अभिमन्यु और सुकन्या उस मूर्ति के सामने खड़े थे, जब अचानक ही मूर्ति और जिस गोल प्लेटफार्म पर वह मूर्ति स्थापित थी, दोनों ही जोर से कांपने लगे। दोनों घबराहट में पीछे हट गए और मूर्ति की ओर एकटक देखने लगे। उस गोल प्लेटफार्म के चारों ओर जो जाल जैसे घेरे में आकृतियां बनी हुई थीं, वो अचानक ही खून से लथपथ हो गईं। हर आकृति पर खून के छींटे साफ़ दिख रहे थे। सुकन्या ने घबराते हुए अभिमन्यु की तरफ देखा, लेकिन वो अपनी जगह पर स्थिर खड़ा था, मूर्ति को घूरते हुए।
तभी मूर्ति की आँखें लाल रोशनी से चमकीं, और फिर वो चमकते ही गायब हो गई। इसके बाद मूर्ति अपनी जगह से घूमकर दाईं ओर मुड़ गई, और प्लेटफार्म के नीचे एक और गुप्त रास्ता खुल गया। यह देख सुकन्या की सांसें थम गईं, और उसने भयभीत होकर अपने हाथ से अभिमन्यु का कंधा पकड़ लिया।
दिलजीत, जो थोड़ी दूरी पर खड़ा था, हैरान होते हुए बोला, "ओ तेरी! यहां तो एक और सीक्रेट दरवाजा निकल आया! लगता है यहां दरवाजे ही खत्म नहीं हो रहे!"
अभिमन्यु ने बिना कोई देरी किए कदम बढ़ाते हुए कहा, "जिसने भी ये सब कुछ बनाया है, वो कोई मामूली इंसान नहीं हो सकता।"
इतना कहकर वह बिना झिझके उस नए खुले रास्ते की ओर बढ़ गया। सुकन्या, दिलजीत और बाकी लोग भी उसके पीछे चल दिए।
जब सभी नीचे पहुंचे, तो देखा कि वहां से एक और रास्ता आगे जा रहा था। सभी ने आगे बढ़कर उस रास्ते का पीछा किया। कुछ ही दूरी पर, उन्हें एक बड़ा शोकेस दिखाई दिया, जिसके अंदर एक छोटी सी लाल रंग की मणि चमक रही थी। उस मणि की चमक ने पूरे माहौल को रहस्यमय बना रखा था, और उसकी ओर देखते ही सभी की सांसें थम गईं।
अभिमन्यु और बाकी लोग धीरे-धीरे मणि के पास पहुंचे। जैसे ही अभिमन्यु ने मणि को छुआ, वह अचानक फूट गई, और मणि के फूटते ही पूरी गुफा में घना अंधेरा छा गया। वहां पहले जो भी थोड़ी बहुत रोशनी थी, वह पूरी तरह से गायब हो गई, मानो मणि ही रोशनी का एकमात्र स्रोत थी। अब हर तरफ बस घना अंधकार था और सभी को अपनी जगह खड़े-खड़े कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।
सभी ने जल्दी-जल्दी अपने मोबाइल फोन की टॉर्चें ऑन कीं, ताकि थोड़ी बहुत रोशनी हो सके। चारों तरफ अंधेरा और सन्नाटा छा गया था।
अभिमन्यु ने गंभीर स्वर में कहा, "मुझे लगता है कि फिलहाल हमें वापस चलना चाहिए।"
सभी ने उसकी बात पर सहमति में सिर हिलाया, और फिर सभी वापस उसी रास्ते से लौटने लगे। रास्ते में उन्हें वही लाशें फिर से दिखाई दीं, लेकिन अब वहां भी अंधेरा फैला हुआ था। अंधेरे में वे लाशें पहले से भी ज्यादा डरावनी लग रही थीं। थोड़ी देर बाद, सभी वापस उसी बेसमेंट में पहुंच गए, जहां से वे आए थे।
सुकन्या ने डरते हुए पूछा, "वैसे, यहां से बाहर निकलने का रास्ता किस तरफ है?"
