21 मील का श्राप भाग-2

अर्जुन की उंगलियाँ ठिठक गईं। किताब उसके हाथ में थी, लेकिन उसे खोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

"अगर यह सच में बचने का रास्ता बताती है, तो इसे पढ़ना ही होगा..." उसने खुद को समझाने की कोशिश की।

उस अध-जले आदमी की आँखों में एक अजीब सा सूनापन था।

"देर मत करो। जो समय बीत रहा है, वो तुम्हारे ख़िलाफ़ जा रहा है..." उसने ठंडी आवाज़ में कहा।

अर्जुन ने गहरी साँस ली और किताब का पहला पन्ना खोला। जैसे ही उसकी नजरें लिखावट पर गईं, चारों ओर अजीब सी सरसराहट गूंज उठी। शब्द अपने आप हलचल करने लगे, मानो वे जीवित हों।

"दूसरे मील में, अगर तुम्हें कोई अपना पुकारे, तो पलट कर मत देखना। चाहे वह तुम्हारा प्रियतम ही क्यों न हो।"

अर्जुन का दिल तेजी से धड़क उठा।

"मतलब... कोई मुझे पुकारेगा? लेकिन कौन?" उसने बुदबुदाया।

फ्लैशबैक – अर्जुन और आहना का आखिरी संदेश

रात के अंधेरे में, अर्जुन अपने मोबाइल पर आखिरी बार आहना का मैसेज पढ़ रहा था।

"अर्जुन, अगर कभी ऐसा हो कि तुम्हें मेरी आवाज़ सुनाई दे, तो... प्लीज, पलट कर मत देखना।"

उस वक्त उसे यह मजाक लगा था। लेकिन अब, इस श्रापित सड़क पर, यह हकीकत बन चुका था।

वर्तमान समय में, सड़क के पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज़ आई।

"अर्जुन... तुम मुझे भूल गए क्या? पलटकर देखो... मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती..."

आवाज में आहना की झलक थी।

अर्जुन का पूरा शरीर सुन्न पड़ गया।

"यह एक छलावा है... मुझे नहीं देखना चाहिए..." उसने खुद को संयम में रखने की कोशिश की।

लेकिन आवाज़ करीब आती गई, दर्द से भरी हुई।

"अर्जुन... क्या तुम्हें मुझसे प्यार नहीं था?"

अर्जुन की आँखों में आँसू आ गए।

अचानक, चारों ओर धुंध गहरा गई। पेड़ों के साए और लंबे हो गए।

पीछे से तेज़ कदमों की आवाज़ आई। कोई बहुत तेज़ी से उसकी ओर आ रहा था।

अर्जुन की धड़कन रुक गई।

उसने अपने हाथों को मुट्ठियों में भींच लिया और आँखें बंद कर लीं।

"अगर यह सच में आहना होती, तो वह मुझसे यह साबित करने को नहीं कहती..."

फिर...

एक ठंडी हवा उसके कान के पास से गुजरी।

और एक भयानक चीख पूरे जंगल में गूंज उठी।

अर्जुन का पूरा शरीर कांप उठा। उसने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं।

वह अब भी जीवित था।

लेकिन उसकी कार... गायब हो चुकी थी।

अर्जुन की सांसें तेज हो गईं। उसके चारों ओर घना अंधेरा था और कार गायब हो चुकी थी। सिर्फ़ ठंडी हवा और पेड़ों की सरसराहट उसे यह एहसास दिला रही थी कि वह अब भी ज़िंदा है। लेकिन क्या यह ज़िन्दगी ज्यादा देर तक टिक पाएगी?

अर्जुन धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। रास्ता अब और भी संकरा और डरावना हो चुका था। अचानक, सामने ज़मीन पर कुछ पड़ा हुआ दिखा—एक टूटी हुई चूड़ी। उसकी धड़कन तेज हो गई।

"यह... आहना की चूड़ी जैसी लग रही है..."

जैसे ही उसने चूड़ी उठाई, हवा अचानक रुक गई। पेड़ ठहर गए। वातावरण में एक अजीब सी निस्तब्धता छा गई।

फिर, अंधेरे के बीच से हल्की सिसकियों की आवाज़ आई।

कौन रो रहा है?

