Chapter 11 Khanna pariwar

करिश्मा और अभिमन्यु गाड़ी से उतरे। सामने जो घर था, वह किसी आलीशान महल जैसा तो नहीं था, लेकिन छोटा और सुंदर बंगला था। सफेद रंग से रंगा हुआ यह बंगला बड़ा नहीं था, लेकिन बहुत सलीके से सजाया हुआ था। इसके सामने एक छोटा सा बगीचा था जहाँ हरे-भरे पौधे लगे हुए थे। बाग के एक कोने में गुलाब के फूल खिले थे, जिनकी खुशबू हल्की हवा के साथ चारों ओर फैल रही थी। बगीचे के पास दो पार्किंग स्पेस थीं, जिनमें से एक पर एक चमचमाती हुई ऑडी कार खड़ी थी। दूसरी जगह खाली थी, लेकिन यहां अक्सर एक और गाड़ी खड़ी रहती थी, जो शायद फिलहाल बाहर थी।

जैसे ही अभिमन्यु और करिश्मा गाड़ी से उतरे, मुख्य द्वार के पास खड़े गार्ड ने उन्हें देखा और तुरंत पहचान लिया। वो गार्ड, जिसका नाम बलवंत था, लगभग 50 साल का बुजुर्ग आदमी था, जो कई सालों से इस घर की रखवाली कर रहा था। उसके सफेद होते बाल और हल्की सी सफेद दाढ़ी उसके चेहरे की उम्र को दर्शाते थे। बलवंत ने तुरंत दरवाजा खोला और करिश्मा के पास आकर उनका सूटकेस उठाने लगा।

करिश्मा ने उसे मना करते हुए कहा, "अरे, बलवंत काका! रहने दीजिए, आप परेशान मत होइए।"

बलवंत ने अपनी देहाती बोली में मुस्कुराते हुए कहा, "अरे बिटिया, हमका उठावे द, अभी इन हड्डियन में बहुत दम बा।"

अभिमन्यु, जो दोनों की बातें सुन रहा था, ने चुटकी लेते हुए कहा, "अरे बलवंत काका, पहले मेरी तो कभी इतनी सेवा नहीं की आपने!"

बलवंत ने हंसते हुए जवाब दिया, "तुम्हारी सेवा हम क्यों करें? हम तो सिर्फ करिश्मा बिटिया और उनके परिवार के लिए काम करते हैं।"

अभिमन्यु ने देखा कि करिश्मा उसे अनसुना करते हुए अंदर जा रही थी। उसने धीरे से बलवंत से कहा, "अरे काका, हम भी तो इस घर के होने वाले दामाद हैं।"

बलवंत ने उसे घूरते हुए देखा, लेकिन उससे पहले कि कुछ और कह पाता, वह जल्दी से करिश्मा के पास पहुंच गया और कहा, "अरे, मैं हूं ना," यह कहते हुए उसने करिश्मा का सूटकेस उठा लिया। तभी करिश्मा ने अपने कंधे से पर्स उतारकर अभिमन्यु के गले में लटका दिया और बिना कुछ कहे कैटवॉक करते हुए आगे बढ़ गई।

अभिमन्यु ने मन ही मन सोचा, "पता नहीं इसे ऐसा बनाने में किसका हाथ है। पहले कितनी अच्छी थी, लेकिन अब तो बस एटीट्यूड दिखा रही है।"

जैसे ही अभिमन्यु ने अंदर जाने के लिए कदम बढ़ाए, बलवंत काका ने उसका रास्ता रोकते हुए पूछा, "तुमने अभी गेट पर क्या कहा था?"

अभिमन्यु ने हंसते हुए कहा, "कुछ नहीं काका, बस मजाक कर रहा था।"

बलवंत ने गंभीरता से कहा, "अरे मजाक क्यों कर रहे हो, शादी कर लो करिश्मा बिटिया से। इतनी अच्छी लड़की है, फिर मैं भी तुम्हें यहां आने से कभी भी नहीं रोकूंगा और ना ही कोई सवाल पूछूंगा।"

अभिमन्यु ने मजाकिया लहजे में कहा, "रहने दो काका, अभी से उसने मेरी ये हालत कर दी है। शादी के बाद उसके नखरे कौन झेलेगा? इसके लिए तो कोई ऐसा चाहिए जिसे इसे सहने की ताकत हो।"

