असलम ने गहरी सांस ली और अपने मोबाइल फोन को निकाला। उसके हाथ थोड़े कांप रहे थे, क्योंकि हालात हाथ से निकलते जा रहे थे। उसने धीरे-धीरे अपने बॉस रंगा का नंबर डायल किया। कुछ ही सेकंड में दूसरी तरफ से फोन उठ गया।
असलम ने बिना समय गंवाए कहा, "बॉस, मैं असलम बोल रहा हूँ। यहाँ कुछ दिक्कत है। बृजेश भाई आपसे बात करना चाहते हैं।"
रंगा ने थोड़ी देर तक चुप्पी साधे रखी, फिर गंभीर स्वर में कहा, "ठीक है, फोन उसे दे दो।"
असलम ने बृजेश की ओर फोन बढ़ाया। बृजेश ने पहले असलम की ओर देखा, फिर धीरे से फोन अपने कान पर लगाया और कहा, "हैलो।"
दूसरी तरफ से रंगा की गहरी, कड़क आवाज सुनाई दी, "मिस्टर बृजेश, मुझे एक आदमी को मरवाना है।"
बृजेश ने बिना किसी हिचकिचाहट के जवाब दिया, "मुस्किल है, वो आदमी मिलिट्री के लिए काम करता है।"
रंगा ने लापरवाही से कहा, "पचास लाख दूंगा।"
बृजेश ने ठंडे लहजे में जवाब दिया, "मैंने कहा न, ये मुश्किल है।"
रंगा ने थोड़ा दबाव डालते हुए कहा, "साठ लाख।"
बृजेश की आंखों में अब झुंझलाहट साफ नजर आ रही थी। उसने कड़वे स्वर में कहा, "ये छिछोरी हरकत बंद कीजिए। मैं फोन रख रहा हूँ।" इतना कहकर उसने बिना किसी और बात का इंतजार किए फोन काट दिया और असलम को फोन वापस थमा दिया।
बृजेश ने कठोर लहजे में कहा, "यहां से निकल जाओ। अब और कोई बात नहीं होगी।"
असलम और उसके लोग खामोश खड़े रहे, उनकी उम्मीदें टूट चुकी थीं। आखिरकार, असलम ने इशारे से अपने साथियों को बाहर चलने के लिए कहा। वे सभी हवेली से बाहर निकल गए, निराशा उनके चेहरों पर साफ झलक रही थी। हवेली के बाहर आते ही विनय ने भारी आवाज में कहा, "ये मानने वाला नहीं था। अब क्या करें?"
असलम के एक आदमी ने कहा, "अब हमारा प्लान ध्वस्त हो गया है। अब क्या करेंगे?"
विनय ने गुस्से से भरी आवाज में कहा, "अगर त्रिपाठी से कोई पंगा ले सकता था, तो वो यही आदमी था – बृजेश त्रिपाठी। पर अब कोई उम्मीद नहीं बची। तुम लोगों ने पहले मुझे इसके बैकग्राउंड के बारे में क्यों नहीं बताया?"
असलम ने बेबस होकर कहा, "हमें खुद भी नहीं पता था कि ये आदमी मिलिट्री के लिए काम करता है। इसका मतलब है कि वो पेन ड्राइव अब मिलिट्री के हाथ में है।"
इस बात से सभी के चेहरों पर एक सन्नाटा छा गया। असलम ने फिर से अपने बॉस रंगा को कॉल किया। फोन उठते ही रंगा की गुस्से भरी आवाज सुनाई दी, "असलम! बृजेश ने हमारा काम करने से मना क्यों कर दिया?"
असलम ने शांत स्वर में कहा, "बॉस, वो आदमी सागर कोई मामूली चोर नहीं है। उसका बैकग्राउंड मिलिट्री से जुड़ा है, इसलिए बृजेश उसका काम करने के लिए तैयार नहीं है।"
दूसरी तरफ कुछ देर की चुप्पी छाई रही, फिर रंगा ने धीमे स्वर में कहा, "अच्छा, बिहार में कुछ ऐसे लोग नहीं हैं जो पैसे के लिए मर्डर कर सकें?"