अर्जुन ने अपने आस-पास देखा, लेकिन कोई नहीं था।

"कौन है वहाँ?" उसकी आवाज़ कांप गई।

आवाज धीरे-धीरे करीब आ रही थी। अब यह सिर्फ़ सिसकी नहीं थी—यह किसी के पैरों की घिसटने की आवाज़ भी थी।

अर्जुन ने किताब का दूसरा पन्ना खोला।

"तीसरे मील में, अगर कोई तुम्हें पुकारे, तो जवाब मत देना।"

तभी, किसी ने धीरे से अर्जुन का नाम पुकारा।

"अर्जुन..."

आवाज ठंडी थी, जानी-पहचानी भी। यह वही थी, जिसे वह कभी अपनी जान से ज्यादा चाहता था।

"आहना?" उसके होंठों से नाम निकल ही गया।

अचानक, पेड़ों की शाखाएं हिलने लगीं। हवा फिर से तेज़ हो गई। और अर्जुन की आँखों के सामने... एक डरावना दृश्य प्रकट हुआ।

एक परछाई, बिना चेहरे की, लहराते बालों वाली आकृति, धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रही थी।

अर्जुन का शरीर सुन्न हो गया। वह पीछे हटने लगा, लेकिन रास्ता खत्म हो चुका था।

तभी, आकृति ने अपना चेहरा ऊपर उठाया।

और जो कुछ अर्जुन ने देखा, उसने उसकी आत्मा तक को झकझोर दिया।

आकृति का चेहरा पूरी तरह से जला हुआ था, आँखें गहरी खाई की तरह खाली थीं।

फिर...

एक भयानक चीख जंगल में गूंज उठी!

अर्जुन का दिल बेतहाशा धड़कने लगा। वह उस भयावह आकृति को देख रहा था, जिसकी आँखें गहरी, अंधकारमय खाइयों जैसी थीं।

परछाई धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रही थी।

"तुम... तुम कौन हो?" अर्जुन ने कांपती आवाज़ में पूछा।

कोई जवाब नहीं। सिर्फ़ हवा की सरसराहट और सूखे पत्तों की चरमराहट।

फिर अचानक, वही ठंडी आवाज़ गूंजी—

"अर्जुन... तुम्हें नहीं आना चाहिए था।"

अर्जुन ने झटके से पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन उसके पैर किसी चीज़ से टकरा गए। उसने नीचे देखा—वहाँ एक जोड़ी जले हुए पैर थे, जो ज़मीन से निकले हुए लग रहे थे।

वह तेजी से पलटा, लेकिन परछाई अब उससे बस कुछ ही कदम दूर थी। उसकी चाल सुस्त थी, लेकिन उसकी मौजूदगी ने अर्जुन को जड़ कर दिया था।

"यह असली नहीं हो सकता... यह सब एक भ्रम है..." अर्जुन ने खुद को समझाने की कोशिश की।

लेकिन तभी...

परछाई ने अपना जला हुआ हाथ उसकी ओर बढ़ाया!

अर्जुन ने जोर से चीखते हुए पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन कोई अदृश्य शक्ति उसे जकड़ने लगी। ठंडी, बर्फीली उंगलियां उसके कंधों पर महसूस हो रही थीं।

अचानक, अर्जुन को कुछ याद आया—किताब में लिखा तीसरा नियम!

"अगर तीसरे मील में कोई तुम्हें छूने की कोशिश करे, तो अपनी आँखें बंद कर लो और कुछ मत बोलो।"

उसे अपनी आँखें बंद करनी थीं। लेकिन क्या वह हिम्मत कर पाएगा?

वह जानता था कि अगर उसने ऐसा नहीं किया, तो वह इस श्राप का अगला शिकार बन सकता है।

वह काँपते हाथों से अपनी आँखें बंद कर लीं। ठंडी उंगलियां अब भी उसकी त्वचा को महसूस हो रही थीं। परछाई अब भी फुसफुसा रही थी—

"तुम भाग नहीं सकते..."

अर्जुन ने अपनी साँस रोक ली। कुछ भी नहीं बोला। कुछ भी नहीं किया।

और फिर...

शांत‍ि छा गई।

जब उसने धीरे से आँखें खोलीं, तो परछाई गायब थी। लेकिन यह अंत नहीं था।

दूर, रास्ते के अंत में, एक और परछाई उसकी प्रतीक्षा कर रही थी।