राँझना with सफर-1

“अरे! यार शीट! इसे भी अभी रूकना था? अब मैं घर कैसे जाऊँगी.....?” गुस्से में रीतिका बड़बड़ाई, लेकिन उसकी आवाज़ में घबराहट थी। पार्टी खत्म होने के बाद, वो अपनी गाड़ी में घर लौट रही थी। लेकिन आज उसकी किस्मत कुछ ठीक नहीं लग रही थी। गाड़ी अचानक सुनसान रास्ते पर बंद हो गई।

रात के लगभग 12 या 1 बज रहे थे। चारों ओर घना अंधेरा छाया हुआ था, और वह सुनसान सड़क डर के साये में डूब गई थी। इक्का-दुक्का पेड़ हवा के झोंकों से बेजान तरीके से झूल रहे थे, जैसे किसी ने जानबूझ कर उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया हो। तभी अचानक, दूर से एक अजीब सी आवाज आई—जैसे किसी के चीखने की आवाज। रीतिका का दिल तेजी से धड़कने लगा। यह कोई इंसान नहीं हो सकता था, यह तो बस एक डरावनी सी गूंज थी।

उसने जल्दी से फोन निकाला, लेकिन वह देखती है कि उसका फोन पूरी तरह से स्विच ऑफ था । "यह क्या हुआ?" उसने सोचा। उसकी शारीरिक हरकतें बेजान सी हो गईं, लेकिन उसके दिमाग में हर एक सवाल चक्कर काट रहा था—अब वह क्या करेगी?

डरते हुए, रीतिका ने गाड़ी को छोड़ने का फैसला किया और धीरे-धीरे चलने लगी। उसके कदम गहरे अंधेरे में फिसलने लगे, और हर कदम के साथ, उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि कोई उसे पीछे से देख रहा है। दिल में हलचल बढ़ने लगी, और हवा के साथ वो आवाजें फिर से सुनाई दीं—लगता था जैसे किसी की सांसें उसके कानों में गूंज रही थीं।

रास्ता खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। हर पेड़, हर झाड़ी में जैसे किसी की मौजूदगी का अहसास था। उसके कदम और तेज़ हो गए, लेकिन जैसे-जैसे वह आगे बढ़ी, उसकी छाया अंधेरे में खोती जा रही थी। उसे ऐसा लगने लगा कि कोई कटी हुई, कांपती हुई आवाज़ उसके पास से निकल रही है—जैसे कोई उसे ही पुकार रहा हो।

वह जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाते हुए चिल्लाने लगी, लेकिन उसका मुंह जैसे गला हुआ हो। चारों ओर सन्नाटा था, और उसके पास केवल उसका दिल था, जो और तेज़ धड़कने लगा था। अचानक, रास्ते के आगे एक भयानक साया नज़र आया, और रीतिका का दिल जोर से धड़कते हुए एक सांस रोक कर उसकी तरफ देखने लगा। क्या वह अकेली थी? या कुछ और भी था... जो उसे घेर रहा था?

 

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रीतिका के माता-पिता दोनों ही बेहद परेशान थे। रात के अंधेरे में उनका चेहरा चिंता और घबराहट से विकृत हो चुका था। वे बार-बार फोन करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन हर बार वही निराशाजनक उत्तर आता—"रीतिका तो कब का चली गई है, शायद आपको समय का ध्यान नहीं है।"

अजीब सा डर उनके दिलों में घर करने लगा था। ये पहली बार था जब रीतिका का फोन बंद आया था। रीतिका तो हमेशा सही समय पर घर लौटती थी, लेकिन आज जैसे सब कुछ उलट-पलट हो गया था। पेरेंट्स ने सोच लिया था कि अब उन्हें रीतिका को ढूंढना होगा, क्योंकि यह नॉर्मल नहीं था।

रीतिका की माँ की आँखों में घबराहट की लकीरें साफ दिख रही थीं, और पिता का चेहरा चिंता से भरा हुआ था। "क्या हो सकता है?" वह खुद से बुदबुदा रहे थे, "कहीं किसी परेशानी में तो नहीं फंसी है?"

