Chapter 1: अभिमन्यु

पटना के बाजार की तंग गलियों में एक आदमी अपनी जान बचाने के लिए तेज़ी से दौड़ रहा था। उसकी साँसें तेज़ हो चुकी थीं, दिल की धड़कनें इतनी ज़ोर से बज रही थीं कि उसके कानों में अपनी ही आवाज़ दबने लगी थी। उसके पीछे लगभग दस गुंडों का झुंड उसे पकड़ने के लिए दौड़ रहा था, उनके हाथों में हॉकी स्टिक और चाकू चमक रहे थे। गलियों की भूलभुलैया जैसी सड़कों पर, वह हर मोड़ पर दौड़ता हुआ लोगों को धक्का देकर और अपने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को गिराकर भाग रहा था।

पटना की सड़कों पर दुकानें सजी हुई थीं, लेकिन उस आदमी की जान की बाज़ी लगी थी। चारों तरफ रेहड़ी वाले आवाजें लगा रहे थे, सब्जियों और मसालों की महक हवा में घुली हुई थी, मगर उस आदमी के लिए ये सब धुंधला हो चुका था। उसकी निगाहें बस एक ही चीज़ पर टिकी थीं—उसकी जान।

एक संकरी गली में मोड़ते ही, एक गुंडे ने मौका पाकर हॉकी स्टिक उसके पैर पर दे मारी। वह आदमी लड़खड़ा कर गिर पड़ा, और जैसे ही वह जमीन पर गिरा, गुंडों का झुंड उसके चारों ओर घिर गया। सड़क के किनारे बिछी धूल और कीचड़ उसके चेहरे और कपड़ों पर लग गई, लेकिन वह अपने दर्द को नज़रअंदाज़ करते हुए खड़ा होने की कोशिश कर रहा था। चारों तरफ शोर और गाड़ियों की आवाज़ें थी, मगर उस आदमी की चीखें उन शोरों के बीच कहीं खो गई थीं।

गुंडों में से एक आगे बढ़ा, उसके चेहरे पर एक खौफनाक मुस्कान थी। "बहुत दौड़ लिया बे! अब कहाँ भागेगा?" उसने अपनी चमकती हुई छुरी को हवा में घुमाते हुए कहा। "अब ये पेन ड्राइव निकाल, नहीं तो तुझे टुकड़े-टुकड़े करके कुत्तों को खिला देंगे।"

आसपास की दीवारों पर लगे पोस्टरों की ओर हवा में फड़फड़ाने लगे, जैसे वे भी इस खौफनाक मंज़र के गवाह बन रहे हों। आदमी की आँखों में डर और बेबसी थी, जैसे उसकी ज़िन्दगी अब खत्म होने वाली हो।

आदमी ने धीरे से हंसते हुए कहा, "हा हा हा, इतना आसान नहीं है। तुम्हें पता है मैं इस तरफ क्यों भागकर आया?"

गुंडे ने हैरानी से पूछा, "क्यों?"

आदमी ने कुछ नहीं कहा, बस हंसता ही रहा, जैसे उसे किसी बात की बहुत बड़ी ख़ुशी हो।

गुंडे ने उसे घूर कर देखा और गुस्से में कहा, "लगता है तूने चरस फूंक कर रखी है जो पागलों की तरह हंसे जा रहा है।"

उस आदमी ने हंसते हुए जवाब दिया, "हाँ, क्योंकि थोड़ी देर में तुम रोने वाले हो।"

गुंडे ने अपने साथियों की तरफ इशारा करते हुए कहा, "मारो इसे और इसके कपड़ों की तलाशी लो, पेन ड्राइव किसी जेब में ज़रूर होगी।"

इस बीच, वह आदमी अपने मन में सोच रहा था, "अबे जल्दी आ छोटे, और कितनी देर लगाएगा?"

तभी एक गुंडा धीरे-धीरे उसके पास हॉकी स्टिक लेकर आया, उसकी आँखों में साफ था कि वह अब इस आदमी को बुरी तरह पीटने वाला था। उसने हॉकी स्टिक को हवा में उठाया ही था कि अचानक उसके सिर पर एक ईंट आकर लगी। ईंट की मार से वह लड़खड़ाकर पीछे गिर पड़ा और उसके सिर से खून निकलने लगा।

सभी गुंडे चौंक गए। आदमी ने हँसते हुए कहा, "वहाँ देखो, तुम्हारे अब्बा आए हैं तुम्हें तमीज़ सिखाने।"

सभी गुंडों ने मुड़कर देखा। उनकी नज़रों के सामने एक 16 साल का लड़का धीरे-धीरे उनकी तरफ आ रहा था। उसकी एक हाथ में काली कटाना थी, जिसकी चमक दूर से ही दिखाई दे रही थी।

ये लड़का था अभिमन्यु प्रताप सिंह, जो नर्सिंह प्रताप सिंह का इकलौता पोता था। नर्सिंह प्रताप सिंह बिहार के मिलिट्री हेडक्वार्टर के चीफ़ थे और मेजर जनरल के रैंक के अधिकारी थे। उनके नाम से ही पूरे राज्य में लोग कांप उठते थे, लेकिन उनकी शख़्सियत सिर्फ उनके पद तक सीमित नहीं थी। वे एक बहुत बड़े अमीर परिवार के मुखिया भी थे, जो कि बिहार का सबसे प्रभावशाली और संपन्न परिवार माना जाता था। हालांकि, नर्सिंह प्रताप सिंह को स्पॉटलाइट में रहना पसंद नहीं था। वे अपने निजी जीवन को मीडिया और लोगों से दूर रखते थे।

