अभिमन्यु और असलम के बीच का यह टकराव गेराज के तनावपूर्ण माहौल को और भी गंभीर बना रहा था। गेराज के भीतर फैले लोहे, तेल, और धूल की महक ने एक खतरनाक स्थिति की पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी और जैसे ही असलम ने उसके सामने लड़खड़ाते हुए कहा, "रंगा बॉस से मिलना है," माहौल और भी गंभीर हो गया।
अभिमन्यु ने अपनी आँखों में एक तीखा भाव लेकर सीधे असलम की तरफ देखा और शांत, लेकिन तेज आवाज़ में कहा, "हाँ, तो कब मिलवा रहे हो?"
असलम, जो पहले ही डरा हुआ था, अब और ज्यादा घबराने लगा। उसके चेहरे पर पसरी असहजता और उसके झुके कंधे उसकी मानसिक स्थिति को जाहिर कर रहे थे। उसने अपनी आवाज में हताशा को छुपाने की कोशिश करते हुए कहा, "रंगा बॉस से मिलना इतना आसान नहीं है, खासकर तब जब उनकी नजरों में हम नकारा बन गए हैं। और ये सब कुछ सिर्फ तुम्हारी वजह से हो रहा है।"
अभिमन्यु ने गहरी नजरों से उसे घूरते हुए कहा, "तू बस मुझे इतना बता कि मिलवा सकता है या नहीं?"
असलम ने घबराते हुए कहा, "थोड़ा समय लगेगा।"
अभिमन्यु ने गुस्से भरे स्वर में कहा, "ठीक है, फिर मैं ही उसे ढूंढ लेता हूं।" इतना कहकर वो बाहर की ओर चलने लगा। गेराज के सारे लोग, जो अभी तक चुपचाप खड़े थे, अचानक राहत की साँस लेने लगे, मानो उनकी गर्दनों से एक बड़ा बोझ हट गया हो। असलम के मन में भी एक पल के लिए सुकून आया, उसने सोचा, "चलो, बला टली।"
लेकिन अभिमन्यु अचानक पलट गया और एक ठंडी हंसी के साथ कहा, "वैसे, उनसे मिलकर ये जरूर बताऊंगा कि असलम अब रंगा का नहीं, बल्कि त्रिपाठी का कुत्ता है।"
यह सुनते ही असलम का चेहरा पीला पड़ गया। उसकी आँखों में भय के साये साफ दिख रहे थे। उसके हाथ पसीने से गीले हो गए, और उसने बिना एक पल गंवाए अभिमन्यु के सामने जाकर उसका रास्ता रोक लिया। घबराहट में वह बुरी तरह हकलाते हुए बोला, "नहीं, नहीं! मैं… कल शाम तक कोशिश करता हूँ कि तुमसे मुलाकात हो जाए, लेकिन ये बात किसी और के कानो तक नहीं पहुंचनी चाहिए।"
अभिमन्यु ने एक व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ कहा, "ये हुई न बात! वैसे लंच में क्या है?" यह कहते हुए वह वापस गेराज के भीतर आ गया, जैसे अभी-अभी कोई सौदा तय हुआ हो।
असलम ने राहत की सांस लेते हुए तुरंत अपने फोन से ऑनलाइन ऑर्डर किया। कुछ देर बाद एक डिलीवरी ब्वॉय नान, दाल मखनी और रायता लेकर आया। असलम ने खुद खाना मंगवाया, लेकिन खा नहीं सका। अब माहौल पूरी तरह बदल गया था। जिस जगह पर असलम अक्सर बैठकर खाना खाता था, वहां अब अभिमन्यु बॉस की तरह बैठा था। उसने किसी राजा की तरह अपनी प्लेट उठाई और खाना खाने लगा, जबकि असलम और उसके लोग सहमे हुए खड़े थे।
वहीं, उस आदमी, जिसने पहले अभिमन्यु पर हमला करने की कोशिश की थी, अब सिर झुकाए जमीन पर बैठा था। उसकी हालत ऐसी हो गई थी कि वह खुद को अभिमन्यु के सामने छोटा महसूस कर रहा था और वो बिना कुछ कहे सिर झुकाए नीचे देख रहा था। उसके चेहरे पर गहरे निशान और घायल मनोदशा साफ झलक रही थी।
अचानक, असलम ने धीमी आवाज़ में अभिमन्यु से कहा, "वैसे छोटे बॉस..."