इस बीच, करिश्मा बिना कोई आवाज किए किचन तक पहुंच चुकी थी। उसने देखा कि उसकी मां, जो लगभग 35-40 साल की बेहद खूबसूरत महिला थीं, खाना बना रही थीं। करिश्मा की शक्ल उनसे काफी मिलती-जुलती थी। करिश्मा की मां ने साड़ी पहनी हुई थी और खाना बनाते समय उन्होंने एप्रन पहन रखा था।

अचानक उसकी मां ने बिना पीछे देखे कहा, "अपने जूते उतारो और हाथ-मुंह धोकर डाइनिंग टेबल पर बैठो, मैं खाना लेकर आती हूं।"

करिश्मा ने आश्चर्य में पूछा, "माँ, आपको कैसे पता चला कि मैं आई हूं?"

करिश्मा की मां ने मुस्कुराते हुए कहा, "क्योंकि मैं तुम्हारी मां हूं।"

करिश्मा ने अपनी मां को गले लगा लिया। उसकी मां ने प्यार से कहा, "ठीक है, अब हटो, नहीं तो तेल छिटक कर गिर जाएगा।"

करिश्मा उनसे दूर हो गई, फिर उसकी मां ने पूछा, "तुम्हारे पापा कहां हैं?"

करिश्मा ने नाराजगी से कहा, "पता नहीं, मुझे लेने भी नहीं आए और फोन भी पता नहीं कब से बिजी आ रहा है।"

तभी अचानक करिश्मा का फोन बजा। स्क्रीन पर उसके पापा का नाम चमक रहा था। उसने फोन उठाया तो उसके पापा ने कहा, "मैं एयरपोर्ट पर हूं, तुम कहीं नजर नहीं आ रही, कहां हो?"

करिश्मा ने कहा, "मैं तो अब घर आ गई हूं।"

उसके पापा ने जवाब दिया, "ठीक है, मैं घर पर मिलता हूं।" इतना कहकर उन्होंने फोन काट दिया।

करिश्मा ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, "वो एयरपोर्ट पर हैं।" तभी अभिमन्यु उसके सामान के साथ अंदर आता हुआ बोला, "तुमने बेवजह उन्हें परेशान किया, पता है ना कि वो कितने बिजी रहते हैं।"

करिश्मा की मां ने कहा, "अच्छा, तुम लोग हाथ धो लो, मैं खाना लगाती हूं।"

अभिमन्यु और करिश्मा हाथ धोकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गए और कुछ देर बाद खाना खाने लगे।

खाना खत्म होने के बाद करिश्मा अपना सामान लेकर अपने कमरे में चली गई और सबकुछ व्यवस्थित करने लगी। नीचे अभिमन्यु और उसकी मां आपस में बातचीत कर रहे थे। थोड़ी देर बाद, करिश्मा नीचे आई और कहा, "चलो फिर।"

उसकी मां ने हैरानी से कहा, "अभी तो आई हो, थोड़ा आराम कर लो। आते ही कहां जाने लगी? मुझे लगा अब तुम सुधर चुकी हो।"

करिश्मा ने हंसते हुए कहा, "अरे मां, मेरी सहेलियां भी आई हुई हैं दिल्ली से, वे पैलेस में परफॉर्म करने वाली हैं और शो आज का ही है।"

उसकी मां ने कहा, "ठीक है, लेकिन अपना ध्यान रखना और घर जल्दी आ जाना।"

करिश्मा ने कहा, "आने में थोड़ा लेट हो सकता है।"

उसकी मां ने पूछा, "कितना लेट?"

करिश्मा ने हंसते हुए उसकी कान में कुछ कहा। उसकी मां ने फिर अभिमन्यु की तरफ देखा और कहा, "ठीक है, लेकिन एक बजे से पहले आ जाना।"

अभिमन्यु ने हैरानी से कहा, "एक बजे मतलब हम लोग क्या इतनी देर वहां रुकने वाले हैं?"

करिश्मा ने हंसते हुए कहा, "अरे नहीं, नहीं। तुम्हें मेरी सहेलियों से मिलवाना भी तो है, तो थोड़ा सा लेट तो होगा ही।"

अभिमन्यु ने अनमने से कहा, "हां, लेकिन इतना लेट?"

करिश्मा ने मुस्कुराते हुए पूछा, "तुम चल रहे हो या नहीं?"

