एक नई कहानी लिखने जा रहीं हूं । जो मेरे लिए खुद नए एहसासों से भरी होगी । बहुत कहानी पढ़ी हैं ऐसी और हर कहानी पढ़ते पढ़ते कब खुद रो गई पता ही नहीं होता था । मेरी एक कोशिश किसी की जिंदगी दिखाने की । उम्मीद हैं आप पसंद करेंगे उस वेश्या को उसके जैसा
एक वेश्या जिसे कोई अपनी प्रेमिका तक ना बनाना चाहे आखिर कैसे कोई उसे अपनी बीवी ही बनाएगा ? कौन हैं जिसे चाहा हैं एक वेश्या को अपनी मां बनाने की ?
जय माता दी
एक कमरे में एक लड़की आईने के सामने छोटी सी कुर्सी पर बैठी अपने ब्लाउज को सीने से हल्का सा नीचे सरकाती हुई अपने उभारों को हल्का सा बहार निकालने लग रही थी । ताकि उसके जिस्म को देखकर हर मर्द उस पर कायल हो जाए
" ए मीनाक्षी.... तुझे कहां था ना... तैयार कर इस लड़की को । साली ये इतना बार इतने मर्दों के जिस्म के नीचे कुचल गई । पर साली का रोना नहीं बंद होता " तभी कमरे का दरवाजा तेज झटके से खोलता हुआ एक आदमी गुस्से से कमरे में आते हुए आईने के सामने बैठी मीनाक्षी को बोलता
पर मीनाक्षी उस आदमी की बातों को पूरी तरह नजर अंदाज़ कर अपने दुपट्टे को गोल गोल मोड़ती हुई उस दुपट्टे का एक सिरा अपने ढुंगे में पेटीकोट में घुमाती हुई दुपट्टे का दूसरा सिर अपने कंधे पर रख लेते । जहां इस तरह दुपट्टा रखने से मीनाक्षी के सीने की गहराई काफी हद तक चमकती रहती
" बोल दे उसे आखिर बार हैं जो वो आज रोई । वरना अगली बार दो मर्दों के साथ उसे भेज दूंगा । फिर .... तो तू जानती हैं क्या होगा उसका ? " तभी वो आदमी मीनाक्षी को देखकर धमकी देते हुए हंसते हुए बोलता
पर मीनाक्षी इस बार भी नजर अंदाज़ करती । तभी दो पल बाद उसे एक आवाज आती । आवाज धम सी ऐसी थी मानो किसी को बहुत बुरी तरह जमीन पर फेंका गया हो
जहां इस आवाज को सुनकर मीनाक्षी अपना चेहरा टेढ़ा कर नज़रे अपने से तीन कदम दूर उल्टी जमीन पर पड़ी लड़की पर कर लेती । जहां यूं उलटे जमीन पर गिरे रहने से लड़की का चेहरा बालों से पूरी तरह ढक गया था
" तू कायको रोती हैं रि । मजे ले और पैसे ले बस ..... वैसे भी अभी तो तुझे अपने इस जिस्म से बहुतों की हवस और बहुतों की दरिंदगी झेलनी हैं नंदनी ... " वहीं मीनाक्षी जमीन पर उल्टी पड़ी नंदनी को देखती हुई एक आह भरती हुई बोलती हुई आगे भी बोलती कि
तभी उसे नंदनी की रोने की धीमी धीमी सिसकियां सुनाई देती । जहां इन सिसकियों को सुनकर मीनाक्षी एक पल आँखें बंद गहरी लंबी सांस लेती हुई कुर्सी से खड़ी होकर नंदनी के पास बढ़ जाती
" तुझे दो साल होने वाला हैं यहां । क्यों रो रोकर खुद का खून जला रही । रोकर कुछ नहीं मिलेगा । आदत बना ले इसे अपनी नंदनी । क्योंकि यहां तू एक दिन में जितने आदमी की भूख मिटाएगी फिर उसी हिसाब से तुझे तेरा खाना पानी नसीब होगा... " वहीं मीनाक्षी नंदनी के पास जमीन पर दोनों पेरो को फैलाए बैठती हुई नंदनी को समझाती हुई बोलती हुई उसी पल चुप हो जाती
जहां मीनाक्षी के चुप होते ही मीनाक्षी की आँखें नंदनी की पीट पर चली जाती । जहां सिर्फ एक हुक से बंधा वो ब्लाउज नाकाम सा नंदनी के सीने पर रुके हुए था । जहां मीनाक्षी की नज़रे नंदनी की पीट पर चार से पांच सूखे खून की लंबी लकीर पर चली जाती
जहां खून की सुखी लकीर दिखा रही थी कि किसी ने इस बार अपने जिस्म की भूख नहीं बल्कि सिर्फ अपना गुस्सा , अपनी दरिंदगी नंदनी के जिस्म पर उतारी हैं । जहां चाकू को बेदर्दी से नंदनी की पीट पर कई जगह लंबी लकीरों में खींचते हुए गड़ाया हुआ था
" दी....दीदी। द....र्द। हो रहा " तभी नंदनी की रोती हुई कांपती हुई सी आवाज मीनाक्षी को सुनाई देती
