Chapter 22 शक्तियां

सूरज की पहली किरण जब पटना शहर के आसमान में फैली, तो वो धूप धीरे-धीरे सारा शहर जगाने लगी। सूरज त्रिपाठी के आलीशान विला के इर्द-गिर्द फैली हरियाली पर भी वह सुबह की हल्की धूप पड़ने लगी। इस विशाल विला में चारों तरफ पेड़-पौधे और सुंदर बगीचे थे, जो सुबह की ठंडी हवा के साथ लहरा रहे थे। विला के अंदर, एक बड़े से कमरे में सुकन्या गहरी नींद में सो रही थी। उसके कमरे की खिड़की के पर्दे हल्के-हल्के हिल रहे थे, और बाहर की हलचल अब उसके कानों तक पहुँचने लगी थी।

सुकन्या की नींद टूट गई जब उसने बाहर कुछ लोगों की आवाजें सुनीं। उसकी आँखें धीरे-धीरे खुलीं, और वो कुछ देर तक बिस्तर में ही पड़ी रही, बाहर हो रही बातचीत को सुनने की कोशिश करती हुई। बाहर सूरज त्रिपाठी और शुक्ला, जो उसकी टीम के पुराने सदस्य थे, आपस में कुछ गंभीर चर्चा कर रहे थे। सुकन्या को इनकी बातों में दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन अचानक उसकी नज़र दूर स्थित स्विमिंग पूल के पास पड़ी। वहाँ उसे दो लड़कियाँ दिखीं, जो बिकनी में नहाते हुए धीमी आवाज़ में बातचीत कर रही थीं।

ये दोनों लड़कियाँ गैंग की सदस्य थीं, जो त्रिपाठी की टीम में अलग-अलग कामों को संभालती थीं। आमतौर पर इनका काम अकाउंट्स और अन्य मैनेजमेंट से जुड़े काम थे, लेकिन ये फाइटर्स भी थीं। सुकन्या ने जब उन्हें देखा तो उनके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी। वो धीरे-धीरे त्रिपाठी को निहार रही थीं, जो स्विमिंग पूल से दूर खड़ा शुक्ला से बातों में मशगूल था।

सुकन्या ने अचानक उन्हें स्पष्ट रूप से कहते हुए सुना, "ये त्रिपाठी सर कितने हैंडसम हैं, न? काश एक बार वो मेरे हुस्न के दीवाने बन जाएं।" दूसरी लड़की ने फुसफुसाते हुए कहा, "उन्हें अपनी अदाओं में बहकाना इतना आसान नहीं है। अंदर से काफी सख्त हैं।" इतना कहकर दोनों हंसने लगीं।

सुकन्या यह सब सुनकर हैरान रह गई। वो इतनी दूर से कैसे इनकी बातें सुन पा रही थी? ये तो असंभव था। उसे लगा कि शायद उसका दिमाग खेल खेल रहा है, लेकिन फिर भी वो अविश्वास में बाहर खड़ी रही। आसपास के माहौल पर ध्यान दिया तो उसे कुछ और अजीब बातें महसूस होने लगीं। दूर एक पेड़ पर चिड़िया अपने बच्चों को खाना खिला रही थी और उसके द्वारा अपने बच्चों को कीड़ा खिलाते हुए दृश्य को वह साफ देख पा रही थी। इतने दूर की चीजें इतनी स्पष्ट कैसे दिख रही थीं?

हैरानी में डूबी सुकन्या वापस अपने कमरे में आई और शौचालय में जाकर अपना चेहरा धोने लगी। जब उसने शीशे में खुद को देखा, तो उसे अपनी शक्ल पहले से कहीं अधिक खूबसूरत लगने लगी। उसके चेहरे पर एक अजीब सी चमक थी, जो पहले कभी नहीं थी। उसकी आँखों में एक नयी चमक और उसके शरीर की बनावट पहले से ज्यादा आकर्षक हो गई थी। उसने अपने पेट की तरफ देखा, जहाँ अब हल्के से ऐब्स उभर आए थे।

"ये कैसे हो सकता है?" सुकन्या ने अपने शरीर को कई बार हर तरफ से निहारते हुए कहा। उसे यह महसूस हुआ कि उसके शरीर में कोई बदलाव हो गया था, लेकिन यह कब और कैसे हुआ, उसे समझ नहीं आ रहा था।

