अभय दिन में जो कुछ हुआ था उससे काफी थक चुका था। इसलिए बिस्तर पर जाते ही उसकी नींद लग गई।
अगले दिन
जब अभय की आंखें खुलती हैं, तो वह देखता है कि वह अपने शरीर में वापस आ चुका है। वह अपने शरीर को दोबारा से छूकर देखता है और काफी खुश होता है। उसकी खुशी उसके चेहरे से साफ झलक रही थी। फिर वह पास ही रखे हुए शीशे के पास जाकर अपने आप को देखता है।
जैसे ही वह अपनी छवि को देखता है, वह राहत की सांस लेता है क्योंकि अब अभय अपने शरीर में वापस आ चुका था। लेकिन उसकी खुशी ज्यादा देर तक नहीं टिकती क्योंकि उसका ध्यान अब अपने टूटे हुए कंप्यूटर की तरफ जा चुका था।
यह देखकर अभय का मुंह खुला का खुला रह गया था। उसे गुस्सा और निराशा दोनों एक साथ महसूस हो रहे थे। इन सब बातों को साइड में करने के बाद, अभय जैसे ही अपने कमरे से बाहर निकलता है।
वह देखता है कि घर की हालत भी काफी ठीक है। इसे देखकर वह राहत की सांस लेता है। तभी अभय का ध्यान राधा और रचित की तरफ जाता है जो उसके रास्ते में फूल फेंक रहे थे।
उन दोनों की हरकतें देखकर अभय काफी कन्फ्यूज हो जाता है। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि ये दोनों कर क्या रहे हैं। तभी रचित और राधा बोलते हैं, "राजकुमारी, आपका स्वागत है। इधर आईं।"
अभय यह देखकर काफी हैरान था। उसे दोनों बेवकूफों के चेहरे पर थप्पड़ मारने का मन कर रहा था। उसे इस बात पर भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी लालची बहन इस तरह से व्यवहार कर सकती है।
अभय थोड़ी देर के लिए चुप रहता है और चुपचाप उन फूलों के ऊपर चलते हुए वह सीधा टेबल के पास पहुंचता है और कुर्सी पर बैठ जाता है।
अभय देखता है कि उसके सामने ढेर सारे पकवान रखे हुए थे। यह देखकर अभय के मुंह में पानी आ जाता है। तभी रचित बोलता है, "राजकुमारी, आपके लिए देखो मैं क्या लाया हूं," यह कहते हुए वह उसके सामने केक रख देता है। और बोलता है, "बेशक आपका जन्मदिन निकल चुका है, लेकिन आज भी हम इसे सेलिब्रेट कर सकते हैं।"
अभय अपने दोस्त को इतना दिलदार होता हुआ देखकर काफी हैरान था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि ये कंजूस कब से इतना बड़ा दानवीर हो गया। इन दोनों की ऐसी हरकतों से अभय समझ चुका था कि इन्हें भी उसके आत्मा के अदला-बदली होने की बात पता है।
लेकिन यह लोग उसकी चिंता करने की बजाय यहां पर पार्टी करने की तैयारी कर रहे थे। यह सोच-सोच कर अभय को काफी गुस्सा आ रहा था और कल तो उसका जन्मदिन भी था, लेकिन उसकी बहन तक को उसका जन्मदिन याद नहीं था।
और ना ही उसके सबसे अच्छे दोस्त को याद था। इस बारे में सोच-सोच कर अब उसका दिमाग खराब होने लगा था। अभय से अब रहा नहीं जाता और बोलता है, "तुम लोगों ने ऐसी खातिरदारी कभी अपने मां-बाप की भी नहीं की होगी।"
अभय की टोन और बातें सुनकर दोनों समझ गए थे कि यह राजकुमारी नहीं बल्कि अभय है जो अब अपने शरीर में वापस आ चुका है। यह समझ में आते ही रचित सबसे पहले अपने केक को उठाता है और बोलता है, "यह मेरे अगले जन्मदिन पर काम आएगा," यह कहते हुए वह वहां से निकल जाता है।
राधा भी उसके सामने रखी हुई मिठाई की थाली को उठा लेती है और बोलती है, "इतनी मिठाई खाने से तुम्हारे दांत सड़ जाएंगे," और यह कहकर वह वहां से चली जाती है। दोनों का व्यवहार इतनी जल्दी बदलता देखकर अभय को काफी गुस्सा आ रहा था।
तभी अचानक से अभय का ध्यान अपने हाथों पर पड़ता है। अपने हाथों की तरफ देखकर अभय अपने सर पर हाथ रख लेता है और बोलता है, "वह चुड़ैल कहीं की।" यह कहकर वह राजकुमारी आशा को कोसने लगता है।
क्योंकि अब उसके हाथों में नेल पेंट लगा हुआ था। फिर वह अपना ध्यान अपने पैरों की तरफ करता है, जिन पर भी नेल पॉलिश लगी हुई थी। जब वह सुबह उठा था तब उसका ध्यान उसके हाथों और पैरों पर बिल्कुल नहीं गया था। वह तो बस अपने चेहरे को देखकर ही काफी राहत की सांस ले रहा था।
