रांझना with सफर-2

रीतिका की आँखें धीरे-धीरे खुलीं, और वह अपने आसपास के वातावरण को महसूस करने लगी। मंदिर में दुर्गा माँ की पूजा हो रही थी, और आस-पास के लोग अपनी श्रद्धा में व्यस्त थे। रीतिका, जो रातभर के डर और तनाव से थकी हुई थी, सीढ़ियों से उतरकर मंदिर के बाहर आ गई। उसने दुर्गा माँ का धन्यवाद किया और मन ही मन प्रार्थना की, "माँ, मुझे सही रास्ता दिखाइए।" फिर वह धीरे-धीरे चलने लगी, जैसे अपने अगले कदम की दिशा ढूँढ रही हो।

कुछ दूर जाने के बाद उसे प्यास लगी। पास में एक दुकानदार खड़ा था, जो उसकी ओर ध्यान से देख रहा था। रीतिका ने उससे पानी मांगा। दुकानदार ने कुछ सोचे बिना कहा, "अगर आपको पानी चाहिए, तो इसके बदले आपको कुछ देना पड़ेगा।"

रीतिका ने अपनी जेब में हाथ डाला और कुछ पैसे निकाले। उसने दुकानदार को पैसे दिए और पानी लिया। जैसे ही पानी पीकर उसने अपनी प्यास बुझाई, उसकी आँखों में एक और सवाल था—कहाँ जाए? क्या यह सब सच है? 

वह दुकानदार से पूछने लगी, "क्या यहाँ पास में मोबाइल का कोई दुकान है?"

दुकानदार ने जवाब दिया, "इस गाँव में नहीं है, लेकिन अगले गाँव में है।" 

रीतिका ने उसका धन्यवाद किया और अगले गाँव की दिशा में चल पड़ी।

गाँव का रास्ता इतना लंबा था कि जब वह आधे रास्ते तक पहुंची, तो रात हो चुकी थी। अंधेरे में उसकी घबराहट फिर से बढ़ने लगी। कहीं, फिर से वही डर तो नहीं होगा, वही घटनाएँ जो पिछले रात घटी थीं? उसके मन में सवालों का तुफान था। रीतिका ने अपनी आँखें बंद की और तुरंत उसे पिछली रात का दृश्य याद आने लगा। वह सब कुछ फिर से उसे अपने आँखों के सामने महसूस कर रही थी—वो अजीब सी आवाजें, खून से सनी लाश, और वह आदमी जिसका सिर नहीं था।

उसने अपनी जेब में हाथ डाला और देखा कि उसके पास अब भी कुछ पैसे बाकी थे। वह उन्हें महसूस करते हुए आगे बढ़ी, लेकिन उसके मन में यह डर था कि कुछ गलत होने वाला है। गाँव की सड़कों पर अकेले चलते हुए, उसे यह एहसास हुआ कि जब हम डर में होते हैं, तो हमारी ज़िंदगी में कोई और नहीं होता, सिर्फ हम और हमारी डरावनी सोच। हमारे चारों ओर आवाजें होती हैं, जो हमारे दिमाग में बनी हुई होती हैं। रीतिका अब तक कभी भी इतनी अकेली महसूस नहीं हुई थी। वह सोच रही थी कि क्या हो रहा है? क्यों यह सब उसके साथ हो रहा है?

रात के अंधेरे में उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गई। उसे पता था कि वह कहीं न कहीं, किसी न किसी रहस्यमय रास्ते पर चल रही थी, जो उसे डर और अकेलेपन का एहसास दिला रहा था। वह खुद से यह सवाल करती रही, "क्या यह सब सच है? क्या मैं इस सब से बच पाऊँगी?"

रीतिका ने महसूस किया कि उसे अब किसी की जरूरत नहीं थी, बल्कि उसे खुद को ढूंढने की जरूरत थी—यह समझने की कि इस भय और अकेलेपन के बावजूद, वह किस दिशा में जा रही थी।

 

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रात का अंधेरा और बढ़ गया था, और रीतिका को रास्ते में अजीब आवाजें सुनाई देने लगीं। ये आवाजें ऐसी थीं जैसे कोई उसे बुला रहा हो, लेकिन वह आवाजें स्पष्ट नहीं थीं। ऐसा लग रहा था जैसे कई तरह के जानवरों की आवाजें एक साथ मिलकर गूंज रही हो, लेकिन फिर भी, कोई पहचान नहीं पा रहा था कि वह आवाजें कहाँ से आ रही थीं। रीतिका का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा, और एक अजीब सी घबराहट उसके अंदर समाने लगी। उसने सोचा, "क्या यही वही डर है जो कल रात था?"

