सुकन्या और त्रिपाठी परिवार ढोल की धुन पर नृत्य कर रहे थे, खुशी में सबके चेहरे दमक रहे थे। माहौल बिल्कुल उत्सव जैसा था, हर कोई सुकन्या की कामयाबी का जश्न मना रहा था। ढोल-नगाड़ों की आवाज पूरे माहौल में गूंज रही थी, मानो हर एक ताल पर सुकन्या की सफलता की गाथा लिखी जा रही हो। सुकन्या जीप से उतरकर जमीन पर नाचते हुए, अपने परिवार के साथ इस पल को पूरी तरह जी रही थी। आस-पास खड़ी भीड़ भी तालियों और आवाजों के साथ झूम रही थी। बृजेश त्रिपाठी के चेहरे पर गर्व की चमक साफ झलक रही थी, और उनकी पत्नी बिंदिया अपनी बेटी की ओर प्यार से देख रही थी।
अचानक, इस खुशी के माहौल में एक गोली की आवाज गूंजती है। पूरे माहौल में सन्नाटा छा जाता है। लोग एक पल के लिए समझ ही नहीं पाते कि हुआ क्या। बृजेश त्रिपाठी के चेहरे पर चमक की जगह दर्द और सदमे का भाव आ जाता है, क्योंकि गोली सीधे उसकी छाती पर जा लगती है। हर कोई सकते में आ जाता है।
सूरज त्रिपाठी, जो बृजेश का छोटा भाई था, तुरंत चौकन्ना हो जाता है। वह बिना एक पल गंवाए, सुकन्या और बिंदिया को सुरक्षित जगह पर ले जाने की कोशिश करता है। लेकिन तभी, भीड़ में से एक और शख्स अपने हाथ में पिस्टल लिए हुए उभरता है और उनकी तरफ दो तीन गोली चला देता है। एक गोली सूरज के बाजू में लगती है, और एक उसके जांघ पे लेकिन एक बिंदिया के पेट में जा लगती हैं जो की सुकन्या को अपने अंदर छुपाए हुए थी बिंदिया चीखकर गिर जाती है। सूरज की आंखों में एक साथ गुस्सा और दर्द का भाव उभरता है।
इतने में त्रिपाठी के कुछ आदमी भी अपनी बंदूकें निकाल लेते हैं और उस हमलावर पर गोलियां बरसाते हैं। चार-पांच गोलियां उस आदमी को चीर देती हैं, और वह जमीन पर गिर जाता है। लेकिन लड़ाई यहीं खत्म नहीं होती। भीड़ के बीच से एक और आदमी अपने हाथ में पिस्तौल लेकर निकलता है और सीधे बृजेश त्रिपाठी पर गोली चला देता है। लेकिन त्रिपाठी के सामने खड़ा एक और आदमी, जो शायद उसे बचाने की कोशिश में था, गोली का शिकार हो जाता है।
भीड़ में छुपे और भी हमलावर अब अपने हथियार निकाल लेते हैं। करीब दस लोग जो वहां मौजूद थे, उनके हाथों में पिस्तौलें थीं, और वे बृजेश और उसके आदमियों पर गोलियां चलाने लगते हैं इस बीच बृजेश के कुछ और आदमी मारे जाते हैं और बृजेश के पीठ पर हांथ और पेट में भी गोली लगती है लेकिन वो लोग रुक ही नही रहे थे उनका मैं टारगेट बृजेश त्रिपाठी ही था। जो आम लोग इस उत्सव में शामिल थे, वे सब इधर-उधर भागने लगते हैं, कुछ लोग डर के मारे छिपने की कोशिश करते हैं। पूरे मैदान में अब केवल गोलियों की आवाज गूंज रही थी। त्रिपाठी और उसके आदमियों ने भी अपनी बंदूकें निकाल ली थीं और अब दोनों पक्षों के बीच एक भीषण गोलीबारी शुरू हो चुकी थी।
