"रांझना  with सफर"- 3

फादर ने उसे गंभीरता से देखा और कहा, "तुमने यह सब देखा है, तो तुम इसे किसी से नहीं कहोगी। जब तक वह आत्मा जाता नहीं है, तब तक तुम हमारे साथ रहोगी और किसी से इस बारे में नहीं बात करोगी।"

रीतिका, जो अभी भी डर और घबराहट से जूझ रही थी, उसकी जान को खतरा था और वह जानती थी कि अगर वह न मानती, तो स्थिति और भी खतरनाक हो सकती थी। इसलिए उसने सिर झुकाकर कहा, "मुझे मंजूर है, मैं कुछ नहीं कहूंगी।"

फादर ने उसकी बात मानी और कहा, "और साथ ही, कहानी के बीच में कोई सवाल मत पूछो। जब तक कहानी पुरानी नहीं हो जाती, तब तक तुम कुछ भी नहीं पूछोगी।"

रीतिका के मन में बेचैनी थी, लेकिन उसे अब यह समझ में आ गया था कि वह इस खौ़फनाक सच से जूझने के लिए मजबूर है। उसने हामी भर दी और सोचा, "अगर मुझे यह सब जानना है, तो मुझे यह रास्ता अपनाना होगा।"

फादर ने फिर एक लंबी सांस ली और एक नई कहानी शुरू की, जो सोफिया और उस आत्मा के बीच की रहस्यमयी घटना से जुड़ी हुई थी। रीतिका की सांसें रुक गईं, क्योंकि अब वह जानना चाहती थी कि वह आत्मा आखिर क्यों सोफिया के पीछे पड़ी थी और उसके शरीर को क्यों जकड़े हुए थी।

 

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फादर की आवाज गंभीर थी, और वह कहानी सुनाते हुए धीरे-धीरे बोले, "कहते हैं कि जब एक शरीर मर जाता है, तो एक आत्मा दूसरी शरीर में समा जाती है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जो हमें अक्सर समझ में नहीं आती। हम अपनी जिंदगी में इतने व्यस्त होते हैं, इतने पापों में लिपटे होते हैं कि हमें यह भी नहीं पता चलता कि हम दूसरों के साथ क्या कर रहे हैं। चाहे हम कितने भी अच्छे क्यों न बन जाएं, हमारे कर्म कहीं न कहीं किसी कहानी में हमें दोषी साबित कर ही देते हैं।"

फादर की बातों को सुनकर रीतिका की आंखों में भय और जिज्ञासा की मिश्रित भावना थी। वह सोचने लगी, "क्या यह मेरी भी कहानी है? क्या मेरी जिंदगी में कोई गहरी वजह है, जिससे यह आत्मा मेरे पीछे पड़ी है?"

वह एक बहुत ही सीधी और नेक लड़की थी, जिसे किसी से कोई बुरा काम करने का ख्याल भी नहीं आया था। फिर भी, अगर एक आत्मा उसके पीछे पड़ सकती है, तो क्या इसका मतलब था कि यह उसके पिछले जन्मों के कर्म का परिणाम था? क्या वह इस जन्म में भी कुछ ऐसा कर चुकी थी, जिसकी सजा उसे मिल रही थी?

"क्या मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ है, जो मुझे नहीं पता?" रीतिका ने मन ही मन सोचा। उसका दिल डर से भर गया था, लेकिन साथ ही उसकी जिज्ञासा और भी बढ़ गई। वह यह जानने के लिए तैयार थी कि क्या यह आत्मा उसके साथ क्यों जुड़ी हुई थी। क्या यह केवल एक अजीब संयोग था, या फिर उसकी जिंदगी में कुछ ऐसा छिपा हुआ था, जिसे समझने के लिए उसे अब इस डरावनी कहानी का हिस्सा बनना पड़ा?

