अघोरानंद ने मंत्रोच्चार करना शुरू किया—
"ॐ क्रीं कालिकायै नमः..."
"ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय स्वाहा..."
"ॐ नमः शिवाय रक्षाय रक्षाय स्वाहा..."
अघोरानंद ने अपनी तर्जनी उँगली पर काली हल्दी और चंदन का मिश्रण लगाया। उनके चेहरे पर गहरी गंभीरता थी, आँखें आधी बंद, जैसे किसी दूसरी ही दुनिया से शक्ति का आह्वान कर रहे हों। चारों ओर मद्धम जलती यज्ञ की लौ, मंत्रों की गूँज, और हवा में घुलती राख की गंध... माहौल पहले से ही भारी हो चुका था।
उन्होंने पहले साहिल के माथे पर एक त्रिभुज उकेरा। त्रिभुज—शक्ति और संतुलन का प्रतीक, जो किसी भी बुरी शक्ति को शरीर में प्रवेश करने से रोकता था। फिर, त्रिभुज के भीतर उन्होंने एक गोल चक्र खींचा, ऊर्जा संतुलन और आत्मिक रक्षा का चिह्न। उनके हाथ कांपे नहीं, उनकी उँगलियों में वर्षों का अनुभव था। चक्र के केंद्र में एक बिंदु बनाया, जिसे रुद्राक्ष बिंदु कहते हैं—एक ऐसा बिंदु, जो आत्मिक द्वार को बंद कर देता है, जिससे कोई भी पराशक्ति व्यक्ति के शरीर पर अधिकार न जमा सके।
साहिल ने गहरी साँस ली, लेकिन जैसे ही अघोरानंद की उँगलियाँ रीतिका के माथे तक पहुँचीं, एक ठंडी लहर कमरे में फैल गई। हवा का दबाव बढ़ने लगा, खिड़कियों पर टंगे पर्दे अजीब तरह से फड़फड़ाने लगे, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उन्हें हिलाने की कोशिश कर रही हो। अघोरानंद ने नजरें उठाकर चारों ओर देखा, फिर मंत्रों का उच्चारण और तेज कर दिया। उनके शब्दों में अब सिर्फ जाप नहीं, बल्कि आदेश था—आज्ञा कि कोई भी दुष्ट आत्मा इस रक्षा कवच को भेद नहीं सकेगी।
फिर, आखिर में उन्होंने वही चिह्न आन्या के माथे पर उकेरा। लेकिन जैसे ही उनकी उँगलियाँ उसकी त्वचा से टकराईं, एक सिहरन उनके शरीर में दौड़ गई। आन्या ने हल्की-सी करवट बदली, उसकी पलकें फड़फड़ाईं, और फिर उसने अपनी आँखें खोलीं।
कमरे में बैठे सभी लोगों की साँसें थम गईं।
उसकी पुतलियाँ अब पूरी तरह काली थीं।
और फिर, उसके होंठों पर एक हल्की मुस्कान उभरी—एक ऐसी मुस्कान, जो किसी मासूम बच्चे की नहीं थी... बल्कि किसी ऐसी शक्ति की थी, जो अभी भी इस दुनिया को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी।
आन्या का माथा अचानक गरम हो गया।
"माँ!" वह चौंककर बोली।
"शांत रहो, बेटा।" रीतिका ने उसे अपनी बाहों में ले लिया।
अचानक, घर में हवा तेज़ हो गई।
कमरे के कोने में हल्की सी फुसफुसाहट गूँजी।
"तुम बच नहीं सकते... मैं लौटूँगी..."
लेकिन इस बार, उनकी आवाज़ में कमजोरी थी।
अघोरानंद ने आखिरी बार मंत्रोच्चार किया और फिर एक लंबी साँस ली।
"अब यह चिन्ह पूर्ण हो चुका है। अब यह आत्मा तुमसे कुछ नहीं कर सकेगी।"
अब आगे क्या?
