नियति का खेल

आरव की आँखें अब भी उस व्यक्ति को घूर रही थीं। विश्वास करना मश्किल था, लेकिन सच्चाई उसके सामने थी।

"तुम यहाँ...?" उसकी आवाज़ काँप रही थी।

सुमित्रा बीच में आ गईं। "आरव, अभी सवाल पूछने का समय नहीं है! हमें जल्दी निकलना होगा!"

रहस्यमयी व्यक्ति ने गहरी सांस ली। "तुम सोच रहे होगे कि मैं यहाँ कैसे पहुँचा। लेकिन इसका जवाब तुम्हें जल्द ही मिलेगा। अभी तुम्हें इस जगह से बाहर निकालना मेरी प्राथमिकता है।"

आरव अभी भी उलझा हुआ था। लेकिन दंश के सैनिक तेजी से पास आ रहे थे। उनके पास ज्यादा समय नहीं था।

"यह रास्ता पकड़ो!" रहस्यमयी व्यक्ति ने एक गुप्त दरवाजे की ओर इशारा किया।

वे तीनों तेजी से उस दरवाजे से बाहर निकले। लेकिन जैसे ही वे सुरंग में पहुँचे, एक डरावनी आवाज़ गूँजी—

"तुम मुझसे भाग नहीं सकते, आरव!"

आरव के कदम ठिठक गए। दंश की आवाज़ उसके कानों में गूँज रही थी।

"तुम चाहे जितनी भी कोशिश कर लो, लेकिन इस खेल का अंत सिर्फ मेरी शर्तों पर होगा!"

अचानक, पूरी सुरंग कंपन करने लगी। दीवारों से अजीब से जीव निकलने लगे, उनकी आँखें चमक रही थीं।

"यह क्या है?" सुमित्रा घबराई।

"दंश की छाया का जाल!" रहस्यमयी व्यक्ति ने कहा। "हमें जल्दी करनी होगी, वरना यह जगह हमारी कब्रगाह बन जाएगी!"

आरव ने अपनी शक्ति को महसूस किया। "अगर यह दंश का खेल है, तो अब मैं इसे खत्म करूँगा!"

उसकी आँखों में एक नई चमक थी—अब वह सिर्फ भागने के लिए नहीं, बल्कि लड़ने के लिए तैयार था।

आरव की आँखों में गुस्से और जुनून की ज्वाला जल उठी। दंश की छाया का जाल अब चारों ओर फैल चुका था।

सुमित्रा ने चिंतित स्वर में कहा, "आरव, हमें आगे बढ़ना होगा! हम ज्यादा देर तक यहाँ नहीं टिक सकते!"

रहस्यमयी व्यक्ति ने अपने हाथ ऊपर उठाए और एक अजीब-सी मंत्रोच्चारण शुरू कर दिया। अचानक, उसके चारों ओर एक नीली आभा फैलने लगी।

"यह कुछ समय के लिए इन्हें रोक देगा," उसने कहा।

लेकिन तभी सुरंग की दीवारें हिलने लगीं। अंधकार और गहरा हो गया। और फिर, एक काली आकृति उनके सामने प्रकट हुई।

दंश खुद वहाँ था।

उसकी लाल आँखें चमक रही थीं। उसके होठों पर एक कुटिल मुस्कान थी।

"क्या तुम सच में सोचते थे कि तुम मुझसे बच सकते हो, आरव?"

आरव ने तलवार निकाल ली। "मैं तुमसे डरने वाला नहीं हूँ, दंश!"

दंश हँसा। "डर? यह तो अभी शुरुआत है!"

वह अपने हाथ उठाता है, और अचानक, चारों ओर आग की लपटें उठने लगती हैं। सुरंग अब एक जलते हुए नरक में बदल गई थी।

रहस्यमयी व्यक्ति ने तेजी से आरव की ओर देखा। "यहाँ लड़ना बेकार है! हमें बाहर निकलना होगा!"

"नहीं!" आरव गरजा। "अब मैं इससे भागने वाला नहीं हूँ!"

दंश की मुस्कान और गहरी हो गई। "तो आओ, आरव! देखो, क्या तुम मेरे सामने टिक पाओगे?"

आरव ने तलवार कसकर पकड़ ली और झपट पड़ा।

अब यह भागने की नहीं, टकराने की घड़ी थी!

