साहिल ने कुछ देर सोचकर कहा, "बाबा, क्या आप पता लगा सकते हैं कि इस आत्मा को किसने बुलाया?"
अघोरानंद ने उसकी तरफ़ देखा।
उनकी आँखों में एक अजीब-सी गहराई थी।
"अभी उसका समय नहीं आया है।"
साहिल चौंक गया, "मतलब?"
"मतलब यह कि जब तक समय सही नहीं होगा, यह राज़ नहीं खुलेगा। भाग्य को धक्का नहीं दिया जा सकता। सच तभी सामने आएगा जब इसके सामने आने का समय होगा।"
"वक़्त?"
रीतिका अब और सहन नहीं कर पा रही थी।
उसकी आँखें लाल हो गईं। उसका गुस्सा फूट पड़ा।
"वक्त से पहले सच नहीं खुलेगा? तो क्या तब खुलेगा जब मेरी बेटी मर जाएगी?"
उसकी आवाज़ पूरे घर में गूँज उठी।
"क्या तब पता चलेगा जब मैं और साहिल मर चुके होंगे?"
उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन वह उन्हें रोकने की कोशिश कर रही थी।
"यह मेरी बेटी है!"
"अगर आप इतने शक्तिशाली हैं तो अभी क्यों नहीं पता कर सकते?"
"आप तंत्र-मंत्र कर सकते हैं, आत्माओं को बुला सकते हैं, आत्माओं को रोक सकते हैं, लेकिन यह पता नहीं कर सकते कि मेरी बेटी की जान लेने वाला कौन है?"
वह अब पूरी तरह बिखर चुकी थी।
फादर एंथनी तुरंत उसकी ओर बढ़े और उसके कंधे पर हाथ रखा।
"बेटा, शांत हो जाओ।"
लेकिन रीतिका शांत नहीं हुई।
"कैसे शांत हो जाऊँ, फादर? कैसे?"
"मुझे बताया गया कि मेरी बेटी पर मुसीबत है। लेकिन मैं यह नहीं जान सकती कि वह मुसीबत किसने बुलाई?"
"मुझे बताया गया कि यह आत्मा सिर्फ मेरी बेटी को नुकसान पहुँचाने के लिए आई है। लेकिन मैं यह नहीं जान सकती कि इसे बुलाने वाला कौन है?"
"मुझे यह भी बताया गया कि यह आत्मा अभी के लिए कमजोर की जा सकती है, लेकिन इसे खत्म नहीं किया जा सकता!"
"तो बताइए, क्या मुझे अब बस बैठकर इंतजार करना होगा?"
उसकी आँखों में बेबस गुस्सा था।
फादर ने गहरी साँस ली और कहा, "रीतिका, वक्त से पहले सच कभी नहीं मिलता।"
"क्यों?"
"क्योंकि कुछ सच तब तक छुपे रहते हैं जब तक उनकी परीक्षा पूरी न हो जाए।"
"क्या मतलब?"
अघोरानंद ने पहली बार एक गहरी साँस ली।
"मतलब यह कि अभी तक इस आत्मा का असली उद्देश्य पूरी तरह सामने नहीं आया है।"
"अभी तक यह सिर्फ खेल खेल रही है।"
"जो भी इसे बुलाया है, वह तब तक सामने नहीं आएगा जब तक यह आत्मा पूरी तरह अपनी शक्ति नहीं दिखा देती।"
"हमें धैर्य रखना होगा।"
साहिल ने गहरी आवाज़ में कहा, "और तब तक क्या? हमें बस बैठकर इंतजार करना होगा?"
अघोरानंद ने सिर हिलाया, "नहीं। हम इसे पूरी तरह खत्म नहीं कर सकते, लेकिन इसे रोक सकते हैं। हम इसे कमज़ोर कर सकते हैं। और जब तक आन्या बड़ी नहीं हो जाती, हम इसे सोने के लिए मजबूर कर सकते हैं।"
"लेकिन यह कब तक रहेगा?"
"कुछ सालों तक।"
"और उसके बाद?"
अघोरानंद ने सीधा जवाब दिया, "फिर यह लौटेगी। और फिर एक आखिरी लड़ाई होगी।"
"तो फिर?"
"फिर इस आत्मा का अंत होगा। लेकिन इसे सिर्फ आन्या ही खत्म कर सकती है।"
क्या अब भी वे सुरक्षित थे?