तुरंत, सुकन्या नहाने के लिए तैयार हो गई और जल्दी से फ्रेश होकर बाहर निकल आई। उसने सोचा, "क्या मुझे कोई सुपरपावर मिल गई है?" उसके अंदर एक नई ताकत का एहसास था, लेकिन वह खुद से असमंजस में थी कि यह अचानक कैसे हुआ। बाहर निकलने के बाद जब वह लोगों पर फोकस करती, तो उसे दूर-दूर की आवाजें सुनाई देने लगतीं, बिल्कुल वैसी ही जैसे उसने पहले सुना था।

इसके बाद सुकन्या सीधे विला के जिम में गई। वहाँ उसने एक भारी वजन उठाने की कोशिश की। उसके सामने 50 किलो का डम्बल रखा हुआ था। उसे लग रहा था कि अब वह आसानी से इसे उठा लेगी, लेकिन पहली बार में वह इसे उठा नहीं पाई। फिर उसने दूसरी बार पूरी ताकत से कोशिश की और वह डम्बल उठ गया। लेकिन, उसे वह डम्बल पहले से कहीं ज्यादा भारी महसूस हुआ।

उसने खुद से कहा, "तुझे क्या लगता है? तुझे 'हल्क' जैसी ताकत मिल गई है? सुपरहीरो बनना इतना आसान नहीं है।" लेकिन उसने यह भी सोचा, "मैंने तो पहले कभी 50 किलो का वजन नहीं उठाया। कुछ शक्ति तो जरूर मेरे अंदर आई है।" उसकी आँखों में उलझन थी। "क्या यह सब कल रात हुई किसी घटना की वजह से है? क्या मेरे अंदर कोई शैतान घुस गया है?" वह डरते हुए बोली, "हे भगवान, मुझे कोई बदसूरत राक्षस मत बनाना, प्लीज!"

थोड़ी देर बाद, सुकन्या पूरी तरह से तैयार होकर त्रिपाठी के साथ अपने घर, छपरा के लिए निकल पड़ी। उसके चेहरे पर चिंता और उलझन दोनों साफ झलक रही थीं, लेकिन फिर भी वह अपने विचारों को शांत रखने की कोशिश कर रही थी।

दूसरी तरफ, करिश्मा भी अभिमन्यु को न पाकर मायूस हो गई और फिर वापस अपनी मौसी के घर, दिल्ली चली गई।

कानपुर स्टेशन पर ट्रेन जब रुकी इस बीच अभिमन्यु की आंख खुली। वह थोड़ा सुस्त महसूस कर रहा था, लेकिन बाहर निकलते हुए उसे अहसास हुआ कि वो अब अपने गंतव्य के करीब आ चुका है। ट्रेन से नीचे उतरकर उसने अपने आपको थोड़ा ताज़ा महसूस करने के लिए चारों ओर देखा। प्लेटफार्म पर भीड़भाड़ थी, लेकिन इतनी ज्यादा नहीं कि असुविधा हो। उसने पास की दुकान से कुछ स्नैक्स, चिप्स के पैकेट और एक गर्म चाय का गिलास खरीदा। हाथ में स्नैक्स और चाय थामते हुए वह फिर से ट्रेन में चढ़ गया और धीरे-धीरे चलता हुआ अपनी सीट तक पहुंच गया।

चाय की घूंट लेते हुए वह खिड़की के बाहर झांकने लगा, जहां बाहर स्टेशन में काफी चहल कदमी थी और हल्की सी धूप थी लेकिन काफी ज्यादा ठंड भी थी क्योंकि इस समय फरवरी का महीना चल रहा था। चाय की गर्मी ने उसे थोड़ी राहत दी, और स्नैक्स के साथ उसने कुछ समय अपने आपको व्यस्त रखा। थोड़ी देर बाद उसने अपना फोन उठाया, एक नया फोन नंबर जो हाल ही में उसने लिया था, उसे अब तक सिर्फ गिने-चुने खास और वफादार लोगों को ही दिया गया था। न ही उसके दादाजी को और न ही परिवार में किसी और को इस नंबर के बारे में पता था। वह बिना किसी को कॉल किए सीधे इंस्टाग्राम पर चला गया और रील्स देखने लगा, ताकि सफर में उसका थोड़ा और मनोरंजन हो सके।

