Chapter 2: हथियार चाहिए

सभी गुंडे जब यह समझ गए कि अभिमन्यु से भिड़ना उनके बस की बात नहीं है, तो वे अचानक वहां से भागने लगे। उनकी आंखों में डर साफ दिखाई दे रहा था, और वे पीछे मुड़कर बार-बार देख रहे थे कि कहीं अभिमन्यु उनका पीछा न कर रहा हो। लेकिन अभिमन्यु ने उन गुंडों का पीछा नहीं किया। वह पूरी तरह शांत और संयमित था, जैसे उसे उनकी पड़ी ही न हो।

उसने धीरे-धीरे अपने कदम उठाए और उस आदमी के पास पहुंचा, जो अब भी जमीन पर बैठा हुआ था। जैसे ही वह उसके पास पहुंचा, उसने अपनी काली कटाना तलवार को म्यान में रखते हुए हल्के से मुस्कुराया और कहा, "क्या सागर भाई, ये क्या हरकतें करते रहते हो?"

सागर ने चेहरे पर दर्द और थकान की झलक दिखाते हुए अभिमन्यु की तरफ देखा। उसने गहरी सांस लेते हुए कहा, "ये सब तुम्हारे बाप की वजह से हुआ है।"

अभिमन्यु ने अपनी भौंहें चढ़ाते हुए हैरानी से पूछा, "क्या मतलब? और ये गुंडे कौन थे? यहां के तो नहीं लगते, कहां से आए हैं?"

सागर ने लंबी सांस लेते हुए कहा, "वो लोग दिल्ली से आए हैं।"

"दिल्ली से? बिहार में क्या काम?" अभिमन्यु ने हैरानी से पूछा।

सागर ने अपनी जेब में हाथ डालकर एक छोटी सी पेनड्राइव निकाली, जो अब तक उसकी पकड़ में सुरक्षित थी। उसने पेनड्राइव को अभिमन्यु की ओर दिखाते हुए कहा, "इसके लिए।"

अभिमन्यु ने ध्यान से उस पेनड्राइव की ओर देखा और फिर सवाल किया, "इसमें क्या है?"

सागर ने थोड़ी चिंता के साथ इधर-उधर देखा, मानो कोई उनकी बात सुन रहा हो। उसने कहा, "फिलहाल यहां से चलते हैं, फिर बताता हूं। अभी और भी बहुत कुछ है जो तुम्हें जानना चाहिए, लेकिन यहां नहीं।"

तभी पीछे से उस घायल गुंडे की कराहने की आवाज आई, जो अब भी जमीन पर पड़ा हुआ था, और दर्द से तड़प रहा था। अभिमन्यु ने उसकी तरफ एक नजर डाली, लेकिन उसे पूरी तरह नजरअंदाज करते हुए सागर के साथ वहां से निकल गया। कुछ ही देर बाद, पुलिस और एंबुलेंस मौके पर पहुंची और उस घायल गुंडे को ले गई।

दूसरी तरफ, बाकी गुंडे भागते-भागते एक कार के पास पहुंचे, जो गली के किनारे खड़ी थी। वे सब हांफते हुए उस कार में बैठे और अपने अड्डे की ओर चल पड़े। वह अड्डा एक पुराना घर था, जो किसी गुप्ता का था। घर बड़ा था, लेकिन थोड़ी जर्जर हालत में था। वहां पहुंचते ही वे सभी घर के अंदर गए, जहां उनका नेता, असलम, उनका इंतजार कर रहा था।

अस्लम का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था। उसने उनके से गुंडे की और देखते हुए कहा, "बॉस को फोन लगाओ और बताओ की यहां क्या हुआ?"

गुंडों में से एक, जो सबसे आगे था, उसने डरते-डरते अपने बॉस को फोन लगाया। फोन की दूसरी तरफ एक गंभीर आवाज सुनाई दी, "हैलो, क्या हुआ?"

गुंडे ने कांपते हुए कहा, "बॉस, एक प्रॉब्लम हो गई है।"

दूसरी तरफ से आवाज आई, "किस तरह की प्रॉब्लम? साफ-साफ बोलो!"

गुंडे ने कहा, "बॉस, वो पेनड्राइव हम नहीं ला पाए... कोई लड़का बीच में आ गया।"

दूसरी तरफ से गुस्से और हैरानी से भरी आवाज आई, "लड़का? एक लड़के से तुम हार गए?"

गुंडे ने हकलाते हुए कहा, "बॉस, वो कोई आम लड़का नहीं था। उसके अंदर गज़ब की ताकत थी। उसने हमारे एक आदमी की हड्डी तोड़ दी, और उसके हाथ में तलवार थी। हमारे पास सिर्फ चाकू थे, और वो लड़ रहा था जैसे कोई प्रोफेशनल फाइटर हो।"

दूसरी तरफ से गुस्से में आवाज आई, "ये बहाने बनाना बंद कर! वो पेनड्राइव चाहिए मुझे, और अगर नहीं ला सकते, तो अपने जनाज़े की तैयारी शुरू कर दो।"

गुंडे ने कांपते हुए फोन काट दिया। उसका चेहरा पसीने से तर-बतर था। उसने अपने बाकी साथियों की तरफ देखा, जो अब भी डरे हुए खड़े थे।

असलम, जो गुंडों का नेता था, ने गुस्से में जोर से चिल्लाते हुए कहा, "आखिर वो लड़का कौन था? मुझे उसके बारे में सबकुछ जानना है!"

