कॉन्सर्ट का माहौल अपने चरम पर था। रंग-बिरंगी लाइट्स और धमाकेदार म्यूजिक के बीच लोग पूरी तरह से परफॉर्मेंस का लुत्फ उठा रहे थे। स्टेज पर अलग-अलग राज्यों और संस्कृतियों के सिंगर्स अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे थे, और दर्शकों की तालियों और हर्षध्वनि से पूरा इलाका गूंज उठा था। लेकिन इस शोर-शराबे के बीच नीचे गहरे अंधेरे में कुछ ऐसा हो रहा था, जिससे कोई भी अनजान था।
कॉन्सर्ट के इस विशाल मैदान के ठीक नीचे एक गुप्त तहखाना था, जिसे बहुत ही सावधानी से छिपाकर रखा गया था। उस तहखाने के प्रवेश द्वार को लकड़ी के फट्टों से ढक दिया गया था, ताकि उसकी मौजूदगी का कोई अंदाजा भी न लगा सके। पांच लोग, जो काले रंग का लबादा ओढ़े हुए थे, चुपचाप वहां दाखिल हुए। इन लोगों की चाल में एक अजीब सी खामोशी थी, जैसे उन्हें किसी बात का डर न हो, और उनके चेहरे गहरे रहस्य में डूबे हुए थे।
इनमें से जो आदमी सबसे आगे था, उसने एक मोटी उंगली से फर्श की तरफ इशारा किया। "फट्टा हटाओ," उसने अपनी गंभीर आवाज में कहा। उसके पीछे खड़े दो लोगों ने तुरंत फट्टा हटाना शुरू किया, और कुछ ही पल में, वे लकड़ी के तख्ते हटाकर फर्श की मिट्टी तक पहुंच गए।
"यहां तो कुछ भी नहीं है," एक आदमी ने हैरान होकर कहा, जैसे वह किसी अदृश्य चीज़ की तलाश में हो।
लेकिन सामने खड़े आदमी ने ठहाका लगाते हुए कहा, "अक्सर जो दिखता है, वो होता नहीं है, और जो होता है, वो दिखता नहीं।" यह कहकर उसने एक कुदाल निकाली और फर्श की मिट्टी को हटाने लगा। पांच मिनट की मेहनत के बाद, मिट्टी के नीचे से लोहे का एक भारी दरवाजा दिखाई दिया, जिसमें एक कीहोल (चाबी लगाने की जगह) भी थी।
आदमी ने अपनी जेब से एक पुरानी, जंग लगी चाबी निकाली और दरवाजे के ताले में लगाकर उसे घुमा दिया। एक धीमी आवाज के साथ दरवाजा नीचे की ओर खुल गया, और उसके नीचे गहरी गुफा जैसी जगह नजर आई। "मेरे पीछे आओ," उसने कहा, और वह तुरंत गहरे अंधकार में कूद गया। बाकी लोग थोड़ी देर एक-दूसरे की तरफ देखने लगे, फिर वे भी उसके पीछे-पीछे उस गहरी गुफा में कूद गए।
गुफा के भीतर का वातावरण बिल्कुल भिन्न था। यह जगह धरती के नीचे थी, लेकिन वहां अंधेरा नहीं था। दीवारों से अजीब सी चमकदार रौशनी आ रही थी, जिसने पूरी गुफा को हल्की रोशनी में नहला दिया था। इस जगह की रहस्यमयी प्रकृति ने वहां मौजूद लोगों के दिलों में एक अजीब सी घबराहट पैदा कर दी थी, फिर भी वे आगे बढ़ते रहे।
कुछ ही देर बाद वे एक छोटे से चैंबर में पहुंचे, जहां पर 15 फीट ऊंची एक डरावनी मूर्ति खड़ी थी। यह मूर्ति किसी इंसानी आकृति की थी, लेकिन इसके सिर पर बकरे की तरह दो बड़े सींग थे, और इसकी एक नुकीली पूंछ थी, जो तीर की तरह दिखाई देती थी। मूर्ति का चेहरा खुला हुआ था, जैसे वह आसमान की तरफ चीख रहा हो। उसके हाथ-पैर के नाखून बड़े और नुकीले थे, और उसका पूरा शरीर बेहद डरावना और भयावह लग रहा था।
जो लोग काले लबादे ओढ़े हुए थे, वे सभी मूर्ति के सामने घुटनों के बल बैठ गए। उनमें से जो आदमी बीच में बैठा था, उसने अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा, "हे ईश्वर, आप हमारे भक्तों पर हमेशा कृपा बनाए रखें। हमें इतनी शक्ति दें कि हम आपको इस दुनिया में ला सकें और आप दुनिया पर राज कर सकें।"
तभी एक आदमी ने हल्के स्वर में पूछा, "क्या सच में ईश्वर पृथ्वी पर आएंगे?"