"क्या उसकी पिछली गलतियां या कर्म ही इसका कारण हैं?" रीतिका के मन में सवाल उठने लगे, लेकिन उसकी जिज्ञासा ने उसे शांत नहीं रहने दिया। उसे अब यह जानने का मन था कि यह आत्मा आखिर सोफिया के शरीर में क्यों समाई थी और यह किस कनेक्शन को लेकर रीतिका के पीछे पड़ी थी।

फादर ने देखा कि रीतिका सोच में खोई हुई थी, और उन्होंने धीरे से कहा, "तुम चिंता मत करो, रीतिका। यह सिर्फ एक अध्याय है, और तुम्हें इसे समझने के लिए तैयार होना होगा। तुम्हारा कर्म इस जीवन में, इस जनम में ही निर्धारित होगा। तुम्हें इसे अब अपना हिस्सा मानकर आगे बढ़ना होगा।"

रीतिका ने एक गहरी सांस ली और सोचा, "क्या यह मेरी किस्मत है या फिर मेरे कर्मों का परिणाम?" अब उसे एक रास्ता दिख रहा था, लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी कि उसे इस रास्ते पर चलने के लिए किसे साथ लेना चाहिए। उसे महसूस हो रहा था कि जो कुछ भी हुआ था, वह सिर्फ एक शुरुआत थी, और उसे अभी तक यह समझना था कि इसके अंत में क्या छुपा था।

 करीब 10 साल पहले की बात है। माया नाम की एक लड़की, जो अपने कॉलेज की सबसे होनहार छात्राओं में गिनी जाती थी, अपनी पढ़ाई में मग्न रहती थी। उसकी किताबें, नोट्स और क्लासरूम उसकी दुनिया थे। माया का सौंदर्य जितना आकर्षक था, उसका स्वभाव उतना ही सरल और गंभीर। उसे दोस्त बनाना पसंद था, लेकिन वह अपनी सीमाओं का हमेशा ख्याल रखती थी।

उसी कॉलेज में सुधीर नाम का एक लड़का भी पढ़ता था। सुधीर एक सामान्य छात्र था, लेकिन उसके दिल में माया के लिए गहरी भावनाएं थीं। वह माया को हर दिन दूर से देखता, उसकी मुस्कान को निहारता, और मन ही मन उसे अपने सपनों की रानी मान चुका था।

सुधीर का प्यार गहरा था, लेकिन एकतरफा। उसने कभी माया से अपने दिल की बात कहने की हिम्मत नहीं की। सिर्फ उसके कुछ खास दोस्तों को ही इस बात का पता था कि सुधीर माया को लेकर कितना संजीदा है। दोस्त उसे बार-बार समझाते, "सुधीर, अगर तुमने उसे अब नहीं बताया, तो शायद कभी मौका नहीं मिलेगा।" लेकिन सुधीर हर बार एक ही जवाब देता, "माया जैसी लड़की को मुझ जैसे साधारण लड़के से क्यों प्यार होगा?"

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सुधीर, जो अब तक अपनी भावनाओं को अपने दिल में दबाए बैठा था, आखिरकार हिम्मत जुटाकर अपने माता-पिता से बात करने का फैसला करता है। कई रातें उसने इसी सोच में बिताईं कि उसके माता-पिता उसकी बात को कैसे लेंगे। एक शाम, जब घर का माहौल शांत था और सभी आराम से बैठे थे, सुधीर ने अपने पिता से कहा,

"पापा, मुझे आपसे और मां से एक जरूरी बात करनी है।"

सुधीर के पिता ने अखबार से नजरें हटाईं और बोले, "क्या बात है, बेटा? पहली बार इतनी गंभीरता से बात कर रहे हो।"

सुधीर की मां, जो किचन में थीं, भी आकर बैठ गईं। सुधीर ने कुछ पल चुप रहकर अपनी बात शुरू की, "पापा, मां, मैं किसी को पसंद करता हूं।"

यह सुनकर उसके माता-पिता के चेहरे पर हैरानी और खुशी का मिला-जुला भाव आया। उसकी मां ने मुस्कुराते हुए कहा, "अरे वाह! यह तो बहुत अच्छी बात है। हमें भी तो बताओ वह कौन है।"

सुधीर ने धीरे से कहा, "वह मेरी कॉलेज की है , उसका नाम माया है।"

उसके पिता ने तुरंत पूछा, "तो बेटा, तुमने उसे बताया है कि तुम उसे पसंद करते हो?"