सभी दोस्तों से पूछने के बाद भी वही जवाब मिला कि रीतिका तो कब का चली गई थी, लेकिन उन सबके चेहरे पर एक अजीब सी चुप्पी थी। ऐसा जैसे कोई नहीं चाहता था कि वे कुछ और पूछें। जैसे सब कुछ ठीक था, लेकिन कुछ था जो ठीक नहीं था। रीतिका के माता-पिता को एक अजीब सी आहट महसूस हो रही थी। कुछ तो गड़बड़ था, लेकिन क्या?

इस बीच, रीतिका की माँ ने गहरी सांस ली और पापा से कहा, "शायद हमें पुलिस के पास जाना चाहिए। ये कुछ भी ठीक नहीं लग रहा।"

"हाँ," पापा ने कहा, "कुछ तो गलत है। हम रीतिका को हर हालत में ढूंढेंगे।"

लेकिन उस समय, रीतिका के माता-पिता को ये एहसास नहीं था कि रीतिका जहाँ भी थी, वो अंधेरे के बीच कहीं खो चुकी थी, और वह जिस डर से जूझ रही थी, वह एक रहस्य बन चुका था—जो अभी तक न तो उसने महसूस किया था, और न ही कोई जानता था।

 

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रीतिका घबराई हुई कदमों से शमशान घाट के पास पहुँची। अंधेरा और भी गहरा हो गया था, और वातावरण में एक अजीब सी खामोशी छा गई थी। उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं, और वह एकदम डर से बुरी तरह कांपने लगी। उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसे चारों ओर से घेर लिया गया हो। डर के मारे उसकी चाल भी तेज़ हो गई, और वह बिना देखे समझे भागने लगी। जैसे ही वह दौड़ते हुए उस शमशान घाट से गुजर रही थी, उसकी नज़र एक आदमी पर पड़ी, जो एक पुराने घर की रखवाली कर रहा था। उसके पास आते ही रीतिका की सांसों में कुछ राहत की लहर दौड़ी।

आदमी ने रीतिका की घबराई हुई हालत को देखा और पूछा, "क्या हुआ मैडम, आप इतनी घबराई हुई क्यों हो?"

रीतिका ने बड़ी मुश्किल से अपनी आवाज़ को शांत करते हुए कहा, "मेरी गाड़ी खराब हो गई है और मेरा फोन भी बंद है, जिससे मैं घर नहीं जा पा रही हूँ। मुझे आज रात कहीं रुकने के लिए जगह चाहिए।"

आदमी की आँखें कुछ समय के लिए एक पुराने, खंडहर जैसे घर की ओर टिकी रही। फिर वह धीरे से बोला, "चलिए मैडम, मैं आपको एक घर दिखाता हूँ।" और फिर वह उस अंधेरे रास्ते पर आगे बढ़ने लगा। रीतिका डरते हुए उसके पीछे-पीछे चलने लगी, हर कदम में जैसे कोई रहस्य था, कोई डर था जो उसे और ज्यादा घेरता जा रहा था।

जब वे एक खूबसूरत बंगले के सामने पहुँचे, तो रीतिका का दिल अचानक रुक सा गया। इस सुनसान जगह पर इतना सुंदर बंगला—यह अजीब था। उसका मन सवालों से भरा था, लेकिन उसे डर था कि वह क्या पूछे। क्या यह घर सुरक्षित है? क्या यह आदमी सही है? लेकिन जो भी था, उसे फिलहाल किसी भी जगह रुकने की जरूरत थी।

आदमी ने उसकी बेचैनी को नजरअंदाज करते हुए कहा, "आप किसी भी एक कमरे में जाकर सो जाइए और सुबह होते ही आप अपने घर चली जाएंगी।" यह कहकर वह वापस मुड़ा और अपने कदमों से लौटने लगा।

