Chapter 3: नुकसान की कीमत

अभिमन्यु और सागर दोनों एक खाली कमरे में बैठे थे। कमरे का वातावरण शांत था, सिर्फ कंप्यूटर की तीन स्क्रीनों की चमक और उसमें से आने वाली हल्की सी ध्वनि कमरे में गूंज रही थी। सामने एक पीसी था, जो उन तीनों स्क्रीन से जुड़ा हुआ था। सागर ने धीरे से अपनी जेब से एक छोटी सी पेन ड्राइव निकाली और उसे कंप्यूटर के पोर्ट में डाला। स्क्रीन पर कुछ फाइलें खुलने लगीं, जिनमें उस पेन ड्राइव का सारा डेटा था। सागर की उंगलियां की-बोर्ड पर तेजी से चल रही थीं, जैसे वह जल्द से जल्द कुछ बेहद महत्वपूर्ण जानकारी निकालना चाहता हो।

अभिमन्यु ने अपनी कुर्सी पर पीछे झुकते हुए पूछा, "ये सब क्या है?"

सागर ने स्क्रीन की ओर इशारा करते हुए जवाब दिया, "ये दिल्ली के अंडरवर्ल्ड में होने वाली कुछ डील्स और कॉन्ट्रैक्ट्स की फाइलें हैं।"

अभिमन्यु ने थोड़ा बोरियत भरे अंदाज में कहा, "मुझे लगा कुछ इंटरेस्टिंग होगा।"

सागर ने उसकी तरफ देखते हुए गंभीर लहजे में कहा, "इंटरेस्टिंग है। असल में, दिल्ली में कुछ बड़ा होने वाला है। भारी मात्रा में हथियारों के कंटेनर्स दिल्ली की ओर जा रहे थे। कहां और कितनी मात्रा में ये हथियार जाएंगे, ये सब इस पेन ड्राइव में है।"

अभिमन्यु की आंखों में चमक आ गई। उसने थोड़ा उत्साहित होकर कहा, "अब ये थोड़ा इंटरेस्टिंग लग रहा है।"

दूसरी तरफ, विनय गुप्ता के घर पर एक आदमी अपने सख्त और भारी कदमों से प्रवेश करता है। उस आदमी ने सफेद कुर्ता और नीली जींस पहनी हुई थी, और कुर्ते की बांहें ऊपर की हुई थीं। उसके हाथ में एक काली 9 एमएम पिस्टल थी। उसकी कलाई पर एक लाल कलावा और कुछ धागे बंधे हुए थे। उसने काले रंग का चश्मा पहना हुआ था, माथे पर एक लाल तिलक था और उसके बाल छोटे और स्टाइलिश तरीके से खड़े हुए थे। गले में सोने की भारी चैन थी, जो लगभग डेढ़ लाख की लग रही थी। करीब चालीस साल का यह आदमी, उसकी मजबूत कद-काठी और बड़ी मांसपेशियां देखकर, किसी पहलवान से कम नहीं लगता था।

यह आदमी अकेला था और विनय गुप्ता के घर में ऐसे घुसा जैसे उसे किसी की परवाह नहीं थी। उसे सब "त्रिपाठी" के नाम से बुलाते थे, और वह त्रिपाठी गैंग का सरगना था। उसका दबदबा पटना और बिहार के कई इलाकों में था। त्रिपाठी ने एक बार अंडरवर्ल्ड में अपनी जगह बना ली थी और अब उसका नाम एक बड़े खिलाड़ी के रूप में जाना जाता था।

जैसे ही त्रिपाठी ने घर के अंदर कदम रखा, उसने अपनी बिहारी एक्सेंट में कहा, "का बे बिनय्या, सुने हैं तुमरे यंहा कुछ मेहमान आए हैं, हमसे नाहीं मिलवाओगे का?"

विनय गुप्ता जल्दी से उसके पास आया और सिर झुकाते हुए कहा, "मालिक, आप यहां?"