सुधीर ने सिर झुकाकर कहा, "नहीं, पापा। मैं कभी कह ही नहीं पाया। मैं हमेशा डरता रहा कि कहीं वह मना न कर दे। लेकिन अब मैं चाहता हूं कि आप लोग उसका रिश्ता मांगे।"

सुधीर के माता-पिता यह सुनकर खुश हो गए। उसकी मां ने कहा, "सुधीर, अगर तुम्हें माया पसंद है, तो वह हमारे लिए भी परफेक्ट होगी। हम तुम्हारी खुशी में ही खुश हैं।"

पिता ने भी सहमति जताई, "ठीक है, बेटा। पहले हम उसके बारे में अच्छे से जानकारी लेंगे, फिर उसकी मां-पिता से बात करेंगे। अगर माया भी तैयार होगी, तो हम यह रिश्ता जरूर पक्का करेंगे।"

सुधीर ने राहत की सांस ली। उसने पहली बार अपने माता-पिता के सामने अपने दिल की बात कही थी और उनकी सहमति पाकर वह खुद को हल्का महसूस कर रहा था।

कई दिन सोचने और तैयारी करने के बाद, एक दिन सुधीर के माता-पिता ने माया के घर जाने का फैसला किया। उन्होंने सुधीर से पूछा, "बेटा, हमें माया के परिवार के बारे में कुछ और बताओ, ताकि जब हम उनसे मिलने जाएं तो हमें पता हो कि कैसे बात करनी है।"

सुधीर ने माया के परिवार के बारे में उन्हें बताया। उसने कहा, "माया के पिता काफी सख्त हैं, लेकिन उसकी मां बहुत समझदार हैं। मुझे लगता है, अगर बात सही तरीके से की जाए, तो वे समझ जाएंगे।"

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माया ने जैसे ही घर में कदम रखा, उसने देखा कि सुधीर और उसके परिवार वाले घर के ड्रॉइंग रूम में बैठे हैं। उसके मन में सवाल उठा, "सुधीर और उसका परिवार यहां क्यों हैं?"

वह सीधा अपनी मां के पास गई और पूछा, "मां, ये सब यहां क्यों आए हैं?"

मां ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "बेटा, सुधीर तुम्हारे लिए रिश्ता लेकर आया है। जल्दी से तैयार होकर आ जाओ।"

माया यह सुनकर चौंक गई। उसने कहा, "मां, इतनी जल्दी? मुझे पहले से तो कुछ बताया भी नहीं।"

मां ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा, "देखो माया, अभी जो कह रही हूं, उसे मान लो। जल्दी से जाओ और तैयार हो जाओ।"

माया के पास ज्यादा विकल्प नहीं था। वह अपने कमरे में गई और तैयार होकर आई। जब वह कमरे में दाखिल हुई, तो सबकी नजरें उसकी ओर उठ गईं। वह इतनी सुंदर लग रही थी कि सुधीर की मां ने खुशी-खुशी कहा, "समधनजी, आपकी माया तो सचमुच राजकुमारी लग रही है।"

माया की मां ने शालीनता से जवाब दिया, "धन्यवाद, आप लोग बहुत अच्छे हैं।"

जब सब लोग बैठ गए, तो सुधीर के पिता ने माया की तारीफ करते हुए कहा, "हमने बहुत जगह देखी, लेकिन माया जैसी बहू कहीं नहीं मिली। यह रिश्ता तो भगवान की मर्जी से तय हुआ लगता है।"

 