लेकिन नेल पेंट देखने के बाद वह चिल्लाकर अपनी बहन राधा को बुलाता है। क्योंकि उसे समझ में आ गया था कि यह काम उसकी बहन का ही है।
शाम के वक्त
अभय कहीं से थका-हारा आ रहा था। तभी उसे किसी लड़की के चिल्लाने की आवाज सुनाई देती है। अभय भी जल्दी से भागता हुआ उसकी तरफ दौड़ता है। उसने देखा कि कुछ लोग एक लड़की को परेशान कर रहे थे।
अभय मदद के लिए आगे बढ़ने की कोशिश करता है। तभी उसका ध्यान एक आदमी के हाथ में रखे हुए चाकू की तरफ जाता है और दूसरे आदमी के हाथ में बंदूक थी। यह देखकर वह वहां से भागने लगता है।
अभय अपनी जान के साथ कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था। लेकिन तभी उसके दिमाग में तरह-तरह के ख्याल आने लगते हैं जिनके बारे में सोचकर वह अपने आप को वहीं पर रोक लेता है और वापस उसी तरफ भागने लगता है।
वापस जाते वक्त अभय अपने आप को गालियां दे रहा था और बोल रहा था, "अभय, तू इतना पत्थर दिल कब से हो गया जो एक लड़की को ऐसे ही छोड़कर इस तरह अपनी जान बचाकर भाग आया।" इस बारे में सोच-सोच कर अभय को अपने ऊपर काफी गुस्सा आ रहा था।
जैसे ही वह गली की तरफ पहुंचता है, वह चिल्लाकर उन सभी को रुकने को बोलता है। एक आदमी ने अपना हाथ उस लड़की के चेहरे को लगभग छूने ही वाला था, लेकिन किसी की जोरदार आवाज सुनने के बाद उसका ध्यान भी उस तरफ चला गया था।
लड़की भी उम्मीद के साथ उसी तरफ देख रही थी लेकिन तब वह अपने सामने एक नौजवान लड़के को खड़ा देखती है। यह देखकर उसके अंदर की निराशा और बढ़ जाती है क्योंकि वह जानती थी कि वह लड़का ज्यादा कुछ नहीं कर पाएगा।
वह आदमी अपने साथियों को उस लड़की को पकड़ने को बोलता है और अपनी जेब से बंदूक निकालकर सीधा अभय के ऊपर तान देता है और बोलता है, "कमीने, तूने मेरे मजे को खराब करने की हिम्मत कैसे की।"
अभय को भी उम्मीद नहीं थी। वह आदमी सीधा उसे बिना किसी हिचक के गोली चला देगा। अभय अपनी मौत को स्वीकार कर ही चुका था। गोली उसके सर को फाड़कर निकलने ही वाली थी तभी अभय को लोहे के लोहे से टकराने की एक आवाज सुनाई देती है।
जैसे ही अभय अपनी आंखें खोलकर देखता है, वह अपने सामने एक खंजर को उड़ता हुआ देख सकता था। अब अभय का ध्यान अपनी हथेली पर पड़ता है जहां वही निशान चमक रहा था।
अब अभय हंसते हुए बोलता है, "अरे, बस इतना ही दम था तुमे?" यह कहकर वह उस आदमी को चिढ़ाने लगता है। आदमी भी अभी जो कुछ हुआ था उसे देखकर थोड़ा हैरान था, लेकिन वह फिर से तीन-चार बार गोलियां चला देता है।
लेकिन एक भी गोली अभय को छू नहीं पाती। इससे पहले की गोलियां अभय के पास पहुंचें, खंजर उनके पहले ही टुकड़े कर देता है। अब अभय अपनी नाक में उंगली करते हुए बोलता है, "क्या हुआ, सारी अकड़ निकल गई?"
यह सब देखकर उसके साथी भी बुरी तरह से घबरा चुके थे। अभय अपने खंजर को इशारा करते हुए बोलता है, "इन सबका काम तमाम कर दो," लेकिन खंजर उसकी एक नहीं सुनता और यूं ही हवा में झूलता रहता है।
अभय को कुछ समझ में नहीं आता था कि यह खंजर उसकी बात क्यों नहीं मान रहा। तभी खंजर पास की दीवार पर निशान बनाते हुए लिखता है, "मैं तेरे बाप का नौकर नहीं हूं।"
अभय खंजर के इस तरह के जवाब से काफी हैरान था। तभी उसे याद आता है कि इस खंजर में खुद की एक आत्मा है। यह याद आते ही अभय घुटने टेकता है और बोलता है, "हे महान खंजर, कृपया इन दुष्टों को सजा दें।"
अभय की बात सुनने के बाद खंजर दीवार पर फिर से लिखता है, "नौटंकी कहीं का," और फिर सीधा उन गुंडों की तरफ बढ़ने लगता है। गुंडे उस खंजर को अपनी तरफ बढ़ता हुआ देखकर जल्दी से वहां से भाग जाते हैं।