आसी का बर्थ डे

अब आगे...।

आज पूरा घर अच्छे से सजाया गया था, फूलों की महक से आशी के घर का आँगन महक उठा था लग रहा था आज यहाँ कुछ बहुत ही खास होने वाला है, क्योंकि आज हमारी प्यारी आशी का जन्मदिन था। कीर्ति और कर्तव्य सारी तैयारियाँ कर रहे थे। आशी सफेद फ्रॉक पहने इधर-उधर घूम रही थी। उसकी आँखें चमक रही थीं। कीर्ति जो टेबल सजा रही थी, उसने कर्तव्य से पूछा, "कर्तव्य, केक कहाँ है? आपको पता है ना आशी को आपके हाथ का बना केक पसंद है? क्या अभी तक आपने केक तैयार नहीं किया?"

कर्तव्य जो हमारी प्यारी आशी के लिए हर बार केक अपने हाथों से बनाता था, क्योंकि आशी को उसके हाथों से बनाया केक ही पसंद आता था, उसने कहा, "ओह नो, इस बार मैंने कोई केक नहीं बनाया।" उसकी बात सुनकर आशी जो खुशी से पूरे घर में घूम रही थी, उसका मुँह बन गया। वह कुछ बोली नहीं, बस सिर नीचे कर सोफे पर आ बैठ गई।

आशी का चेहरा देखकर कीर्ति ने कर्तव्य से कहा, "कर्तव्य, तुमने आशी के लिए केक क्यों नहीं बनाया? तुम्हें पता है कि वह तुम्हारे हाथों से बनाया केक ही पसंद करती है।" कर्तव्य ने कहा, "मुझे पता है, लेकिन इस बार मैं काम की वजह से स्ट्रेस में था। मैं भूल गया।" कीर्ति ने कहा, "भूल गए थे? आशी का जन्मदिन है और तुम भूल गए?"

आशी ने अभी तक कुछ नहीं कहा था, लेकिन उसके चेहरे पर उदासी साफ दिखाई दे रही थी। कर्तव्य ने उसकी ओर देखा और कहा, "प्रिंसेस, डैड को माफ कर दो बच्चा। मैं आपके लिए केक बनाऊंगा। अभी के लिए बाहर जाकर केक ले आता हूँ।" आशी ने सिर उठाकर कर्तव्य की ओर देखा और कहा, "नहीं, डैड। मुझे नहीं चाहिए केक।"

कर्तव्य ने कहा, "बच्चा प्लीज। मैं तुम्हारे लिए केक लाऊंगा। तुम्हारी पसंद का होगा।" आशी ने कहा, "नहीं डैड, कोई बात नहीं। प्रिंसेस को पता है। डैड बहुत बिजी हैं। अगर आपने नहीं बनाया तो कोई बात नहीं। हम अगली बार आपके हाथों का केक खाएंगे।"

कीर्ति ने कहा, "कर्तव्य, आप जाइए और केक बना कर ले आइए। आशी को तुम्हारे हाथों से बनाया केक ही पसंद है।" लेकिन कर्तव्य ने कहा, "ठीक है, मैं जाता हूँ।" कर्तव्य बाहर गया और आशी की पसंद का केक लेकर आया।

आशी का चेहरा देखकर कर्तव्य ने कहा, "प्रिंसेस, देखो आपके डैड आपके लिए केक ले आए। आप एक बार इसे टेस्ट करोगी ना तो आपको यह पसंद आएगा।" आशी ने केक देखा, उसकी आँखें एक बार फिर पहले की तरह चमकने लगीं। उसका उदास चेहरा खिल गया। उसने कहा, "नहीं डैड, यह बाहर का केक नहीं है। इसकी खुशबू राघव अंकल के बनाए हुए केक जैसी है। यह राघव अंकल ने बनाया है ना?"

उसकी बातें सुनकर कीर्ति जिसे कर्तव्य पर गुस्सा आ रहा था, वह घूरते हुए कर्तव्य को देखने लगी। कर्तव्य ने कहा, "इसमें मेरी कोई गलती नहीं। यह सब आपके भाई का किया-धरा है। उसने ही मुझे केक बनाने से रोका और खुद बना लाया। उसी ने आप दोनों को यह बातें बताने से भी मना किया था। तो अब आपको जो भी कहना है, उससे कहो।"

तभी पीछे से आवाज आई, "भाभी जी, ये सच कह रहे हैं। इन्हें मैंने ही आप दोनों को कुछ भी बताने से रोका था। मैं अपनी लाडो को सरप्राइज देना चाहता था। मुझे पता है बेबी को सिर्फ भाई साहब के हाथों से बना केक ही पसंद है। लेकिन वो मेरे बाद पहले मेरा बच्चा मेरे हाथ का बना केक ही पसंद करती है। तो आज मैंने ही बना दिया।"

आशी ने जल्दी से राघव के पास आकर उसे झुकने का इशारा किया। राघव ने उसे हल्की मुस्कुराहट के साथ देखा और झुक गया।

उसके झुकते ही आशी ने उसके गाल पर किस किया और हग कर लिया। जिससे राघव के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गई।

यह देख कर्त्तव्य ने कहा सारा प्यार अंकल को ही देना है या डैडी को भी मिलेगा.......इस पर आशी ने अपनी मीठी सी आवाज में कहा पहले मेरा birthday gifts लाओ उसके बाद...यह उसने इतने अलग अंदाज में बोला कि सब हँस हँस कर पागल हो गए

पर इन्हें कहा पता था इस घर में यह इनकी आखरी हँसी है........