साहिल और रीतिका अब समझ चुके थे कि यह मुसीबत बस थोड़े दिनों के लिए रुकेगी। लेकिन यह खत्म नहीं होगी।
वे बस इस तूफान से कुछ सालों के लिए खुद को बचा सकते थे।
लेकिन जब यह फिर लौटेगी…
तो क्या वे तब तक इसके लिए तैयार होंगे?
क्या आन्या तब तक इतनी बड़ी हो जाएगी कि इस आत्मा से लड़ सके?
या फिर…
क्या इससे पहले ही कोई अनहोनी हो जाएगी?
क्योंकि एक बात तो तय थी—
जो भी इसे बुलाने वाला था, वह अब भी उनके बीच था।
और जब तक वह सामने नहीं आता…
तब तक यह खतरा कभी खत्म नहीं होगा।
रात का साया और अघोरानंद का संकल्प
घर के भीतर अब भी अजीब-सी ऊर्जा तैर रही थी। हवा में हल्की ठंडक थी, लेकिन यह सर्दी मौसम की नहीं थी—यह किसी अनदेखी, अदृश्य शक्ति की उपस्थिति थी। चारों ओर एक अजीब-सा सन्नाटा पसरा था, जैसे दीवारें खुद ही किसी भयानक रहस्य को अपने भीतर समेटे खड़ी थीं।
अघोरानंद ने गहरी साँस ली। उनकी आँखें अब भी बंद थीं, लेकिन ऐसा लग रहा था मानो वह देख रहे हों—हर उस छाया को, जो इस घर में भटक रही थी, हर उस अनकही चीख को, जो अब भी हवाओं में गूँज रही थी।
उन्होंने धीरे से आँखें खोलीं। उनकी लाल, चमकती हुई आँखों में कुछ ऐसा था, जिसने कमरे में बैठे सभी लोगों को सिहरने पर मजबूर कर दिया।
"हमें अब तैयारी करनी होगी," अघोरानंद की आवाज़ एक गहरी गूँज की तरह कमरे में फैल गई।
साहिर, रीतिका और फादर एंथनी ने चुपचाप उनकी बात सुनी।
"यह आत्मा बहुत शक्तिशाली है," उन्होंने आगे कहा, "इसे पूरी तरह से नष्ट करना अभी संभव नहीं है। यह किसी साधारण आत्मा की तरह नहीं है। यह एक प्राचीन शक्ति है—एक ऐसा अस्तित्व, जो समय से परे है। लेकिन मैं इसे कुछ सालों के लिए बाँध सकता हूँ, इसकी शक्ति को कमजोर कर सकता हूँ।"
फादर एंथनी का चेहरा तनाव से भर गया। उन्होंने धीमी लेकिन चिंतित आवाज़ में पूछा, "इसमें कितना समय लगेगा?"
अघोरानंद ने पलभर को आँखें बंद कीं, फिर गहरी आवाज़ में बोले, "कितने दिन लगेंगे, यह कहना मुश्किल है। लेकिन इतना तय है कि यह आसान नहीं होगा। हमें हर चीज़ का सही से इंतज़ाम करना होगा, क्योंकि इस आत्मा को बाँधने के लिए हमें ऐसी चीज़ों की ज़रूरत होगी, जिन्हें जुटाना कोई साधारण कार्य नहीं है।"
"कैसी चीज़ें?" साहिल ने काँपती आवाज़ में पूछा।
अघोरानंद ने धीरे से उत्तर दिया, "तंत्र, मंत्र, काली माँ की शक्तियाँ और दूसरी सिद्धियाँ… पर सबसे ज़रूरी चीज़ है—रक्त।"
साहिल और रीतिका के दिल की धड़कन एक पल को रुक गई।
"रक्त?" फादर एंथनी ने अघोरानंद की ओर देखा।
"हाँ," उन्होंने गंभीरता से कहा, "और वह भी किसी साधारण व्यक्ति का नहीं। हमें एक ऐसे व्यक्ति का रक्त चाहिए, जिसने मृत्यु को छूकर भी जीवन पाया हो। जिसने मृत्यु को हराया हो, जो मृत्यु से होकर गुज़रा हो लेकिन अब भी जीवित हो।"
कमरे में घबराहट की लहर दौड़ गई।
साहिल की साँसें तेज़ हो गईं। उसने खुद को सँभालते हुए कहा, "क्या कोई ऐसा व्यक्ति है?"
