"अच्छा… क्या मैं आपकी पहचान जान सकता हूं?" शौर्य ने सख्त लेकिन इज्जत भरी आवाज में पूछा, उसकी नजर उस काले कपड़ों में लिपटे रहस्यमयी शख्स पर जमी हुई थी।
पर उसकी बात का कोई जवाब नहीं आया।
अगले ही पल, वो आदमी अचानक इतनी तेज़ी से आगे बढ़ा कि शौर्य के लिए समझ पाना मुश्किल हो गया। ये देखकर शर वहीं के वहीं सन्न रह गया।
"यह तो…" उसके मन में सवाल उठ ही रहे थे कि वो रहस्यमयी आदमी पलक झपकते ही शौर्य के सामने आ खड़ा हुआ—और एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर दे मारा।
शौर्य जमीन पर गिर पड़ा। गाल जल रहे थे, पर समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ये सब क्यों हो रहा है? पहले टकराना और अब हमला… वो सोच में डूबा ही था कि अचानक उसकी आंखें चौड़ी हो गईं।
"ये तो वही है…"
अब सबकुछ साफ था। उस शख्स की पहचान उसके सामने थी।
इस बार शौर्य ने बिना किसी डर के अपनी जगह संभाली। गाल अब भी लाल थे, पर आंखों में सिर्फ आग थी। उसने दृढ़ आवाज़ में कहा, "तुम्हें मुझसे लड़ना ही है ना? तो फिर लड़ो…"
लेकिन तभी, उस काले कपड़े वाले आदमी के पांव में एक झटका सा दर्द उठा। वो तड़पता हुआ नीचे गिर पड़ा।
सभी चौंक गए—उसके पैर से बहुत तेज़ी से खून बह रहा था।
शौर्य के चेहरे पर कोई घबराहट नहीं थी। ये हमला उसका था। उसने अपने "मोटे कीड़े" का इस्तेमाल किया था। वही कीड़ा जो ज़मीन के नीचे छिपा था और जैसे ही वो आदमी उसके ऊपर कदम रखने वाला था, मोटा कीड़ा ज़मीन फाड़कर निकला और उसके पैर का आधा मांस चबा गया।
शौर्य खुद भी थोड़ी लाचारी महसूस कर रहा था। वह उस थप्पड़ से बच नहीं पाया था। क्योंकि वो लड़ने में माहिर नहीं था… और सबसे बड़ी बात, वो अपना नीरो कोर सबके सामने ज़ाहिर नहीं कर सकता था।
उसका एक मॉन्स्टर—वही मोटा कीड़ा—लोगों के बीच कुख्यात था। लोग उससे डरते थे, घृणा करते थे। कहते थे कि इन मोटे कीड़ों ने कई कबीलों को बेरहमी से खत्म कर दिया है, इंसानों को जिंदा खा लिया है।
कभी अगर किसी ने इन्हें टेम भी किया, तो मौका मिलते ही मार दिया जाता था। इन्हें 'शैतान की औलाद' समझा जाता था।
लेकिन शौर्य जानता था कि वो कीड़ा उसके लिए खास था। भरोसेमंद था।
अब शौर्य ने गहरी सांस ली और अपने दोस्तों प्रिंस और उत्तम की ओर देखा, जो अब तक स्तब्ध खड़े थे।
"प्रिंस… उत्तम… क्या तुम दोनों मेरी एक मदद कर सकते हो?"
