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अधिकारी आकाश सिंह को तो अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था उसे लगा कि उसकी आंखों से सहीं सही से काम करना ही बंद कर दिया है उसने अपनी आंखों को जोर-जोर से मला और फिर से पक्षी की तरफ देखने लगा फिर से उसे वह राजा का पक्षी और गर्व एक दूसरे के साथ नजर आ रहे थे वह दोनो ऐसे लग रहे थे कि वह दोनो कोई बहुत सारे सालों से एक दूसरे के गहरे दोस्त है यह देखकर अधिकारी आकाश सिंह के मन में गर्व को लेकर नकारात्मक विचार आने लगे क्योंकि वहां पर मौजूद कोई भी लोह मानव कर सकती है गर्व को राजा के पक्षी के पास जाने का विरोध नहीं कर रहा था उसने सोचा गर्व ने इन सारे लोह मानव के साथ राजा के पक्षी पर भी कोई जादू चलाया होगा जिसके कारण कोई भी गर्व का विरोध नहीं कर रहा है वह तेजी से गर्व की तरफ बढ़ने लगा और उसके पास जाकर गर्व से ऊंची आवाज में कहा राजा वीर प्रताप सिंह कहां पर है क्या तुमने उन्हें मार तो नहीं डाला यह सुनकर वहां मौजूद राजा का पक्षी भड़क उठा उसने अपने पंजे को उस अधिकारी के सामने कर दिया उसके पंजों पर इस वक्त उस राजा की तलवार लगी हुई थी वह तलवार उस अधिकारी के सीने के सिर्फ 10 सेंटीमीटर दूरी पर ही थी अगर वह अधिकारी कोई ऊंची हरकत करता तो वह तलवार उस अधिकारी के सीने के आर पार चली जाती यह देखकर वहां मौजूद बाकी के अधिकारियों ने अपने तीर और तलवार की नोक को गर्व के तरफ और राजा के पक्षी के तरफ कर दिया परिस्थिति को इतना बिघड़ता हुआ देखकर गर्व ने राजा के पक्षी को शांत होने का आदेश दिया गर्व का आदेश मिलते ही राजा के पक्षी ने उस तलवार को अधिकारी आकाश सिंह के सीने से हटा दिया पर वहां मौजूद बाकी के अधिकारियों ने तलवार और तिरो की नोक को राजा के पक्षी की तरफ से नहीं हटाया था इसके वजह से वह राजा का पक्षी अधिकारियों की तरफ अपनी आंखें लाल करते हुए गुस्से से देखे जा रहा था वहां मौजूद बाकी के अधिकारियों के तलवार और तीर की नोक से अग्नि प्रज्वलित होती जा रही थी वहां पर परिस्थिति को इतना बिघड़ता हुआ देखकर वहां मौजूद उपसेनापति अधिकारी आकाश सिंह की तरफ बढ़ने लगे पर उसे रास्ते में ही एक अधिकारी ने रोक दिया फिर उसने आकाश सिंह को ऊंची आवाज निकालते हुए कहा अधिकारी आकाश सिंह जी हमारा भरोसा करें इस सारे इस मामले में गर्व का कोई भी कसूर नहीं है उल्टा उस ने हीं हम सबकी मदद की है अगर वह यहां पर नहीं होता तो राजा वीर प्रताप सिंह के साथ साथ हम सारे लोग परलोक चले गए होते पर अब तक आकाश सिंह के मन में गर्व के प्रति काफी नकारात्मक विचार आ चुके थे उसका उपसेनापति वीरसेन की बातों को पर कुछ भी ध्यान नहीं जाता है वह लगातार गर्व की आंखों में आंखें डालकर कर गर्व को घूरे जा रहा था फिर परिस्थिति को समझते हुए गर्व ने अपने हाथों से स्टोरेज रिंग निकाल दी इसको गर्व ने अधिकारी आकाश सिंह को दिखाते हुई कहा यह एक स्टोरेज रिंग है जो मैंने तांडव कबीले के हत्यारों से चुराई थी और इस वक्त राजा वीर प्रताप सिंह इसके अंदर ही है स्टोरेज रिंग को देख कर अधिकारी आकाश को यकीन नहीं हो रहा था इस किशोर के पास तो स्टोरेज़ रिंग भी हो सकती है क्योंकि यह स्टोरेज रिंग काफी अमूल्य थी और यह