वह डर के मारे कदमों को पीछे की ओर बढ़ाने लगी। जैसे ही उसने पलटकर देखा, उसके पीछे कोई था, और तभी एक जोर की चीख गूंजी। रीतिका का दिल कांप उठा, और वह बिना कुछ सोचे समझे तेज़ी से भागने लगी। "कल रात जो बंगला मिला था... वही बंगला!"—यह ख्याल उसके दिमाग में आया, लेकिन वह जल्दी ही रुक गई। डर और घबराहट में उसे आगे बढ़ने की ताकत नहीं मिल रही थी।

वह भागते-भागते एक चर्च तक पहुंची और अंदर घुस गई। चर्च के भीतर सुकून का अहसास हुआ, लेकिन जैसे ही वह अंदर गई, चर्च के फादर आ गए। उन्होंने उसे देखा और फिर सौम्य आवाज में कहा, "बेटा, आज तुम यहीं रहो, और कल सुबह तुम जा सकती हो।"

रीतिका ने गहरी सांस ली और धीरे से कहा, "ठीक है, फादर।" वह जानती थी कि अभी उसके पास और कोई रास्ता नहीं है।

फादर की आवाज में एक ऐसी शांति थी, जो उसे थोड़ी राहत दे रही थी, लेकिन भीतर का डर और भी बढ़ रहा था। वह समझ नहीं पा रही थी कि यह रात और यह जगह क्या उसे एक सुरक्षित शरण दे रही है, या फिर उसका सामना किसी और खतरनाक सच से करवा रही है।

चर्च के अंदर कदम रखते ही उसे एक अजीब सी शांति का अहसास हुआ, लेकिन साथ ही वह जानती थी कि डर अभी भी उसके साथ है—सिर्फ थोड़ा सा शांत पड़ा हुआ है, जैसे कोई खौफनाक रहस्य उसके पास और भी पास आ रहा हो।

 

रात का डर और थकान रीतिका के चेहरे पर साफ दिख रहे थे, लेकिन चर्च में उसे कुछ राहत मिली थी। जब सुबह हुई, तो रीतिका की आँखें धीरे-धीरे खुलीं। सामने एक लड़की खड़ी थी, जो मुस्कुराते हुए बोली, "दीदी, उठ जाओ, मैंने आपके लिए चाय लाई है।"

रीतिका ने चाय का कप लिया और फिर लड़की से पूछा, "तुम यहाँ रहती हो?"

लड़की ने नर्म आवाज में कहा, "हाँ, मैं यहीं रहती हूं अपने पापा के साथ। मेरी मम्मी नहीं हैं।"

रीतिका ने फिर पूछा, "अच्छा, तुम्हारा नाम क्या है?"

लड़की मुस्कराई और बोली, "सोफिया।"

रीतिका ने आगे पूछा, "तुम्हारे पापा कहां हैं?"

सोफिया ने कहा, "वह नीचे हैं।" फिर सोफिया आगे बढ़ी और रीतिका उसके पीछे-पीछे चलने लगी। जब वे नीचे आईं, तो रीतिका ने सोफिया के पापा को देखा और उन्हें धन्यवाद कहा।

"धन्यवाद," रीतिका ने कहा, "लेकिन मैं आपसे एक बात करना चाहती हूँ।"

सोफिया के पापा ने मुस्कुराते हुए कहा, "सोफिया, तुम बाहर खेल लो।"

फिर वे रीतिका की ओर मुड़े और बोले, "क्या बात है? कहो, बेटा।"

रीतिका ने एक गहरी सांस ली और अपना नाम बताते हुए कहा, "मैं रीतिका हूं। और जो भी उस दिन हुआ, मुझे आपको सब बताना है।"

फिर उसने धीरे-धीरे उस खौ़फनाक रात की सारी घटनाएँ सोफिया के पापा को बताई। उसने बताया कि वह रात कितनी डरावनी थी, जब उसकी कार खराब हुई, और कैसे वह उस भूतिया बंगले में फंसी थी। उसने बताया कि वहां उसने खून से सनी लाश देखी थी, और एक आदमी जो बिना सिर के था। रीतिका ने ये सारी बातें बताते हुए अपनी घबराहट और डर को व्यक्त किया।

सोफिया के पापा ने ध्यान से सुना और फिर एक गहरी सांस ली। उन्होंने कहा, "यह सब कुछ सच नहीं हो सकता, लेकिन तुम्हें यह सब समझने के लिए साहस चाहिए था। अब, तुम जहां भी जा रही हो, खुद को सुरक्षित समझो और इस जगह से दूर रहो।"

रीतिका ने सिर झुकाकर उनकी बातों को माना, लेकिन उसके मन में एक सवाल फिर भी था, "क्या वह सब सिर्फ उसका डर था, या फिर सचमुच कुछ अजीब हो रहा था?"