त्रिपाठी ने उसे घूरते हुए अपने काले चश्मे को उतारा और गंभीर लहजे में बोला, "सुने नाहीं का, हम यहां तुमरे मेहमानों से मिलने आए हैं। ज़रा इंट्रोडक्शन तो दीजिए।"

विनय ने घबराते हुए कहा, "मालिक, ये लोग दिल्ली से आए हैं और इन्हें एक सामान चाहिए, जो कि एक आदमी चुराकर यहां भाग आया था।"

त्रिपाठी ने अपने माथे पर शिकन डालते हुए पूछा, "कौन सा सामान बे?"

विनय ने सिर झुकाते हुए जवाब दिया, "वो मालिक, वो तो ये लोग हमको नहीं बताए। इन्होंने बस इतना कहा कि वो बहुत कीमती है।"

त्रिपाठी ने उनकी ओर घूरते हुए कहा, "कीमती रहे तो संभाल के रखे चाही ने।"

विनय ने धीरे से कहा, "मालिक…"

त्रिपाठी ने अपने हाथ से इशारा करते हुए उसे रोक दिया और कहा, "हमका नाहीं मालूम का हुआल रहे और का नाहीं, लेकिन अगर तुम लोग बिहार आए थे, तो हमरी परमिशन लेना जरूरी रहे। बताएं नाहीं का तुम इन लोगन को?"

विनय इस बात पर चुप हो गया। उसे त्रिपाठी के गुस्से का अंदाजा हो चुका था। कमरा एकदम खामोश हो गया, मानो किसी ने हवा को थाम लिया हो।

तभी असलम, जो अब तक चुप था, आगे आया और थोड़ी हिचकिचाहट के साथ बोला, "त्रिपाठी सर, हम यहां एक छोटे से काम के लिए आए थे। हम लोग आपसे मिलने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन आपसे मिलने में दो दिन का समय लग रहा था। तब तक हमने सोचा कि वो छोटा सा काम कर लें।"

त्रिपाठी ने उसकी बात को बीच में काटते हुए सख्त आवाज़ में कहा, "तुम लोगों को दो दिन इंतजार करना चाहिए था।"

असलम ने तुरंत अपना सिर झुका लिया और कहा, "गलती हो गई, सर।"

माहौल अचानक से बेहद ठंडा और भयावह हो गया था। कमरे में एक अजीब सी चुप्पी थी। त्रिपाठी का दबदबा इतना था कि कोई उसकी बात का विरोध करने की हिम्मत भी नहीं कर रहा था, भले ही वह अकेला आया था। उसकी मौजूदगी में सभी दबे हुए थे।

त्रिपाठी ने कुछ देर तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, और फिर अचानक से बोला, "अब गलती हो गई है, तो सजा तो मिलेगी। अपना बोरिया बिस्तर बांधो और बिहार से दफा हो जाओ। और विनय, अगली बार येसन कछु हुआ तो चिता दिए खातिर लकड़ी कम पड़ जाईब।"

यह कहते ही, वह शांति से दरवाजे की ओर बढ़ा। उसकी चाल में एक अजीब सा आत्मविश्वास और खतरा झलक रहा था। जैसे ही उसने दरवाजे से बाहर कदम रखा, कमरे में मौजूद सभी लोगों ने राहत की सांस ली, मानो एक बड़ा खतरा टल गया हो।

तभी एक गुंडे ने असलम से धीरे से पूछा, "अब क्या करेंगे, बॉस?"