रीतिका के मन में डर और चिंता का साया था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस घर में कैसे रात बिताएगी। लेकिन अब उसके पास कोई और रास्ता नहीं था। उसने थोड़ी देर सोचा, फिर दरवाजे की ओर कदम बढ़ाए। उसका दिल भारी था, और उसके दिमाग में सवालों की झंकार थी, लेकिन अंधेरे में और अकेले उस रास्ते पर वह आखिरकार अंदर चली गई।

अंदर, सब कुछ बिल्कुल शांत था। एक रहस्यपूर्ण खामोशी जैसे उसे निगलने को तैयार थी। रीतिका ने आखिरी बार बाहर देखा, फिर दरवाजा बंद किया। और उस रात, वह बंगलें में कुछ अजीब सा महसूस कर रही थी... क्या वह इस घर में सुरक्षित है? या फिर यह एक और बुरी रात होने वाली थी?

 रीतिका की आँखें अचानक खुली, और वह गहरी सांस लेने की कोशिश करने लगी। गर्मी से लथपथ होते हुए वह खिड़की के पास गई, लेकिन अंधेरे में कुछ साफ दिखाई नहीं दे रहा था। फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ जो उसने कभी सोचा भी नहीं था। जैसे ही उसने खिड़की से बाहर देखा, उसका दिल धड़कने लगा। जिस बंगले को वह अभी कुछ घंटे पहले खूबसूरत समझ रही थी, वह अब खंडहर जैसा दिख रहा था। खंडहर बंगला एक अजीब सी खामोशी में डूबा हुआ था, जैसे समय ने वहाँ आकर अपना अस्तित्व खो दिया हो। उसकी टूटी-फूटी दीवारों पर घने पेड़ की बेलें लिपटी हुई थीं, और किवाड़ों के जंग लगे ताले यह बताते थे कि वर्षों से यहां कोई नहीं आया था। खिड़कियाँ बेतरतीब खुली हुई थीं, जैसे किसी ने मजबूरी में उन्हें खुला छोड़ दिया हो। इन खिड़कियों से बाहर का दृश्य एक भयावह एहसास पैदा कर रहा था।

चाँद की हल्की सी रोशनी खिड़की से छनकर अंदर आ रही थी, लेकिन वो रोशनी भी डरावनी लग रही थी, जैसे उस खंडहर में कोई छुपा हुआ अंधेरा हो जो उजाले को भी निगलने की ताकत रखता हो। बाहर की ओर, दूर तक फैले हुए वीरान रास्ते और झाड़ियों में छिपे हुए घने पेड़, जैसे ये भी इस खंडहर की तरह जिंदा नहीं, बल्कि कुछ मर चुके हों। खिड़कियों से आती ठंडी हवाएँ एक अजीब सी आवाज करती थीं, जैसे पुरानी, टूटी-फूटी किताबें सड़कों पर फटकर अपनी दास्तान सुनाती हो। हर एक पंखा या खिड़की के झीने पर्दे हवा के साथ यूं हिलते थे जैसे वो किसी दूर के भूतिया अस्तित्व से संवाद कर रहे हों।

खिड़की के काँच पर हल्की सी धुंध थी, जो जैसे किसी ने वहां किसी पुराने समय की यादें छोड़ दी हो। एक पल के लिए, ऐसा लगा जैसे उस धुंध में छिपे साए एक-दूसरे से बातें कर रहे हों। खिड़की से बाहर की खामोशी में एक अजीब सी घबराहट और सर्दी का अहसास हो रहा था, मानो समय यहां रुक गया हो और हर एक शय अपने पुराने राज़ छुपाने की कोशिश कर रही हो।

यह खिड़की, जो किसी समय भरपूर जीवन से भरी हुई थी, अब खामोशी और रहस्य से घिरी हुई थी। क्या वहां कोई देख रहा था? क्या इन खिड़कियों के पीछे कोई साया छिपा हुआ था? या फिर ये खिड़कियाँ सिर्फ समय के भूतिया निशान थे जो अपनी ओर आने वाले किसी के अस्तित्व को महसूस कर रही थीं? खिड़कियों से बाहर देखना एक भूतिया अनुभव था, जैसे कोई देख रहा हो, लेकिन कोई न दिखाई दे रहा हो।