फादर ने गहरी नजरों से रीतिका को देखा और पूछा, "क्या तुम्हें उस बंगले में कुछ मिला था?"

रीतिका थोड़ी देर चुप रही, फिर हल्की घबराहट के साथ बोली, "नहीं, लेकिन जब मैं सोने जा रही थी, तब मेरी अंगूठी नीचे गिर गई थी। जब मैंने उसे उठाकर वापस पहनने की कोशिश की, तो मुझे एक अजीब सी बेचैनी हो रही थी। मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने किसी और का अंगूठी पहन लिया है।"

फादर ने ध्यान से उसकी बात सुनी और फिर कहा, "जरा मुझे अंगूठी दिखाना।"

रीतिका ने झिझकते हुए अपनी अंगूठी निकाली और फादर को दिखाई। फादर ने उसे ध्यान से देखा, फिर चौंकते हुए कहा, "पर यह तुम्हारी अंगूठी नहीं है। यह तो किसी और की अंगूठी है।" अपने हाथो मे लिए अंगूठी मे कुछ बूबबुड़ाया ओर कहा । 

रीतिका ने हैरान होकर कहा, "सच में? मैंने तो यही सोचा था कि यह मेरी अंगूठी है, लेकिन अब तो मुझे यकीन हो गया कि यह किसी और की अंगूठी है।"

फादर ने गंभीर स्वर में कहा, "अब क्या हो रहा है, तुम्हारे साथ? ये सब सिर्फ उसी बंगले में वापस जाकर ही पता चलेगा।"

रीतिका के मन में डर और सवालों का तुफान था, लेकिन उसे फादर पर भरोसा था। उसने कहा, "ठीक है, फादर। मैं आपके साथ चलूंगी।"

सोफिया, रीतिका और फादर तीनों बंगले की ओर बढ़ने लगे। रास्ते में रीतिका की घबराहट बढ़ने लगी, जैसे ही वे बंगले के पास पहुंचे, एक अजीब सी आवाज सुनाई दी। किसी ने पीछे से चिल्लाते हुए कहा, "अगर तुमने बंगले के अंदर एक भी कदम रखा, तो तुम्हारी लाश बाहर आएगी, समझे?"

यह डरावनी चेतावनी सुनकर रीतिका के दिल की धड़कन तेज हो गई। वह रुक गई और घबराहट के साथ फादर और सोफिया की तरफ देखा। फादर ने शांत रहते हुए कहा, "जो कुछ भी कह रहा है, वह सिर्फ डराने के लिए है। हम जो करना चाहते हैं, वह हमें करना होगा।"

लेकिन रीतिका का दिल बहुत तेज़ी से धड़क रहा था। उसने सोचा, "क्या हमें सच में उस बंगले के अंदर जाना चाहिए? अगर वह सब सच है जो हमें डराने के लिए कहा गया था, तो हम क्या करेंगे?"

फादर ने उसे शांत करने की कोशिश की और कहा, "चिंता मत करो। हम जो कर रहे हैं, वह सही है।"

तीनों अब धीरे-धीरे बंगले की ओर बढ़ने लगे, और एक नई, खौ़फनाक यात्रा का सामना करने के लिए तैयार हो गए।

वह आवाज इतनी भयानक थी कि रीतिका के शरीर में डर की लहर दौड़ गई और उसके रोंगटे खड़े हो गए। जैसे ही वह पीछे मुड़ी, उसने देखा कि फादर का चेहरा अचानक मूर्ति जैसा कठोर हो गया था, और वह कुछ समझने की कोशिश कर रहे थे। सामने जो नजारा था, वह किसी खौ़फनाक सपने से भी बदतर था। लड़की की आंखों में खून की नदियां बह रही थीं, और उसका चेहरा इतनी भयानक स्थिति में था कि उसे पहचान पाना मुश्किल था। चेहरे पर गहरे कटा-फटा निशान थे, जिससे उसका रूप और भी डरावना हो गया था।

और फिर रीतिका की नजरें चौंधियाईं। वह लड़की कोई और नहीं, बल्कि वही सोफिया थी। उसकी भयानक रूप में देख कर रीतिका कांप उठी। वह डर के मारे कुछ बोल नहीं पाई।

लेकिन फादर, जो इस तरह की चीज़ों से वाकिफ थे, डरने के बजाय बहुत ही गुस्से में दिखे। उन्होंने सोफिया से कहा, "कौन हो तुम?"