अभिमन्यु, जो अभी तक खाने में मग्न था, अचानक उसकी तरफ मुड़ा और कड़ी आवाज़ में बोला, "क्या कहा तुमने मुझे?"
असलम ने कांपते हुए कहा, "सॉरी... वो मुंह से निकल गया।"
अभिमन्यु ने एक लंबी मुस्कान के साथ कहा, "नहीं, कोई बात नही।"
असलम ने थोड़ी राहत महसूस की और फिर उसने झिझकते हुए पूछा, "आपको ये कैसे पता चला कि अब हम त्रिपाठी के लिए काम कर रहे हैं?"
अभिमन्यु ने अपनी मुस्कान बनाए रखते हुए जवाब दिया, "जल्द ही सब पता चल जाएगा।" इतना कह वो खाने का स्वाद लेते हुए खाने लगा।
कुछ समय बाद, अभिमन्यु अपना खाना खत्म करता है। उसने आखिरी निवाला उठाते हुए असलम की तरफ देखा और मुस्कुराते हुए कहा, "अच्छा खाना था।" फिर वो हांथ मुंह धोकर अपने कपड़े ठीक करता हुआ गेराज से बाहर निकलने लगा।
जैसे ही अभिमन्यु बाहर गया, गेराज के सारे लोग, जो अब तक सांस रोके खड़े थे, सबने राहत की साँस ली। ऐसा लग रहा था मानो वहाँ के लोगों पर से एक भूत का साया हट गया हो। असलम ने अपने माथे से पसीना पोंछते हुए धीमी आवाज़ में कहा, "चलो, इस बार सच में बला टली।"
अभिमन्यु बस स्टैंड की तरफ वापस जा रहा था, उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी जैसे उसे इस शहर की गलियों और यहाँ के लोगों की आदत हो गई हो। उसकी चाल में एक ठहराव था। तभी सैली ने कहा, "बड़े बेशरम हो यार तुम।"
अभिमन्यु ने हंसते हुए जवाब दिया, "गुंडों के साथ शराफत दिखाकर क्या मिलने वाला है?"
सैली ने थोड़ी नाक सिकोड़ते हुए कहा, "ठीक है, तो क्या अब हम घर जाने वाले हैं?"
अभिमन्यु ने मुस्कुराते हुए कहा, "सबसे पहले तो मुझे अपने लिए कुछ कपड़े और बाकी के पर्सनल सामान की शॉपिंग करनी है।" इतना कहते हुए वह थोड़ी देर के लिए शॉपिंग में मशगूल हो गया और फिर धीरे-धीरे शाम होते-होते, करीब चार बजे के आस-पास, वह गीता कॉलोनी अपने घर पहुंचा।
अगली शाम...
