अंधेरा धीरे-धीरे बढ़ रहा था, और कमरे में मौजूद हर शख्स के दिल में एक अजीब-सी बेचैनी थी। कमरे के अंदर का माहौल काफी तनावपूर्ण हो चुका था। चारों ओर फैले हुए धुंधले रोशनी के बीच कुछ खुफिया बातें हो रही थीं, जिनमें 'ईश्वर' का जिक्र बार-बार हो रहा था। उस रहस्यमयी माहौल में ही अभिमन्यु ने उन लोगों की बातों को सुनकर आश्चर्य से पूछा, "कौन आ रहे हैं?" उसकी आवाज में जिज्ञासा और एक हल्की घबराहट थी।
उसी समय, सामने बैठे एक आदमी ने अचानक अजीब तरीके से हंसते हुए कहा, "ईश्वर, ईश्वर आ रहे हैं!" उसकी हंसी कमरे में गूंज उठी, जैसे वह खुद ही अपने कहे हुए शब्दों का मजाक उड़ा रहा हो। लेकिन फिर उसकी हंसी और तीव्र हो गई, और वह बोल पड़ा, "वो इस दुनिया पर राज करने वापस आ रहे हैं!"
अभिमन्यु ने एक कदम पीछे हटते हुए धीरे से बुदबुदाया, "लगता है इन्होंने कोई अत्यंत नशीला पदार्थ ग्रहण किया है।" उसकी आवाज में अविश्वास और हल्का डर था।
दिलजीत, जो पास ही खड़ा था, ने तुरंत पूछा, "मतलब?"
डीसीपी खन्ना, जो पहले ही इन बातों से चिढ़ चुका था, ने तंज कसते हुए कहा, "मतलब कि ये लोग नशे में हैं, इसलिए इतनी अजीब बात कर रहे हैं।"
लेकिन उस अजीब आदमी ने फिर से अपनी तेज हंसी जारी रखते हुए कहा, "तुम नास्तिक लोग... तुम लोग अभी भी ईश्वर की शक्ति का अंदाजा नहीं लगा सकते! वो आज ही अपनी कैद से आज़ाद होने वाले हैं!" उसकी बातें और भी अजीब हो रही थीं, जैसे कि वह किसी गहरे रहस्य का पर्दाफाश कर रहा हो।
डीसीपी खन्ना का चेहरा क्रोध से लाल हो गया। उसने उस आदमी की ओर कड़ी नजर से देखते हुए कहा, "अपनी ये बकवास बंद करो और साफ-साफ बताओ, तुम्हारा असली प्लान क्या है?"
लेकिन अभिमन्यु, जो अब उस रहस्य से और भी प्रभावित हो चुका था, ने पूछा, "किस कैद से?" उसकी आवाज में साफ जिज्ञासा थी, जैसे वह हर एक शब्द की गहराई को समझने की कोशिश कर रहा हो।
वो आदमी अपनी अजीब मुस्कान के साथ बोला, "ईश्वर नीचे बेसमेंट में सालों से कैद हैं।"
इस जवाब ने पूरे कमरे में एक ठंडक भर दी। सबने एक साथ संदीप की ओर देखा, जो घबराते हुए बोला, "मुझे नहीं पता कि ये लोग किस बेसमेंट की बात कर रहे हैं!" उसकी आवाज में हल्की सी झिझक थी, जैसे वह खुद ही इस बात पर यकीन नहीं कर रहा था।
वो आदमी और जोर से हंसते हुए बोला, "हम उन्हें ही आज़ाद करने वाले हैं। बेसमेंट में जाने का रास्ता कमरे नंबर 13 से होकर जाता है!"
उसकी बात सुनते ही उसके पास बैठे दूसरे आदमी ने उसे डांटते हुए कहा, "तुम इन्हें सबकुछ क्यों बता रहे हो?"
लेकिन वो आदमी अब बेकाबू हंसी हंसते हुए बोला, "अरे, अब तक तो उनका अनुष्ठान पूरा होने वाला होगा! जब तक ये लोग नीचे पहुंचेंगे, तब तक ईश्वर आज़ाद हो जाएंगे!"
