गर्व को राजा एक नेक दिल अच्छे और प्रजादक्ष राजा लगते थे इसलिए उसने राजा को सच सच बताया पर आधा सच उसने बताया कि कैसे उसकी जंग गुफा में एक मकड़ी से हुई और उससे उसे एक बर्फ की तलवार प्राप्त हुई उसी तलवार से कालीचरण के युद्ध के कारण वहां जंगल में सारे पत्थर और वृक्ष और जमीन की मिट्टी भी जल के कोयला बन गए पर उसने यह नहीं बताया कि उसने बहुत सारे उसके पिछले जन्म में सीखे मंत्रों का प्रयोग किया था यह सुनकर राजा ने लंबी सांस लेते हुए कहा यह कालीचरण सच में बहुत ही खतरनाक है हमारे राज्य के अच्छे-अच्छे सैनिक भी उस से लड़ते शहीद हो गए दरअसल मैं तुमसे एक मदद चाहता हूं यह कालीचरण हमारे राज्य में कई बार उत्पात मचाता रहता है सैन्य प्रशिक्षण केंद्र में हमारे दो सैनिक हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगे अगर अपने राज्य में इसका फिर से हमला होता है तो यह दोनों तुम्हें इसकी जानकारी देंगे और तुम्हें हमारे सैनिकों की मदद करने जाना पड़ेगा बोलो क्या तुम यह करोगे जी बिल्कुल मैं अपने सैनिकों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहूंगा यह सुनकर राजा खुश हो गए और उन्होंने गर्व से कहा मुझे तुमसे यही उम्मीद थी और रही वह अक्षय कि बात हमे पता है की वह तांडव कबीले के लिए काम करता है हम उसके पीछे हमारे कुछ गुप्तचर लगाएंगे हम अभी उसका कुछ नहीं कर सकते क्योंकि हमारे पास सबूत नहीं है पर जैसे ही हमारे पास सबूत आयेंगे उसका भी हिसाब कर दिया जाएगा बहुत-बहुत धन्यवाद राजा जी गर्व ने सर झुका कर कहा अच्छा तो तुम अब जा सकते हो कल से तुम्हें सैन्य गुरुकुल भी जाना है और तुम्हारे कल से काम बढ़ने वाले हैं ठीक है इतना कह कर गर्व वहां से अपने कमरे की तरफ चला गया दूसरे दिन पांच बजे ही गर्व को दो सैनिकों ने उठा दिया और उसे उन्होंने छह बजे गुरुकुल में ले गए यह वहीं दो सैनिक थे जो राजा के निर्देशों पर हमेशा गर्व के साथ गुरुकुल में रहने वाले थे इन दो सैनिकों के नाम थे मंदार और केदार वह पच्चीस की उम्र के आसपास के सैनिक थे और वहां आकाश मंडल के पहले स्टेज के योद्धा थे सैन्य गुरुकुल जाते ही उनके गुरुकुल के दरवाजे पर गुरु मनोहर पंडित जी के दर्शन हो गए उनको देखते मंदार और केदार दोनों ने ही उनको झुककर प्रणाम किया दरअसल मनोहर पंडित बुजुर्ग और अनुभवी गुरु थे उन्होंने कई योद्धाओं को बनाया था मंदार केदार उनके ही शिष्य थे उन्होंने मनोहर पंडित जी को बताया कि स्वयं राजा ने गर्व की सुरक्षा और मदत के लिए यहां पर भेजा है तो मनोहर पंडित आश्चर्यचकित हो गए तभी वह यह सोचकर शांत हो गए की स्वयं राजा ने यह किया है तो जरूरी ही कुछ सोच कर ही किया होगा वह गर्व को कहते हैं कि मुझे लगता है कि तुम आगे चलकर एक बड़े शूरवीर योद्धा बनोगे और हमारे आश्रम और हमारे राज्य का नाम पूरे दुनिया में ऊंचा कर दोगे तुम ऐसे ही प्रगति करते रहो मेरी शुभकामनाएं सदैव तुम्हारे