सिनेमा हॉल लगभग खाली था, बस कुछ ही लोग वहां थे। सभी ने अपनी-अपनी सीटें लीं। सुकन्या ने माधवी की तरफ देखा और धीरे से कहा, "तुझे पता है? मुझे कुछ अद्भुत शक्तियां मिली हैं।"
माधवी ने उसकी बात को हल्के में लेते हुए कहा, "अच्छा! कैसी शक्तियां?"
सुकन्या ने फुसफुसाते हुए कहा, "मुझे अब बहुत दूर की चीजें भी साफ दिखाई और सुनाई देती हैं। सूंघने की शक्ति भी पहले से तेज हो गई है, और मैं छू कर किसी चीज़ के बारे में बहुत कुछ जान सकती हूं। मेरे सभी senses अब काफी ज्यादा बढ़ गए हैं, और मुझे एक extra sense भी मिली है, जिससे मैं अपने 100 मीटर के आसपास सबकुछ महसूस कर सकती हूं।"
माधवी ने हंसते हुए कहा, "ये तो सही है, लेकिन अगर सच में होती तो मजा आ जाता।"
सुकन्या ने चिढ़ते हुए कहा, "तुझे यकीन नहीं हो रहा, है न? चल, मैं तुझे साबित करके दिखाती हूं। बिना पीछे देखे, मैं बताती हूं कि रवि और तान्या क्या कर रहे हैं। वे दोनों मूवी देखने के बजाय एक-दूसरे को छेड़ रहे हैं।"
माधवी ने पीछे मुड़कर देखा तो सच में रवि और तान्या एक-दूसरे को इशारे कर रहे थे, और तान्या शर्म से अपना मुंह छुपा रही थी।
माधवी ने फिर से कहा, "ये तो हम अंदाजा भी लगा सकते थे, इसमें क्या बड़ी बात है?"
सुकन्या ने कहा, "ठीक है, अब दूसरी तरफ मुंह करके धीरे से कुछ कह, जिसकी आवाज़ मुझ तक न पहुंचे।"
माधवी ने दूसरी ओर मुंह करके बहुत धीरे से कुछ बुदबुदाया, फिर मुस्कराते हुए कहा, "अब बताओ, मैंने क्या कहा?"
सुकन्या ने तुरंत जवाब दिया, "तूने यही कहा कि लगता है सुकन्या का दिमागी संतुलन बिगड़ गया है।"
माधवी ने हंसते हुए कहा, "वाह! तू सच में कुछ तो अद्भुत कर रही है।"
सुकन्या ने कहा, "हां, लेकिन अब तुझसे बात नहीं करनी," और फिर मूवी की तरफ ध्यान देने लगी।
माधवी ने हंसते हुए उसे गले लगाया, और उसके गालों पर हल्के से गाल रगड़ते हुए बोली, "तू तो मेरी प्यारी सुकू है, ना!" लेकिन सुकन्या ने उसे तुरंत दूर कर दिया, "हां हां, दूर से ही अपना प्यार दिखा।"
तभी पीछे से गौतम की आवाज आई, "तुम दोनों चुप हो जाओ, मूवी देखने दोगी?"
माधवी ने उसे इग्नोर करते हुए सुकन्या से कहा, "वैसे, तूने उस लड़के के बारे में बताया था, जो तुझे पसंद आया था। अब क्या हुआ?"
सुकन्या ने जवाब दिया, "बस, मुझे अभी तक उसका नाम ही पता चला है।"
माधवी ने हैरानी से पूछा, "मतलब तू दो बार उससे मिल चुकी है और सिर्फ नाम ही जान पाई है?"
जब सुकन्या ने कहा कि उसके चाचा उसकी मदद नहीं करेंगे, तो उसका चेहरा मायूस हो गया था। माधवी ने तुरंत माहौल हल्का करने के लिए कहा, "अरे, इतनी उदास मत हो। किस्मत में रहा, तो तू उससे फिर से जरूर मिलेगी।"
सुकन्या ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "अगर मेरे चाचा साथ देते, तो उसके बारे में पता करना बस चुटकियों का काम होता, लेकिन वो ऐसा करने वाले नहीं हैं।" उसके लहजे में नाराज़गी थी, क्योंकि वह जानती थी कि उसका चाचा बहुत सख्त और पारंपरिक इंसान है, जो इस तरह की बातों को तवज्जो नहीं देगा।
माधवी ने थोड़ी चौंकते हुए पूछा, "वैसे, क्या सच में तू दिल्ली जा रही है?" उसने अपनी दोस्त की आँखों में सच जानने की कोशिश की।
सुकन्या ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, "अरे! मैं मतलब, तू भी तो साथ में चलने वाली है। तेरे बिना आखिर मैं कहां जाऊंगी?"