दूसरी तरफ, सुकन्या अपने घर के कमरे में थी, जहां उसकी जिंदगी का एक नया अध्याय शुरू हो रहा था। वह कमरे के भीतर टहलते हुए अपनी नई मिली शक्तियों को जांच रही थी। उसके सारे senses अब पहले से कहीं अधिक तेज हो गए थे। उसे लग रहा था कि उसके अंदर कोई नई ताकत जन्म ले रही है। उसकी दृष्टि, सुनने की क्षमता, सूंघने की शक्ति, स्पर्श और स्वाद—सभी इंद्रियां पहले से कई गुना बढ़ गई थीं। इसके साथ ही, उसे एक और अद्भुत शक्ति मिल चुकी थी, जिससे वह 100 मीटर के दायरे में कुछ भी महसूस कर सकती थी, मानो वह किसी ऊंचाई से सबकुछ देख रही हो।

सुकन्या के कमरे में चारों ओर सुपरहीरोज, बॉलीवुड और हॉलीवुड स्टार्स के पोस्टर्स और कुछ खतरनाक माफिया के तस्वीरें लगी थीं, जो उसकी शख्सियत और पसंद को दर्शाती थीं। पोस्टर्स के बीच चलते हुए सुकन्या मन ही मन सोचने लगी, "क्या मुझे भी कोई कॉस्ट्यूम बनाना चाहिए? आखिर सभी सुपरहीरोज़ तो कोई न कोई सूट पहनते हैं।" लेकिन फिर उसने खुद से सवाल किया, "क्या मेरे पास सिर्फ इंद्रियों की ही शक्ति है, जिन्हें मैं केवल फोकस करने पर ही इस्तेमाल कर सकती हूं, अन्यथा मैं एक साधारण इंसान बनी रहती हूं।"

अचानक उसके फोन पर एक कॉल आई। स्क्रीन पर उसकी बेस्ट फ्रेंड माधवी का नाम चमक रहा था। फोन उठाते ही सुकन्या बोली, "बोल जानेमन, क्या हाल हैं?"

माधवी ने हंसी में उसका मजाक उड़ाते हुए कहा, "क्या बात है, बहुत खुश लग रही है आज?"

सुकन्या ने एक उत्साह भरी आवाज में कहा, "अरे हां, मुझे एक कमाल की चीज़ मिली है!"

माधवी ने हैरानी से पूछा, "अच्छा? ऐसा क्या मिल गया?"

सुकन्या ने रहस्यमयी अंदाज में कहा, "वो तो तुझे मिलकर ही बताऊंगी।"

माधवी ने कहा, "ठीक है, सिनेमा हॉल आ जा, मस्त फिल्म लगी है।"

सुकन्या ने जल्दी से कहा, "ठीक है, मैं आ रही हूं।" इतना कहकर उसने फोन रख दिया।

कुछ देर बाद सुकन्या अपनी चमचमाती जीप में बैठी हुई थी, जिसके पहिए शहर की सड़कों पर तेज़ी से घूम रहे थे। जीप उसके भरोसेमंद आदमी चला रहा था, और सुकन्या पैसेंजर सीट पर बैठी थी, उसके चेहरे पर एक स्टाइलिश सनग्लास लगा हुआ था। पीछे दो और जीप्स में उसके आदमी उसकी सुरक्षा और साथ देने के लिए चल रहे थे। जैसे ही जीप सिनेमा हॉल के बाहर रुकी, सुकन्या बड़े आराम और स्टाइल से बाहर निकली।

वहां पर माधवी पहले से ही खड़ी थी, उसके साथ कुछ और लड़के-लड़कियां भी थे जो सुकन्या के दोस्त थे। उनमें से एक लड़के ने तुरंत ही इम्प्रेस करने की कोशिश में कहा, "मैंने हॉल की सारी टिकट बुक कर ली हैं," और अपने पैसे दिखाते हुए बोला, "आज पूरा हॉल हमारा है।"

सुकन्या ने मुस्कुराते हुए बस एक "थैंक यू" कहा, और फिर आगे बढ़कर बोली, "चलो, अंदर चलते हैं।" सभी हंसी-खुशी के माहौल में अंदर जाने लगे।