जैसे-जैसे पूजा की तैयारियाँ आगे बढ़ रही थीं, घर का माहौल और भी भारी होता जा रहा था। हवा में एक अनजानी नमी घुल गई थी, जैसे किसी अदृश्य ताकत ने पूरे माहौल को जकड़ लिया हो।
कमरे में रखे शीशे अचानक हल्के-हल्के कंपन करने लगे। खिड़की के पर्दे बिना किसी हवा के ही सरसराने लगे।
और फिर…
बाहर खड़ी तुलसी के पौधे की पत्तियाँ धीरे-धीरे काली पड़ने लगीं।
रीतिका ने यह देखा, और उसके हाथ से पूजा की सामग्री ज़मीन पर गिर गई।
उसकी साँस अटक गई।
"बाबा…!" उसने काँपती हुई आवाज़ में अघोरानंद को पुकारा।
अघोरानंद तुरंत आगे बढ़े। उन्होंने तुलसी के पौधे को गौर से देखा, और उनके चेहरे पर एक गंभीर साया उतर आया।
उन्होंने धीरे-से पौधे की काली होती पत्तियों को छुआ। पत्तियाँ राख की तरह बिखर गईं।
चारों ओर एक अजीब सी निस्तब्धता फैल गई।
फादर एंथनी ने काँपते हुए कहा, "क्या… क्या इसका मतलब यह है कि आत्मा अब भी यहीं है?"
अघोरानंद की गहरी आँखों में कुछ ऐसा था, जो किसी और को नहीं दिख सकता था।
"यह आत्मा अभी भी यहाँ है।" उन्होंने धीरे से कहा।
"यह हमें देख रही है। यह हमें महसूस कर रही है।"
"और यह चुपचाप बैठने वाली नहीं है।"
अचानक… बिजली चली गई।
कमरे में जलते दीपक एक-एक करके बुझने लगे।
साहिल ने घबराकर इधर-उधर देखा, लेकिन कुछ भी साफ नज़र नहीं आ रहा था।
फिर एक अजीब सी आवाज़ गूँजी…
"आन्या…"
यह आवाज़ कोमल थी, लगभग फुसफुसाहट जैसी। लेकिन उसमें कुछ था, जो हड्डियों के आर-पार चला गया।
रीतिका की आँखों से आँसू बह निकले।
"नहीं… यह मेरी बेटी को नहीं ले जा सकती!" उसने कांपते हुए कहा।
अघोरानंद ने एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कीं और फिर ज़मीन पर कुछ रेखाएँ खींचने लगे।
"अब हमें जल्दी करनी होगी।"
"यह आत्मा हमें चेतावनी दे रही है… लेकिन अगर हम और देर करेंगे, तो यह हमला कर देगी।"
कौन है जो इसे बुला रहा है?
एक बात अब पूरी तरह साफ हो चुकी थी—
यह आत्मा किसी अनजान जगह से नहीं आई थी। इसे किसी ने बुलाया था।
घर के किसी व्यक्ति ने… या शायद किसी ने अनजाने में इसका द्वार खोल दिया था।
और जब तक वह सामने नहीं आता… तब तक यह लड़ाई खत्म नहीं होगी।
लेकिन सवाल यह था—क्या वे इसे रोकने में सफल होंगे?
या फिर… पूजा शुरू होने से पहले ही कुछ ऐसा हो जाएगा, जिससे इस परिवार की रक्षा असंभव हो जाएगी?
रात का दूसरा पहर बीत चुका था। बाहर घना अंधेरा था, लेकिन घर के भीतर जो होने वाला था, वह इस अंधेरे से भी ज्यादा भयावह था। अघोरानंद ने पूरे घर को पहले ही तंत्र-मंत्र से सुरक्षित कर दिया था, लेकिन अब वे जानते थे कि जो शक्ति यहाँ बंधी थी, वह इतनी आसान नहीं थी कि बस मंत्रों के उच्चारण से शांत हो जाए।
इस आत्मा को बाँधने के लिए एक महायज्ञ की आवश्यकता थी।
घर के बीचो-बीच, हॉल के ठीक बीचों-बीच एक विशेष स्थान का निर्माण किया गया।
यज्ञ के लिए पहले ज़मीन को गंगाजल से शुद्ध किया गया, फिर उसे विशेष भस्म से लेपित किया गया, ताकि कोई भी अशुद्ध या नकारात्मक शक्ति इसमें प्रवेश न कर सके।
यज्ञ कुंड के चारों ओर बड़े-बड़े लाल रंग से बने तांत्रिक निशान उकेरे गए थे। ये साधारण चिह्न नहीं थे, बल्कि प्राचीन तांत्रिक साधनाओं से जुड़े गुप्त और शक्तिशाली प्रतीक थे, जिनका उपयोग काली तांत्रिक शक्तियों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता था। हर चिह्न का अपना अलग महत्व और ऊर्जा थी—