अघोरानंद के होंठों पर एक हल्की मुस्कान आई, लेकिन वह मुस्कान सुकून देने वाली नहीं थी। वह किसी अंधेरे रहस्य की तरह थी, जो अभी पूरी तरह खुला नहीं था।
"है।"
एक पल को कमरे में सिर्फ़ दीयों की लौ की हल्की चटचटाहट सुनाई दी।
"कौन?"
अघोरानंद ने बहुत धीरे से, लेकिन बेहद भारी आवाज़ में कहा—
"आन्या।"
रीतिका के चेहरे से खून उतर गया। उसने घबराकर आन्या को अपनी बाँहों में भींच लिया।
"नहीं! मेरी बेटी का खून नहीं! मैं यह कभी नहीं होने दूँगी!"
अघोरानंद ने उसकी आँखों में देखा। उनके चेहरे पर न दुःख था, न करुणा—बस एक ठंडा, कड़ा सच।
"यह सिर्फ़ खून नहीं, यह एक बलिदान है। और बिना इस बलिदान के… यह आत्मा फिर लौटेगी। और अगली बार… यह सिर्फ़ ताकत हासिल करने नहीं आएगी।"
साहिल ने काँपती आवाज़ में पूछा, "तो… तो क्या यह हमारी बेटी को मारने आएगी?"
अघोरानंद की आँखें गहरी होती चली गईं। उन्होंने सिर्फ़ एक ही शब्द कहा—
"हाँ।"
कमरे में मौत जैसी खामोशी छा गई। बाहर हवाओं ने ज़ोर से एक लंबी, डरावनी चीख मारी, जैसे कोई छाया यह सुन रही हो और अब वह इंतज़ार नहीं कर सकती।
यह सिर्फ़ एक आत्मा की लड़ाई नहीं थी।
यह भाग्य और समय का सबसे घातक खेल था।
तंत्र की तैयारी और आत्मा की आहट
पूजा-पाठ की तैयारी शुरू हो चुकी थी। पूरे घर में अब एक अजीब-सा माहौल बन चुका था। हवा पहले से भी ज्यादा भारी महसूस हो रही थी, जैसे कोई अदृश्य शक्ति हर कोने में छिपी हुई साँसें गिन रही हो।
साहिर, रीतिका और फादर एंथनी पूरी मेहनत से हर वह सामग्री जुटाने में लग गए, जो अघोरानंद ने माँगी थी। लेकिन असली तैयारी अभी बाकी थी—वह सुरक्षा कवच, जो इस आत्मा को अंदर घुसने से रोकेगा।
रक्षा कवच का निर्माण
अघोरानंद ने कमरे के बीचों-बीच बैठकर अपनी आँखें बंद कर लीं। उनके चारों ओर जलते हुए दीयों की लौ एक अनजानी भाषा में काँप रही थी, जैसे किसी अदृश्य ताकत की उपस्थिति से वे भी भयभीत हों।
अचानक, उन्होंने मंत्रोच्चार करना शुरू किया—
"ॐ क्रीं कालिकायै नमः..."
उनकी आवाज़ में एक अजीब कंपन था, एक ऐसी शक्ति जो केवल शब्दों में नहीं, बल्कि वातावरण में भी गूँज रही थी।
"ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु स्वाहा..."
जैसे ही उन्होंने मंत्रों का उच्चारण किया, घर की दीवारों पर एक हल्की-हल्की सरसराहट दौड़ गई। यह कोई साधारण हवा की सरसराहट नहीं थी—यह कुछ और था। कुछ ऐसा, जो किसी भी क्षण प्रकट हो सकता था।
अघोरानंद ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं और एक लाल धागा निकाला। उन्होंने उसे अपनी जप माला के पास रखा और फिर उसे मंत्रों से अभिमंत्रित करने लगे। उनके होंठ हिल रहे थे, लेकिन उनके शब्द फुसफुसाहट में बदल चुके थे।
फिर, उन्होंने वह धागा उठाया और कमरे के हर कोने में, हर दरवाज़े पर उसे बाँध दिया।
"यह धागा इस जगह को सुरक्षित रखेगा।" उनकी आवाज़ अब और भी गंभीर थी। "जब तक यह धागा सही सलामत रहेगा, तब तक यह आत्मा अपनी पूरी ताकत से हमला नहीं कर पाएगी।"
फिर उन्होंने साहिर, रीतिका और फादर के हाथों में भी एक-एक लाल धागा बाँधा।
"अब से तुम सब इसे तब तक मत खोलना, जब तक मैं न कहूँ।"
रीतिका ने धागे को अपने हाथ में महसूस किया। यह धागा सिर्फ एक धागा नहीं था, यह अब उनके बचने की आखिरी उम्मीद थी।
लेकिन… क्या यह काफी था?