साथ है तब गर्व उन्हे अपना सर झुकाकर धन्यवाद कहता है और इसके बाद मंदार केदार और गर्व तीनो सैन्य गुरुकुल में प्रवेश कर जाते हैं सैन्य गुरुकुल का परिसर बहुत ही विशाल था यहां पर कई सारे पचास पचास मीटर मंजिला इमारतें बनी हुई थी जगह जहां छात्र-छात्राएं आपस में चर्चा कर रहे थे और एक गुरुकुल की भव्य दिव्य इमारत बनी हुई थी इस गुरुकुल में छात्र अपनी इच्छा के अनुसार अपना गुरु चुन सकते हैं छात्रों को अपने गुरु को चुनने की आजादी थी वैसे ही गुरुओं को भी अपने छात्रों को चुनने की आजादी थी मंदर और केदार गर्व को गुरुकुल के सबसे वरिष्ठ और अनुभवी गुरु सूर्य कुमार के पास लेकर जाते हैं इस गुरुकुल में हर शिक्षक को अपना अलग से हॉल छात्रों को पढ़ाने के लिए दिया गया था गुरु सूर्य कुमार जिस हॉल में छात्रों को पढ़ाते थे वह बहुत ही भव्य हॉल था वह करीब तीस मीटर आडा और 100 मीटर चौड़ा था यहां पर गुरु सूर्य कुमार के छात्र बनने के लिए छात्रों की लंबी भीड़ लगी हुई थी गर्व के साथ राज्य के सैनिकों को देखकर वह सारे उनको रास्ता देने लगे दरअसल ऐसे बहुत ही कम छात्र रहते थे जिनको स्वयं राज्य की सुरक्षा मिलती थी इसलिए ऐसे छात्रों को प्रथम मौका दिया जाता था छात्रों की भीड़ हटते ही बंदर मंदार केदार और गर्व गुरु सूर्य कुमार के पास जाते हैं और उनको छुककर प्रणाम करते हैं वह उनसे पूछते हैं क्या नाम है तुम्हारा तो गर्व कहता है कि मेरा नाम गर्व है यह सुनते ही उनकी आंखें चौड़ी हो जाती है दरअसल गर्व और अक्षय के बीच की लड़ाई की जानकारी अब तक सारे राज्य में फैल चुकी थी कि कैसे गर्व ने अक्षय की एक एक हड्डी को तोड़ दिया था सूर्य कुमार के साथ-साथ बाकी छात्र भी गर्व की तरफ एक डर की नजर से देख रहे थे तभी गुरु सूर्य कुमार गर्व से कहते हैं तुम्हें अपना शिष्य बनाने से पहले मुझे तुम्हारी परीक्षा लेनी होगी क्या तुम तैयार हो तो गर्व हां कह के सिर हिलाता है और वह उसे एक पत्थर के तरफ लेकर जाते हैं जहां पर अपने मुक्के की ताकत गिनी जाती है गर्व अपनी ताकत का सिर्फ एक चौथाई ताकत का प्रयोग करके मुक्का मारता है वैसे ही उस पत्थर के बाजू के आईने में नंबर आने लगते हैं 200 किलो यह देखकर वहा मौजूद सारे छात्र हक्के बक्के रह जाते हैं दरअसल छात्रों में ऐसा कोई भी नहीं होता है कि जो वायुमंडल में हो सारे छात्र आमतौर पर भूमि मंडल के ही होते हैं चीन के मुख्य की ताकत सिर्फ 100 किलो तक ही होती है उसके बाद का वायुमंडल होता है वायुमंडल के प्रथम स्टेज के योद्धा की 250 किलो दूसरे स्टेज में 500 किलो तीसरे स्टेज के योद्धा की 750 किलो वायुमंडल के चौथे स्टेज में हजार किलो होती है और इसके ऊपर की ताकत वाले लोग आकाश मंडल में आते हैं गुरु सूर्य प्रकाश स्वयं के आकाश मंडल के चौथे स्टेज के योद्धा थे वह भी यह देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं फिर वह अपनी हैरानी कम करके उसको