सोफिया ने बुरी तरह से हंसते हुए कहा, "तुम्हें मुझसे मतलब नहीं है।"

फादर का गुस्सा और बढ़ा। उन्होंने जवाब दिया, "तो चली जाओ।"

सोफिया की हंसी और भयानक हो गई, और उसने कहा, "नहीं, क्योंकि यह मेरी ही शरीर है।"

यह सुनकर फादर और भी गुस्से में आ गए और बोले, "यह तुम्हारा शरीर नहीं है, सोफिया का शरीर है।"

लेकिन अचानक, एक और भयानक आवाज गूंजी, जो किसी और की थी। वह आवाज बहुत गहरी और डरावनी थी। उसने कहा, "सोफिया मेरी बेटी है, समझे?"

इस आवाज के साथ एक अजीब सी ताकत महसूस होने लगी। फादर का चेहरा और भी गंभीर हो गया, और उन्होंने सोफिया को घूरते हुए कहा, "तुम कौन हो और तुम क्या चाहते हो?"

सोफिया का चेहरा और भी विकृत हो गया, और उसकी आंखों में एक शातिर मुस्कान आ गई। यह सब देख कर रीतिका का दिल कांप रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कौन सी दुनिया में फंस गई है और अब इस डरावने हालात से बाहर कैसे निकलेगी।

फादर ने अपने अंदर की शक्ति को महसूस किया और कहा, "हम जो कुछ भी करेंगे, वह भगवान के नाम पर होगा।"

लेकिन वही भयानक आवाज अब और भी जोर से गूंज रही थी, और रीतिका को लगा कि अब वह कहीं न कहीं उस खौ़फनाक सच से बहुत करीब जा रही है, जिसे समझ पाना उसके लिए और भी मुश्किल हो रहा था।

यह सब देखकर रीतिका का मन इतना भय से भर गया कि वह अचानक बेहोश हो गई। उसकी हालत देखकर फादर ने आत्मा से सख्त स्वर में कहा, "तुम चली जाओ, वरना मुझे दूसरा उपाय करना पड़ेगा।"

आत्मा की आवाज गहरी और खौ़फनाक थी, "तुम सब यहां से चले जाओ, वरना तुम सब मौत के मारे जाओगे।"

फादर ने आत्मा से और भी सख्त स्वर में पूछा, "अगर हम चले जाएंगे, तो क्या तुम सोफिया का शरीर छोड़ दोगी?"

आत्मा ने धीरे से हामी भर दी, जैसे उसे अपनी बात को स्वीकार करना पड़ा हो।

तभी अचानक सोफिया गिर पड़ी और बेहोश हो गई। फादर ने जल्दी से आसपास से पानी ढूंढकर रीतिका के चेहरे पर छींटे मारे। फिर उसने सोफिया को गोद में उठाया और धीरे-धीरे चर्च की ओर लौटने लगे।

चर्च में पहुंचकर, रीतिका ने एक सवाल भरी निगाहों से फादर को देखा, जैसे उसके दिल में कई सवाल थे। उसने फादर से पूछा, "यह जो सब हुआ, क्या हमें अब इसका सामना करना होगा?"

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 👁️‍🔥 क्या सोफिया पर छाया आत्मा सच में उसकी माँ की थी, या कोई और शक्तिशाली अस्तित्व उसका इस्तेमाल कर रहा था?

 🔮 रीतिका की पहनी हुई वह अजनबी अंगूठी — क्या वह किसी प्राचीन रहस्य की चाबी है, या उसकी नियति का संकेत?

 🕯️ फादर की ताकत और अनुभव क्या इस अंधकार से निपटने के लिए काफी होंगे, या अब उन्हें किसी और आध्यात्मिक योद्धा की जरूरत है?

 

 

जानने के लिए पढ़ते रहिए — "रांझना विथ सफर"