बृजेश त्रिपाठी, जो पहले ही गोली लगने से घायल हो चुका था, अब बुरी तरह से कमजोर हो गया था। उसके आदमियों ने उसे तुरंत घर के कोने में सुरक्षित स्थान पर ले जाकर छिपा दिया। चारों तरफ से गोलियां चल रही थीं और उसका पूरा परिवार खतरे में था। सूरज त्रिपाठी, जिसने पहले ही अपनी भाभी बिंदिया और भतीजी सुकन्या को घर के अंदर सुरक्षित कर दिया था, अब बाहर आता है। उसके हाथ में एक असॉल्ट राइफल थी और उसकी आंखों में गुस्से की आग जल रही थी। वह अपने बड़े भाई की ओर भागता है और उन्हें गंभीर हालत में देखकर उसका खून खौल उठता है।
"इन्हें अंदर लेकर जाओ," सूरज अपने आदमियों को आदेश देता है। उसकी आवाज में दृढ़ता और गुस्से का मिलाजुला स्वर था। "मैं इन हरामियों को साफ करता हूं।"
इतना कहकर सूरज राइफल लेकर बाहर निकलता है। उसने देखा कि हमलावर अब अपनी कार की ओर भागने की कोशिश कर रहे थे। सूरज ने बिना देरी किए उन पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। लेकिन ज्यादातर हमलावर कार में सवार होकर भागने में कामयाब हो गए। केवल चार लोग ही मारे गए थे, और बाकी सभी बचकर निकल गए थे। सूरज ने गुस्से में आकर जमीन पर जोर से पैर पटका और अपनी राइफल आसमान की ओर तान दी। उसने कई गोलियां आसमान में चला दीं, मानो उसकी निराशा और गुस्से का इज़हार कर रहा हो।
थोड़ी देर बाद, सारा माहौल शांत हो गया था। लेकिन अब हर ओर खून बिखरा हुआ था। बृजेश त्रिपाठी और उनकी पत्नी बिंदिया को गंभीर हालत में अस्पताल ले जाया गया। सूरज त्रिपाठी ने अपने आदमियों को निर्देश दिए कि जितने घायल हैं, उन्हें तुरंत इलाज के लिए अस्पताल पहुंचाया जाए। शहर के कई अस्पतालों में इस समय त्रिपाठी के आदमियों का इलाज चल रहा था। यह हमला न सिर्फ त्रिपाठी परिवार बल्कि उनके पूरे गैंग को खत्म करने की कोशिश थी।
अस्पताल के बाहर भीड़ जमा हो गई थी, लोग त्रिपाठी परिवार की हालत को लेकर चिंतित थे। पूरे शहर में त्रिपाठी परिवार पर हुए इस हमले की खबर आग की तरह फैल गई थी। हर कोई ये जानने के लिए बेताब था कि आखिर इस हमले के पीछे कौन था।
सुकन्या और त्रिपाठी आईसीयू के बाहर बैठे थे। सुकन्या का चेहरा आंसुओं से भीग चुका था, उसकी आंखें लाल थीं, और वो कांपते हुए सुबक रही थी। त्रिपाठी उसे संभालने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसके खुद के दिल में गहरा दुख और बेचैनी छिपी थी। उसकी आंखों में भी चिंता और बेबसी साफ झलक रही थी।
तभी शुक्ला तेजी से वहां आया और गहरी आवाज़ में बोला, "पूरे छपरा को सील कर दिया गया है। हमारे आदमी हर जगह फैले हुए हैं, वो लोग यहां से बाहर नहीं निकल पाएंगे।"
त्रिपाठी ने अपनी आवाज़ को सख्त करते हुए कहा, "वो लोग ज्यादा दूर नहीं गए होंगे। अपने आदमियों को कहो कि घर के आसपास के हर इलाके को छान मारें। वो लोग वहीं कहीं छिपे होंगे।"
शुक्ला ने सिर हिलाकर सहमति जताई। तभी उसके फोन की घंटी बजी। उसने फोन उठाया और कुछ देर तक बात करने के बाद बोला, "बॉस, वो कार गंगा नदी में तैरती हुई मिली है।"
त्रिपाठी ने तुरंत पूछा, "कुछ पता चला कि उन लोगों को किसने भेजा था?"
शुक्ला ने सिर झुका लिया, जैसे उसे अब तक कोई सुराग नहीं मिला हो।
कुछ देर बाद डॉक्टर आईसीयू से बाहर आए। त्रिपाठी ने चिंता में डूबते हुए पूछा, "डॉक्टर, क्या हुआ? दोनों ठीक तो हैं ना?"