उसी वक्त, एक और आदमी कमरे में दाखिल हुआ। वह करीब 60 साल का बूढ़ा आदमी था, जिसका नाम विनय गुप्ता था। वह इस घर का मालिक था। उसने स्काई ब्लू रंग का कुर्ता और सफेद पजामा पहन रखा था। उसके चेहरे पर हल्की दाढ़ी थी, और उसकी चाल में एक अजीब सी शांति थी। कमरे में कदम रखते ही उसने ठंडी आवाज में पूछा, "तो तुम लोगों का काम हुआ या नहीं?"

वहां का माहौल अचानक से गंभीर हो गया।

असलम की खीझ उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी। उसने चिढ़ते हुए कहा, "नहीं, एक लड़का बीच में आ गया था, और वो उसे बचा कर ले गया।"

तभी एक गुंडे ने तुरंत कहा, "लेकिन बॉस, असल में तो हम वहां से भाग आए थे न।"

असलम ने उस आदमी को ऐसे घूरा, जैसे उसकी नजरों से ही उसे खत्म कर देगा। वो गुंडा घबराकर चुप हो गया। कमरे का माहौल भारी हो गया था।

दूसरा आदमी, जो असलम के बगल में खड़ा था, उसकी तरफ देखते हुए तंज भरे लहजे में बोला, "अरे, तो क्या अब हर जगह ढिंढोरा पीटेगा कि बॉस एक बच्चे से डर कर आ गए?"

पहला गुंडा फिर बोला, "अच्छा! समझ गया।"

असलम का चेहरा गुस्से से लाल हो चुका था। उसने दांत पीसते हुए कहा, "तुम दोनों मेरी इज्जत उतारना बंद करो और पता लगाओ कि वो लड़का कौन था। और हां, विनय भाई, हमें कुछ पिस्टल और गोलियां चाहिए, मिल सकती हैं?"

विनय गुप्ता ने एक धीमी मुस्कान के साथ कहा, "अरे हां हां, क्यों नहीं। लेकिन थोड़ी महंगी होंगी। शाम तक तुम्हें सबकुछ मिल जाएगा।"

विनय गुप्ता, जो अंडरवर्ल्ड में एक जाना-माना नाम था, काफी समय से इस धंधे में था। उस पर कई क्रिमिनल चार्जेस थे और वह कई बार जेल भी जा चुका था। लेकिन अब भी वह अंडरवर्ल्ड के लिए काम करता था। उसका असली धंधा हथियारों की और दूसरी गैरकानूनी चीजों की तस्करी करना था। हालांकि वह इस पूरे धंधे का मालिक नहीं था, लेकिन अंडरवर्ल्ड के कई बड़े लोगों से उसकी दोस्ती और संपर्क थे, जिसके कारण वह इस व्यापार में अपनी पकड़ बनाए हुए था। यही उसकी दोस्ती असलम और उसके आदमियों से भी मजबूत करती थी।

असलम और विनय अभी बातचीत में व्यस्त ही थे कि अचानक दरवाजे पर तेज़ दस्तक हुई। सभी एक पल के लिए चौक गए। माहौल अचानक गंभीर हो गया था। दरवाजा फिर से हिला, इस बार पहले से भी ज़्यादा ज़ोर से।

"कौन हो सकता है?" विनय गुप्ता ने आंखों में शंका के भाव लिए कहा। असलम ने सभी को इशारे से शांत रहने को कहा और खुद धीरे से दरवाजे की ओर बढ़ा। दरवाजे पर फिर से जोरदार दस्तक हुई, मानो कोई दरवाजे को तोड़ने की कोशिश कर रहा हो।

फिर अचानक से, दरवाजे पर जोरदार ठोकर मारी गई और दरवाजा चरमराता हुआ टूट गया।

सबकी सांसें रुक गईं, और कमरे में एक अजीब सी खामोशी छा गई। दरवाजे की तरफ सबकी नजरें जमीं थीं। फिर धीरे-धीरे एक पैर दरवाजे से अंदर आया। उस पैर ने पहला कदम कमरे में रखा था, और जो कोई भी था, उसकी उपस्थिति ने सबको बेचैन कर दिया था। उसकी सख्त जूतियों की आहट कमरे के कोनों तक गूंज रही थी।

कमरे में मौजूद हर आदमी सांस रोककर खड़ा था, और उनकी धड़कनें इतनी तेज हो चुकी थीं कि मानो अब बंद होने वाली हों।

अस्लम ने अपने हाथ में पकड़ी हुई चाकू को कसकर पकड़ा और दरवाजे की ओर देखा, जहां से उस रहस्यमयी आदमी का चेहरा अब तक छिपा हुआ था। सभी की निगाहें उस पर टिकी थीं, लेकिन कोई हिल भी नहीं रहा था। हवा मानो अचानक से थम गई थी। दरवाजा अब पूरी तरह टूटा पड़ा था, और उसके पीछे खड़ा वो शख्स अपनी पहचान उजागर करने ही वाला था।

लेकिन वो कौन था? और क्या वो उनके लिए खतरा था या कोई और?

किसी को नहीं पता था कि अगले ही पल क्या होने वाला है, लेकिन उस एक कदम ने पूरे कमरे को सन्नाटे में डाल दिया था।