अध्याय 6 – जब जलन इश्क की दहलीज छूने लगी

शिकारी अब खुद जाल में फँसने लगे

पार्टी में रोहन और शनाया की हँसी-ठिठोली जारी थी। उनकी पुरानी दोस्ती देखकर सब खुश थे—सिवाय डेविल ब्रदर्स के।

करण ने अपने गिलास को टेबल पर रखा और आर्यन की तरफ देखा।

> "भाई, ये कुछ ज्यादा ही नहीं हो रहा?"

> "बहुत ज्यादा," आर्यन ने बिना नजर हटाए जवाब दिया।

शनाया जानबूझकर रोहन के साथ ज़्यादा घुल-मिल रही थी। वो चाहती थी कि आर्यन और करण दोनों को एहसास हो कि वो उनकी कैदी नहीं, बल्कि उनकी जिंदगी का तूफान है।

लेकिन उसे क्या पता था कि ये जलन एक खतरनाक मोड़ लेने वाली थी।

खतरनाक मोड़

पार्टी के बीच में रोहन ने एक ड्रिंक उठाई और शनाया की तरफ बढ़ाया।

> "तुम्हारे लिए, मैडम।"

शनाया ने मुस्कुराकर ग्लास लिया, लेकिन तभी एक तेज़ आवाज़ आई—

"वो नहीं पिएगी।"

पूरे हॉल में सन्नाटा छा गया। आर्यन ने ठंडी लेकिन सख्त आवाज़ में कहा।

रोहन ने हैरानी से उसकी ओर देखा। "क्यों नहीं?"

करण ने आगे बढ़कर शनाया के कंधे पर हाथ रखा और एक नकली मुस्कान के साथ कहा,

> "क्योंकि हमारी बीवी हमारे इजाजत के बिना कुछ नहीं करती।"

शनाया ने तिरछी नजरों से दोनों भाइयों को देखा और फिर मुस्कुराकर ग्लास उठा लिया।

> "सच में? मुझे तो नहीं पता था कि मेरी ज़िंदगी का रिमोट कंट्रोल अब भी आप लोगों के हाथ में है।"

और उसने ग्लास से एक सिप ले लिया।

आर्यन की मुट्ठियाँ भिंच गईं। करण ने अपने दाँत भींच लिए। लेकिन सबसे ज्यादा गुस्सा तब आया जब रोहन ने मज़ाक में शनाया की नाक पकड़कर खींच दी और कहा,

> "तू आज भी वैसी ही पागल है जैसी पहले थी!"

और यही आखिरी बूँद थी।

जब डेविल ब्रदर्स आपे से बाहर हो गए

अचानक, आर्यन ने रोहन का हाथ इतनी ज़ोर से पकड़ा कि उसके चेहरे पर दर्द दिखने लगा।

> "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?" उसकी आवाज़ बर्फ जैसी ठंडी थी।

रोहन चौंक गया। "आर्यन, ये क्या—"

"चुप। एक शब्द और नहीं," करण ने बीच में ही काट दिया।

शनाया ने देखा कि दोनों भाइयों की आँखों में एक अलग ही पागलपन झलक रहा था। ये जलन अब बस जलन नहीं थी—ये काबू से बाहर होने वाली थी।

खतरनाक सबक

पार्टी के बाद, शनाया जैसे ही अपने कमरे में जाने लगी, तभी किसी ने उसकी कलाई पकड़ ली।

आर्यन।

> "ये तुम क्या कर रही हो?" उसकी आवाज़ में खतरनाक गहराई थी।

शनाया ने मुस्कुराकर कहा, "क्या किया मैंने?"

करण ने दरवाज़ा बंद किया और आगे बढ़कर दीवार से टिकते हुए कहा,

> "क्या तुम्हें सच में लगता है कि हमें तुम्हारा किसी और के साथ इतने करीब होना पसंद आएगा?"

शनाया ने उनकी जलती आँखों में देखा और कहा,

> "तो अब फर्क पड़ने लगा है?"

आर्यन ने एक झटके में उसे अपनी ओर खींच लिया। "बहुत ज्यादा।"

शनाया की धड़कनें तेज़ हो गईं। करण ने उसके चेहरे के करीब आकर धीरे से कहा,

> "तुमने आग लगाई थी, अब उसे बुझाने की हिम्मत भी रखो।"

शनाया को समझ आ गया था—अब ये खेल और खतरनाक हो चुका था।

(अध्याय 7 में जारी रहेगा… जब ये जलन नफरत से आगे बढ़कर कुछ और बनने लगेगी!)