कमरे में अब भी धुएँ की हल्की-हल्की महक थी। यज्ञ की राख ठंडी पड़ चुकी थी, लेकिन हवा में एक अजीब-सी नमी घुली हुई थी—जैसे कुछ अभी भी यहाँ ठहरा हुआ हो, छिपकर देख रहा हो।
फादर एंथनी ने लंबी साँस भरी और क्रॉस को कसकर पकड़ लिया। उनकी आँखों में अब भी चिंता थी। "तो अब हम सुरक्षित हैं?" उन्होंने धीरे से पूछा।
अघोरानंद ने सिर झुका लिया, मानो उनकी यह उम्मीद गलत थी। "कुछ सालों तक," उनकी गहरी आवाज़ कमरे में गूँजी, "लेकिन यह आत्मा फिर लौटेगी। और इस बार, यह पहले से कहीं ज्यादा ताकतवर होगी।"
साहिल ने रीतिका की ओर देखा। उसकी उंगलियाँ ठंडी पड़ चुकी थीं। वह अब भी उस भयानक क्षण के बारे में सोच रही थी, जब आत्मा ने कहा था—"मैं लौटूँगी।"
"तो हमें क्या करना होगा?" साहिल की आवाज़ में घबराहट थी।
अघोरानंद ने अब पहली बार सीधा उनकी ओर देखा। उनकी आँखों में एक रहस्य छिपा था—कुछ ऐसा जो वे अब तक नहीं कह रहे थे।
"तुम्हें आन्या को इस दिन के लिए तैयार करना होगा।"
"आन्या?" रीतिका ने चौंककर अपनी बेटी की ओर देखा, जो अब भी उसकी गोद में सिर रखकर बैठी थी। मासूम। शांत। लेकिन उसकी साँसों में एक अनजान-सी स्थिरता थी।
"क्यों?" फादर एंथनी की आवाज़ में बेचैनी थी।
अघोरानंद ने गहरी साँस ली और बोले, "क्योंकि जब यह आत्मा लौटेगी... तब यह सिर्फ एक आत्मा नहीं होगी… तब यह पूरी शक्ति के साथ वापस आएगी।"
कमरे में एक सिहरन दौड़ गई।
साहिल ने रीतिका का हाथ और कसकर पकड़ लिया।
अब उनके पास बस कुछ साल थे।
कुछ सालों तक वे सुरक्षित थे।
लेकिन कब तक?
क्योंकि आत्मा ने सिर्फ एक बात कही थी—
"मैं लौटूँगी..."
और जब वह लौटेगी...
तब सबकुछ खत्म करने आएगी।
घर का माहौल अब पूरी तरह ठंडा हो चुका था। जैसे कोई भारी बोझ, जो अब तक हर कोने में पसरा हुआ था, अचानक उठ गया हो।
अब न हवा में कोई अजीब सी फुसफुसाहट थी, न ही काँच के टूटने की आवाज़, और न ही कोई अदृश्य परछाई।
अघोरानंद का यज्ञ पूरा हो चुका था।
रक्षा कवच अब हर ओर था—घर पर भी और उन तीनों के शरीर पर भी।
कम से कम कुछ सालों तक कोई भी आत्मा अब यहाँ नहीं आ सकती थी।
लेकिन क्या यह शांति हमेशा के लिए थी?
नहीं।
अभी भी एक साया था, जो भविष्य की ओर इशारा कर रहा था।
अघोरानंद अब जाने के लिए तैयार थे।
उन्होंने अपनी माला संभाली, अपने झोले में बची हुई राख डाली और त्रिशूल को अपने कंधे पर टिका लिया।
साहिल और रीतिका अब भी डरे हुए थे।
कुछ साल...?
यह तो पलक झपकते ही बीत जाएँगे!
"क्या तब तक हम तैयार होंगे?"
"क्या तब तक आन्या तैयार होगी?"
अघोरानंद दरवाज़े तक पहुँचे।
उन्होंने दरवाज़ा खोला, लेकिन बाहर जाने से पहले पीछे मुड़े।
उनकी आँखों में अब भी वही गहरी चमक थी।
उन्होंने गहरी आवाज़ में कहा—
"साहिर, रीतिका… तुम्हारी बेटी को मैं उसके 18वें जन्मदिन पर अपने साथ लेकर जाऊँगा।"
साहिल और रीतिका हैरान रह गए।
"क्या?"