मध्य में बैठे आदमी की आंखों में गुस्सा चमक उठा। उसने अपनी आवाज को कठोर बनाते हुए कहा, "ईश्वर पर संदेह करना अपराध है! तुम्हें इसका दंड मिलेगा!"
वह आदमी डरते हुए बोला, "माफ करना, मैं बस यह जानना चाहता था..."
मध्य में बैठे आदमी ने उसकी बात को अनसुना करते हुए कहा, "हमने इस दिन का बहुत समय से इंतजार किया है। ऊपर हो रहे कॉन्सर्ट की वजह से यहां भारी भीड़ जमा हो गई है। अच्छा हुआ कि हमने इस जगह को सिंह फैमिली को सौंप दिया था। जो भीड़ हम सालों से इकट्ठा नहीं कर पा रहे थे, उन्होंने कुछ ही सालों में इतने शोज करवा दिए कि उनकी सकारात्मक ऊर्जा इस मूर्ति ने सोख ली है। आज, स्वयं ईश्वर पृथ्वी पर कदम रखने वाले हैं।"
दूसरी तरफ, ऊपर कॉन्सर्ट में सबकुछ सामान्य लग रहा था। स्टेज पर कलाकार अपने प्रदर्शन में मसरूफ थे, और दर्शक पूरी तरह से उनके जादुई संगीत में डूबे हुए थे। लेकिन भीड़ में घूम रहे वे कातिल अपना काम कर रहे थे। अभिमन्यु ने उन पांचों संदिग्धों को पहचान लिया था और अब पुलिस भी उन्हें पकड़ने के लिए पूरी तरह तैयार थी।
कातिलों में से एक ने अपने साथी से हल्की आवाज में कहा, "तुम्हें क्या लगता है, क्या कहानियां सच होंगी? क्या सच में ईश्वर पृथ्वी पर आएंगे?"
दूसरे आदमी ने कड़े शब्दों में कहा, "गलती से भी ईश्वर पर संदेह मत करना। वो हमारे ईश्वर हैं, जो इस दुनिया पर राज करेंगे, और हम उनके वफादार सैनिक हैं। हमारा काम उन्हें इस लोक में लाना है।"
पहले आदमी ने फिर से पूछा, "लेकिन ये सब होगा कैसे?"
दूसरे ने धीरे से कहा, "ईश्वर पहले से ही पृथ्वी पर हैं। नीचे मंदिर में जो मूर्ति है, उसमें एक लाल रंग की मणि है। उस मणि के भीतर ही ईश्वर कैद हैं। जो लोग ऊपर देख रहे हैं, उनकी सकारात्मक ऊर्जा मूर्ति के अंदर स्थित मणि में जा रही है। अब बस एक छोटे से अनुष्ठान की जरूरत है, और फिर ईश्वर आजाद होंगे और इस दुनिया पर राज करेंगे।"
तभी दो पुलिस अधिकारी उनके पास आए और उन्हें भीड़ से बाहर ले गए।
उसी समय, एक और अधिकारी तीसरे कातिल की ओर बढ़ रहा था। उसके ईयरपीस से आवाज आई, "सीधे चलते जाओ, दाहिने हाथ पर जो वेटर की ड्रेस में आदमी है, वही टारगेट है।" अधिकारी ने उस आदमी के कंधे पर हाथ रखा और तुरंत उसकी बंदूक छीन ली। फिर उसे भी भीड़ से दूर ले जाया गया। कुछ दर्शकों ने इसे नोटिस किया, लेकिन कुछ ही देर बाद सब लोग फिर से शो में मशगूल हो गए।
कुछ ही मिनटों में उन पांचों कातिलों को गिरफ्तार कर लिया गया।
अब वे सभी एक ही जगह पर बैठे थे। डीसीपी खन्ना उनके सामने खड़े थे। उनके साथ कई पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे, और अभिमन्यु उनके बीच खड़ा था, उसके हाथ में पिस्तौल थी। अभिमन्यु के कपड़ों पर खून के हल्के छींटे थे, जो इस बात का सबूत थे कि हालात कितने गंभीर थे।
बंजारा पैलेस की खाली-खाली दीवारें और सजावट, बाहर हो रही हलचल से बिलकुल विपरीत महसूस हो रही थीं। डीसीपी खन्ना, अभिमन्यु और अन्य पुलिसकर्मी उन पांच लोगों को घेरे हुए थे, जिन्हें कुछ समय पहले ही हिरासत में लिया गया था। उस कमरे में छाया सा मौन छाया हुआ था, लेकिन वातावरण में अनकही बातें तैर रही थीं।
तभी दरवाजे से आवाज़ आई, और दिलजीत अपने पिता संदीप सिंह के साथ अंदर आए। संदीप एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति था, जिसके चेहरे पर वर्षों की मेहनत और धूर्तता साफ झलक रही थी। उसकी चाल में आत्मविश्वास था, लेकिन आंखों में हल्की चिंता भी थी।
डीसीपी खन्ना ने बिना देरी किए सीधे सवाल किया, "Mr. Singh, आप ज़रा बताएंगे कि ये लोग आपके इस बंजारा पैलेस में हथियार लेकर क्यों घूम रहे हैं?"