माधवी ने हंसते हुए कहा, "हाँ, हाँ, जहां तू जाएगी, वहां मुझे तो जाना ही है। पापा भी तैयार हैं मुझे साथ ले जाने के लिए। लेकिन माँ...वो तो मुझे जाने ही नहीं देना चाहतीं।" उसकी आवाज़ में थोड़ी परेशानी झलक रही थी। वह जानती थी कि उसकी माँ उसे अकेले दिल्ली भेजने को लेकर चिंतित थीं।
सुकन्या ने उसकी चिंता को हल्के में लेते हुए कहा, "अरे! उन्हें मैं मना लूंगी। चल, अभी चलकर उन्हें मनाने की कोशिश करते हैं।"
माधवी ने संदेह से पूछा, "सच में?"
सुकन्या ने आत्मविश्वास से कहा, "बिलकुल!" और दोनों मूवी के बीच में ही उठकर वहां से निकल गईं। उनके बाकी दोस्त बस उन्हें जाते हुए देखते रहे, कुछ चौंकते हुए और कुछ मुस्कुराते हुए।
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इस बीच, दिल्ली में अबिमन्यु अपने सफर का एक और अध्याय शुरू कर चुका था। जैसे ही वह स्टेशन से बाहर निकला, उसके हाथ में उसकी कटाना थी, जो पहली नज़र में किसी साधारण डंडे जैसी दिखती थी। उसके पास कोई और सामान नहीं था। उसके मन में सैली की आवाज़ गूंजी, "चलो, हम दिल्ली पहुंच गए। अब आगे का क्या प्लान है? हम कहां जा रहे हैं?"
अबिमन्यु ने मुस्कराते हुए जवाब दिया, और बाहर एक ऑटो वाले से पूछा, "हेलो अंकल, गीता कॉलोनी चलोगे?"
ऑटो वाले ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और कहा, "हाँ, 300 रुपए लगेंगे।"
अबिमन्यु ने बिना झिझक कहा, "150 दूंगा, चलोगे तो बताओ।"
ऑटो वाला थोड़ा विचार में पड़ गया और फिर बोला, "250 से कम नहीं चलेगा।"
अबिमन्यु ने मुस्कराते हुए कहा, "उससे बढ़िया है, मैं बस या मेट्रो से चला जाऊंगा।"
ऑटो वाला कुछ पल चुप रहा और फिर कहा, "ठीक है, चलो।"
अबिमन्यु आराम से ऑटो में बैठ गया। ऑटो वाला एक और यात्री खोज लेता है, जो पास के किसी इलाके में जा रहा था। थोड़ी ही देर बाद, अबिमन्यु गीता कॉलोनी पहुंच गया। उसने अपने फोन में देखा कि रात के आठ बज चुके थे। आसपास काफी चहल-पहल थी। गलियों में अलग-अलग तरह की दुकानें खुली हुई थीं—सब्जी, राशन, केमिस्ट, और बाकी चीज़ों की भी। रास्ते में एक मंदिर था, जहां सारे देवी-देवताओं की मूर्तियां थीं।
अबिमन्यु वहां से आगे बढ़ते हुए चारों ओर का मुआयना कर रहा था। कुछ ही देर में, वह एक फल की दुकान के पास पहुंच गया। दुकान के बगल में एक छोटा सा गेट था, जिससे ऊपर जाने का रास्ता था। बिना किसी झिझक के, अबिमन्यु ऊपर की ओर चढ़ने लगा और तीसरे माले पर पहुंच गया।
सैली ने उसके मन में पूछा, "हम यहां क्या करने आए हैं?"
अबिमन्यु ने मुस्कराते हुए कहा, "रहने के लिए आए हैं।" इतना कहकर उसने गेट खटखटाया।
अंदर से एक 25 साल का नौजवान लड़का गेट खोलता है और हंसते हुए कहता है, "ओ अभिमन्यु, तू है!" फिर वह अंदर चला जाता है और उसके पीछे-पीछे अबिमन्यु भी अंदर चला जाता है। वह एक छोटा सा फ्लैट था जिसमें दो बेडरूम, एक बाथरूम और एक किचन था। दूसरा बेडरूम वैसे तो खाली था, लेकिन अबिमन्यु के आने से पहले वहां एक बेड लगवा दिया गया था।
लड़के ने पूछा, "तो सफर कैसा रहा?"
अबिमन्यु ने हंसते हुए कहा, "बढ़िया ही था, सोते हुए कट गया, कुछ पता ही नहीं चला।"
लड़के ने हंसते हुए कहा, "ठीक है, आराम कर ले।"
सैली ने अबिमन्यु के मन में कहा, "अब बताओगी, ये कौन है?"