दूसरी जगह लेकर आते हैं उनके पीछे पीछे बाकी के छात्र भी जाते हैं उन सब में अब गर्व के प्रति उत्सुकता बढ़ गई थी वहां पर एक बड़ा सा यंत्र लगा होता है यहां पर किसी भी आदमी की गति नापी जाती है गर्व उस यंत्र के ऊपर चढ़ जाता है और धीरे धीरे चलने लगता है और धीरे-धीरे करते हुए अपनी गति को बढ़ाते जाता है उस यंत्र के बाजू लगे दीवार में धीरे-धीरे अंक बढ़ने लगते हैं 5 मीटर 10 मीटर 25 मीटर 50 मीटर ऐसे करते-करते वह 200 मीटर प्रति सेकंड की गति पहुंचता है और थोड़ी देर तक उसी गति में रहकर अपने गति को फिर से कम कर कर उस यंत्र के बाहर निकल जाता है यह देखकर फिर से वहा मौजूद सारे छात्रों के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहता उनकी आंखे फिरसे बड़ी हो जाती है क्योंकि 100 मीटर के ऊपर की गति तो सिर्फ वायुमंडल के ही योद्धाओं के पास होती है और ऐसी गति किसी भी छात्र के पास नहीं होती है वह सिर्फ जो गुरुकुल के 3 साल पूरे करते हैं उनके ही पास ऐसी गति और शक्ति होती है उसके बाद सूर्य कुमार गर्व को अपनी तलवार की तकनीकों का प्रदर्शन करने के लिए कहते हैं तभी गर्व अपनी 3 फीट लंबी तलवार को अपनी म्यान में से बाहर निकाल कर तलवार को हवा में घुमाना चालू कर देता है जल्दी उसकी तलवार हवा को काटना चालू कर देती है और हवा में से सन सन की आवाज आने लगती है जल्द ही यही सन सन की आवाज तेज और तेज हो जाती है और सारे हॉल में एक ध्वनि की कंपन उत्पन्न ना हो जाती है जल्द ही गर्व की तलवार की गति बहुत बढ़ जाती है और वह हवा में मौजूद प्राणवायु को काटना चालू कर के उसके तलवार में से हल्की चिंगारिया उत्पन्न होना चालू होती है और पूरे हॉल में ध्वनि की आवाज बहुत बढ़ जाती है इतनी कि कई छात्र उस हॉल से बाहर जाना चालू करते हैं और कई अपने कान पर हाथ रख देते हैं बस गुरु सूर्य प्रकाश अपना हाथ उठाकर कहते हैं और गर्व अपनी तलवार की गति को कम करते करते रुक जाता है उसके रुकते ही सब देखते है गर्व की तलवार में अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होने के कारण उसके तलवार की धार एकदम लाल हो गई है सभी छात्रों ने अपने पूरी जिंदगी में ऐसी तकनीकों को देखा नहीं था गर्व के रुकते हैं सारे छात्र एकदम से तालियां बजाना चालू कर देते हैं और सारा हाल तालियों की आवाज से गूंज जाता है फिर गुरु सूर्यकुमार गर्व से कहते हैं तुम तो पहले से ही वायुमंडल के योद्धा बन चुके हो कई छात्र गुरुकुल के 3 साल बाद भी वायुमंडल में पहुंच नहीं सकते इसमें कोई शक नहीं कि तुम आगे चलकर एक बहुत बड़े नेता बनने वाले हो मुझे तो गर्व होगा कि मैं तुम्हारा गुरु बनू इतना कहकर वह उसे अपना शिष्य बना लेते हैं और उसे वह शाम से ही उसको कक्षा में आने के लिए कहते हैं इसके बाद गर्व और उसके दोनों सैनिक वहां से निकल जाते हैं और वह छात्रावास में अपने कमरे को आरक्षित करने के लिए छात्रावास में पहुंच जाते हैं