सिर्फ तांडव कबीले के लोगों के पास ही पाई जाती है उस स्टोरेज रिंग की तरफ देखकर अधिकारी आकाश सिंह को यकीन नहीं हो रहा था उन्हें लगा कि गर्व खुद को बचाने के लिए उसके सामने कुछ झूठ बोल रहा है फिर वह ऊंची आवाज में गर्व से कहता है तुमने क्या मुझे मूर्ख समझ कर रखा है तुम्हें लगता है कि इन बकवास बातों से तुम मुझे मूर्ख बना लोगे तो तुम मुझे नहीं बल्कि अपने आप को मूर्ख बना रहे हो इतना कहते ही उसने गर्व के छाती पर अपनी तलवार को चला दिया यह देखकर वहां मौजूद सागर सारे लोह मानव सैनिकों की सांसे अटक गई और उनके मुंह से चीख निकल पड़ी नहीं...... पर उस अधिकारी आकाश सिंह की तलवार हवा में ही चल गई क्योंकि जिस जगह पर गर्व खड़ा हुआ था वहां से वह गायब हो चुका था उसके जगह पर सिर्फ एक स्टोरेज रिंग नीचे नीचे जमीन पर गिरी पड़ी हुई थी गर्व ने तलवार अपनी तरफ आने के पहले ही वह स्टोरेज रिंग के अंदर प्रवेश कर चुका था उसके ऊपर अधिकारी आकाश सिंह की नजर पड़ती है बाकी के अधिकारी भी स्टोरेज रिंग की तरफ आश्चर्य से देखे जा रहे थे उन्हें कुछ समझ में आता इसके पहले उस स्टोरेज रिंग के बाहर के तरफ एक दरवाजा खुलता है और उसमें से राजा प्रताप सिंह सही सलामत बाहर आ जाते हैं वह बहुत ही अशक्त और कमजोर दिखाई दे रहे थे उनको देखकर उस अधिकारी आकाश सिंह की आंखे आश्चर्य से बाहर आ गए गई उन्हे यकीन नहीं हो रहा था कि यहां सच में एक स्टोरेज रिंग ही है जो कि बहुत ही मूल्यवान और तांडव कबीले के हत्यारों के पास ही पाई जाती है स्टोरेज रिंग से राजा वीर प्रताप सिंह के बाहर आने के बाद उनके पीछे पीछे वैज्ञानिक विक्रांत स्टोरेज रिंग के बाहर आता है इस वक्त तक वहां मौजूद अधिकारियों ने अपनी तलवार और तीरो की नोक को नीचे कर दिया था वह किसी भी राजा के सामने अपनी ताकत नहीं दिखा सकते थे वह भले ही कितने बड़े अधिकारी हो पर वह किसी भी राजा का अपमान नहीं कर सकते हैं इसके बाद फिर गर्व भी स्टोरेज रिंग के बाहर निकल गया बाहर निकलते ही गर्व ने अधिकारी आकाश सिंह से कहा कि क्यों अब तो यकीन हो गया ना कि यह एक स्टोरेज रिंग ही है अधिकारी आकाश सिंह इस वक्त गर्व की तरफ आखे फाड़ फाड़ कर देखे जा रहा था गर्व उसके मन के भाव को समझ गया फिर उसने उस अधिकारी को कहा आपको यकीन नहीं है तो आप सभी इसके अंदर जा सकते हैं फिर उसने अपने एक अधिकारी को सामने बुलाया इसका नाम विजेंद्र सिंह था उसने उसे उस स्टोरेज रिंग के अंदर जाने को कहा वह तुरंत ही उसके पास गया और देखते ही देखते वहां से गायब होकर उसके अंदर चला गया और थोड़ी देर बाद वह वहां से वापस बाहर भी आ गया अधिकारी आकाश सिंह के पास गया और उससे कहा यह सच में एक स्टोरेज रिंग ही है इसके अंदर कई सारे घायल सैनिक पढ़े हुए हैं यह सच है राजा वीरप्रताप सिंह ने अधिकारी आकाश सिंह को देखकर ऊंची आवाज में कहा यहपर कई सारे घायल सैनिक पड़े हुए हैं उन सब के साथ-साथ मेरी भी गर्व ने जान बचाई है अगर हमारे राज्य में गर्व मौजूद नहीं होता तो हम सब स्वर्गवासी हो गए होते और इन सारे हत्यारों ने हमारे पूरे राज्य का नामोनिशान को एक ही रात में ही मिटा दिया होता राजा वीर प्रताप सिंह की बातों को सुनकर अधिकारी आकाश सिंह का गर्व के प्रति गुस्सा शांत होने