दोनों चौंक कर जैसे नींद से जागे और तुरंत उस घायल व्यक्ति को पकड़कर एक अजीब-से, पत्थर के बने पुराने महल की तरफ घसीटते हुए चल पड़े। शौर्य उनके साथ आगे बढ़ा।
महल के दरवाजे पर दो सैनिक आ खड़े हुए।
"रुको! कहां जा रहे हो तुम?" एक सैनिक ने सख्त लहजे में कहा।
"मुझे राजकुमार कार्तिक से मिलना है… बहुत जरूरी बात है।" शौर्य ने दृढ़ता से जवाब दिया।
"राजकुमार की तबियत बहुत खराब है। वो अभी किसी से नहीं मिल सकते। कृपया लौट जाइए," सैनिक ने कहा।
शौर्य ने एक कदम और आगे बढ़ाया, आंखों में निडरता थी।
"मैंने कहा ना, उनसे मिलना ज़रूरी है। जाकर कहो… जिससे उनकी बहन की जान बची थी… वो उससे मिलने आया है।"
सैनिक थोड़ा रुका, फिर शौर्य को ऊपर से नीचे तक देखा। "तो… तुम हो वो?"
फिर बिना एक शब्द कहे अंदर चला गया।
करीब आधे घंटे बाद, राजकुमार कार्तिक खुद बाहर आया।
"देखो… तुमने मेरी बहन की जान बचाई। मैं उसका दिल से शुक्रिया अदा करना चाहता था… लेकिन उस वक्त कुछ भी कह नहीं पाया।" कार्तिक की आंखों में थकान थी, लेकिन लहजे में सच्चाई।
"क्या तुम किसी जरूरी बात के लिए आए हो? अगर नहीं… तो अभी के लिए चले जाओ। क्योंकि इस वक्त मैं सिर्फ अपनी बहन के साथ रहना चाहता हूं। वैद कह चुके हैं… शायद अब वो उस आंख से कभी देख न पाए जिसमें ज़हर चला गया था…"
कार्तिक की आवाज़ भारी हो गई।
"देखो… तुम जो भी हो, अभी के लिए यहाँ से चले जाओ। मैं बस अपनी बहन के साथ रहना चाहता हूँ। और ऊपर से बुज़ुर्ग भी हम पर ग़ुस्से में हैं…" — कार्तिक ने गहरी सांस लेते हुए कहा और मुड़ने लगा।
"अच्छा, तो एक बात बताओ… जिसने तुम्हारी बहन का ये हाल किया, क्या तुम उससे बदला नहीं लेना चाहते?" — शौर्य की ये बात सुनते ही कार्तिक के कदम ठिठक गए। वो रुका, फिर कंफ्यूज़न के साथ पीछे मुड़कर शौर्य की ओर देखने लगा।
"तुम कहना क्या चाहते हो?" — कार्तिक ने सवालिया निगाहों से पूछा। तभी उसकी नज़र शौर्य के पीछे खड़े एक आदमी पर पड़ी, जो दर्द में कराह रहा था।
"ये कौन है? इसे तुम हमारे दरवाज़े पर क्यों लाए हो? हमारे वैद्य सिर्फ़ राजघराने के लोगों का इलाज करते हैं, इसका नहीं!" — सभा में किसी ने तेज़ आवाज़ में कहा।
"अगर तुम हमें ये बता दो कि मेरी बहन का वो हाल करने वाला कौन है, तो शायद मैं इसकी मदद कर सकूँ।" — कार्तिक ने गुस्से में कहा।
"नहीं, इसकी कोई मदद नहीं करनी!" — शौर्य ने तुरंत जवाब दिया, "असल में... यही है वो! जिसने तुम्हारी बहन पर तीर से हमला किया था।"
एक पल के लिए कार्तिक को अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ।
"क्या? ये? लेकिन मेरी बहन की जान के पीछे तो हमारे ही कबीले का एक आदमी है… उसकी स्पीड इतनी है कि उसे कोई पकड़ नहीं सकता। और तुम कह रहे हो कि ये लंगड़ा, घायल आदमी वही है?" — कार्तिक ने ताने भरे लहजे में कहा।