आरव की तलवार बिजली की तरह चमकी और दंश की ओर बढ़ी, लेकिन जैसे ही वार पड़ने वाला था, दंश एक धुएँ की परछाईं में बदल गया।

"इतनी जल्दी क्या है, आरव?" दंश की आवाज़ चारों ओर गूँज उठी। "मैं चाहता हूँ कि तुम पहले असली दर्द को महसूस करो!"

अचानक, आग की लपटों के बीच एक परछाईं बनने लगी। यह आकृति धीरे-धीरे स्पष्ट होती गई, और जैसे ही आरव ने गौर से देखा, उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा।

सामने सुमित्रा खड़ी थी—बिल्कुल स्थिर, लेकिन उसकी आँखों में कोई जीवन नहीं था।

आरव के कदम डगमगा गए। "माँ?"

सुमित्रा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। उसका चेहरा भावहीन था, और उसकी आँखें एक अजीब काले रंग में बदल चुकी थीं।

"क्या हुआ, आरव?" दंश ने उपहास किया। "तुम्हारी माँ अब मेरी छाया के अधीन है। अगर तुम मुझ पर वार करोगे, तो यह वार तुम्हारी माँ पर पड़ेगा।"

आरव के हाथ काँपने लगे। "नहीं… तुम झूठ बोल रहे हो!"

"तो कोशिश करके देख लो।"

आरव ने तलवार उठाई, लेकिन उसकी पकड़ ढीली पड़ गई। वह कैसे अपनी माँ को चोट पहुँचा सकता था?

"तुम कमजोर हो, आरव," दंश ने कहा। "तुम अपने प्रियजनों के कारण हमेशा कमजोर रहोगे।"

तभी सुमित्रा ने अचानक अपने हाथ उठाए। उसकी आँखों में अब पूरी तरह अंधकार था। और अगले ही क्षण—

वह बिजली की गति से आरव की ओर झपट पड़ी!

आरव की आँखें widened हो गईं। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी माँ… अब उस पर हमला कर रही थी।

वह मुश्किल से अपने आपको बचा पाया जब सुमित्रा की अंधकार से भरी हथेली बिजली की तरह उसकी छाती की ओर आई। आरव ने पीछे हटते हुए कहा, "माँ! मैं हूँ आरव! होश में आइए!"

लेकिन सुमित्रा की आँखों में कोई पहचान नहीं थी। वह फिर से झपटी, इस बार और भी ज्यादा ताकत के साथ।

आरव को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो दंश को देख रहा था, जो दूर खड़ा मुस्कुरा रहा था।

"तुम्हें क्या लगा था, आरव?" दंश ने ठंडी हँसी हँसते हुए कहा। "मैं तुम्हारे शरीर को तोड़ने नहीं आया। मैं तुम्हारी आत्मा को तोड़ने आया हूँ!"

आरव की साँसें तेज़ हो गईं। वह अपनी माँ को चोट नहीं पहुँचा सकता था, लेकिन अगर वो कुछ करता नहीं, तो वह खुद मारा जाएगा।

"तुम्हारी माँ अब मेरी छाया में समा चुकी है," दंश ने आगे कहा। "अगर तुम्हें उसे वापस पाना है, तो तुम्हें कुछ ऐसा करना होगा जो तुमने कभी नहीं किया—त्याग।"

आरव का दिमाग तेजी से दौड़ने लगा। दंश उसे किसी भ्रम में डालने की कोशिश कर रहा था, लेकिन कैसे?

"अगर तुम्हें अपनी माँ को बचाना है," दंश की आवाज़ गूँजी, "तो तुम्हें खुद को मेरे हवाले करना होगा।"

आरव का दिल धड़क उठा। यह एक चाल थी… लेकिन अगर वो गलत निर्णय लेता, तो उसकी माँ हमेशा के लिए खो सकती थी।

तभी, सुमित्रा ने एक आखिरी वार किया—इस बार इतनी तेज़ कि आरव बच नहीं पाया। उसका शरीर हवा में उछला और एक बड़े पत्थर से टकराया।

खून की एक धार उसकी होंठों से निकली। उसकी आँखों के सामने धुंध छाने लगी।

और फिर—

"आरव!"

यह आवाज़ जानी-पहचानी थी, लेकिन यह सुमित्रा की नहीं थी।

कोई और आ गया था।

दंश की मुस्कान फीकी पड़ गई। "तुम?"