अब अभिमन्यु के चेहरे पर एक गहरी सोच की लकीरें उभर आई थीं। उसने तुरंत कहा, "एक मिनट... ये तो वही इल्लुमिनाटी टीम का ग्रीन रूम है न?" उसने थमते हुए कहा, "इल्लुमिनाटी... क्या ये वही इल्लुमिनाटी है?" उसकी आवाज में हल्की सी हैरानी और अविश्वास था।
उसकी बात सुनकर वो आदमी और उसका साथी हंसने लगे, मानो उन्होंने किसी मजाकिया बात पर हंसी उड़ाई हो।
डीसीपी खन्ना ने अब चिढ़ते हुए पूछा, "कौन क्या? ये तुम किस बारे में बात कर रहे हो?"
अभिमन्यु ने गंभीर होते हुए कहा, "इल्लुमिनाटी कहा जाता है कि ये एक रहस्यमयी संगठन है जो शैतान को अपनी आत्मा बेच देते हैं ताकि जल्दी तरक्की पा सकें। और फिर शैतान के गुलाम बन जाते हैं और उसे ही अपना ईश्वर मानते हैं। पर मुझे लगा ये सब अफवाह है और मनगढ़ंत कहानियाँ हैं।"
वो आदमी गंभीर होते हुए बोला, "बेशक, हम सच में हैं!"
अभिमन्यु अब पूरी तरह से उनकी बातों से प्रभावित नहीं हो रहा था, उसने चिढ़ते हुए मजाक में कहा, "अच्छा, अगर तुम सच में इल्लुमिनाटी के सदस्य हो, तो तुम शोहरत कमाने और अमीर क्यों नहीं हो? यहां हमारे सामने मुजरिम बनकर क्यों बैठे हो?"
वो आदमी अब गंभीर होते हुए बोला, "ज़रूरी नहीं कि हर कोई नाम और शोहरत के लिए उन्हें अपना ईश्वर चुने। वो हर एक इच्छा पूरी कर सकते हैं। तुम्हारे इस मनगढ़ंत ईश्वर की तरह नहीं, जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है! मैं तुम्हें मौका देता हूं, हमारे ईश्वर की शरण में आ जाओ। वो बहुत जल्द पृथ्वी पर आने वाले हैं और उन्हें दुनिया पर राज करने के लिए कुछ ताकतवर सिपाहियों की जरूरत पड़ेगी।"
अभिमन्यु अब इस बहस से तंग आ चुका था। उसने तुरंत बाहर निकलते हुए कहा, "चलो देखते हैं कि बेसमेंट में ये लोग क्या खुराफात कर रहे हैं।"
डीसीपी खन्ना ने उसे रोकते हुए कहा, "तुम कहीं नहीं जा रहे। वहाँ खतरा हो सकता है, उनके पास भी हथियार होंगे।"
अभिमन्यु ने बिना किसी हिचक के कहा, "ठीक है, आप लोग आगे रहिए, अगर कोई खतरा रहा तो मैं पीछे हट जाऊंगा।"
डीसीपी खन्ना ने कुछ पुलिस अधिकारियों को उन पाँचों कैदियों पर नज़र रखने के लिए तैनात किया और फिर कुछ पुलिस अधिकारियों के साथ कमरे नंबर 13 की ओर बढ़े। उनके पीछे-पीछे अभिमन्यु, दिलजीत और संदीप भी चल दिए।
जैसे ही डीसीपी खन्ना और अभिमन्यु कमरे नंबर 13 की तरफ बढ़े, वहाँ का माहौल और भी घना और असहज हो गया। कमरे का दरवाजा खोलते ही उनके सामने एक खाली, पर रहस्यमयी कमरा था, वहां पर टीम का एक भी मेंबर नही था जिन्होंने इस कॉन्सर्ट में पार्ट लिया था और सबसे पहले परफॉर्म किया था। वहां था तो सिर्फ कुछ कपड़े, मेकअप का सामान, और एक काले कपड़े का लंबा चोगा पड़ा हुआ था। अभिमन्यु ने उस काले चोगे को उठाया और उसकी पीठ पर बनी हुई आकृति को गौर से देखा। यह आकृति एक त्रिकोण के अंदर बनी हुई एक खुली हुई आँख की थी—जो इल्युमिनाटी का प्रतीक था।
अभिमन्यु ने धीमे स्वर में कहा, "यह तो इल्युमिनाटी का चिन्ह है।" उसकी आवाज में गहरा संदेह और चिंता झलक रही थी।
डीसीपी खन्ना ने सवालिया नजरों से पूछा, "तुम्हें यह सब कैसे पता है?"