"लेकिन क्यों?"
"वह सिर्फ 18 साल की होगी!"
"उसे क्यों ले जाना होगा?"
अघोरानंद ने अपनी माला घुमाई और गंभीर स्वर में बोले—
"क्योंकि वह सिर्फ एक साधारण बच्ची नहीं है।"
"वह एक स्वप्नदर्शनी है।"
"स्वप्नदर्शनी?"
रीतिका ने काँपती आवाज़ में दोहराया।
"इसका क्या मतलब है?"
अघोरानंद की आँखों में एक रहस्य था।
"स्वप्नदर्शनी वे होते हैं, जिन्हें नींद में वह सब दिखता है, जो बाकी लोग नहीं देख सकते।"
"उन्हें सपनों में वह सब दिखता है, जो भविष्य में होने वाला होता है।"
"वे दो दुनियाओं के बीच खड़े होते हैं—एक जीवितों की दुनिया और दूसरी आत्माओं की दुनिया।"
"और जो एक बार स्वप्नदर्शनी बन जाता है, वह कभी भी सामान्य जीवन नहीं जी सकता।"
"तुम्हारी बेटी इसी वजह से जन्मी है।"
"यह आत्मा उसी के लिए आई थी।"
साहिल और रीतिका की आँखों में अब एक नया डर उतर आया था।
"मतलब?"
अघोरानंद ने एक लंबी साँस ली और बोले—
"मतलब यह कि आने वाले सालों में आन्या वह सब देखेगी, जो बाकी लोग नहीं देख सकते।"
"कभी-कभी उसे सपनों में कोई और दुनिया दिखाई देगी।"
"कभी-कभी वह नींद में कोई ऐसी चीज़ देखेगी, जो हकीकत में नहीं होगी, लेकिन बाद में सच हो जाएगी।"
"कभी-कभी आत्माएँ उससे बात करेंगी, क्योंकि उसे अब दोनों दुनियाओं की आवाज़ें सुनाई देंगी।"
"और जब वह 18 साल की होगी... तब उसे अपना असली उद्देश्य पता चलेगा।"
अब क्या होगा?
साहिल और रीतिका की दुनिया अब पूरी तरह बदल चुकी थी।
अब यह सिर्फ एक आत्मा की लड़ाई नहीं थी।
अब यह उनकी बेटी की नियति थी।
क्योंकि आन्या अब एक स्वप्नदर्शनी थी।
क्योंकि अब उसकी ज़िंदगी सपनों और हकीकत के बीच झूलने वाली थी।
क्योंकि अब वह अकेली नहीं थी… अब आत्माएँ उसकी दुनिया का हिस्सा बन चुकी थीं।
अघोरानंद मुस्कुराए।
"जब समय आएगा, मैं लौटूँगा।"
"आन्या तैयार होगी या नहीं, यह अब तुम पर निर्भर करता है।"
"लेकिन यह तय है कि जब वह 18 साल की होगी… तब एक बार फिर वह आत्मा लौटेगी।"
उन्होंने दरवाज़ा खोला और अंधेरे में विलीन हो गए।
पीछे रह गया एक सन्नाटा।
पीछे रह गए साहिल और रीतिका…
और पीछे रह गई वह लड़की, जो अब तक सिर्फ एक मासूम बच्ची थी, लेकिन अब उसका भाग्य उसे एक नई राह पर ले जा रहा था।
स्वप्नदर्शनी – जब नियति ने अपना रहस्य उजागर किया
क्रमशः………. To be continue
आन्या के स्वप्नदर्शनी बनने के बाद उसकी ज़िंदगी किस तरह बदलने वाली है? 🌀
2. क्या वह आत्मा, जो वापस लौटने की धमकी दे चुकी है, अपने उद्देश्य को पूरा कर पाएगी? 👻
3. अघोरानंद ने आन्या को क्यों चुना, और उसका 18वां जन्मदिन इतना महत्वपूर्ण क्यों होगा? 🔮
4. क्या यह शक्तिशाली आत्मा, जो भविष्य में लौटेगी, पूरे परिवार के लिए खतरा बनेगी या सिर्फ आन्या को ही चुनौती देगी? ⚡