असलम ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "पता नहीं। चलो, बॉस से पूछते हैं कि अब क्या करना है।"

त्रिपाठी का प्रभाव अब भी उनके दिलों पर भारी था।

असलम ने जैसे ही फोन उठाया, उसके चेहरे पर एक बेचैनी और घबराहट साफ दिखाई दे रही थी। उसके हाथों में हल्की कंपकंपी थी, और वो सोचने लगा कि अब किस तरह से अपने बॉस को ये बुरी खबर सुनाए। फोन की दूसरी तरफ उसके बॉस की कड़क आवाज़ उसे हमेशा डराती थी, लेकिन आज हालात कुछ ज्यादा ही गंभीर थे।

असलम ने फोन कान से लगाया और कॉल कनेक्ट होते ही बोला, "बॉस... एक और दिक्कत हो गई है।"

फोन की दूसरी तरफ से एक गहरी, गुस्से से भरी आवाज़ आई, "तुझे मरने की बहुत जल्दी है क्या? क्या फिर से कोई नई गलती कर दी है?"

असलम ने झिझकते हुए कहा, "बॉस... वो त्रिपाठी... उसने हमें बिहार से निकल जाने के लिए कह दिया है।"

दूसरी तरफ से कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया। असलम समझ चुका था कि ये सन्नाटा तूफान से पहले की खामोशी है। फिर अचानक गुस्से से भरी आवाज़ ने माहौल को चीर दिया, "अब तुम लोगों ने क्या कर दिया है जो त्रिपाठी ने तुम्हें भाग जाने के लिए कह दिया? क्या तुमलोगों के पास कोई अक्ल नहीं है?"

असलम ने हिचकिचाते हुए जवाब दिया, "बॉस, हम त्रिपाठी से मिलने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उससे मिलने में दो दिन लग रहे थे। इसलिए हमने बिना उसकी परमिशन के काम कर लिया।"

दूसरी तरफ से गुस्से में चिल्लाते हुए आवाज़ आई, "तुमलोग एक काम भी ढंग से नहीं कर सकते! पहले तो तुमने वो ड्राइव खो दी, और अब तुमने त्रिपाठी जैसे आदमी को नाराज कर दिया। क्या तुम्हें समझ नहीं आता कि इसके क्या नतीजे हो सकते हैं?"

असलम ने पसीना पोंछते हुए कहा, "बॉस, हमने गलती की... लेकिन अब क्या करें? त्रिपाठी ने हमें यहां से निकलने का हुक्म दिया है।"

दूसरी तरफ से भारी गुस्से में, लगभग दांत पीसते हुए कहा गया, "तुम्हारी वजह से अब मुझे सारा प्लान बदलना पड़ेगा। और तुम्हारी बेवकूफी की वजह से हमारे खुफिया अड्डों की जानकारी भी त्रिपाठी को मिल गई होगी। एक काम करो, तुमलोग तुरंत वापस लौट आओ!"

असलम ने सहमते हुए कहा, "बॉस, लेकिन क्या आप उस चोर सागर को ऐसे ही छोड़ देंगे?"

दूसरी तरफ से आवाज़ और भी ठंडी हो गई, जैसे मौत खुद बोल रही हो, "सागर ने जो नुकसान किया है, उसकी कीमत उसे मौत से चुकानी होगी। अब उसका समय पूरा हो चुका है। उसकी हर सांस गिनती में है।"

इतना कहकर दूसरी तरफ से फोन काट दिया गया। असलम के हाथ अब भी कांप रहे थे। उसके चेहरे पर तनाव और डर साफ झलक रहा था। कमरे में सन्नाटा था, और असलम के साथी उसकी तरफ देख रहे थे, जैसे उनसे भी कोई सवाल पूछे जाने वाला हो।

असलम ने धीरे-धीरे फोन नीचे रखा, उसकी आंखों में अब एक गहरी चिंता थी। उसे पता था कि सागर अब बच नहीं सकता। बॉस की आवाज़ में वो ठंडापन था, जो हमेशा किसी मौत का पैगाम लाता था।

लेकिन असलम को अब समझ नहीं आ रहा था कि वो सागर तक कैसे पहुंचे। सागर की चतुराई उसे पहले ही कई बार धोखा दे चुकी थी, और अब उसकी जिंदगी की डोर सिर्फ एक बारूदी सुरंग के धागे से लटक रही थी।

लेकिन सवाल ये था—बॉस अब क्या करने वाला था?