उसके इस सवाल ने सभी को खामोश कर दिया, क्योंकि इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था। सभी अचानक चुप हो गए, क्योंकि उन्हें भी नहीं पता था कि वे किस दिशा में जा रहे थे और बाहर कैसे निकलेंगे। स्लाइड से वापस ऊपर जाना बहुत मुश्किल था, और अब उनके पास दूसरा कोई स्पष्ट रास्ता नहीं था।
अभिमन्यु ने कुछ सोचते हुए कहा, "मुझे यकीन है कि यहां से बाहर निकलने का कोई और रास्ता जरूर होगा। बस हमें उसे ढूंढना होगा।"
इतना कहकर सभी लोग बाहर जाने का रास्ता ढूंढने लगे। कुछ देर की खोज के बाद, अभिमन्यु को आखिरकार एक और रास्ता मिल गया, जो उन्हें बंजारा पैलेस के किसी कमरे में ले जाता था। वह रास्ता सीधा एक गुप्त दरवाजे से खुला, जो पैलेस के एक पुराने कमरे में था। कमरे के अंदर ऊपर और नीचे जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई थीं।
दिलजीत ने मजाक करते हुए कहा, "अगर ये रास्ता यहां पहले से बना था, तो यहां से वो लोग क्यों नहीं गए?"
अभिमन्यु ने गंभीरता से जवाब दिया, "क्योंकि ये मैनेजर का कमरा है। यहां से सिर्फ वही आता-जाता होगा।"
सभी ने कमरे का मुआयना किया और देखा कि दरवाजे के पास मैनेजर के नाम की प्लेट अभी भी रखी हुई थी। कमरे का माहौल पुराना और रहस्यमय था, जैसे यह कई सालों से बंद पड़ा हो।
इसके बाद अभिमन्यु वहां से चुपचाप निकल गया और पैलेस के ग्रीन रूम की ओर चला गया। अब तक फंक्शन खत्म हो चुका था, और भीड़ भी वहां से जा चुकी थी। रात के लगभग 12 बज चुके थे, और अब बस कुछ ही प्रतिभागी बचे हुए थे।
अभिमन्यु ग्रीन रूम के पास खड़ा हो गया, और अंदर गया। करिश्मा उसे देखते ही गुस्से में बोली, "तुम कहां चले गए थे? तुम्हारा फोन भी नहीं लग रहा था।"
अभिमन्यु ने शांत स्वर में कहा, "थोड़ा सा बिजी हो गया था।"
इतने में बाहर से शोर-गुल की आवाजें आने लगीं। करिश्मा ने पूछा, "बाहर क्या हो रहा है?"
अभिमन्यु ने बिना किसी झिझक के कहा, "नीचे तहखाने में कुछ लाशें मिली हैं। लंबी कहानी है। कल न्यूज में देख लेना। फिलहाल, हमें यहां से चलना चाहिए।"
इसके बाद वे दोनों वहां से निकलने लगे। जाते-जाते करिश्मा ने अपनी दोस्त आलिया और बाकी साथियों को अलविदा कहा, और दोनों पैलेस के बाहर आ गए।
कुछ देर बाद एक टैक्सी उनके पास आकर रुकी। टैक्सी वाले ने पूछा, "कहां जाना है?"
इससे पहले कि अभिमन्यु कुछ कह पाता, करिश्मा ने तुरंत कहा, "गंगा हिल लेकर चलो।"
अभिमन्यु ने आश्चर्य से पूछा, "गंगा हिल क्यों? वहां तो मेरा घर है।"
करिश्मा ने बेफिक्री से कहा, "हां, तो आज रात मेरा इरादा तुम्हारे घर रुकने का है।" इतना कहते हुए वह टैक्सी में बैठ गई।
कुछ देर बाद, टैक्सी गंगा हिल के पास पहुंच गई। वह इलाका काफी बड़ा था, जहां कुछ घर और एक विशाल मेंशन बना हुआ था। यह पूरा इलाका "सिंह पैलेस" के नाम से मशहूर था, जो अभिमन्यु के परिवार की निजी संपत्ति थी।
अभिमन्यु ने टैक्सी वाले से कहा, "अंदर ले लो।"
फिर वह खिड़की से मुंह निकालकर गेट पर खड़े गार्ड्स को इशारा करता है, और वे तुरंत गेट खोल देते हैं। टैक्सी वाले ने पूछा, "सर, क्या आप सिंह परिवार के सदस्य हो?"
