Chapter 24 badla

अगले दिन सुबह का माहौल था, दिल्ली की सड़कों पर हल्की-हल्की गहमागहमी शुरू हो चुकी थी। आकाश अपनी बाइक उठाकर क्राइम ब्रांच के लिए रवाना हो चुका था। उसके जाने के बाद, अभिमन्यु अपने कमरे में अकेला था। कमरे में कुछ देर तक चुप्पी छाई रही, मानो शहर की हलचल से दूर एक शांति का एहसास हो रहा हो। अभिमन्यु ने अपनी कटाना (तलवार) को कमरे के एक कोने में सावधानी से रखा, जैसे वह किसी पुराने युद्ध की यादें समेटे हो। उसने अपने फ्लैट के दरवाजे पर ताला लगाया और बाहर निकल गया।

दिल्ली की सड़कें सुबह के वक्त भी जीवंत थीं। यहां तक कि इतनी सुबह में भी, लोग अपने-अपने काम की ओर भाग रहे थे। कोई अपनी बाइक पर था, तो कोई रिक्शा में बैठा हुआ। बसें भी धीरे-धीरे सड़कों पर भरने लगी थीं, हर कोई अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहा था। सड़क को दो हिस्सों में बांटा गया था, एक हिस्सा लेफ्ट साइड का था, जिसमें अभिमन्यु चल रहा था। दोनों तरफ बड़े-बड़े शोरूम और दुकानें सजी हुई थीं। लेकिन अभिमन्यु की नजर इन चमकते हुए शो-रूम पर नहीं थी। वह तो अपने ही खयालों में गुम था, उसी सादगी भरे कपड़ों में जो उसने पिछले दो दिनों से पहने हुए थे।

अचानक, उसके भीतर से एक आवाज आई – सैली की आवाज, जो मानो किसी दूसरी आत्मा की तरह उसके अंदर बसी हुई थी। सैली ने चुटकी ली, "वैसे हम जा कहां रहे हैं?"

अभिमन्यु ने हल्के अंदाज में जवाब दिया, "शुरू हो गए तुम्हारे सवाल-जवाब।"

सैली ने ठिठोलते हुए कहा, "इतना भाव खाने की जरूरत नहीं है, मैं तो बस जिज्ञासु थी कि तुम्हें पता है कि तुम कहां जा रहे हो, या बस यूं ही भटक रहे हो?"

अभिमन्यु ने कुछ सोचा और फिर मुस्कुराते हुए बोला, "थोड़ी देर में पता चल जाएगा कि मैं कहां जा रहा हूं।"

काफी देर पैदल चलने के बाद, अभिमन्यु ने शाहदरा जाने वाली बस पकड़ी। दिल्ली की बसों में उस समय भी हलचल बनी हुई थी, बस धीरे-धीरे भीड़ से भरने लगी थी। अभिमन्यु ने खिड़की के पास वाली सीट ली, बाहर देखते हुए वह कुछ और ही सोच में डूबा था। कुछ देर के सफर के बाद अभिमन्यु शाहदरा पहुंच गया नीचे उतरते वक्त सैली ने फिर से अपनी चुप्पी तोड़ी, "तो अब बताओगे कि हम कहां जा रहे हैं?"

अभिमन्यु ने धीरे-धीरे चलते हुए जवाब दिया, "दो दिन पहले दिल्ली से कुछ गुंडे पटना गए थे, मेरे एक दोस्त को मारने और उससे कोई डेटा हासिल करने के लिए।"

वह कुछ पल के लिए रुका, जैसे कुछ पुरानी बातें याद कर रहा हो। फिर उसने अपनी बात पूरी की, "जब मैंने उनके बारे में जानकारी निकाली, तो पता चला कि उनका जो मुखिया था, वो शाहदरा में रहता है। और उनका अड्डा भी यहीं कहीं है। मैं बस उनसे ही मिलने आया हूं।"

सैली ने सवाल किया, "लेकिन क्यों?"