दीवारों से मोल्ड उग चुके थे, खिड़कियाँ टूटी हुई थीं, और सब कुछ बहुत डरावना लग रहा था। वह बुरी तरह से घबराई और बिना सोचते हुए कमरे से बाहर निकल पड़ी।

"क्या हुआ मैडम, कोई परेशानी है?" अचानक पीछे से उस आदमी की आवाज आई। वह आवाज बहुत अजीब थी, जैसे किसी इंसान में न जाने कितने लोग समाए हुए हों। रीतिका ने डरते हुए पीछे मुड़कर देखा। और फिर, उसकी रगों में बर्फ़ जम सी गई। उस आदमी का सिर नहीं था। सिर के बिना वह आदमी सिर्फ एक कटा-फटा शरीर खड़ा था, और उसकी आंखों से घृणा और अंधेरे की छाया झलक रही थी।

रीतिका पूरी तरह से डर के मारे कांप रही थी। वह बिना देर किए, सीढ़ियों से भागने लगी। लेकिन डर के मारे उसके कदम लड़खड़ाने लगे और वह गिर पड़ी। फिर भी, जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उसे उठाया, वह जल्दी से खड़ी हुई और भागने लगी। उसका मन पूरी तरह से घबराया हुआ था, और वह कहीं भी देखे बिना भागे जा रही थी।

भागते-भागते वह एक पेड़ के पास पहुंची और वहां छिप गई। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं, और दिमाग में केवल डर था। वह सोच भी नहीं पा रही थी कि क्या हो रहा है। क्या यह सपना था? क्या वह सच में सुरक्षित थी? उसे तो बस यह डर था कि अब क्या होगा।

तभी, अचानक उसके हाथ पर कुछ गीला महसूस हुआ। वह नीचे झुककर देखती है, तो पाया कि कुछ बूंदें गिर रही थीं। पहले तो वह समझ नहीं पाई, लेकिन फिर उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वो बूंदें खून की थीं। डर से उसके होंठ कांप रहे थे। उसने साहस जुटाया और ऊपर की ओर देखा। और अचानक, जो उसने देखा, वह उसकी पूरी आत्मा को झकझोर कर रख दिया। ऊपर से एक लाश खून से सनी हुई गिर पड़ी थी।

उसका दिल धक से रुक गया। लाश का चेहरा उतना ही भयावह था जितना उसके मन में डर बैठ चुका था। वह लाश धीरे-धीरे जमीन पर गिरी, और खून की एक नदी उसके चारों ओर फैलने लगी। उसकी आंखों के सामने जैसे दुनिया ही अंधेरे में डूब गई हो। वह जोर से चिल्लाई, लेकिन किसी के सुनने का सवाल ही नहीं था। हवा में अजीब सी नीरवता फैल गई थी, जैसे समय भी उस खौफनाक दृश्य से कांप गया हो।

वह बिना किसी सधे कदमों के, पागलपन में वहां से भाग निकली। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था, जैसे वह अपनी जान बचाने के लिए दौड़ रही हो। उसे यह भी नहीं मालूम था कि वह कहां जा रही है, बस उसने अपनी आंखें बंद कर ली थीं और अपने पैरों को जितनी तेजी से दौड़ा सकती थी, दौड़ा लिया। खून से सनी वह लाश उसकी आंखों के सामने तैरती रही, जैसे वह कभी पीछे न हटे।

हर कदम के साथ, उसके दिल की धड़कन और तेज होती जा रही थी। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे हर कोने से उसकी तरफ कुछ बढ़ रहा हो। हवा का ठंडा झोंका उसके चेहरे पर गुस्से और भय के साथ थपेड़े मार रहा था। उसकी सांसें उखड़ी हुई थीं और उसके पैर थकने के बावजूद भी वह भागे जा रही थी। वह बस एक ही बात सोच रही थी—वह किसी भी हाल में उससे बाहर निकलना चाहती थी।