🔺 त्रिभुज के भीतर स्थित एक चक्र—यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा और नियंत्रण का प्रतीक था। त्रिभुज शक्ति के तीन पहलुओं को दर्शाता था—सृजन, पालन और संहार। इसके केंद्र में स्थित चक्र इस ऊर्जा को नियंत्रित करता था और यह सुनिश्चित करता था कि कोई भी बाहरी शक्ति इस दायरे को भेद न सके। यह आत्माओं और तांत्रिक शक्तियों को यज्ञ के घेरे में बाँधने के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रतीकों में से एक था।
🔱 दस मुखों वाला रुद्राक्ष—यह शिव का स्वरूप माना जाता है और इसकी उपस्थिति रक्षात्मक ऊर्जा को बल देती है। यह आत्माओं की उग्रता को कम करने और उन्हें शांत रखने का कार्य करता था। जब कोई दुष्ट आत्मा यज्ञ स्थल के भीतर प्रवेश करने का प्रयास करती, तो इस रुद्राक्ष की ऊर्जा उसे रोकने के लिए सक्रिय हो जाती।
⚫ काली माँ की दस भुजाओं का संकेत—यह विशेष चिह्न यज्ञ के चारों ओर बनाया गया था। इसमें माँ काली की दस भुजाओं का प्रतीक था, जो विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए थीं। इस चिह्न का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि कोई भी दुष्ट आत्मा या किसी प्रकार की नकारात्मक शक्ति यज्ञ में प्रवेश न कर सके। यह आत्माओं को भयभीत करने और तांत्रिक ऊर्जा को यज्ञ के भीतर बनाए रखने का कार्य करता था।
🔥 अग्नि बिंदु—यज्ञ कुंड के ठीक मध्य में यह प्रतीक अंकित किया गया था। इसका कार्य आध्यात्मिक और दैवीय ऊर्जा को संतुलित करना था। यह अग्नि और आत्मा के बीच एक माध्यम का कार्य करता था, जिससे आत्मा को नियंत्रित किया जा सके। इसे विशेष रूप से अभिमंत्रित किया गया था, ताकि यज्ञ की अग्नि केवल बाहरी नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शक्तियों का आह्वान कर सके।
इन प्रतीकों की उपस्थिति ने यज्ञ स्थल को एक अभेद्य दुर्ग बना दिया था। अब देखना यह था कि क्या यह सुरक्षा आत्मा के प्रकोप को रोक पाएगी या फिर कोई अनहोनी यज्ञ को बाधित करने वाली थी…
पूरे हॉल में धूप, काले तिल और सरसों के तेल का धुआँ फैल रहा था।
यज्ञ की शुरुआत—मंत्रों की शक्ति और आत्मा का कंपन
यज्ञ के चारों ओर सभी लोग एक-एक करके बैठे थे। यह कोई साधारण पूजा नहीं थी—यह एक तांत्रिक अनुष्ठान था, जो जीवन और मृत्यु के बीच की सीमाओं को छूने वाला था।
सामने अघोरानंद बैठे थे। उनकी देह पर भस्म लगी थी, जिसने उनके शरीर को राख की तरह सफेद कर दिया था। उनके गले में खोपड़ियों की माला झूल रही थी, जो किसी भी आम व्यक्ति के लिए भयावह दृश्य होता, लेकिन उनके लिए यह तंत्र साधना का एक आवश्यक अंग था।
फादर एंथनी, जो हमेशा से ईसाई धर्म की प्रार्थनाओं में विश्वास रखते थे, आज इस यज्ञ का हिस्सा बने हुए थे। उन्होंने अपने हाथ में एक क्रॉस पकड़ा था, जिससे वह अपनी ईश्वरीय शक्ति को इस यज्ञ में समाहित कर सकें। यह क्रॉस उनके लिए सिर्फ ईसाई आस्था का प्रतीक नहीं था, बल्कि एक रक्षा कवच था, जो उन्हें दुष्ट आत्माओं के प्रभाव से बचाए रखता था।
साहिल और रीतिका यज्ञ कुंड के ठीक सामने बैठे थे। उनके चेहरों पर चिंता, डर और असमंजस के भाव साफ झलक रहे थे। उनकी दुनिया पलट चुकी थी—जो कुछ वे विज्ञान और तर्क से समझते आए थे, आज उसकी कोई जगह नहीं थी।
रीतिका ने आन्या को अपनी गोद में कसकर पकड़ रखा था, जैसे अगर उसने उसे छोड़ दिया, तो कोई अनदेखी शक्ति उसे छीन ले जाएगी। लेकिन क्या वह वाकई सुरक्षित थी?
मंत्रों का उच्चारण और वातावरण में बदलाव
अचानक, अघोरानंद ने अपनी आँखें बंद कर लीं। उन्होंने अपने हाथ में राख (भभूत) ली और ज़ोर से मंत्रोच्चार शुरू कर दिया—
🔱 पहला मंत्र गूँजा:
"ॐ ऐं ह्रीं क्रीं काली कालिका नमः..."
जैसे ही यह शब्द निकले, हवा अचानक भारी हो गई। कमरे में एक अदृश्य कंपन उठने लगा।
🔥 दूसरा मंत्र गूँजा:
"ॐ हं हं हं काली महाकाली भद्रकाली नमोस्तुते..."