अभिमन्यु ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "हां, हां, चल तो रहा हूं।"

करिश्मा ने कहा, "अच्छा, 11 बजे तक हम वहां से निकल जाएंगे, ठीक है? अब तो चल सकते हो?"

अभिमन्यु ने जवाब दिया, "ठीक है।"

करिश्मा और उसकी मां दोनों यह सुनकर मुस्कुरा दिए, लेकिन अभिमन्यु को कुछ शक हुआ। फिर भी उसने चुप रहना ही बेहतर समझा। दोनों बाहर जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी अचानक दरवाजे पर किसी की आहट हुई। दरवाजा खुला और अंदर एक शख्स खड़ा था। यह कोई और नहीं बल्कि डीसीपी खन्ना थे।

डीसीपी खन्ना अंदर आते ही अभिमन्यु को देखकर बोले, "अरे अभिमन्यु, तुम भी यहां हो!"

करिश्मा ने मजाकिया लहजे में कहा, "तो आखिरकार आप ड्यूटी से फ्री हो ही गए?"

खन्ना ने जवाब दिया, "अभी कहां, बस कुछ घंटों की छुट्टी ली थी। वैसे तुम्हें क्या, अभिमन्यु ने पिक किया?"

करिश्मा ने कहा, "हां, वही आया था।"

अभिमन्यु ने मुस्कुराते हुए कहा, "हैलो अंकल।"

डीसीपी खन्ना ने मुस्कराते हुए करिश्मा की ओर देखा और पूछा, "तुम लोग कहीं जा रहे हो क्या?"

करिश्मा ने जवाब दिया, "हां डैड, मेरी कुछ सहेलियां एक कंपटीशन में भाग ले रही हैं, मैं बस उनका हौसला बढ़ाने जा रही हूं।"

डीसीपी खन्ना ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा, "अच्छा है, मैं भी उसी जगह जाने वाला था। वहां की सिक्योरिटी देखनी है, तुम लोग भी साथ में ही चलना।"

करिश्मा की मां जो पास ही किचन में कुछ काम कर रही थीं, उन्होंने कहा, "आप पहले हाथ-मुँह धोइए, मैं तब तक खाना लगा देती हूं।"

डीसीपी खन्ना ने थोड़ी देर में हाथ-मुँह धोकर आ गए और डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाने लगे। खाने के दौरान करिश्मा ने बातों-बातों में पूछ लिया, "वैसे डैड, आप इतने बिजी कहाँ हो गए थे कि मुझे लेने नहीं आ पाए?"

डीसीपी खन्ना ने हल्का-सा हंसते हुए कहा, "कुछ खास नहीं, बस पिछली रात एक क्लब में मारपीट हो गई थी।"

करिश्मा ने चौंकते हुए कहा, "कमाल है, इतने छोटे-मोटे केस भी आपको देखने पड़ते हैं?"

डीसीपी खन्ना ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "नहीं, ये कोई छोटा मामला नहीं था। ये केस थोड़ा हाई-प्रोफाइल है। जिस लड़के की पिटाई हुई है, वो किसी बड़े बाप का बेटा है। अब उसका बाप हमें तंग कर रहा है, तो मुझे खुद ही केस देखना पड़ा।"

करिश्मा ने हंसते हुए तंज कसा, "और उन्हीं के चक्कर में आप मुझे लेने नहीं आ पाए।" इतना कहकर उसने थोड़ा मुँह फुला लिया, जैसे वह नाराज़ हो।

डीसीपी खन्ना ने अपनी बेटी की मासूमियत पर हंसते हुए कहा, "सॉरी बेटा, मेरा कोई इरादा नहीं था तुम्हें इंतजार कराने का।"

करिश्मा ने थोड़ी देर तक नखरे दिखाने के बाद कहा, "ठीक है, लेकिन आपको एक शर्त पर माफ करूंगी।"

डीसीपी खन्ना ने उसे हैरानी से देखा और पूछा, "कैसी शर्त?"

करिश्मा ने चुटकी लेते हुए कहा, "यही कि कॉन्सर्ट के दौरान या उसके बाद आप मुझे डिस्टर्ब नहीं करोगे।"

डीसीपी खन्ना ने हंसते हुए जवाब दिया, "ठीक है, मुझे क्या पड़ी है। मुझे तो बस सिक्योरिटी देखनी है।"

करिश्मा मुस्कराई और माहौल फिर से हल्का हो गया।