अबिमन्यु ने मन ही मन जवाब दिया, "ये मेरा कज़िन है, मेरी माँ का भतीजा, आकाश।"
सैली ने संदेह जताते हुए कहा, "लेकिन ये तो नियमों के खिलाफ था, न?"
अबिमन्यु ने मन ही मन समझाया, "नहीं, पहली बात तो ये कि ये अपने घर में नहीं रहता, और हम इस जगह को शेयर करने वाले हैं। मैं भी किराया दूंगा, और वैसे भी, इतनी मदद तो ली जा सकती है।"
ये आकाश पांडे था, जो कि क्रिमिनल डिपार्टमेंट में एक डिटेक्टिव था—इंस्पेक्टर आकाश पांडे। वह अबिमन्यु का कज़िन भाई था और अबिमन्यु की माँ, किरण का भाई का बेटा था। किरण का पांडे परिवार कानपुर में रहता था, लेकिन आकाश दिल्ली में अपनी नौकरी के चलते रहता था।
इसलिए, ये किसी नियम के खिलाफ नहीं था।
कुछ देर बाद दोनो बैठ कर डिनर कर रहे थे।आकाश ने धीरे से बात शुरू की, "बुआ ने कहा था कि तुम्हारे लिए दिल्ली में नौकरी ढूंढने को। तो मैंने अपने पहचान के एक कंपनी में बात की थी। वहाँ एक पोस्ट खाली है, तुम चाहो तो कल मेरे साथ चल सकते हो।"
अभिमन्यु ने एक हल्की सी मुस्कान के साथ जवाब दिया, "माँ ने कहा था, इसलिए मैं यहां आ गया। लेकिन अब इस तरह से सीधे मदद लेना ठीक नहीं रहेगा। ये परीक्षा के नियमों के खिलाफ होगा। आप चिंता मत करिए, मैं खुद ही कोई नौकरी ढूंढ लूंगा।" उसने एक थाली से रोटी उठाते हुए कहा, "इसके अलावा मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय में एडमिशन भी लेना है, तो मुझे ऐसी नौकरी ढूंढनी होगी जो कॉलेज के टाइम टेबल से मेल खाती हो।"
आकाश ने चिंतित स्वर में कहा, "ऐसी नौकरियां तो बहुत मिल जाएंगी, पर उसमें मेहनत भी ज्यादा करनी होगी।"
अभिमन्यु ने आत्मविश्वास से भरी मुस्कान के साथ कहा, "आप चिंता मत करिए। मैं संभाल लूंगा।"
खाने के साथ-साथ दोनों के बीच थोड़ी-बहुत बातें होती रहीं। आकाश ने बीच-बीच में उसे दिल्ली के रहन-सहन के बारे में समझाया और कहा कि वह उसके किसी भी मदद के लिए हमेशा तैयार रहेगा। अभिमन्यु ने इसका तहे दिल से आभार जताया।
खाना खत्म करने के बाद दोनों ने एक साथ मेज साफ की और फिर एक कप चाय के साथ रात को थोड़ी देर बालकनी में बैठकर शहर के शोर को सुना। तीसरे माले की ऊंचाई से दिल्ली का नज़ारा अद्भुत लग रहा था। सड़क पर अब भी गाड़ियों की आवाजाही हो रही थी, और लोग अपने-अपने घरों की ओर जा रहे थे। आकाश ने थोड़ी देर बाद कहा, "अब सो जाओ, कल का दिन लंबा होगा।"
अभिमन्यु ने सिर हिलाया और अपने कमरे की ओर बढ़ा। कमरे में एक साधारण सा बिस्तर लगा हुआ था, जिसमें एक मोटा कम्बल और तकिया रखा था। अभिमन्यु ने अपने कटाना को दीवार के पास एक सुरक्षित जगह पर रखा और अपने बिस्तर पर बैठ गया।
फिर उसने लाइट बंद की और बिस्तर पर लेट गया। उसके दिमाग में तरह-तरह के विचार चल रहे थे—नई जगह, नए लोग, और सबसे जरूरी, उसकी नई शुरुआत। उसकी आँखों में एक सपना था, कुछ करने का, कुछ बड़ा हासिल करने का। धीरे-धीरे उसकी आँखें बंद होने लगीं और वह नींद की गोद में समा गया। दूसरी ओर, आकाश भी अपने कमरे में आराम से सो गया था, उसे इस बात का संतोष था कि अभिमन्यु सही हाथों में है और वह जो भी करेगा, वह अपने दम पर करेगा।
दिल्ली की वह रात शांति में डूबी हुई थी, लेकिन उसके अंदर अभिमन्यु जैसे बहुत से युवाओं के सपने पल रहे थे, जो इस शहर में अपने लिए एक पहचान बनाने आए थे।