अभिमन्यु, अपने दादा की तरह ही, शांत और गंभीर स्वभाव का था। हालांकि वह अभी सिर्फ 16 साल का था, लेकिन उसके व्यक्तित्व में ऐसी परिपक्वता और शांति थी, जो उम्र से कहीं ज्यादा बड़ी लगती थी। उसकी आँखों में आत्मविश्वास झलकता था और उसके कंधों पर एक जिम्मेदारी का बोझ था, जिसे वह चुपचाप उठाए हुए था। उसके कपड़े साधारण थे, लेकिन उसकी चाल में एक अलग ही ठहराव और ठसक थी। वह निडर था, और उसकी नज़रें सीधी उन गुंडों पर टिकी हुई थीं, मानो वह पहले से जानता हो कि उन्हें कैसे संभालना है।

उस गुंडे ने अभिमन्यु को ध्यान से देखा। उसने एक लाल रंग की चेक शर्ट पहन रखी थी, जिसके पीछे एक हुडी लगी हुई थी। शर्ट में बटनों की जगह चेन लगी हुई थी, और अंदर उसने एक प्लेन लाल टी-शर्ट पहन रखी थी। नीचे उसने नीली जीन्स और लाल कैजुअल शूज पहने थे। उसकी कमर में एक म्यान बंधी हुई थी, और उसके हाथ में काली कटाना चमक रही थी। उम्र में वह 17 से 18 साल का ही लग रहा था, लेकिन उसकी आँखों में एक ठहराव और आत्मविश्वास साफ झलक रहा था, जो किसी लड़के की उम्र से परे था। उसकी उपस्थिति में एक अजीब सा खौफ और शांति का मिश्रण था, मानो वह कोई साधारण लड़का न हो, बल्कि लड़ाइयों का अनुभव रखने वाला योद्धा हो।

उस गुंडे ने अभिमन्यु की तरफ घूरते हुए कहा, "क्या बे, चूज़े बिना सोचे-समझे यहाँ चला आया? अगर अपनी जान की खैरियत चाहता है तो चुपचाप निकल जा यहां से, नहीं तो तुझे भी मार कर यहीं फेंक देंगे!"

अभिमन्यु ने उसकी बात को बेहद शांत और संयमित ढंग से सुना, फिर धीरे से मुस्कुराते हुए कहा, "तुम लोग यहाँ के तो नहीं लगते, कहाँ से आए हो?"

अभिमन्यु की शांतिपूर्ण बात सुनकर गुंडे भड़क गए। उनमें से एक, जो पहले से ही गुस्से में भरा हुआ था, तेजी से उसकी तरफ बढ़ा। "अबे झींगुर, चुपचाप निकल यहां से, नहीं तो तुझे भी वहीं पहुँचा देंगे जहाँ इसे ले जाने वाले हैं," उसने कहा और अभिमन्यु के कॉलर की तरफ हाथ बढ़ाया।

लेकिन जैसे ही उस गुंडे का हाथ अभिमन्यु के कॉलर तक पहुंचा, अभिमन्यु ने बिजली की गति से उसका हाथ पकड़ लिया। पल भर में अभिमन्यु ने गुंडे के हाथ को मोड़ दिया, और फिर उसके घुटने पर इतनी जोर से वार किया कि उसकी हड्डी चरमराकर टूट गई। उस गुंडे की चीख पूरी गली में गूंज उठी। वह दर्द से बुरी तरह से तड़प रहा था, लेकिन अभिमन्यु का चेहरा अब भी शांत और स्थिर था, मानो उसने कुछ किया ही न हो।

अभिमन्यु ने नीचे झुके हुए गुंडे को देखा और बेहद ठंडे स्वर में कहा, "चुपचाप बताओ कि तुम लोग कहाँ से आए हो। मुझे जरा भी समय बर्बाद करने का शौक नहीं है।"

उसकी आवाज़ में कोई चीख या धमकी नहीं थी, लेकिन उसके शब्दों में इतनी ठंडक और दृढ़ता थी कि सुनने वाले को उसकी गंभीरता का एहसास हो गया। बाकी गुंडे, जो अभी तक लड़ाई के लिए तैयार खड़े थे, एक पल के लिए पीछे हटने लगे। उनके मन में डर ने जगह ले ली थी। ये कोई साधारण लड़का नहीं था, और वे इसे अब बखूबी समझ चुके थे।

गली के माहौल में एक अजीब सी शांति छा गई थी। दुकानें अब भी खुली थीं, लेकिन सभी दुकानदार और राहगीर इस मंजर को चुपचाप देख रहे थे। पटना की गलियां, जो हमेशा शोर-शराबे से भरी रहती थीं, अब इस एक लड़ाई की वजह से मौन हो गई थीं। हवा में सिर्फ उस गुंडे की चीख और अभिमन्यु की काली कटाना की चमक थी, जो आने वाली विनाशकारी लड़ाई का संकेत दे रही थी।

अभिमन्यु ने बाकी गुंडों की तरफ देखकर कहा, "तुम सबके पास अब एक ही मौका है—जो कुछ भी पूछ रहा हूँ, उसका सही-सही जवाब दो। वरना अगली बार तुममें से कोई और इसी हालत में होगा।"

गुंडों के चेहरे पर डर की लहर दौड़ गई।