वह इतनी तेज़ दौड़ी कि अगर मिल्खा भी होता तो वह भी नहीं पकड़ पाता। रीतिका का दिल भय से तेज़ धड़क रहा था। उसने और ज्यादा दौड़ने की कोशिश की और काफी दूर तक भागी। उसे लगा जैसे अब कोई नहीं है जो उसके पीछे है। धीरे-धीरे उसकी सांसें शांत होने लगीं और वह रुक गई। वह कुछ देर खड़ी रही, फिर देखा कि आगे एक मंदिर था। बिना सोचे-समझे, उसने मंदिर में कदम रखा। वह अंदर जाकर एक कोने में बैठ गई, उसकी आँखें बंद हो गईं, और कुछ ही क्षणों में उसे पता नहीं चला कि कब उसकी आँख लग गई।

शांति की आशा में, वह पूरी तरह थक चुकी थी और इस डरावनी रात से बाहर निकलने की उम्मीद में सो गई।

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रीतिका के माता-पिता की चिंता लगातार बढ़ रही थी, और उन्होंने तुरंत पुलिस को खबर दी। पुलिस ने जल्द ही मामले की जांच शुरू कर दी और सभी जगह छानबीन करने लगी। सबसे पहले, पुलिस ने रीतिका के दोस्तों को बुलाया और उनसे पूछताछ की। आरोही, जो रीतिका की सबसे करीबी दोस्त थी, ने साहिल के बारे में कुछ अहम जानकारी दी। उसने बताया कि साहिल लंबे समय से रीतिका से प्यार करता था, लेकिन रीतिका ने कभी उसकी भावनाओं का जवाब नहीं दिया।

पुलिस ने साहिल को तुरंत बुलाया और उससे रीतिका के बारे में पूछताछ की। साहिल का व्यवहार थोड़ा अजीब सा था, और पुलिस को शंका हो रही थी कि शायद वह कुछ छुपा रहा था। पुलिस ने उसे चेतावनी दी कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, वह शक के दायरे में रहेगा और शहर छोड़ने के लिए मना किया।

"तुम हमारे साथ रहोगे," पुलिस ने साहिल से कहा, "अगर तुमने कोई होशियारी की या जांच में बाधा डालने की कोशिश की, तो तुम्हें तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाएगा।"

साहिल, जो पहले से ही घबराया हुआ था, ने पुलिस की बातों में हामी भर दी। उसे समझ में आ गया कि वह अब पुलिस की पकड़ से बाहर नहीं जा सकता था। हालांकि, उसका चेहरा कुछ बदला हुआ था, जैसे वह कुछ और भी छिपाने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन पुलिस ने फिलहाल उसे शक के दायरे में रखा और उसे अपनी निगरानी में लिया।

रीतिका का परिवार और पुलिस दोनों इस रहस्यमय मामले को सुलझाने के लिए पूरी ताकत लगा रहे थे, लेकिन अब सवाल यह था कि क्या साहिल सच बोल रहा था, या फिर उसके दिल में कुछ और था जो उसने छिपा रखा था।

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🔍 क्या वह सुंदर बंगला असल में एक प्रेतवाधित जगह थी? और वह बिना सिर वाला आदमी—क्या उसका कोई पुराना रहस्य जुड़ा है?

🕵️‍♂️ साहिल की आँखों में छिपा डर किस बात का संकेत है? क्या वह सिर्फ एक दिल टूटे प्रेमी हैं, या उसके पास रीतिका की गुमशुदगी का कोई बड़ा राज़ है?

🌘 रीतिका मंदिर में पहुंच गई है, लेकिन क्या वह सच में सुरक्षित है? या डरावनी रात की असली शुरुआत अब होने वाली है?

जानने के लिए पढ़ते रहिए — "राँझना with सफर"हर मोड़ पर एक नया रहस्य, हर अंधेरे में छिपा एक साया...क्या रीतिका बचेगी? या अतीत के साए अब उसका भविष्य बदल देंगे?