अभिमन्यु ने मुस्कुराते हुए कहा, "जल्द ही पता चल जाएगा।"

कुछ देर बाद, अभिमन्यु एक पुराने गेराज के सामने खड़ा था। गेराज का नाम था 'रंगा गेराज'। यह न ज्यादा बड़ा था और न ही छोटा। बाहर दो कारें और कुछ बाइक खड़ी हुई थीं, जिनपर धूल जमी हुई थी। गेराज का माहौल कुछ उदासीन था, जैसे लंबे समय से यहां कोई बड़ी हलचल न हुई हो।

अभिमन्यु ने गेराज में काम कर रहे एक व्यक्ति को देखा, जो बाइक ठीक कर रहा था। अभिमन्यु बिना कोई हिचकिचाहट के उसके पास जाकर बाइक के दूसरी तरफ बैठ गया और मुस्कुराते हुए बोला, "और चिंटू, हालचाल कैसा है?"

वह आदमी, जो अभी तक बाइक पर ध्यान केंद्रित किए हुए था, अचानक अभिमन्यु की आवाज सुनते ही घबराया। उसने जल्दी से अपना ध्यान अभिमन्यु की ओर मोड़ा और उसकी पहचान होते ही घबराते हुए पीछे हट गया। बिना कोई समय गंवाए, वह भागकर गेराज के अंदर चला गया।

गेराज का माहौल वैसे तो हमेशा व्यस्त रहता था, जहाँ लोग वाहनों की मरम्मत में जुटे रहते थे, लेकिन आज स्थिति अलग थी। गेराज के कोने-कोने में विभिन्न औजारों और पार्ट्स की धूल में सनी महक फैली हुई थी, और चारों ओर कच्ची सड़कों से उठी धूल ने सब कुछ ढक रखा था। वहां खड़ी गाड़ियों पर जमी हुई धूल और तेल की गंध एक पुराने मैकेनिक शॉप का आभास दिला रही थी। गेराज में कुछ गाड़ियां खड़ी थीं, जिन पर कोई काम नहीं हो रहा था, और कोने में एक बाइक की मरम्मत की जा रही थी।

लेकिन जैसे ही अभिमन्यु अंदर आया, वहां काम कर रहे सारे मैकेनिक एक-एक कर अपनी गतिविधियां रोककर उसे घूरने लगे। किसी के पास हिम्मत नहीं थी कि वो अभिमन्यु की उपस्थिति को नजरअंदाज कर सके। उसकी भारी, आत्मविश्वास से भरी चाल, और उसके चेहरे पर बसी अजीब सी मुस्कान, जो खतरे की ओर इशारा कर रही थी, ने सभी को चुप कर दिया था।

गेराज के बीचों-बीच खड़ा असलम, जो हमेशा अपने आदमियों के सामने खुद को बहादुर दिखाने की कोशिश करता था, अब अभिमन्यु को देखते हुए थोड़ा असहज हो उठा। उसके हाथ में सिगरेट जल रही थी, लेकिन उसकी उंगलियाँ हल्के से कांप रही थीं। वह धुंआ छोड़ते हुए अभिमन्यु की तरफ घूरता रहा, जैसे उसकी नजरें कह रही हों कि यह शख्स मुसीबतें साथ लेकर आया है।

"तू यहां क्या कर रहा है?" असलम की आवाज में गुस्सा था, लेकिन उसमें छिपा डर भी साफ झलक रहा था।

अभिमन्यु ने एक नजर चारों ओर घुमाई। वह हर व्यक्ति को गौर से देख रहा था, मानो वो उनके चेहरों पर लिखी कहानियों को पढ़ रहा हो। उसकी नजरें असलम की तरफ आईं और उसने हंसते हुए कहा, "अरे, डर मत। मैं तो बस किसी काम से आया हूं। और हां, ये तुम्हारे दाएं हाथ की एक उंगली को क्या हुआ?"