थोड़ी देर बाद सब टेबल के आसपास खड़े आशी के केक काटने का इंतजार कर रहे थे। आशी भी वहीं खड़ी विश मांग रही थी। सब खुश थे। लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ जो किसी ने सोचा तक नहीं होगा। बूम..💣💣 जोर की आवाज आई और पूरा घर ब्लास्ट हो गया।

वो कहते हैं ना ज्यादा खुशियों को नजर बहुत जल्दी लगती है। अपनी खुशी सबको दिखानी नहीं चाहिए। सब कुछ खत्म हो गया। कुछ नहीं बचा। छोटा सा खुशहाल परिवार आज उसके पास उनके लिए कोई रोने वाला भी नहीं था। पुलिस जब तक अपने साथ फायर वैन लेकर आई, सब जल चुका था। कुछ बचा तो वो सिर्फ राख और वहां की हवाओं में एक शिकायत बस और कुछ नहीं। सब खत्म हो गया। एक हंसता खेलता परिवार उजड़ गया।

14 साल बाद.....

एक तंग गली जहां आधी रात में भी लोगों का आना-जाना लगा हुआ था। ये कोई शरीफ आदमी तो नहीं लग रहे थे। सब शराब और शबाब के नशे में झूम रहे थे। कोई इधर तो कोई उधर, किसी को कुछ होश नहीं। वहीं वहां बने एक महल जैसे घर के छोटे से कमरे में एक लड़की किताबों में उलझी हुई थी। तभी किसी की दस्तक हुई जिससे वो लड़की दरवाजे की तरफ देखने लगी। उसके सामने इस वक्त एक औरत खड़ी थी।

जिसने लाल साड़ी, बड़ी सी बिंदी, गले में लटकता सोने का हार, हाथों में सोने की चूड़ियां, कमर में चाबियों का गुच्छा, मुंह में पान लिए वो अंदर आते हुए बोली, "क्या तुम इन्हीं में लगी रहोगी? अब तुम 18 की होने वाली हो, तुम्हें याद है ना तुमने मुझसे क्या वादा किया था?"

उस औरत की बात सुन वो लड़की जो चुपचाप बैठी कब से किताबें देख रही थी, उसने अपनी नजरे उठाई और उस औरत की तरफ देखने लगी। नीली आंखें, समंदर सी गहरी, मासूमियत से भरी, छोटी सी नाक, दूध जैसा गोरा रंग, छोटा सा मुंह, गुलाब की पंखुड़ियों जैसे फड़फड़ाते होंठ, ऐसा लग रहा था कोई छू ले तो बस ये मोम की गुड़िया वहीं पिघल जाए।

कुछ देर के लिए वो सामने खड़ी औरत भी उसे देखती रह गई। उसे होश में लाते हुए उस लड़की की प्यारी सी आवाज आई, "मां, मुझे याद है। मैं भूली नहीं, आपने मुझे 12th तक पढ़ने की इजाजत दी, उसके लिए शुक्रिया। अब आप जो कहेंगी हम मान लेंगे।"

उसकी मीठी सी आवाज और उसका यूँ 'माँ 'कहना उस औरत के दिल को पिघला गया। लेकिन उसने खुद को संभालते हुए कहा, "सिद्दत, मेरी जान, तुम्हें पता है हमारा काम कैसा है। हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते।

तुम्हें महफिल सजानी होगी। बस दो दिन, उसके बाद तुम 18 की हो जाओगी। उस दिन हमारे इस तवायफ खाने में एक शानदार जश्न होगा और हमारी ये कोहिनूर उस रात महफिल में चार चांद लगाएगी। उस दिन सब हमारे कोहिनूर के पांव में होंगे और हमारी कोहिनूर उन सब के सिर पर सजेगी।"

इतना कह उसने सिद्दत के माथे को प्यार से चूमा और बाहर निकल गई। उसके जाने के बाद सिद्दत ने खिड़की से आती चांद की रोशनी को देखते हुए अपनी आंखें बंद कर लीं।

क्या सजाया जाएगा महफिल और सिद्दत बनेगी उस महफिल की नूर .......?

आगे जानने के लिए पढ़िए....बदनाम इश्क़

आज के लिए बस इतना ही मिलते है next chapter मे....।

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