और फिर अंधकार में एक और आकृति उभरी।

जो कोई भी था, वह दंश के लिए खतरा था।

चारों ओर अंधकार फैला हुआ था। आरव ज़मीन पर गिरा हुआ था, उसकी साँसें तेज़ थीं, और खून होंठों से रिस रहा था। लेकिन उसकी निगाहें अब उस आकृति पर टिकी थीं, जो धुंध से बाहर आ रही थी।

दंश के चेहरे पर पहली बार हैरानी दिखी। उसने एक कदम पीछे लिया और गुर्राया, "तुम यहाँ कैसे आए?"

वो आकृति अब पूरी तरह सामने आ चुकी थी—लंबा कद, आँखों में एक अलग ही चमक, और हाथों में एक चमकती हुई तलवार।

आरव ने धुंधली आँखों से देखा, ये वही था जिसने कभी उसे एक बार बचाया था। लेकिन यह संभव कैसे था?

"दंश, तुम्हारा समय खत्म हो रहा है," वह व्यक्ति गरजा। "अब खेल बदलने वाला है।"

दंश ने मुट्ठियाँ भींच लीं। उसकी काली आँखें चमकीं। "तुम्हें क्या लगा कि तुम मुझे रोक सकते हो?" उसने हाथ उठाया, और अचानक हवा में अंधकार की धारियाँ फैलने लगीं।

लेकिन उस रहस्यमयी योद्धा ने तलवार घुमाई, और एक झटके में सारा अंधकार मिट गया।

आरव दर्द से उठने की कोशिश कर रहा था, लेकिन शरीर जवाब नहीं दे रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। उसकी माँ कहाँ थी? क्या वो अभी भी दंश के वश में थी?

लेकिन इससे पहले कि वो कुछ समझ पाता, दंश चीखा और उसकी परछाईं हवा में घुलने लगी। "ये अधूरा है… लेकिन मैं लौटूँगा।"

अगले ही पल, दंश गायब हो चुका था।

अब वहाँ सिर्फ आरव, वह रहस्यमयी योद्धा और एक गहरी खामोशी थी।

आरव ने मुश्किल से कहा, "तुम… तुम कौन हो?"

उस व्यक्ति ने उसकी तरफ देखा, हल्की मुस्कान आई—"अब समय आ गया है कि तुम्हें कुछ सच्चाइयों का पता चले, आरव।"

आरव ने मुश्किल से खुद को संभाला और घावों की परवाह किए बिना खड़ा होने की कोशिश की। उसकी आँखें उस रहस्यमयी योद्धा पर टिकी थीं, जिसने अभी-अभी दंश को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था।

"तुम कौन हो?" आरव ने थकी हुई आवाज़ में पूछा।

उस व्यक्ति की मुस्कान धीमी हो गई। उसने तलवार ज़मीन में गाड़ दी और आरव की तरफ देखा। "ये सवाल अब ज़्यादा मायने नहीं रखता, आरव। ज़रूरी यह है कि अब तुम्हें सच जानना होगा।"

आरव ने गहरी साँस ली। "कैसा सच?"

उस व्यक्ति ने एक कदम आगे बढ़ाया, उसकी आँखों में गंभीरता थी। "सच यह कि तुम जिस लड़ाई को अपनी नियति मान रहे हो, वह सिर्फ एक लड़ाई नहीं, बल्कि एक चक्र है। यह सब पहले भी हो चुका है… और फिर से दोहराया जा रहा है।"

आरव का सिर चकरा गया। "तुम कहना क्या चाहते हो?"

"तुम्हें नहीं लगता कि कुछ चीज़ें बहुत अजीब हो रही हैं?" वह व्यक्ति आगे बढ़ा। "तुम्हारे जन्म से लेकर अब तक, तुम्हारी शक्तियाँ, तुम्हारा उद्देश्य… सब पहले से तयशुदा लगता है, है ना?"

आरव ने कुछ सोचने की कोशिश की। क्या सच में वह सिर्फ अपना कर्तव्य निभा रहा था, या फिर वह भी किसी बड़ी साजिश का हिस्सा था?

"लेकिन… दंश तो असली खतरा है, वो…"

"दंश केवल मोहरा है," उस व्यक्ति ने बीच में ही कह दिया। "उसके पीछे भी कोई और है, कोई ऐसा जिसे तुमने अभी तक देखा भी नहीं।"

आरव ने चौंककर उसकी तरफ देखा। "क्या?"

