पाठ-6(वाचा का कंपनी जॉइन करना)

कुछ दिन बाद आशीर्वाद और अदिति अपने-अपने घर चले जाते हैं। वाचा अपने रूम में T-shirt और शॉर्ट्स में बैठकर फोन चला रही है। उसे एक मैसेज दिखता है जो उसकी दी भेजी है -

प्रतीत होता है अभी खेल-कूद का समय गया नहीं। लिफाफा देखी!

वाचा लिफाफा खोलकर पढ़ते ही कॉल करती है।

दीदी इसका क्या अर्थ हुआ। पापा से बात करूं!? दीदी..दी..दी..दीदी।

कॉल कट हो जाती है,वह दौड़ते हुए नीचे आती है।

बाबा,पापा को देखे?"बगीचे में।"

वाचा दौड़ते हुए बगीचे में आती है जहां एक पेड़ के नीचे अरुष,वसुदा का सर दबा रहे हैं जो झूले पर बैठी आँखें बंद किए हुए हैं।

वाचा, लिफाफा अरुष को दिखाती है,पापा ये क्या है!

यही की तुम हमारी कंपनी जॉइन कर रही हो।

पापा अभी मैं अपनी कंपनी जॉइन नहीं कर रही,दूसरी कंपनी में अप्लाई की हूं।

अपनी कंपनी होते हुए ऐसा कौन करता है।तुम कंपनी जॉइन करोगी और अपाला के साथ काम करोगी।

मां....। मै थोड़े अनुभव के पश्चात अपनी कंपनी जॉइन करूंगी। पापा को बोलो न।

वसुदा आंखे खोलती है और वाचा के हाथों को अपने हाथों में लेकर पास बिठाती है

"बेटी, पापा ठीक ही तो बोल रहे हैं।हम इस कंपनी को अपने बच्चों के लिए बनाए है तुम कही और काम करोगी तो अच्छा नहीं लगेगा, और कितने वर्षो से तुम हमसब के साथ नहीं रहती। वर्ष में एक-दो बार मिलना भी कोई मिलना होता है मेरा मन कितना दुखी रहता है और अरूष को सदैव तुम्हारी चिंता सताती है। तुम जहां अप्लाई की हो उस कंपनी के साथ कुछ समय के लिए कोलैबोरेट करलेगे। ठीक है।

वाचा उदास होते हुए ह् ..म्...। पर.।

पर-वर कुछ नही,अभी तो तुम्हारे पास कुछ महीने हैं। एंजॉय करो। बच्चा मां-बाप कभी अपने बच्चों का बुरा नहीं चाहते।

वाचा मुस्करा कर हा में सर हिलाती है।

कुछ महीने बाद~~~

वाचा आज कंपनी जॉइन करने वाली है, पर उससे ज्यादा घबराहट अपाला की देख-रेख में कार्य करना होगा। यह सोच उसके गले से नीचे निवाला नहीं उतर रहा। सभी एक साथ बैठकर भोजन कर रहे हैं।

अपाला,देखो वाचा अभी बच्ची है यदि कोई गलती करे तो क्रोध में नहीं शांति से प्यार से समझाना।

मां, यदि यह अभी भी बच्ची है, और इतना ही लाड़-प्यार चाहिए तो घर पर रहे जब बड़ी होगी तब कंपनी जॉइन करेगी। इसके स्थान पर युग जॉइन करेगा, है न युग।

"मैं तैयार हूं दीदी" युग गर्व से बोला।

"अपाला।" वसुदा ऊंचे स्वर में।

मां..आप भी न, क्या सच में वो इतनी बच्ची है। अब तो युग भी बड़ा हो गया है।

मां-बाप के लिए बच्चे कभी बड़े नहीं होते।

'अच्छा! पर मैं तो कभी बच्ची थी ही नहीं।' अपाला अपना भोजन आधे में छोड़ कर वहां से चली गई।

वसुदा, उसे पुकारी,पर अपाला रुकी नहीं यह देख उसकी आंखे भर आईं।

"तुम ठीक हो।" अरुष, वसुदा के हाथ पर अपना हाथ रख सहानुभूति से पूछे।

वसुदा थोड़ा मुस्कुराती है। सभी भोजन समाप्त करते हैं। 

वाचा मेरी एक आवश्यक मीटिंग है, नहीं तो साथ चलती, मन लगा के काम करना ठीक है।

कोई बात नहीं मां,वाचा खुशी में वसुदा के गले लग प्रणाम की, और वसुदा वहां से मीटिंग के लिए चली गई।