अभिमन्यु ने मुस्कुराते हुए कहा, "हां, ऐसा ही कुछ समझ लो।"
टैक्सी वाला अभिमन्यु के इशारे पर कार को अंदर ले गया।
अभिमन्यु ने कहा, "जो मेंशन देख रहे हो, सीधा वही लेकर चलो।"
टैक्सी वाला बिना कोई सवाल किए मेंशन के पास कार ले गया। अभिमन्यु ने उसे पैसे दिए और वह टैक्सी वाला वहां से निकल गया।
अभिमन्यु ने एक बार फिर उस महल जैसे बड़े घर को देखा, जो किसी राजा के किले जैसा भव्य दिखता था। विशाल गेट पर सोने के रंग की नक्काशी थी, जो उसे और भी आकर्षक बना रही थी। गेट के दोनों ओर दो बड़े स्तंभ थे, जिनके ऊपर संगमरमर के शेर बने हुए थे। यह जगह अभिमन्यु के लिए बहुत खास थी, क्योंकि यहीं उसका पूरा बचपन गुजरा था। हर कोने से उसे अपनी पुरानी यादें ताज़ा होती महसूस हो रही थीं। वो गेट खोलकर अंदर घुसा, लेकिन अंदर घुसते ही अचानक से अंधेरा हो गया। ऐसा लगा जैसे किसी ने पूरे घर की बत्तियां बुझा दी हों। वो अभी सोच ही रहा था कि ये सब क्या हो रहा है कि अचानक से चारों ओर रोशनी फैल गई।
हर ओर से आवाज़ आई, "सरप्राइज!" और फिर कई डेक्रोरेशन वाले पटाखों का धमाका हुआ, जिससे रंग-बिरंगे कागज़ और गुब्बारे चारों तरफ बिखर गए।
सभी ने एक साथ जोर से कहा, "हैप्पी बर्थडे!"
अभिमन्यु ने अचानक अपने सिर पर हाथ मारा और मन ही मन कहा, "अरे, मेरा जन्मदिन... मैं तो भूल ही गया था।"
अभी वो यही सोच ही रहा था कि पीछे से एक चिर-परिचित आवाज़ आई, "हैप्पी बर्थडे, बडी!"
वो आवाज़ करिश्मा की थी, उसकी बचपन की दोस्त, जिसने उसे हमेशा हर खुशी के मौके पर सरप्राइज दिया था।
तभी उसकी छोटी बहन प्राची आगे बढ़ी, उसकी आंखों में चमक थी। उसने खुशी-खुशी कहा, "जन्मदिन मुबारक हो, भैया!" और एक सुंदर से गिफ्ट बॉक्स को आगे बढ़ाते हुए मुस्कुरा दी।
प्राची, अभिमन्यु की सगी छोटी बहन थी, जो उससे सिर्फ दो साल छोटी थी। इस समय वो 15 से 16 साल की थी, और उसकी चुलबुली और प्यारी सी शख्सियत हर किसी का दिल जीत लेती थी। उसके बाद अभिमन्यु को बधाई देने के लिए उसका चचेरा भाई विक्रांत आया। विक्रांत असल में गोद लिया हुआ था, लेकिन अभिमन्यु के सबसे करीब वही था। दोनों एक ही उम्र के थे और दोनों के बीच बहुत गहरी दोस्ती थी।
विक्रांत के बाद अभिमन्यु की बाकी दोनों जुड़वां कजिन बहनें, ललिता और विशाखा, आगे आईं। ये दोनों अभिमन्यु के चाचा की बेटियां थीं, जो उससे एक साल छोटी थीं। इनकी खूबसूरती का कोई जवाब नहीं था, और दोनों हमेशा हर मौके पर मौजूद रहती थीं। अभिमन्यु ने मुस्कुराते हुए दोनों से गिफ्ट्स लिए, और बाकी परिवार के सदस्य भी बारी-बारी से उसे बधाई देने लगे।
