर बैठी हुई थी, तो उसने जानवी के कपड़ों की तरफ़ भी ध्यान नहीं दिया था।

"क्या साथ में जानवी थी?" जय ने अपने आप से कहा।

"ये लड़कियां तो ऐसे ही चली गईं।" दिशा ने कहा। "तस्वीर खींचने को कह रही थीं। लगता है आपको देखकर डर गईं।"

"ठीक है, मैं भी चलता हूँ।" जय ने कहा।

"मगर तुम तो अभी आए थे! अभी तो हमने प्यार भी नहीं किया। तुमने तो मुझे अपना गिफ्ट दे दिया, अभी मुझे भी तो खुश करने दो।" उसने जय के गले में अपनी बाहें डाल दीं।

"मेरा मूड नहीं है।" उसने एकदम से अपने गले से दिशा की बाहें निकालीं।

दिशा ने वापस उसके गले में अपनी बाहें डाल दीं।

"जय डार्लिंग," उसने कहा।

अब दिशा की हरकत से जय को गुस्सा आ गया। उसने दिशा की बाहों को फिर अपने गले से निकाला और उसे बेड पर धक्का दे दिया।

"अपनी लिमिट में रहो!" वह गुस्से से बोला।

बिना दिशा की तरफ़ देखे, उसने अपना मास्क और गॉगल्स साइड टेबल से उठाए और कमरे से बाहर निकल गया।

उन लड़कियों ने एक लिफ़्ट ली थी, तो वह दूसरी लिफ़्ट से नीचे जाने लगा। जब तक वह हाल में पहुँचा, लड़कियाँ हाल में नहीं थीं। वह आराम से बाहर गया। वहाँ होटल के गेट के एंट्री की एक साइड पर फ़्लावर्स और गमलों के लिए थोड़ी ऊँची जगह बनी हुई थी। जानवी वहाँ बैठी थी और दोनों उसके पास झुकी हुई थीं।

"जानवी, तुम ठीक तो हो ना?" प्रीति ने पूछा।

"अच्छी बात है कि तुम अपनी दवाई अपने साथ रखती हो। पता नहीं तुम्हारे साथ ही ऐसा क्यों होता है। मेरे मन में कहीं ना कहीं ये ख्याल था कि जय अगर तुमसे बड़ा है, तो क्या हुआ? शायद वो तुम्हारी परवाह करेगा। मैं सोचती थी, अब वह तुमसे नहीं मिला तो कोई बात नहीं, मगर जब शादी के बाद वह तुम्हें जानेगा, तो तुम जैसी लड़की पाकर वह खुश होगा। उसकी लाइफ़ में तुम्हारी इम्पोर्टेंस होगी। शायद तुम्हारी दवाइयाँ भी छूट जाएँगी।" रेणुका ने कहा।

"तुम क्यों फ़िक्र करती हो यार? मैं बिलकुल ठीक हूँ।" जानवी वहाँ से खड़ी हो गई।

"अब जाकर तुम कह देना और बता देना।"

"कोई ज़रूरत नहीं है। उससे शादी करने की।" प्रीति ने कहा।

"बिलकुल, अब तो गुंजाइश की कोई बात ही नहीं है कि तुम मुझे शादी करो। अपने दादाजी को सारी बात बता देना।" रेणुका ने कहा।

"तुम लोग अच्छे से जानती हो। ऐसा नहीं हो सकता। मैं शादी के लिए मना नहीं कर सकता।"

"मगर क्यों?" उसकी दोनों सहेलियाँ गुस्से में थीं।

इस बात से अनजान, होटल के दरवाज़े पर खड़ा जय उनकी बातें सुन रहा था।

"ज़िन्दगी में मैंने दादाजी को मेरे लिए पहली बार इतना रिलैक्स देखा है। कभी वह मेरे लिए अंकल से लड़ते हैं, कभी आंटी से लड़ते हैं, कभी उनके बच्चों से, और वह इतने खुश हैं, मैं बता नहीं सकती।"

"कोई बात नहीं, शादी होने दो। देखते हैं क्या लिखा है मेरी किस्मत में। चलो अब चलते हैं।" मुस्कुराती हुई जानवी भी उनके आगे होकर चलने लगी। वह तीनों वहाँ से चली गईं। जय भी उनके बाद पार्किंग एरिया में गया और अपनी गाड़ी में बैठा।

जानवी शाम को घर पहुँची। तीनों सहेलियाँ प्रीति के घर चली गई थीं। वह लोग वहीं बैठी रहीं।

"अब तो शादी होने वाली है। कोई आने-जाने का टाइम होना चाहिए। फ़िक्र होनी चाहिए तुम्हें।" उसकी आंटी ने उसे देखते हुए कहा।

"आंटी, मैं, रेणुका और प्रीति हम साथ में थे। बातों में हमें टाइम ही पता नहीं चला। इसलिए थोड़ी सी देर हो गई।"

"आज तुमने पार्टी भी दी होगी! इतने बड़े मल्टी-बलेनियर से तुम्हारी शादी हो रही है, सभी सहेलियों को बता रही होगी।" सोनिया भी अपनी माँ के साथ खड़ी थी, उसने कहा। "मगर ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नहीं है। वह तुमसे इतना बड़ा है और और भी बहुत कुछ सुना है मैंने उसके बारे में।" सोनिया सोफ़े पर बैठ गई। "तुम जैसी लड़की उसके साथ बिलकुल मैच नहीं करती। कपड़े पहनने का तरीका तुम्हें नहीं है, बात करने का तरीका तुम्हें नहीं है, सबसे बड़ी बात तुम उसके साथ कभी अच्छी नहीं लगोगी। देख लेना, वह तुम्हारी तरफ़ देखेगा भी कहीं नहीं।"

जानवी ने उन लोगों को कोई जवाब नहीं दिया। वह अपने कमरे की तरफ़ जाने लगी।

"ये तो लगता है हमसे बात भी करना नहीं चाहती। किसी बात का जवाब भी नहीं दे रही। अभी से इसमें इतना नखरा है।" सोनिया की छोटी बहन तानिया कहने लगी। "अब वैसे शादी के बाद तो तुम्हें ये घर छोटा लगने लगेगा। तब तो तुम यहाँ आएगी ही नहीं।" तान्या भी चुप नहीं हो रही थी।

सोनिया जानवी से २ साल बड़ी थी, तो तानिया जानवी की उम्र की थी। तानिया से छोटा उनका एक भाई था। ऐसा नहीं था कि ये कोई गरीब लोग थे। जानवी के अंकल सोमनाथ की अपनी रेडीमेड कपड़े की फैक्ट्री थी और काफी अच्छे खाते-पीते लोग थे। मगर जयराज सिंघानिया के सामने उनकी कोई हैसियत नहीं थी।

अब जानवी उन तीनों को इग्नोर करती हुई अपने कमरे में चली गई। मूड उसका पहले ही बहुत ज़्यादा ख़राब था और उन्होंने अपनी बातों से उसका दिल और दुखाया था। उसने अपनी प्लाज़ो की पैंट में से अपनी दवाई फिर निकाली और उस दवाई की दो गोलियाँ निकालकर अपने मुँह में रख लीं। फिर उसने जोर-जोर से साँस ली, अपनी आँखों में आए हुए पानी को साफ़ किया। फिर थोड़ी देर में जैसे दवाई का असर हुआ, वह रिलैक्स हो गई।