सुधीर के परिवार वाले इस रिश्ते को लेकर काफी उत्साहित थे। माया की मां और पिता ने भी सहमति जताई, लेकिन माया का चेहरा गंभीर था।

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माया की मां ने उसके चेहरे पर बेचैनी देखी।

 माया ने अपनी मां से धीरे से कहा, "मां, मुझे आपसे अकेले में बात करनी है।"

माया अपनी मां को दूसरी जगह ले गई और बोली, "मां, मैं सुधीर से शादी नहीं कर सकती।"

मां को यह सुनकर झटका लगा। उन्होंने पूछा, "क्यों, माया? सुधीर इतना अच्छा लड़का है। उसका परिवार भी बहुत सुसंस्कृत है। ऐसा रिश्ता आसानी से नहीं मिलता।"

माया ने संयमित स्वर में कहा, "मां, मुझे अभी कुछ नहीं कहना। बस इतना जान लीजिए कि मैं यह शादी नहीं करना चाहती।"

 

माया के पिता ने यह बात सुन ली। वह गुस्से में माया को बुलाने लगे, "माया, जल्दी नीचे आओ।"

माया डरते हुए नीचे आई। उसने देखा कि उसके माता-पिता दोनों ही गंभीर मुद्रा में खड़े थे। पिता ने कसम देते हुए कहा, "जो भी बात है, वह साफ-साफ बताओ। मुझसे झूठ मत बोलना।"

माया ने कहा, "पापा, मैं आपका और मां का दिल नहीं तोड़ना चाहती, लेकिन मैं सुधीर से शादी नहीं कर सकती।"

मां ने झुंझलाते हुए कहा, "क्यों, माया? क्या कोई और बात है? यह तुम्हारे भविष्य का सवाल है।"

माया ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, "हां, मां। मैं किसी और से प्यार करती हूं।"

माया की मां गुस्से में बोलीं, "यह तुमने क्या किया, माया? क्या तुम्हें अपने परिवार की इज्जत का ख्याल नहीं रहा?"

पिता ने शांत रहते हुए कहा, "इज्जत प्यार से बड़ी नहीं होती। माया ने अगर किसी से प्यार किया है, तो इसमें गलत क्या है? माया, वह लड़का कौन है? मैं उससे मिलना चाहता हूं।"

माया यह सुनकर खुश हो गई। उसने अपने पिता को गले लगाया और कहा, "थैंक यू, पापा। आप सबसे अच्छे हैं।"

माया अपने कमरे में गई और रूद्र को फोन किया। उसने कहा, "पापा तुमसे मिलना चाहते हैं।"

रूद्र ने खुशी-खुशी जवाब दिया, "यह तो बहुत अच्छी बात है। मैं उनसे मिलने तैयार हूं।"

माया फोन रखकर नीचे आई, जहां उसकी मां सोच में बैठी थीं। वह धीरे-धीरे रसोई में गईं और रात के खाने की तैयारी करने लगीं।

माया के पिता ने यह तय कर लिया था कि उनकी बेटी की खुशी से बढ़कर उनके लिए कुछ नहीं। उन्होंने समाज की परवाह किए बिना अपनी बेटी के फैसले का सम्मान करने का निर्णय लिया।

 

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 🔥 माया का प्रेमी रूद्र कौन है, और क्या उसका अतीत इस आत्मा की कहानी से जुड़ा हुआ है? क्या माया के फैसले ने अनजाने में एक अधूरी आत्मा को भड़का दिया?

 🧿 क्या रीतिका की वर्तमान स्थिति और माया की पुरानी कहानी के बीच कोई गहरा, अदृश्य संबंध है, जो आत्मा की उपस्थिति का कारण बना?

 💍 वह रहस्यमयी अंगूठी, जो रीतिका ने पहनी — क्या उसका रिश्ता माया की अधूरी प्रेमकहानी और आत्मा की अधूरी यात्रा से है?

 

 

 आगे क्या होगा यह जानने के लिए पढ़ते रहिए रांझना with सफर।