इस पर दिलजीत ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा, "यह आजकल बहुत से लोगों को पता है। इल्युमिनाटी की कहानियाँ हर जगह फैली हुई हैं, और ज्यादातर लोगों को यह काफी कूल लगता है।" उसकी बात में एक सामान्यता थी, जैसे यह सब बातें महज़ अफवाह हो।
लेकिन, माहौल अचानक और भी गंभीर हो गया जब एक ऑफिसर ने कमरे की दीवार से एक पेंटिंग हटाई। पेंटिंग के पीछे से एक डक था जो की वह एक स्लाइड की तरह नीचे की ओर जा रहा था।
अभिमन्यु ने तुरंत प्रतिक्रिया दी, "ये लोग नीचे की तरफ गए हैं।"
डीसीपी खन्ना ने अपने कुछ ऑफिसर्स को आदेश दिया कि वे लोग नीचे जाए उनके पीछे फिर डीसीपी खन्ना फिर दिलजीत और संदीप और अंत में अभिमन्यु गया। जैसे ही उन्होंने स्लाइड से नीचे जाना शुरू किया, एक अजीब सी ठंडक और गहराई का अहसास उनके पूरे शरीर में भर गया। यह जगह मानो किसी और ही दुनिया का हिस्सा हो।
जब वे नीचे पहुँचे, तो उनके सामने एक पुराने तहखाने जैसी जगह थी। वहाँ की दीवारों पर अजीबोगरीब नक़्शे और प्रतीक बने हुए थे। कमरे के बीच में एक गड्ढा था, जिसके पास लकड़ी की पट्टियाँ और कुछ औजार रखे हुए थे। ऐसा लग रहा था जैसे यह गड्ढा अभी हाल ही में खोदा गया हो।
डीसीपी खन्ना ने अंदाजा लगाया, "लगता है ये और नीचे गए हैं।"
दिलजीत ने उसकी बात को मजाकिया अंदाज में काटते हुए कहा, "इसमें लगने की क्या बात है, वो नीचे ही गए होंगे।"
संदीप ने तुरंत दिलजीत की कनपटी पर हल्के से थप्पड़ मारते हुए उसे टोका, "कहाँ खड़ा है और किसके सामने क्या बोल रहा है, इसपर भी ध्यान दे।" फिर उसने खन्ना से माफी मांगते हुए कहा, "इसे माफ कर दीजिए, थोड़ा मुंहफट है।"
खन्ना हंसते हुए बोले, "आजकल के बच्चे ऐसे ही होते हैं।"
लेकिन अभिमन्यु को यह बातचीत बेकार लग रही थी। उसने बिना कोई और वक्त गंवाए गड्ढे में छलांग लगा दी और पाया कि वह जगह सचमुच एक गुफा थी, जिसमें और भी नीचे जाने का रास्ता था। तभी, जैसे ही खन्ना और बाकी लोग भी गड्ढे में उतरने लगे, अचानक स्लाइड से एक लड़की और एक लड़का आकर उनके सामने खड़े हो गए। सभी ऑफिसर्स ने तुरंत अपनी बंदूकें उनपर तान दीं।
वह लड़की और लड़का और कोई नहीं, बल्कि सुकन्या और सूरज त्रिपाठी थे। सुकन्या ने तुरंत अपने हाथ ऊपर उठाते हुए कहा, "सॉरी, हम यहां गलती से आ गए।"
डीसीपी खन्ना ने उनपर नजरें गड़ाए रखी, लेकिन अभिमन्यु की नजर अब भी गुफा के गहरे हिस्से पर टिकी हुई थी, जहाँ कुछ और बड़ा होने की आशंका थी। इसलिए वो बिना कुछ कहे आगे बढ़ गया।