मल्होत्रा मेंशन में रात गहरी हो चली थी, लेकिन शनाया के दिल और दिमाग में हलचल तेज़ थी। आर्यन और करण के साथ उसकी शादी भले ही एक मजबूरी में हुई हो, लेकिन अब चीज़ें बदल रही थीं। वे उसे सिर्फ़ अपने घर की बहू नहीं, बल्कि अपने दिल की मलिका मानने लगे थे—बेशक, वे इसे खुद स्वीकार करने से बच रहे थे।
लेकिन शनाया भी कोई साधारण लड़की नहीं थी। वह अपने जज्बातों को खुलकर जाहिर नहीं करती थी, लेकिन उसे अच्छे से पता था कि उसे कब और कैसे खेल खेलना है।
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🔥 आर्यन की सज़ा – जब गुस्सा मोहब्बत में बदलने लगा
शनाया अपने कमरे में खड़ी, खिड़की से बाहर झाँक रही थी। चाँदनी की हल्की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी, जिससे उसकी खूबसूरती और भी निखर रही थी। तभी दरवाज़ा ज़ोर से खुला, और आर्यन भीतर आया। उसकी आँखों में वही पुराना गुस्सा था, लेकिन इस बार उसमें कुछ और भी था—एक अनकही चाहत, एक सवाल, एक बेचैनी।
> "इतनी रात को मेरे कमरे में क्या कर रहे हो, आर्यन?"
शनाया ने बिना उसकी तरफ़ देखे कहा, मानो उसे उसकी मौजूदगी से कोई फ़र्क ही न पड़ता हो।
आर्यन ने दरवाज़ा बंद किया और तेज़ कदमों से उसकी तरफ़ बढ़ा। उसने उसकी कलाई को पकड़कर उसे दीवार से सटा दिया, उसकी साँसों की गर्मी अब शनाया के चेहरे को छू रही थी।
> "तुम्हें क्या लगता है, शनाया?" उसकी आवाज़ धीमी लेकिन ठहरी हुई थी। "जो खेल तुम खेल रही हो, उसमें जीत सिर्फ़ तुम्हारी होगी?"
शनाया मुस्कुराई, उसकी आँखों में कोई डर नहीं था।
> "ओह? और ये सज़ा कैसी होगी?"
आर्यन ने उसकी ठोड़ी को हल्के से ऊपर उठाया, उसकी आँखों में झाँकते हुए।
> "तुम्हें मेरी मौजूदगी से डर नहीं लगता?"
> "नहीं," शनाया ने निडर होकर कहा, "क्योंकि मैं किसी से डरने वालों में से नहीं हूँ।"
आर्यन ने उसकी कमर पर हाथ रखते हुए धीरे से उसे अपनी ओर खींचा।
> "तो देखते हैं कि तुम्हारी ये हिम्मत कब तक चलती है," उसने फुसफुसाते हुए कहा और अचानक उसके चेहरे के पास झुक आया, मगर उसके होंठ छुए बिना ही ठहर गया।
शनाया की धड़कनें तेज़ हो गईं, लेकिन उसने खुद को कमजोर नहीं दिखाया। आर्यन उसे ऐसे ही छोड़कर नहीं गया, बल्कि जाते-जाते उसकी कमर पर अपनी उँगलियों का हल्का स्पर्श छोड़ गया, जिससे शनाया के रोंगटे खड़े हो गए।
> "कल रात का इंतज़ार करना," वह कहता हुआ बाहर चला गया।
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💔 करण की जलन – जब हक़ जताने की बारी आई
अगली सुबह शनाया मल्होत्रा मेंशन के बगीचे में थी। गुलाब के फूलों को छूते हुए वह अपने ख्यालों में खोई थी। तभी करण वहाँ आ गया।
> "अकेले-अकेले सुबह की ताज़गी का आनंद लिया जा रहा है?"