"ठीक है, मैं उस इंसान का चेहरा पहचानता हूँ। इसे देख कर सब समझ आ जाएगा।"
कार्तिक ने शौर्य को साइड किया और काले कपड़ों में लिपटे आदमी के पास गया। उसने उसका नकाब हटाया… और फिर सन्न रह गया।
"ये… ये तो सच में वही है…" — कार्तिक फुसफुसाया।
उसका आधा चेहरा जला हुआ था — वही चेहरा जो कार्तिक को याद था, जब इसने रश्मी को फूल देने की कोशिश की थी और रश्मी ने इंकार कर दिया था। तब इस आदमी ने कसम खाई थी रश्मी को मारने की। और जब कार्तिक ने उसे पकड़ा था, उसने इसी के चेहरे को जला दिया था। तब से ये रश्मी के पीछे पड़ा था।
बिना समय गँवाए कार्तिक ने उसकी गर्दन पकड़ी और उसे घसीटते हुए सभा के भीतर ले गया।
"तुम अकेले अंदर आ सकते हो…" — कार्तिक ने पीछे देखे बिना शौर्य से कहा।
शौर्य ने प्रिंस और उत्तम को इशारे से रोका, "मैं तुम्हें कल रात फिर से उसी घर में मिलूँगा…" — और वो कार्तिक के पीछे चल पड़ा।
सभा-स्थल भरा हुआ था। बीच में एक वृद्ध पुरुष बैठा था — सफेद बालों वाला, सख़्त नज़र वाला।
"कार्तिक! अब क्या तमाशा कर रहे हो? रश्मी का हाल देखा है तुमने?" — वृद्ध ने गुस्से में कहा।
"पिताजी, रश्मी का इलाज चल रहा है। लेकिन ये देखिए… मेरे हाथ क्या लगा है!" — कार्तिक ने घायल को सामने धकेल दिया।
सभा में फुसफुसाहटें गूंजने लगीं।
"ये तो वही है! इसी की वजह से मेरी बेटी की आंखें…!" — कहते हुए वृद्ध उठ खड़ा हुआ और उस आदमी की ओर बढ़ा। वो barely खड़ा हो पाया ही था कि वृद्ध ने उसे लात मार दी। फिर, क्रोध में आकर, उसके सिर पर इतनी ज़ोर से प्रहार किया कि उसका सिर वहीं फट गया।
शौर्य सिहर गया। रोंगटे खड़े हो गए, और एक हल्की सी चक्कर-सी हालत महसूस हुई।
तभी पीछे से कुछ बूढ़ी औरतें एक युवती को सहारा देते हुए सभा में लाईं।
"बेटी… रश्मी? क्या तुम ठीक हो?" — किसी ने कहा।
शौर्य ने देखा — पट्टियों से बंधी आंखें… और एक आंख से बहते आँसू।
"घबराओ मत बेटा, जिसने भी ये किया… अब वो खत्म हो चुका है। तुम्हें अब डरने की ज़रूरत नहीं।" — वृद्ध ने रश्मी को गले से लगा लिया।
"वैद्य जी… क्या मेरी बेटी की आंखें ठीक हो सकती हैं?" — वृद्ध ने बूढ़ी महिला वैद्य से पूछा।
"हमने कोशिश की… लेकिन ये ज़हर बहुत खतरनाक था। ये ज़हर पूर्व के पहाड़ी साँपों का है — बहुत ही दुर्लभ और जानलेवा।"
"कोई रास्ता?" — वृद्ध की आवाज़ भारी हो गई।
"एक रास्ता है… लेकिन उसके लिए हमें पाँच-सितारा कबीले की दवा चाहिए। वो बहुत महंगी है… पूरे कबीले की दौलत भी शायद कम पड़ जाए।" — वैद्य बोली।
सभा में सन्नाटा छा गया।
तभी शौर्य ने धीमे मगर दृढ़ स्वर में कहा — "सुनिए… क्या मैं कुछ मदद कर सकता हूँ? शायद… मैं इसकी आँखें ठीक कर सकूँ।"
सबकी निगाहें अचानक शौर्य पर टिक गईं।