तंत्र की कठिन तैयारी – जब हर कोना तंत्र के प्रभाव में आ गया
अघोरानंद ने घर के हर कोने को ध्यान से देखा।
"यह आत्मा कहीं से भी आ सकती है। यह घर अब सिर्फ एक घर नहीं है, यह एक युद्ध का मैदान बन चुका है।"
उन्होंने साहिल और रीतिका को अलग-अलग काम सौंप दिए—
काले तिल, काले कपड़े और सरसों के बीज इकट्ठा करने के लिए कहा।अश्वगंधा और बेलपत्र लाने के लिए भेजा, जो तंत्र क्रियाओं में महत्वपूर्ण होते हैं।गंगाजल और श्मशान की राख माँगी, जिससे आत्मा को नियंत्रित किया जा सके।
रीतिका का शरीर काँप गया जब उसने सुना—श्मशान की राख।
"श्मशान की राख? यह क्यों?" उसने घबराकर पूछा।
अघोरानंद की आँखें एक पल को और ज्यादा गहरी हो गईं।
"क्योंकि यह आत्मा सिर्फ़ मरी हुई नहीं है… यह मृत्यु से भी परे जा चुकी है। इसे रोकने के लिए हमें उसी तत्व की जरूरत होगी, जिससे यह बनी है।"
जब हवाओं ने पहली दस्तक दी
अभी तंत्र की सारी सामग्री भी इकट्ठी नहीं हुई थी कि हवा का बहाव अचानक बदल गया। खिड़कियों के शीशे अपने-आप हिलने लगे। कमरे में जलते हुए दीयों की लौ एक-एक करके मंद पड़ने लगी।
फादर एंथनी ने घबराकर चारों ओर देखा।
"क्या यह शुरू हो चुका है?"
अघोरानंद ने एक गहरी साँस ली और धीरे से बोले—
"नहीं… यह सिर्फ़ चेतावनी है।"
अचानक, बाहर किसी ने दरवाज़े पर ज़ोर से दस्तक दी।
"ठक… ठक… ठक…"
तीन बार।
लेकिन बाहर कोई नहीं था।
रीतिका ने तेजी से साहिल का हाथ पकड़ लिया। उसकी उँगलियाँ बर्फ़ की तरह ठंडी हो चुकी थीं।
अघोरानंद उठे और दरवाज़े की तरफ़ बढ़े। उन्होंने अपने हाथ से हल्की सी खड़खड़ाहट करते हुए दरवाज़े की कुंडी खोली।
बाहर घना अंधेरा था।
कोई नहीं था।
लेकिन हवा में… कुछ था।
एक हल्की-सी फुसफुसाहट…
"आ…न्या…"
फादर एंथनी की साँसें तेज़ हो गईं।
"यह नाम किसने लिया?" साहिल ने हकलाते हुए कहा।
अघोरानंद के चेहरे पर कोई डर नहीं था। उन्होंने नीचे ज़मीन पर देखा—वहाँ गीली मिट्टी पर गहरे, अजीबोगरीब निशान थे। किसी इंसानी पैरों के नहीं… बल्कि पंजों के।
"यह आत्मा आ चुकी है," उन्होंने गहरी आवाज़ में कहा। "लेकिन यह अंदर नहीं आ सकती—अभी नहीं।"
फादर ने अघोरानंद की ओर देखा। "क्या अब पूजा शुरू करनी होगी?"
अघोरानंद ने दरवाज़ा धीरे से बंद किया और पीछे मुड़कर कहा—
"नहीं… पूजा शुरू करने से पहले हमें यह पता लगाना होगा कि यह आत्मा किसके लिए आई है।"
साहिल और रीतिका ने एक-दूसरे की ओर देखा। जवाब तो सबको पता था।
यह आत्मा सिर्फ़ और सिर्फ़ आन्या के लिए आई थी।
लेकिन सवाल अब भी वही था—आख़िर क्यों?
क्या यह आत्मा वाकई आन्या के पीछे है, या कुछ और है जो हमें नहीं पता? 👀 अघोरानंद ने जो तैयारी की है, क्या वह पर्याप्त होगी, या आत्मा कहीं और से आकर सब कुछ नष्ट कर देगी? 🔮 क्या समय आने पर यह आत्मा सचमुच अपने असली मकसद के साथ सामने आएगी? 🕰️
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए रांझन with सफ़र ........