chapter 6 Tripathi pariwar

शाम का समय था, सूर्य धीरे-धीरे पश्चिम की ओर ढल रहा था। आकाश में लालिमा फैली हुई थी, और एक हल्की ठंडी हवा बह रही थी।घड़ी में साढ़े छह बज रहे थे। घर के आंगन में एक महिला साड़ी पहने हुए, हाथ में एक जलता हुआ पीतल का दीया लिए, संध्या पूजा की प्रक्रिया में व्यस्त थी। यह एक सामान्य शाम की पूजा थी जो घर के आंगन और विभिन्न कोनों में की जाती है।

महिला धीरे-धीरे दीया लेकर घर के विभिन्न कोनों में जाती है। सबसे पहले, वह मुख्य आंगन में खड़ी होकर दीया की लौ को चारों ओर घुमाते हुए पूजा करती है। फिर, वह घर के भीतर अन्य पवित्र स्थानों और कोनों में जाकर, दीया की लौ से प्रत्येक स्थान को शुद्ध करती है। पूजा का यह तरीका आम तौर पर शाम के समय किया जाता है, जिसमें घर के हर हिस्से को पवित्र करने का प्रयास किया जाता है।

वह घर के चारों ओर जाती है, प्रत्येक कमरे और पवित्र स्थान पर पहुंचते हुए, धीरे-धीरे दिया को चारों ओर घुमाते हुए आरती करती है। वह दिया को प्रत्येक कोने, दरवाजे, और पवित्र स्थान के आसपास घुमाती है, ताकि घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे और बुरी शक्तियाँ दूर रहें।

आरती के दौरान, वह अपने साथ एक छोटा सा कपूर का टुकड़ा भी ले जाती है, जो दीपक की लौ के साथ मिलकर धुंआ बनाता है। कपूर की खुशबू और दीपक की रोशनी घर में पवित्रता और शांति का वातावरण बनाती है।

इस प्रक्रिया के बाद, बृजेश ने आरती ली। आम तौर पर, रिचुअल के अंत में सभी लोग आरती लेते हैं, और यह भी एक पारंपरिक तरीका है घर में पवित्रता बनाए रखने का। बृजेश ने औरत से आरती ली, जो उसके सिर के ऊपर से कर दी गई।

इसके बाद वो औरत घर के अंदर चली गई और घर में बने मंदिर के पास दिया रख दिया, मानो यह उसकी दैनिक आदत का हिस्सा हो। दीपक की लौ धीरे-धीरे बुझ रही थी, और घर का वातावरण शांति और पवित्रता से भर गया था।

संध्या पूजा के बाद, बृजेश ने अपने कामों में जुट जाने के लिए तत्परता दिखाई और उसी समय एक फॉर्च्यूनर गाड़ी ने घर के सामने रुकते हुए ध्यान खींचा।

सूरज त्रिपाठी की फॉर्च्यूनर कार, जो अपनी भव्यता और प्रभावशाली उपस्थिति के साथ सड़क पर खड़ी थी, बृजेश के घर के सामने आकर रुकी। सूरज ने कार से बाहर कदम रखा, उसकी चाल में आत्मविश्वास था और उसकी उपस्थिति ने वातावरण को एक नया रूप दे दिया। उसने अपनी पिस्टल को कार के डैशबोर्ड पर ही छोड़ दिया था और बाहर आते ही उसने अपनी काले चश्मे और व्हाइट कुर्ते और ब्लू जींस के साथ छाप छोड़ दी थी।

घर के आंगन में बृजेश अपने परिवार के साथ पूजा से फुर्सत पाकर बैठा हुआ था। सूरज के आने पर बृजेश ने स्वागत किया, "अरे सूरज, आओ बैठो। का हाल बा पटना का?"

सूरज ने शांति से जवाब दिया, "हाल तो सब ठीके बा, भैया। तुम ही बताओ, यहाँ सब कइसन चलत बा?"

बृजेश ने अपनी चिंता जाहिर करते हुए पूछा, "वो लोग जो दिल्ली से आए थे और जिनके फोटो दिखा रहे थे, उ लोग सच में मिलिट्री के लोग थे का?"

सूरज ने हल्के से सिर झुका कर कहा, "नाहीं, उ लोग मिलिट्री के ना रहनी। फोटो में उ लोग मिलिट्री के लगे रहे, लेकिन असल में उ लोग बृजेश को सुपारी देने के लिए थे।"

बृजेश ने सिर scratching करते हुए कहा, "तब त हमके बुझाए में नइखे आ रहल कि तू वो कॉन्ट्रैक्ट के मना कइसे कर देहल। कितना बढ़िया कॉन्ट्रैक्ट रहे और पैसे भी बढ़िया रहे।"

सूरज ने समझाते हुए कहा, "भैया, बात पैसा के नइखे, बात व्यक्तिगत कनेक्शन के बा।"

बृजेश ने गंभीरता से कहा, "ठीक बा, अब त तहार कनेक्शन त तू ही जानत बा।"

सूरज और बृजेश के बीच के इस संवाद ने यह स्पष्ट कर दिया कि उनका निर्णय और कार्य व्यक्तिगत जुड़ाव और संबंधों पर आधारित थे, न कि सिर्फ व्यावसायिक लाभ पर। बृजेश और सूरज के बीच की यह बात चीत बकौल बिहारिया लहजे में हो रही थी, जो उनके पेशेवर और व्यक्तिगत संबंधों को दर्शाती थी।

बृजेश और सूरज बगीचे में आराम से बैठे थे। बिंदिया पूजा से लौटकर बाहर आई, और चाय और नाश्ते की ट्रे लेकर आई। बिंदिया ने सूरज की ओर नाराजगी भरे लहजे में कहा, "अरे, सूरज, तू बड़ी जल्दी घर आ गया?हमको तो लगा था की तू पटना में घर बसा लेगा।तू तो हमेसा घर से दूर ही रहता है, अब कभी-कभी आ भी लिया कर!"