यज्ञ की लौ पहले हल्की थी, लेकिन अचानक उसकी लपटें ऊँची उठने लगीं। जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उन्हें हवा दी हो।
⚡ तीसरा मंत्र गूँजा:
"ॐ क्रीं कालिकायै स्वाहा..."
इस मंत्र के साथ ही दीवारों पर बनी परछाइयाँ अब बड़ी लगने लगीं, जैसे कोई अदृश्य शक्ति बेचैन हो उठी हो।
तभी अघोरानंद ने अपने हाथ की भभूत यज्ञ कुंड में डालते हुए ज़ोर से बोले—
"हे माँ काली! इस आत्मा को रोकने का समय आ गया है!"
उनका स्वर गूँज उठा। हवा में एक अजीब-सी सनसनाहट थी। कुछ था, जो इन मंत्रों से तड़प रहा था।
अब सवाल था— क्या यह यज्ञ आत्मा को रोक पाएगा, या फिर कोई अनहोनी पहले ही घटने वाली थी?
भय का अंत या एक नए आतंक की शुरुआत?
यज्ञ कुंड की अग्नि अब नीले रंग में बदल चुकी थी। यह साधारण आग नहीं थी—यह संकेत था कि तंत्र-मंत्र पूरी तरह सक्रिय हो चुका है।
नीली आग का मतलब था कि दूसरी दुनिया की शक्तियाँ इस अनुष्ठान को देख रही थीं।
फादर एंथनी ने भी अपनी ओर से प्रार्थना शुरू कर दी—
"हे परमेश्वर, इस स्थान को अपनी शक्ति से सुरक्षित रखें।"
साहिल और रीतिका अपनी जगह पर बैठे थे, उनकी आँखों में भय और अनिश्चितता साफ झलक रही थी।
आन्या चुप थी।
लेकिन अचानक...
पूरे घर की लाइटें बुझ गईं।
अब यज्ञ की लौ के अलावा कुछ भी नहीं जल रहा था।
तेज़ हवाएँ चलने लगीं।
कमरे की छत से सफेद धुएँ जैसी आकृतियाँ बनने लगीं।
फादर एंथनी ने घबराकर कहा,
"कुछ हो रहा है! यह आत्मा यज्ञ को तोड़ने की कोशिश कर रही है!"
अघोरानंद ने तुरंत अपनी आँखें खोलीं। उनके चेहरे पर एक भयावह दृढ़ता थी। उन्होंने ज़ोर से मंत्र पढ़ा—
"ॐ नमः चंडिकायै कपालिनी स्वाहा!"
यज्ञ कुंड से अचानक एक चिंगारी उठी और पूरे हॉल में फैल गई।
अब हर कोई देख सकता था कि सामने हवा में कुछ बन रहा था—
एक आकृति, जिसकी आँखें लाल थीं और चेहरा सफ़ेद धुएँ से ढका हुआ था।
फिर, एक भारी, गहरी आवाज़ हॉल में गूँज उठी—
"तुम मुझे रोक नहीं सकते..."
"तुम मुझे बाँध नहीं सकते..."
साहिल ने आन्या को कसकर पकड़ लिया।
लेकिन फिर...
अघोरानंद ने अपनी झोली से एक त्रिशूल निकाला। उसकी नोक पर एक विशेष तांत्रिक अभिषेक किया गया था।
"यह देखना है, या आज अपनी हार माननी है?" उन्होंने गरजते हुए कहा।
आत्मा एक पल को रुकी।
फिर अचानक, पूरी हवेली में भयंकर गूँज उठी, जैसे सैकड़ों लोग एक साथ चीख रहे हों।
यज्ञ कुंड की लपटें और तेज़ हो गईं।
अघोरानंद ने अपनी पूरी शक्ति से भभूत आत्मा की ओर फेंकी।
"ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु स्वाहा!"
जैसे ही भभूत आत्मा पर पड़ी, वह दर्द से चीख उठी—
"नहीं..."
"नहीं... मुझे वापस मत भेजो!"
"मैं लौटूँगी!"
अचानक, पूरी हवेली एक तेज़ झटके के साथ काँप उठी।
यज्ञ कुंड की लपटें भड़कीं... और फिर धीरे-धीरे शांत होने लगीं।
कमरे में अब बस धुआँ और राख बची थी।
सब कुछ खत्म हो चुका था।
या शायद नहीं?
क्या यह आत्मा सच में शांत हो गई, या वह अभी भी किसी को अपने जाल में फंसा सकती है? 👻
2. क्या अघोरानंद के तंत्र-मंत्र से आत्मा को वाकई शांत किया जा सका, या फिर यह सिर्फ एक अस्थायी जीत थी? 🔮
3. क्या यह परिवार अगली बार जब इस शक्ति से सामना करेगा, तो वे बच पाएंगे, या यह युद्ध और भी भयावह हो जाएगा? ⚡
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए रांझन with सफ़र ........