संदीप ने उन आदमियों की ओर देखा और थोड़ी हिचकिचाहट के साथ जवाब दिया, "ये लोग तो हमारे यहाँ काम करते हैं।"
डीसीपी खन्ना की आंखों में एक शंका थी, "हाँ, इसलिए तो मैं पूछ रहा हूँ कि आखिर ये लोग हथियार लेकर यहाँ कैसे घूम रहे हैं?"
दिलजीत, जो अपने पिता के बगल में खड़ा था, उसने धीरे-धीरे बोलना शुरू किया, "सर, असल में जब हमने बंजारा पैलेस खरीदा था, ये लोग पहले से यहाँ काम कर रहे थे। यहाँ तक कि यहाँ का जो मैनेजर है, वो भी पुराना स्टाफ है। हमने बस कुछ और लोगों को रिक्रूट किया था, लेकिन ये वही लोग हैं जो पहले से काम कर रहे थे। कभी भी हमें इन पर शक करने का कोई कारण नहीं मिला, इसलिए हमने कभी नहीं सोचा कि ये कुछ गलत कर सकते हैं।"
अभिमन्यु, जो पूरे समय ध्यान से उन लोगों की हरकतें देख रहा था, धीरे से आगे बढ़ा और एक आदमी के सामने जाकर खड़ा हो गया। उसकी आँखों में एक तीव्र चमक थी। "मुझे ये आम लोग नहीं लगते," उसने तीखी आवाज़ में कहा। फिर उसने उस आदमी की ओर सीधा सवाल दागा, "तो बताओ कि आखिर तुम्हारा प्लान क्या था और तुम लोग यहाँ करने क्या आए थे?"
उस आदमी ने अभिमन्यु की बात सुनकर पहले हल्की मुस्कान दी और फिर अचानक ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा। उसकी हंसी कमरे में गूंज उठी, और वहाँ खड़े सभी लोग थोड़ी देर के लिए स्तब्ध हो गए। वह हंसते हुए बोला, "बस थोड़ी देर इंतजार करो, तुम्हें सब कुछ पता चल जाएगा।"
अभिमन्यु का चेहरा गंभीर हो गया। उसने उस आदमी को शांत करने की कोशिश की, लेकिन वह फिर से हंसी में डूब गया, मानो उसके पास कोई गहरा राज़ हो जिसे वो सबके सामने लाने से पहले मज़ा ले रहा हो।
अचानक कमरे का वातावरण भारी हो गया। सभी की नज़रें उस आदमी पर थीं, जो अब धीरे-धीरे अपने आप में बड़बड़ा रहा था, "वो आ रहे हैं… वो आ रहे हैं... हमें तैयार रहना है…।"
डीसीपी खन्ना ने अपनी आँखें संदीप सिंह पर टिकाई, लेकिन संदीप के चेहरे पर अब भी वह चिर-परिचित असमंजसता थी। दिलजीत, जो अपने पिता के पास खड़ा था, उसने भी घबराहट भरी निगाहों से उन आदमियों की ओर देखा, मानो वह खुद भी नहीं जानता था कि आगे क्या होने वाला है।