"रांझना with सफर -29

सभी ने धीरे-धीरे इधर-उधर देखा।

वह आत्मा अब जा चुकी थी।

फादर एंथनी ने राहत की साँस ली।

अघोरानंद ने आँखें खोलीं और धीमे स्वर में बोले—

 "यह अब कुछ सालों के लिए बंद हो गई है।"

साहिल और रीतिका अब भी अपने स्थान पर जमे हुए थे, जैसे इस सब पर विश्वास नहीं कर पा रहे हों।

लेकिन आन्या…

जो अब तक बिल्कुल शांत थी…

धीरे से मुस्कुराई।

लेकिन उसकी मुस्कान में कुछ ऐसा था... जो किसी ने नोटिस नहीं किया।

अघोरानंद ने कहा था कि यह आत्मा कुछ सालों के लिए बंद हो गई है।

लेकिन फादर एंथनी को अब भी कुछ महसूस हो रहा था।

 क्या यह सब इतना आसान था?

 क्या यह आत्मा सच में जा चुकी थी?

 या फिर यह सब सिर्फ एक आरंभ था?

क्योंकि अगर आत्मा ने कहा था—

"मैं लौटूँगी..."

तो इसका मतलब यह था कि यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई थी।

अब बस एक ही सवाल था—

कब और कैसे?

तांत्रिक चिन्ह – जब शिव की शक्ति ने काल को बाँध दिया

हवा अब भी ठहरी हुई थी। यज्ञ पूरा हो चुका था, लेकिन कमरे में मौजूद हर शख्स जानता था कि यह लड़ाई अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई थी।

"मैं लौटूँगी..."

ये शब्द अब भी सभी के दिमाग में गूँज रहे थे।

साहिल और रीतिका ने अघोरानंद की ओर देखा, उनके चेहरे पर एक ही सवाल था—"कब लौटेगी?"

लेकिन अघोरानंद के पास भी इस सवाल का कोई जवाब नहीं था।

"कुछ साल?"

"दस साल?"

 "बीस साल?"

कोई नहीं जानता था।

अचानक, अघोरानंद ने गहरी साँस ली और बोले, "अभी एक और काम बाकी है।"

सभी लोग चौंक गए।

"क्या?" फादर एंथनी ने चिंतित स्वर में पूछा।

"अगर यह काम नहीं किया गया, तो आत्माएँ अभी भी लौट सकती हैं।"

रीतिका के दिल की धड़कन तेज़ हो गई। "मतलब?"

अघोरानंद ने थोड़ी देर आँखें बंद कीं, फिर अपनी आँखें खोलते हुए बोले, "तुम्हें एक चिन्ह बनवाना होगा… तुम तीनों के शरीर पर।"

साहिल और रीतिका एक-दूसरे को देखने लगे।

"कौन-सा चिन्ह?" रीतिका ने घबराकर पूछा।

अघोरानंद ने अपनी माला को पकड़ा और बोले, "एक तांत्रिक चिन्ह, जो काली शक्तियों से सुरक्षित रखता है।"

"लेकिन यह चिन्ह क्या करेगा?" फादर ने सवाल किया।

अघोरानंद ने गहरी आवाज़ में कहा, "यह चिन्ह तुम्हारे शरीर पर होगा, तो आत्माएँ तुम्हारे आसपास तो भटक सकती हैं, लेकिन वे तुम्हें छू नहीं पाएंगी। यह तुम्हारी आत्मा को किसी भी काली शक्ति के कब्जे से बचाएगा।"

शिव का पवित्र तंत्र-चिन्ह – जब काली माँ को मुक्त किया गया था

"लेकिन यह चिन्ह क्या है?" साहिल ने पूछा।

साहिर, रीतिका और फादर एंथनी एकटक अघोरानंद को देख रहे थे। उनके शब्दों ने कमरे के वातावरण को और रहस्यमय बना दिया था। चारों ओर जलते दीपकों की रोशनी अब भी कांप रही थी, जैसे किसी अदृश्य ऊर्जा की उपस्थिति ने उन्हें अस्थिर कर दिया हो।

अघोरानंद ने अपनी आँखें बंद कीं और अपनी माला को घुमाते हुए गहरे स्वर में बोलने लगे—

"यह चिन्ह केवल एक रेखा नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की सबसे गूढ़ शक्ति का प्रतीक है।"

उन्होंने अपने तांत्रिक थैले से काली हल्दी, चंदन और भभूत का मिश्रण निकाला। जब उन्होंने इसे अपने हाथ में लिया, तो ऐसा लगा जैसे पूरे कमरे में एक अदृश्य लहर दौड़ गई हो।

"इस चिन्ह को महादेव ने स्वयं रचा था, जब माँ काली को कुछ अघोरियों ने अपने वश में करने की भूल की थी।"

रीतिका के होंठ काँपे। "माँ काली? उन्हें कैद करने की कोशिश?"

