अध्याय 5 – जब नफ़रत में जलन की चिंगारी भड़क उठी

एक नई सुबह, पर बदले की आग वही

मल्होत्रा मेंशन की सुबह आज एक अजीब से तनाव के साथ शुरू हुई। हवाओं में अजीब सी ठंडक थी, लेकिन दिलों में जलन की तपिश भरी हुई थी। खासकर डेविल ब्रदर्स—आर्यन और करण के।

शनाया का बदला पूरा हो चुका था, पर इसके बावजूद उसकी आंखों में एक नई चमक थी, जो ये बता रही थी कि ये बस शुरुआत थी। दूसरी तरफ, आर्यन और करण, दोनों ही अब उस लड़की की ओर खिंचते जा रहे थे, जिसे वे कभी अपनी सबसे बड़ी दुश्मन समझते थे।

आर्यन अपने कमरे की बालकनी में खड़ा होकर शनाया को देख रहा था, जो नीचे बगीचे में ताजी हवा का आनंद ले रही थी। उसके लंबे बालों में ठंडी हवा हल्के-हल्के खेल रही थी, और उसकी हंसी पूरे माहौल को हल्का बना रही थी। लेकिन आर्यन की मुट्ठियाँ भिंच गईं।

> "ये लड़की... आखिर मेरे दिमाग से उतर क्यों नहीं रही?"

वहीं दूसरी ओर, करण भी अपने ऑफिस के लिए तैयार होते वक्त अपने भाई की बेचैनी को देख रहा था।

> "क्या सोच रहे हो, भाई?" करण ने पूछा।

आर्यन ने एक लंबी सांस ली और अपनी जलती हुई आँखों को शांत करने की कोशिश की।

> "कुछ नहीं... बस वही पुरानी नफरत," उसने ठंडी आवाज़ में कहा।

करण मुस्कुराया।

> "नफरत? या कुछ और?"

शनाया और उसकी नई ताकत

शनाया ने आज हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी, जो उसकी मासूमियत और नटखट स्वभाव दोनों को उजागर कर रही थी। उसकी चाल में अब पहले से कहीं ज्यादा आत्मविश्वास था।

दादी और बुआजी सुबह की पूजा में व्यस्त थीं, और शनाया उनके साथ थी। पूजा खत्म होने के बाद दादी ने शनाया के सिर पर हाथ रखा।

> "बेटा, तुझे देखकर लगता है जैसे इस घर में सच में लक्ष्मी आ गई हो।"

शनाया ने मुस्कुरा कर सिर झुका लिया। लेकिन तभी अनिका ने धीरे से उसके कान में फुसफुसाया—

> "पर ये लक्ष्मी अब किसी के दिल में आग लगाने लगी है। खासकर तुम्हारे दोनों पतियों के।"

शनाया का दिल हल्का सा धड़का, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया।

> "तो फिर आग को और तेज करना पड़ेगा," उसने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया।

जलन की पहली लहर

शाम के समय मल्होत्रा मेंशन में एक छोटी-सी फैमिली पार्टी थी, जिसमें कुछ करीबी लोग आमंत्रित थे।

शनाया इस पार्टी के लिए खास तैयारी कर रही थी। उसने एक लाल रंग का गाउन पहना, जो उसकी खूबसूरती को और निखार रहा था। जब वह सीढ़ियों से नीचे उतरी, तो सबकी नज़रें बस उसी पर टिक गईं।

आर्यन और करण दोनों वहीं खड़े थे। करण ने तुरंत अपनी निगाहें फेर लीं, लेकिन आर्यन की आंखों में अजीब सी बेचैनी थी।

> "कमाल लग रही हो, शनाया," अनिका ने तारीफ की।

> "तारीफों की जरूरत नहीं, मैं जानती हूँ," शनाया ने चुटकी ली।

लेकिन असली मोड़ तब आया जब पार्टी में उनके एक करीबी दोस्त, रोहन मेहरा, भी पहुँचा।

रोहन—एक स्मार्ट बिजनेसमैन, हैंडसम और बहुत ही आकर्षक। वह शनाया का पुराना दोस्त था, जो विदेश में रहता था और हाल ही में इंडिया लौटा था।

> "शनाया! इतने सालों बाद!"

शनाया की आँखें खुशी से चमक उठीं।

> "रोहन! ओ माय गॉड!"

जैसे ही दोनों गले मिले, आर्यन की आँखों में कुछ जल उठा। करण ने भी अपनी व्हिस्की का ग्लास थोड़ा जोर से पकड़ लिया।

> "ये कौन है?" आर्यन ने करण से धीरे से पूछा।

> "मुझे क्या पता, पर ये नज़ारा मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा," करण ने भी उसी तीखे स्वर में कहा।

शिकारी खुद शिकार बनने लगे

शनाया और रोहन हँसी-मजाक में लग गए। वे पुराने दिनों की बातें करने लगे, और शनाया की हँसी पूरे घर में गूंजने लगी। लेकिन डेविल ब्रदर्स के लिए यह हँसी किसी तेज़ाब की बूंदों से कम नहीं थी।

आर्यन ने गुस्से में अपने हाथ की व्हिस्की का ग्लास ज़ोर से टेबल पर रख दिया।

करण ने धीरे से कहा, "लगता है हमारी पत्नी बहुत ज्यादा कंफर्टेबल हो रही है अपने पुराने दोस्तों के साथ।"

> "बहुत ज्यादा," आर्यन के चेहरे पर एक अलग ही सख्ती थी।

अब तक दोनों भाई शनाया को केवल तंग करने, सताने और सबक सिखाने की सोच रहे थे। लेकिन इस वक़्त जो जलन उनके दिलों में उठ रही थी, वह कुछ और ही थी।

और यहीं से इस खेल ने एक नया मोड़ लिया—जहाँ शिकार अब खुद शिकारी बनने लगे थे।

(अध्याय 6 में जारी रहेगा… जहां जलन और बढ़ेगी, और शनाया का जवाब और तगड़ा होगा!)