सूरज ने हंसते हुए कहा, "अरे भौजी, काम की भागदौड़ बहुत रहती है। घर आना मुश्किल हो जाता है। आप जानती हैं, बिजनेस की दुनिया भी अजीब होती है।"

बिंदिया ने चिढ़ाते हुए कहा, "ओह, तो तू जैसे नासा का वैज्ञानिक बन गया है, जिसका बिना सारे आविष्कार फेल हो जाएंगे? ऐसे काम में व्यस्त रहता है कि घर का हाल भी नहीं पूछता!"

सूरज ने हंसते हुए जवाब दिया, "अरे भाभी, आप तो अंतर्यामी हैं! सच में, नासा वाले हमें रिक्रूट करने आए थे, लेकिन हमने मना कर दिया। वजह ये थी कि अगर हम अमेरिका चले जाते, तो फिर आपको अकेला छोड़ना पड़ता। तो हम एक छोटा सा बलिदान कर दिए।"

बृजेश हंसते हुए बोला, "सच में, सूरज की बातें सुनकर हंसी आती है। वह हमेशा बड़ी-बड़ी बातें करता है।"

बिंदिया ने मजाक में कहा, "हां, और उन नासा के लोगों को दो-चार आइडिया देकर भेज देते। फिर देखिए, क्या होता है!"

सूरज ने हंसते हुए कहा, "भाभी, आप तो फिर से सही गेस कर लीं। आप सच में अंतर्दृष्टि वाली हैं।हम उनके मन करने के बाद कुछ कुछ आइडिया दिए थे। वैसे, हमारी नटखट परी कहाँ है?"

बिंदिया ने हंसते हुए जवाब दिया, "वह अपनी सहेलियों के साथ होगी कहीं। अगर घर मैं रुकती तो क्या ही बात होती?"

सूरज ने हंसते हुए कहा, "मतलब, बिना सिक्योरिटी के बाहर भेज दिया?"

बृजेश ने कहा, "अरे नहीं, छुटकन ऊ तो हमारे दो आदमी के साथ ही बाहर गई है। चिंता की कोई बात नहीं है।"

बिंदिया ने सिर झुका कर कहा, "देखो, यही सब करने की वजह से वह बिगड़ गई है। पूरा छपरा में उसकी उधम मचाते हुए देखा जाता है। अभी हाल ही में वह पास के सिनेमा हॉल में गई थी और पूरा हॉल खाली करवा दिया। और जब भी फिल्म देखने जाती है यही करती है।"

बृजेश ने रॉबीली के साथ कहा, "अरे त्रिपाठी की लड़की है,इतना तो बनता है।"

तभी सूरज ने गंभीरता से कहा, "नही भैया यि सब खतरे से खाली नही है। हमारे दुश्मन कभी भी कुछ भी कर सकते हैं। उसका बाहर जाना थोड़ा का करवाइए।"

बिंदिया ने सहमति में कहा, "देखा सूरज भी यही कह रहा है वो लड़की बिगड़ गई है उसका बाहर एसे मतरगस्ती करना बंद करवा दीजिए।"

सुकन्या अंदर आते हुए चिढ़ते हुए बोली, "अच्छा, तो हमारी यहां भी शिकायत हो रही है! क्या तुमने ये सब कुछ लिखा ही नहीं?"

उसका स्वर स्पष्ट रूप से नाराजगी और उदासी से भरा था। उसकी आंखों में एक तीखी चमक थी, जो उसके गुस्से को और भी स्पष्ट कर रही थी। सुकन्या ने जींस और सफेद टॉप के ऊपर एक काले लेदर जैकेट डाल रखी थी, जो उसकी बातों की गंभीरता को और भी बढ़ा रही थी। उसकी यह लुक उसे एक तरह की स्वतंत्रता और आत्मविश्वास का प्रतीक बना रही थी।

बिंदिया ने उसकी इस चिढ़ को हल्के में लेते हुए कहा, "अच्छा तो महारानी अपने महल में प्रवेश कर चुकी है तो अब आ ही चुकी है तो पहले हांथ मुंह धो लीजिए।"

बृजेश ने हंसते हुए कहा, "अरे सुकन्या बेटा देखो तो कोन आया है!"

सुकन्या, जो बृजेश और बिंदिया की 16 साल की बेटी थी, ने अभी हाल ही में मैट्रिक का एग्जाम दिया था। उसकी शैतानी और ऊधम की आदतें बेशक सभी को परेशान करती थीं, लेकिन पढ़ाई के मामले में वह एक सितारे की तरह चमकती थी। हर साल अपनी क्लास में टॉप करना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी, बल्कि यह उसकी मेहनत और लगन का ही परिणाम था।

सुकन्या का आना और उसकी तीखी बातें, घर के माहौल में एक नई ऊर्जा भर रही थीं। बिंदिया और बृजेश के लिए, उनकी बेटी की शैतानी और असामान्य आदतें कभी-कभी सिरदर्द का कारण बनती थीं, लेकिन उसकी पढ़ाई में निरंतर सफलता ने उन्हें हमेशा गर्व से भर देती थी।