अघोरानंद ने धीरे-धीरे सिर हिलाया। उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे वे उस प्राचीन कथा को अपनी आत्मा से महसूस कर रहे हों।

"हाँ। बहुत पुराने समय की बात है... जब कुछ तांत्रिक साधक अपनी शक्ति को चरम पर ले जाना चाहते थे। वे माँ काली की साधना में इतने लिप्त हो गए कि अहंकार ने उनकी बुद्धि को ढँक लिया।"

"उन्होंने माँ काली की आराधना की, लेकिन उनका उद्देश्य गलत था। वे शक्ति चाहते थे, लेकिन भक्ति नहीं। उन्होंने माँ को बाँधने का प्रयास किया, उन्हें कैद करने की कोशिश की, ताकि वे उनकी शक्ति का उपयोग अपने स्वार्थ के लिए कर सकें।"

कमरे में एक सिहरन दौड़ गई। बाहर हवाएँ अब और तेज़ चलने लगीं थीं।

"लेकिन महादेव को जब इसका पता चला, तो वे प्रचंड रूप में आए। उन्होंने वह तंत्र-चिन्ह रचा, जो किसी भी काली आत्मा को साधक पर अधिकार करने से रोक सकता था।"

साहिल की आँखें अघोरानंद के हाथ में पकड़े मिश्रण पर टिक गईं।

"महादेव ने इस चिन्ह को अपने भक्तों के शरीर पर अंकित किया। और तब से, यह शक्ति केवल उन्हीं को दी जाती है, जो इसकी रक्षा कर सकें।"

 

"आज वही चिन्ह मैं तुम तीनों के शरीर पर अंकित करने वाला हूँ, ताकि यह आत्मा फिर लौटे भी, तो यह तुम पर असर न कर सके।"

और तभी...

कमरे के कोनों से एक धीमी, लेकिन गूँजती हुई हँसी सुनाई दी।

"क्या सच में यह चिन्ह मुझे रोक सकेगा?"

सभी के रोंगटे खड़े हो गए।

तांत्रिक चिन्ह का निर्माण – जब शक्ति का कवच बनाया गया

"लेकिन इसे बनाने की विधि क्या होगी?" रीतिका की आवाज़ अब भी हल्की काँप रही थी।

अघोरानंद ने ध्यानमग्न स्वर में कहा, "सबसे पहले, हमें शरीर को शुद्ध करना होगा। यह कोई साधारण रेखा नहीं, बल्कि एक शक्ति-संपन्न तांत्रिक चिह्न होगा, जिसे केवल विशेष परिस्थितियों में ही अंकित किया जाता है।"

उन्होंने अपनी झोली खोली और उसमें से राख, चंदन, भभूत और लाल सिंदूर निकाला। चारों पदार्थ अलग-अलग थालियों में रखे गए।

"राख मृत आत्माओं का प्रतीक है, जो इस दुनिया से विदा हो चुकी हैं। यह हमें भूत-प्रेत और अन्य अदृश्य शक्तियों के प्रभाव से बचाएगी।"

"चंदन शुद्धता का प्रतीक है, जो शरीर और आत्मा दोनों को शांत रखेगा, ताकि कोई भी दुष्ट शक्ति भीतर प्रवेश न कर सके।"

"भभूत, जो श्मशान की अग्नि से सिद्ध होती है, उसमें महादेव की शक्ति समाहित होती है। यह किसी भी बुरी शक्ति को पास आने से रोकेगी।"

"और लाल सिंदूर..." अघोरानंद ने गहरी साँस ली। "यह माँ काली का प्रतीक है, जो इस चिह्न में जीवन डालेगा। जब यह सभी तत्व एक साथ मिलेंगे और मंत्रों से सिद्ध होंगे, तभी यह चिह्न प्रभावी बनेगा।"

साहिल अब भी उलझन में था। "तो क्या यह किसी टैटू की तरह रहेगा?"

अघोरानंद हल्के से मुस्कुराए, लेकिन उनकी आँखों में अब भी गंभीरता थी।

"नहीं, यह कोई साधारण टैटू नहीं है। इसे शरीर पर अंकित करने के लिए मंत्रों की सिद्धि की आवश्यकता होगी। जब यह मंत्रों से जाग्रत होगा, तब यह आत्मा की रक्षा करेगा।"

"और क्या यह हमेशा हमारे शरीर पर रहेगा?"

अघोरानंद ने धीमे स्वर में उत्तर दिया, "नहीं। यह तब तक रहेगा, जब तक इसकी आवश्यकता होगी। यह तब तक तुम्हारी रक्षा करेगा, जब तक आत्मा पूरी तरह से नष्ट नहीं हो जाती। लेकिन याद रखना..."

उन्होंने गंभीरता से दोनों को देखा।

"अगर आत्मा ज्यादा शक्तिशाली हुई, तो यह चिह्न भी हमेशा प्रभावी नहीं रहेगा। हमें इसे समय-समय पर पुनः जाग्रत करना होगा।"

कमरे में गहरा सन्नाटा छा गया।

 

अब यह सिर्फ एक चिन्ह नहीं था। यह उनके जीवन और मृत्यु के बीच की आखिरी सुरक्षा थी।

 

 

 

 

क्या यह चिन्ह सच में उन्हें काली शक्तियों से सुरक्षित रखेगा, या यह सिर्फ एक धोखा होगा? 🔮

2. क्या आत्मा कभी पूरी तरह से नष्ट हो पाएगी, या उसकी ताकत हमेशा किसी न किसी रूप में जिंदा रहेगी? 👻

3. क्या यह चिन्ह समय के साथ अपनी शक्ति खो देगा, या किसी और तरीके से उन्हें इसका सामना करना होगा?

 

 

आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए रांझन with सफ़र ........