शनाया ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "कुछ चीज़ें अकेले ही महसूस करने में मज़ा आता है, करण।"
करण ने भौंहें चढ़ाईं, "और कुछ चीज़ें दूसरों के साथ महसूस करने में?"
उसके चेहरे पर एक अजीब सी शरारत थी।
> "कल रात मैंने देखा कि आर्यन तुम्हारे कमरे में था," करण ने धीमे से कहा, उसकी आवाज़ में जलन साफ़ झलक रही थी।
शनाया ने नज़रे मिलाईं, "तो? जलन हो रही है?"
करण हंसा, "जलन? शायद... लेकिन मैं अपने तरीके से अपना हक़ लेना पसंद करता हूँ।"
वह अचानक उसके और करीब आया और शनाया के बालों को पीछे किया।
> "तुम्हें लगा कि तुम सिर्फ़ आर्यन के साथ खेल सकती हो?" उसने हल्के मगर अधिकार जताते हुए कहा।
> "मैं खेल किसी से भी नहीं खेलती," शनाया ने ठंडे स्वर में कहा।
करण ने उसके चेहरे को हल्के से छुआ, "अच्छा? तो ये सब क्या था?"
शनाया ने बिना हिले कहा, "तुम्हें क्या लगता है?"
करण उसकी आँखों में देखता रहा। फिर उसने एक लंबी साँस ली और हँसते हुए कहा, "तुम्हारे बिना यह घर अधूरा है।"
> "अब तुम यह जान चुके हो, तो संभलकर रहना," शनाया ने मुस्कुराते हुए कहा।
करण ने उसकी कमर के पास अपना हाथ ले जाकर कहा, "शायद मैं जलकर देखूँगा कि यह आग कितनी तेज़ है।"
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🔪 नए दुश्मनों की एंट्री – जब चुनौती फिर खड़ी हुई
दिन के अंत में, मल्होत्रा मेंशन में अचानक हलचल मच गई। दरवाज़े पर एक कार आकर रुकी, और उसमें से एक आदमी निकला। लंबा कद, नीली आँखें, और चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान—उसकी चाल में ही एक अजीब सा आत्मविश्वास था।
दादी जी की आँखें चौड़ी हो गईं, "विक्रम? तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
विक्रम ने अंदर कदम रखा और हॉल में खड़े होकर कहा,
> "क्या पुराने दुश्मनों का घर में स्वागत नहीं किया जाता?"
शनाया ने पहली बार इस आदमी को देखा, लेकिन वह महसूस कर सकती थी कि यह व्यक्ति कोई मामूली इंसान नहीं था।
आर्यन और करण दोनों वहाँ पहुँचे और विक्रम को देखते ही उनके चेहरों पर गुस्से की लकीरें खिंच गईं।
> "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की?" करण ने कहा।
विक्रम ने हंसते हुए कहा, "हिम्मत? ओह, करण, तुम भूल रहे हो कि हिम्मत तो मेरी पहचान है। और इस बार मैं सिर्फ़ मल्होत्रा मेंशन से बदला लेने नहीं, बल्कि..."
उसकी नज़र शनाया पर गई, "...एक नई जीत हासिल करने आया हूँ।"
शनाया की आँखें सख्त हो गईं।
> "अगर तुम सोचते हो कि तुम यहाँ आकर मुझसे जीत सकते हो, तो तुम्हें नहीं पता कि तुम किससे टकरा रहे हो," उसने ठंडे स्वर में कहा।
विक्रम हंसा, "तो देखते हैं कि तुम मेरी आग को कैसे बुझाती हो।"
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अगला अध्याय: जब शनाया का असली रूप सामने आएगा!
अब जब विक्रम ने मल्होत्रा मेंशन में कदम रख दिया है, क्या शनाया उसे सबक सिखा पाएगी? और क्या आर्यन और करण को अपनी भावनाओं का एहसास होगा? अगले अध्याय में रोमांस और जलन की यह कहानी और भी तेज़ हो जाएगी!