डॉक्टर ने मास्क उतारते हुए धीमी आवाज़ में कहा, "हमने पूरी कोशिश की, लेकिन बिंदिया जी को बचा नहीं सके। वह अब इस दुनिया में नहीं रही। और त्रिपाठी साहब की हालत भी बेहद नाज़ुक है, वो बस कुछ ही समय के मेहमान हैं। आप चाहें तो उनसे आखिरी बार मिल सकते हैं।"
सुकन्या ये सुनते ही तेजी से भागते हुए आईसीयू की ओर दौड़ी। अंदर पहुंचते ही वह अचानक रुक गई, डर के मारे उसके पैर कांपने लगे। उसके दाईं तरफ की बेड पर उसकी मां बिंदिया की लाश पड़ी थी, जो सुबह उसे मस्ती करने के लिए डांट रही थी। अब वही मां शांत और स्थिर पड़ी थी। सुकन्या ने अपनी मां के साथ बिताए पल याद करने लगी, उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। उसे अपने पिता का ख्याल आया और उसने तुरंत उनके पास जाकर उनका हाथ पकड़ लिया।
बृजेश ने आंखें खोलीं और सुकन्या को रोते हुए पाया। उन्होंने धीरे से कहा, "रो मत बिटिया। त्रिपाठी रोते नहीं हैं, बल्कि हिम्मत से हर मुसीबत का सामना करते हैं।" लेकिन सुकन्या फूट-फूटकर रो रही थी, उसके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।
तभी सूरज त्रिपाठी और शुक्ला भी अंदर आ गए। सूरज ने एक नजर अपनी भाभी बिंदिया की ओर डाली, और फिर बृजेश के पास चला गया।
बृजेश ने सूरज को देखते हुए पूछा, "कुछ पता चला कि ये किसका काम था?"
सूरज ने कड़ा चेहरा बनाते हुए कहा, "हां, भैया, उसे हम मौत के घाट उतार चुके हैं।"
बृजेश ने कमजोर आवाज़ में कहा, "ये हुई ना त्रिपाठियों वाली बात। अब मैं शांति से जा सकता हूँ। और हां, अब ये गुंडागर्दी का खेल छोड़ दो। एक सामान्य ज़िंदगी जियो और सुकन्या का ख्याल रखना। एक अच्छा लड़का देखकर ईसकी शादी कराना।"
सूरज ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "ये सब आप क्यों कह रहे हो भैया? आप खुद ये सब करने वाले हो।"
बृजेश ने हल्की हंसी के साथ कहा, "अरे छोटे, मत भूल कि जब तू मां की पोटली में था, तब मैं तीसरी में था। मुझे मेरी हालत का अच्छे से पता है। वैसे बिंदिया कहां है?"
दोनो बिस्तरों के बीच पर्दा लगा हुआ था, और बृजेश को यह मालूम नहीं था कि बिंदिया को भी गोली लगी थी। बृजेश का सवाल सुनकर सब शांत हो गए। किसी ने कुछ नहीं कहा।
बृजेश ने फिर पूछा, "बताओ ना, बिंदिया कहां है?"
सूरज ने हंसते हुए जवाब दिया, "वो बिल्कुल ठीक हैं, भैया। बस इन सब घटनाओं से परेशान हो गई थीं, और कुछ देर पहले आईसीयू के बाहर आपके होश में आने का इंतजार कर रही थीं। अचानक चक्कर आ गया और वो गिर पड़ीं, फिलहाल आराम कर रही हैं।"
बृजेश ने सिर हिलाते हुए कहा, "अच्छा, अच्छी बात है वैसे अजीब बात है न, जब मैं उठा तो वो आराम करने चली गई। खैर, उसका ध्यान रखना और सुकन्या, मां को ज्यादा परेशान मत करना।"
सुकन्या कुछ कहने ही वाली थी कि बृजेश की सांसें थम गईं। उसकी आंखें खुली की खुली रह गईं।
सुकन्या ये देखकर फूट-फूट कर रोने लगी। सूरज भी खुद को रोक नहीं सका और उसकी आंखों से आंसू निकल पड़े। लेकिन उसने अपने आंसू जल्दी से पोंछ लिए, क्योंकि उसके अंदर अब सिर्फ बदले की आग जल रही थी। उसने अपने आदमियों को अलर्ट मोड में डाल दिया था, और पूरे छपरा में उन हत्यारों की तलाश शुरू हो गई थी।