विनय ने फौरन जवाब दिया, "हैं तो, लेकिन वो लोग इतने बड़े बैकग्राउंड वाले का मर्डर करने के काबिल नहीं हैं। जो लोग काबिल थे, उन्हें कुछ रहस्यमयी संगठनों ने ठिकाने लगा दिया है। बिहार में मेरे संपर्क में अब ऐसा कोई नहीं है जो इस काम को अंजाम दे सके।"
रंगा ने कुछ सोचते हुए कहा, "ठीक है। फिलहाल सागर को मारने का प्लान ड्रॉप करते हैं। तुम सब वापस आ जाओ।"
असलम और उसके लोग एक बार फिर निराश होकर अपनी-अपनी गाड़ियों में बैठ गए। उन्होंने कोई और सवाल नहीं किया, क्योंकि उन्हें पता था कि अब और कुछ नहीं किया जा सकता। विनय भी अपनी स्कूटर पर चढ़ गया और पटना के लिए रवाना हो गया।
शाम का समय था, लगभग 6 बजे का वक्त। सूरज ढलने को था, आसमान में नारंगी और सुनहरे रंग की हल्की-हल्की आभा बिखरी हुई थी। सड़कें अभी भी थोड़ी चहल-पहल से भरी थीं, लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीत रहा था, लोग अपने-अपने घरों की ओर लौट रहे थे। असलम और उसके आदमी छपरा से काफी दूर निकल चुके थे और राहत की सांस ले रहे थे।
अचानक, उनकी गाड़ियों के सामने एक सफेद रंग की फॉर्च्यूनर कार खड़ी दिखी। गाड़ी के पास किसी की मौजूदगी ने सभी को चौंका दिया। गाड़ी के बंपर पर बैठा एक शख्स उनके सामने था—त्रिपाठी। वह काले चश्मे लगाए, अपने हाथों में एक पिस्टल को हल्के से सहला रहा था, और उसकी आदत के मुताबिक पान चबा रहा था। उसकी आँखों में ठंडक भरी शांति थी, लेकिन वह शांति खतरे की गहरी चेतावनी थी।
असलम ने तुरंत अपनी गाड़ियाँ रुकवाईं। अपने आदमियों के साथ गाड़ी से नीचे उतरा और उसके चेहरे पर एक पल के लिए डर की लहर दौड़ गई। उन्होंने तुरंत त्रिपाठी को पहचान लिया, और अब उनकी हालत पतली हो गई थी।
असलम ने थोड़ी हिचकिचाहट के साथ कहा, "त्रिपाठी सर, आप यहाँ?"
त्रिपाठी ने पान चबाते हुए अपनी गंभीर आवाज़ में कहा, "हमने तुम लोगों से प्यार से कहा था कि चुपचाप बिहार से निकल जाओ। लेकिन लगता है, तुम लोगों को प्यार की भाषा समझ में नहीं आई। इसलिए मेरे बड़े भाई के पास हमारी शिकायत लेकर पहुंच गए?"
इतना सुनते ही असलम और उसके सभी साथी घुटनों पर बैठ गए, उनके माथे पर पसीना साफ झलक रहा था। सबके दिलों में डर बैठ चुका था, और असलम ने हाथ जोड़कर कहा, "भैया जी, हमें माफ कर दीजिए। हम आपके खिलाफ कुछ नहीं कर रहे थे। बस हमारे बॉस का हुक्म था कि उस चोर को मारना जरूरी था, इसलिए ये सब किया।"
त्रिपाठी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "ठीक है, हम तुम्हें एक शर्त पर माफ करेंगे। तुम लोगों को हमारी वफादारी की कसम खानी होगी और जो हम कहेंगे, वही करना होगा।"
असलम और उसके साथियों के चेहरों पर एक अजीब सी दुविधा उभर आई। वे समझ नहीं पा रहे थे कि इस खेल में उनकी जान बचाने की क्या कीमत होगी। त्रिपाठी ने उनकी चुप्पी देखकर कहा, "तो क्या सोचा?"
असलम ने धीरे से पूछा, "तो क्या अब हमें आपके गैंग में शामिल होना होगा?"
त्रिपाठी ने हंसते हुए कहा, "नहीं, तुम लोग वैसे ही रहोगे, Mehta gang में। लेकिन अब से तुम्हारा काम मेरे लिए होगा। तुम हमारे जासूस बनोगे, समझे?"
असलम ने घबराते हुए सिर हिलाया और कहा, "ठीक है, हम आपके लिए काम करने के लिए तैयार हैं।"
त्रिपाठी ने अब और भी सख्त होते हुए कहा, "और सुनो, अगर तुमने मुझे धोखा देने की कोशिश की, तो याद रखना असलम, तुम्हारी गर्लफ्रेंड का नाम ज़रीना है, जो पटेल नगर के पास रहती है, और तुम्हारी माँ का नाम भूमिका, जो शाहदरा में रहती है।" वह हर आदमी की जानकारी विस्तार से बता रहा था, और यह सुनकर असलम और उसके साथी और भी डर गए।
त्रिपाठी ने ठंडे लहजे में कहा, "अगर तुमने हमें धोखा दिया, तो तुम्हारे इन करीबियों की जिंदगी के साथ तुम खेलोगे। समझे?"
असलम और उसके साथी अब पूरी तरह त्रिपाठी के कब्जे में थे। वे हां में सिर हिलाते हुए बोले, "जी, बॉस।"
त्रिपाठी ने एक हल्की मुस्कान दी और कहा, "अब जाओ।" उसने उन्हें जाने दिया, और वे सभी जैसे तैसे उठकर अपनी गाड़ियों में वापस लौटे। उनके चेहरों पर डर और चिंता की गहरी लकीरें थीं।
जैसे ही वे गाड़ियाँ लेकर वहां से चले गए, त्रिपाठी ने अपना फोन निकाला और किसी को कॉल किया।
"हां, बॉस," उसने कहा, "आपके कहे अनुसार, वे लोग बिहार से निकल गए हैं।"
फोन पर कुछ देर बात करने के बाद, उसने कॉल काट दिया। अपनी फॉर्च्यूनर की तरफ बढ़ते हुए त्रिपाठी ने गहरी सांस ली और खुद से कहा, "लगता है, बॉस बाहरी लोगों की इन्वॉल्वमेंट से थोड़ा परेशान हो गए हैं।"
इतना कहकर वह अपनी गाड़ी में बैठा और तेज़ी से वहां से निकल गया।