लगा उसे सच में लगा कि उसने ही गर्व को गलत समझ लिया है उसके हाथों से बहुत बड़ी भूल हो गई है राजा की बातों को सुनकर अधिकारी आकाश सिंह ने अपने हाथों को अपने सिर पर मार लिया उसने गर्व की तरफ देख कर कहा मैंने तुमको बहुत ही गलत समझ लिया यह मेरी ही भूल है मैंने तुम्हारे बारे में इतनी सारी गलत चीजों के बारे में सोचा सच में वह अधिकारी आकाश सिंह इतना बड़ा अधिकारी होते हुए भी सबके सामने अपनी गलती को मान रहा था यह एक बड़ी बात थी कोई कोई तो अपनी गलती हुई यह जानने के बावजूद भी पूरा आरोप जानबूझकर दूसरों पर थोपते हैं अधिकारी आकाश सिंह अपनी गलती को मान रहा होता है इससे एक बात पता चलता है कि वह दिल का साफ आदमी होता है यह बात गर्व अच्छी तरह से समझ गया फिर उस अधिकारी ने गर्व को उसको स्टोरेज रिंग के साथ-साथ उसका राजा के पक्षी के साथ के संबंधों के बारे में बड़ी ही शालीन आवाज में सवाल पूछे इस बात का राजा वीर प्रताप सिंह को भी बहुत आश्चर्य हो रहा था कि उसने कैसे उसके पक्षी का दिल जीता क्योंकि वह राजा के अलावा किसी को भी अपने पास फटकने तक नहीं देता था वहां पर मौजूद बाकी के अधिकारियों के मन में भी गर्व के प्रति आश्चर्य के भाव ने जन्म ले लिया क्योंकि दिखने में भले ही योद्धा की तरह नहीं लग रहा हो पर उसका चेहरा चेहरा एक किशोर युवक की तरह ही लग रहा था उन्हें तो यकीन नहीं हो रहा था कि गर्व जैसा एक किशोर युवक साहसी और शूरवीर भी हो सकता है क्योंकि ऐसा सिर्फ बड़े राज्यों में ही होता था क्योंकि उन्हें कई सारे अच्छे गुरुओ का मार्गदर्शन मिलता है उनके पास कई सारे संसाधन भी मौजूद होते हैं जिसके कारण वह कम समय में ही काफी ताकतवर बन जाते हैं पर यह चीज किसी भी छोटे राज्य के साथ होता होना नामुमकिन था खास करके भरतपुर राज्य की स्थापना हुई तो 100 साल ही हो चुके वैसे भी गर्व कोई राजकुमार नहीं था और ना ही उसका किसी भी तरीके से राज परिवार से कोई ताल्लुक होता है वह तो सिर्फ एक आश्रम का युवक होता है जिसने अपने दम पर पूरी लड़ाई का नजारा बदल कर रख दिया था उनके मन के विचारो को गर्व उनके चेहरे के भाव से समझ गया फिर गर्व ने कारागार से लेकर कालीचरण के साथ उसके ही गुफा में युद्ध करने तक सारी बात एकदम सच सच बताइ उसने मंदार और केदार के साथ साथ पहाड़ों पर उन हत्यारों से हुई लड़ाई के बारे में भी सब कुछ बताया पर उसने वहां पर मौजूद चंद्रमुखी के बारे में किसी को भी कुछ नहीं बताया क्योंकि अगर वह किसी को भी चंद्रमुखी के बारे में बता देता तो यहां यहां पर दुनिया भर के लुटेरों राजा और हत्यारों की भीड़ लग जाती और वह सरेवयहां मौजूद संपत्ति के लिए एक दूसरे के साथ लड़ मरते और यहां पर खून की नदियां बह जाती और कोई भी चंद्रमुखी का सामना नहीं कर पाता चंद्रमुखी उन सबको हीरो से बनी दीवारों में चुनवा मार डालती और अगर चंद्रमुखी को पता चल गया कि गर्व ने उसके बारे में सबको बताया है तो गर्व की जान को भगवान भी पचा नहीं पाते चंद्रमुखी गर्व को भी ढूंढ कर स्वर्गलोक भेज देती गर्व ने उन्हें इतना ही बताया कि उसके स्टोरेज रिंग की मदत से केदार को और खुद को एक जगह छुपा दिया और उसके ही मदद से वह पहाड़ों पर से उन तांडव काबिल के हत्यारों से दूर भागने में सफल रहे