वातावरण अचानक ठंडा पड़ने लगा। हवा में हलचल बढ़ गई।

"अब तुम्हें तय करना होगा, आरव," वह व्यक्ति बोला। "क्या तुम केवल अपने भाग्य को निभाने वाले एक पात्र बनना चाहते हो, या फिर इस खेल के असली नियमों को तोड़ना चाहते हो?"

आरव ने कहा। "मैं अपनी किस्मत खुद लिखूँगा।"

"फिर तैयार हो जाओ," वह व्यक्ति फुसफुसाया। "क्योंकि अगली रात… वो रात होगी, जब असली दुश्मन पहली बार सामने आएगा।"

आरव के मन में अजीब सी बेचैनी थी। क्या वाकई इस लड़ाई के पीछे कोई और था? अगर दंश केवल मोहरा था, तो असली खेल कौन खेल रहा था? वह अभी इस सवाल का जवाब ढूंढ ही रहा था कि अचानक उसे अपने आसपास कुछ अजीब महसूस हुआ।

हवा में एक अजीब-सी सनसनाहट थी। पेड़ अजीब तरीके से हिल रहे थे, जैसे कोई छुपकर उन्हें देख रहा हो। आरव ने सावधानी से अपने चारों ओर नजर घुमाई।

"तुम्हें लगता है कि तुम तैयार हो?" एक धीमी, मगर रहस्यमयी आवाज़ हवा में गूँज उठी।

आरव ने तुरंत तलवार संभाली। "कौन है वहाँ?"

कोई जवाब नहीं आया। लेकिन अचानक, पेड़ों की छाया से एक आकृति उभरने लगी। यह कोई आम इंसान नहीं था… उसकी आँखें गहरे काले रंग की थीं, जैसे उनमें कोई अंधेरा कैद हो। उसके हाथों से एक अजीब-सी धुंध निकल रही थी।

"तुम मुझे नहीं जानते, लेकिन मैं तुम्हें अच्छे से जानता हूँ, आरव।"

आरव ने सतर्कता से उसकी ओर देखा। "अगर दंश ही असली खतरा नहीं है, तो तुम कौन हो?"

उस व्यक्ति ने हल्की हँसी हँसी। "दंश को तो केवल तुम्हें इस खेल में उलझाने के लिए खड़ा किया गया था… असली लड़ाई तो अब शुरू होगी।"

आरव के माथे पर पसीना छलक आया। उसकी छठी इंद्री उसे बता रही थी कि यह व्यक्ति किसी साधारण ताकत से जुड़ा नहीं था।

"तुम्हारा असली दुश्मन वही नहीं है, जिसे तुम देख रहे हो। असली दुश्मन वो है जो छाया में छुपा है, जो तुम्हारी हर चाल से एक कदम आगे है।"

आरव ने तलवार को और कसकर पकड़ा। "अगर तुम कुछ जानते हो, तो साफ-साफ बताओ!"

उस व्यक्ति की आँखें चमक उठीं। "अगर जानना चाहते हो, तो मुझे रोककर दिखाओ!"

इतना कहकर वह अचानक हवा में घुलने लगा, और देखते ही देखते, उसकी जगह पर अजीबोगरीब काले निशान ज़मीन पर उभर आए। आरव ने आँखें चौड़ी कर लीं, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता—

चारों ओर से नीलम जैसी चमकती अंधेरी जंजीरें निकलकर उसकी तरफ बढ़ने लगीं!

आरव ने तलवार घुमाई, लेकिन वे जंजीरें मानो हवा से बनी थीं। वे उसके शरीर के चारों ओर लिपटने लगीं, उसे खींचने लगीं।

और फिर, उसने किसी को कहते सुना—

"अब तुम सच में मेरी गिरफ्त में हो, आरव… और इस बार, बचने का कोई रास्ता नहीं!"

क्या आरव इन रहस्यमयी जंजीरों से खुद को बचा पाएगा?

कौन है यह अंधेरे का नया खिलाड़ी, जो दंश से भी एक कदम आगे है?

क्या यह आरव के लिए एक नई चुनौती की शुरुआत है या कोई बड़ा धोखा?

अगले भाग में:

➡️ आरव की सबसे खौफनाक जंग शुरू!

➡️ अतीत का एक ऐसा राज़ जो सब कुछ बदल देगा!

➡️ और… एक ऐसा मोड़ जिसे कोई सोच भी नहीं सकता!

जानने के लिए पढ़ते रहिए— "घर का चिराग" का रोमांचक अध्याय 18!