परिवार के सदस्य जो मुख्य परिवार से नहीं थे, वे भी प्रेम से उसके साथ रहा करते थे। खासकर अभिमन्यु अपने कजिन्स के साथ बहुत अच्छा व्यवहार रखता था।
अंत में, उसकी मां किरण आगे आईं और उसे बड़े प्यार से गले लगाया। किरण एक फैशन क्लोथिंग कंपनी की मालिक और सीईओ थीं, और वो 35 साल की होते हुए भी बेहद जवान और खूबसूरत दिखती थीं। उनका आत्मविश्वास और व्यक्तित्व हर किसी को प्रेरित करता था।
आखिरकार, अभिमन्यु के दादाजी, नरसिंह प्रताप सिंह, उसकी ओर बढ़ते हुए बोले, "ये रहा मेरा गिफ्ट।"
अभिमन्यु के दादाजी करीब 70 साल के थे, लेकिन अब भी उनके शरीर में एक अजीब सी शक्ति और मजबूती थी। उनके सफेद बाल और सफेद सूट में वो किसी पुराने ज़माने के एक्शन हीरो की तरह दिख रहे थे।
उन्होंने अभिमन्यु को एक छोटे से बॉक्स की ओर इशारा किया। अभिमन्यु ने जिज्ञासा से उस बॉक्स को खोला, तो उसमें से एक चश्मा निकला। चश्मे के लेंस नीले रंग के थे और फ्रेम चाकोर आकार का था, जो देखने में किसी कंप्यूटर ग्लास जैसा लग रहा था।
अभिमन्यु ने अपने दादाजी से पूछा, "दादाजी, ये क्या है?"
नरसिंह प्रताप सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, "पहले इसे पहनकर देखो।"
अभिमन्यु ने उत्सुकता से चश्मा पहन लिया। चश्मा पहनते ही उसे एक अजीब अनुभव हुआ। उसकी आंखों के सामने हवा में कंप्यूटर की तरह कुछ स्क्रीनें दिखाई देने लगीं, जिनमें यूट्यूब, गूगल और यहां तक कि डार्क वेब के भी फीचर्स शो हो रहे थे। इसके अलावा कई प्रकार के टूल्स और फीचर्स उसमें मौजूद थे।
तभी अचानक से एक आवाज़ उसके दिमाग में गूंज उठी, "हैलो, मैं हूं सैली।"
अभिमन्यु चौंक गया। उसकी आंखों के सामने सब कुछ कंप्यूटर की स्क्रीन जैसा दिख रहा था। सैली की आवाज़ फिर से आई, "आप क्या करना पसंद करेंगे?"
अभिमन्यु ने हैरान होकर अपने दादाजी को देखा और पूछा, "दादाजी, ये सब क्या है?" उसने जल्दी से चश्मा उतार दिया, लेकिन फिर भी वो स्क्रीन उसके सामने मौजूद थी। अब वो और भी हैरान हो गया था, क्योंकि चश्मा उतारने के बाद भी सबकुछ वैसा ही था।
नरसिंह प्रताप सिंह ने हंसते हुए कहा, "ये एक छोटा सा गिफ्ट है। वैसे मुझे तुमसे कुछ बात करनी है, मेरे साथ चलो।"
अभिमन्यु को सैली के बारे में और जानने की जिज्ञासा थी, इसलिए उसने बिना सोचे-समझे हामी भर दी। दोनों फिर वहां से दादाजी के कमरे की ओर चल पड़े।