असलम का चेहरा एकदम सख्त हो गया। उसने गुस्से से जवाब दिया, "इससे तुझे कोई मतलब नहीं है।"

अभिमन्यु ने उसकी तरफ झुकते हुए कहा, "रंगा ने काट दी, है न? सही कहा ना मैंने?"

असलम की आँखों में अचानक हैरानी झलकने लगी। उसकी कटी हुई उंगली का जिक्र शायद ही कोई करता, और अगर करता भी तो उसकी हिम्मत नहीं होती इसे रंगा से जोड़ने की। "तुम्हें कैसे पता?" असलम के शब्दों में अचरज और थोड़ी बेचैनी थी।

अभिमन्यु ने मुस्कुराते हुए कहा, "अरे यार, तुम लोग अपना काम सही से नहीं कर पाए, तो वो अपना गुस्सा तो निकालेगा ही। बॉस का काम बिगाड़ोगे तो सजा तो मिलेगी ही।"

इसी बीच, गेराज के कोने से एक आदमी, जिसकी आँखों में क्रोध झलक रहा था, धीरे-धीरे आगे बढ़ा। उसने अपने हाथ में एक मोटा लोहे का रॉड पकड़ रखा था, और उसकी आँखों में पनपते गुस्से को देखते हुए यह साफ था कि वो अभिमन्यु से बदला लेना चाहता है। उसने अपनी आवाज ऊँची करते हुए कहा, "भाई, उस दिन इसके हाथ में तलवार थी, इसलिए बच गया था। आज इसका खेल यहीं खत्म कर देते हैं।"

अभिमन्यु ने उसकी ओर नज़र डाली, लेकिन उसके चेहरे पर कोई डर या चिंता नहीं थी। वह अब भी शांत खड़ा था, जैसे उसे पहले से पता हो कि आगे क्या होने वाला है। वह आदमी लोहे का रॉड लेकर अभिमन्यु पर हमला करने के लिए तेज़ी से आगे बढ़ा, लेकिन अभिमन्यु बिजली की गति से नीचे झुक गया, जिससे रॉड का वार खाली चला गया।

अगले ही पल, अभिमन्यु ने एक हाथ से रॉड को पकड़ लिया और दूसरे हाथ से उस आदमी की नाक पर जोरदार घूंसा मारा। घूंसा इतना तेज था कि वह आदमी दर्द से चिल्लाते हुए पीछे हट गया। इससे पहले कि वो कुछ कर पाता, अभिमन्यु ने रॉड को झटके से छीन लिया और उसे उसके सिर पर मार दिया। सिर पर लगी चोट से वो आदमी जमीन पर गिर पड़ा और खून बहने लगा। उसका सिर थामे हुए वो आदमी कराहते हुए चीखने लगा।

पूरे गेराज में खामोशी छा गई। बाकी लोग, जो अभी तक कुछ बोलने की हिम्मत कर रहे थे, अब बिना आवाज़ के एक-दूसरे को देख रहे थे। उनमें से किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि वो अभिमन्यु का सामना कर सके। उनकी आँखों में हल्की सी दहशत झलक रही थी, जैसे वो इस अनजान खतरनाक शख्स के बारे में सोच रहे हों।

अभिमन्यु ने चारों ओर देखा और गहरी आवाज़ में बोला, "किसी और को मुझे सबक सिखाना है क्या?"

किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। सभी लोग अब शांत थे। असलम भी पीछे हटकर अपने लोगों के बीच खड़ा हो गया था। उसकी आँखों में अब वह गुस्सा नहीं था, बल्कि डर साफ झलक रहा था।

अभिमन्यु ने फिर से मुस्कुराते हुए कहा, "हां, तो मैं कहां था? असल में मैं यहां किसी काम से आया हूं। मुझे तुम्हारे बॉस रंगा से मिलना है।"

गेराज के भीतर अब सन्नाटा था। सिर्फ खून की बूंदें फर्श पर गिरने की आवाज़ आ रही थी, और बाकी सब जैसे मूर्तियों की तरह खड़े थे।