जहां इस आवाज में भरे दर्द को खुद में महसूस कर मीनाक्षी की आँखें नम सी हो जाती । वहीं मीनाक्षी खुद को संभालती हुई नंदनी का हाथ पकड़कर उसे खड़ा करती हुई बिस्तर पर बैठा देती
जहां अब नंदनी का गोरा प्यार सा गोल चेहरा मीनाक्षी की नजरों के सामने होता । जहां नंदनी की छोटी छोटी आंखों में बसी मासूमियत जो हर बच्चे से बड़े का दिल मोह ले , लेकिन इस वक्त वो लाल आँखें सुर्ख लाल हुई थी जिसमें आंसू भरे थे । जहां उन भरे आंसुओं को देखकर मीनाक्षी की भी पलखे दर्द से फड़ फड़ाने जाती
उसकी छोटी सी नाक जो उसके चेहरे को बेहद खूबसूरत बना रही । लेकिन उस छोटी सी नाक से हल्का सा खून बह रहा था । जहां उस खून को देखकर मीनाक्षी सहम सी जाती । वहीं नंदनी के मुलायम गोरे गाल जिन्हें छूने को हर कोई चाह रखे । पर इस वक्त सिर्फ उन गालों पर थप्पड़ के निशान थे । ऐसे थप्पड़ के निशान की गाल हल्का सा सूज गया था
वहीं नंदनी के पतले से लाल होठ जिन पर निगाह जाते ही । उसी पल मीनाक्षी घबराहट से अपनी निगाहे हटा लेती । क्योंकि नंदनी के होठ को बेदर्दी से किसी ने इतनी बुरी तरह अपने दांतों से चबा रखा था कि वो मुलायम होठ सूज गए और उन पर गहरा जख्म हो गया
" हम.... हमने सहन किया दी.... दीदी । पर .... " वहीं नंदनी रोती हुई बोलती हुई नज़रे नीचे कर फफक फफक कर कांपती हुई बस रोती ही रह जाती
जहां नंदनी को यूं बोलते हुए रुकते देखकर मीनाक्षी के होठों पर दर्द भरी हल्की सी मुस्कुराहट आ जाती । जहां उसकी मुस्कुराहट बता रही थी कि वो समझ गई कि जो नंदनी के पास आया उसे नंदनी का जिस्म नहीं बल्कि उस पर सिर्फ अपनी दरिंदगी उतारनी थी । उसे अपनी दरिंदगी में सिर्फ नंदनी की भयानक दर्द भरी चीखे सुननी थी
ऐसे ही तो आते थे यहां कई मर्द जिन्हें जिस्म पर हवस उतारते वक्त उन लड़कियों के जिस्म को नोचने से ज्यादा चीखे सुनने की तलब रहती थी और जब तलब पूरी ना हो तो वो उस लड़की के साथ सब कुछ करने पर उतर आते थे
वहीं दूसरी तरफ
" जल्दी खाना लगाइए ... अभिजीत नीचे आते होंगे । अगर उन्हें खाना वक्त पर नहीं मिला । तो आपको उनके गुस्से से हम नहीं बचाएंगे " वहीं दो नौकरों को डाइनिंग टेबल पर खाना रखते देखकर एक औरत बोलती
तभी उस औरत को एक बच्ची के रोने की आवाज आती । जहां इस आवाज को सुनते ही वो औरत जल्दी से हॉल में जाती हुई पालने में रोती हुई बच्ची की तरफ बढ़ जाती
" परी... क्या हुआ मेरे बच्चे को " वहीं वो औरत बोलती है पालने में रोती बच्ची को गोद में उठाने के लिए हाथ बढ़ाती की
तभी एक शक्श उस पालने से परी को गोद में लेते हुए हॉल में इधर उधर घूमते हुए धीरे धीरे परी को हिलाते हुए परी को शांत करने लगता । जहां उस शक्श के हिलाने से परी एक पल में शांत सी होती हुई फिर सो जाती
" आइए अभिजीत खाना खा लीजिए " वहीं परी को चुप होते देखकर वो औरत बोलती
लेकिन अभिजीत कुछ ना बोलते हुए परी को गोद में लिए हॉल में इधर उधर घूमते हुए । उसे शांत करने लगता । जहां अभिजीत को दस मिनिट से ज्यादा हो जाते । पर अभिजीत परी को वैसे ही लेकर घूमते रहता । जहां अभिजीत को यूं परी को संभालते देखकर वो औरत मुस्कुरा जाती । क्योंकि वो जानती हैं अभिजीत से एक सेकंड भी परी को रोते देखना बर्दाश नहीं हैं
(( एक तरफ अभिजीत जिसे अपनी बच्ची का हल्का सा रोना भी बर्दाश नहीं । तो दूसरी तरफ नंदनी जिसकी दर्द भरी चीखे उस हवसखाने के मर्दों का सुकून हैं ))
अपनी समीक्षा और रेटिंग जरूर दीजियेगा मुझे । अब मेरी कोशिश की आपको पसंद आए ))