अस्लम और अभिमन्यु उस बड़ी और चमकदार इमारत के बाहर खड़े थे, जहां रात के अंधेरे में रंगीन रोशनी चमक रही थी। यह जगह शहर के सबसे बड़े और मशहूर बार और रेस्टोरेंट्स में से एक थी, जहां अमीरज़ादे और बड़ी हस्तियां अक्सर अपनी शामें बिताया करती थीं। बार के बाहर ही हाई-एंड गाड़ियों की कतार लगी थी, जैसे मर्सिडीज़, बीएमडब्ल्यू और ऑडी। आसपास के लोग अपनी महंगी गाड़ियों से बाहर निकलते हुए अंदर जा रहे थे, उनके हाव-भाव से लगता था कि वे न सिर्फ पैसे वाले थे, बल्कि यहां उनके हर कदम पर उनकी पहचान थी।
बार के अंदर पहुंचते ही अभिमन्यु ने देखा कि चारों ओर चमचमाती रोशनी थी। मद्धम रंग-बिरंगी लाइटें, जिनका प्रतिबिंब कांच के ग्लास और बॉटल्स पर पड़ रहा था, एक खास माहौल बना रही थीं। अंदर का इंटीरियर आलीशान था—दूरी तक फैली मार्बल की फ्लोरिंग, दीवारों पर लगे महंगे वॉलपेपर जो रूमानी माहौल तैयार कर रहे थे। बार के पीछे एक विशाल मिरर था, जिसमें सारे ड्रिंक्स की रैक सजी हुई थी। बारटेंडर बड़ी कुशलता से कॉकटेल बना रहे थे और ग्राहकों को खुश रखने के लिए हर किसी से मुस्कुरा कर बात कर रहे थे।
बड़े-बड़े स्पीकर्स से तेज़ म्यूजिक बज रहा था, जिससे वातावरण में जोश और उत्साह था। रेस्टोरेंट के दूसरी ओर बैठे अमीर लोग आपस में हंसते, पीते और नाचते हुए नजर आ रहे थे। कुछ ग्रुप्स आपस में बातचीत में मशगूल थे, जबकि कुछ अकेले अपनी ड्रिंक्स के साथ म्यूजिक का लुत्फ उठा रहे थे। बार के अलग-अलग कोनों में रौशनी की छाया में कुछ कपल्स धीमे धीमे बात करते दिख रहे थे, तो कहीं झुंड में हंसी मजाक की आवाजें सुनाई पड़ रही थीं। यह वो जगह थी, जहां हर किसी की अपनी अलग दुनिया थी, जहां बाहरी दुनिया के शोर से परे ये लोग एक निजी माहौल में जश्न मना रहे थे।
असलम ने अभिमन्यु को इशारा किया और दोनों बार से होते हुए लिफ्ट की तरफ बढ़े। लिफ्ट का दरवाजा खुलते ही अंदर जाते हुए असलम ने तीसरी मंजिल का बटन दबाया। लिफ्ट ऊपर चढ़ने लगी, और जैसे-जैसे वे ऊपर जा रहे थे, म्यूजिक की आवाज़ धीरे-धीरे कम होती गई, लेकिन उस लिफ्ट के शीशे में दिखते अपने प्रतिबिंब को देखते हुए अभिमन्यु ने देखा कि उसके चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान थी। वो जानता था कि यहां कुछ बड़ा होने वाला है।
तीसरी मंजिल पर पहुंचते ही लिफ्ट का दरवाजा खुला। इस मंजिल पर माहौल बिल्कुल बदल गया था। यह एक वीआईपी ज़ोन था, जहां आम लोगों की पहुंच नहीं थी। दीवारों पर हल्की सुनहरी रौशनी थी, और फर्श पर मखमली कालीन बिछा हुआ था। चारों तरफ गार्ड्स खड़े थे—काले सूट में, कानों में ईयरपीस और एक चुस्त, चौकस मुद्रा में। इस जगह की ख़ासियत यह थी कि यहां कोई बाहरी शोर नहीं था। यह पूरा फ्लोर साउंडप्रूफ था, जिसका मतलब था कि चाहे बाहर कितनी भी तेज़ आवाज़ हो, अंदर की हलचल से कोई वाकिफ नहीं हो सकता था।
असलम और अभिमन्यु ने एक दूसरे की तरफ देखा और फिर सबसे बड़े केबिन की ओर बढ़े। वह केबिन सबसे अलग था—बड़ा, शानदार और एक ठहराव भरे खामोशी में लिपटा हुआ। उसके बाहर दो गार्ड्स खड़े थे। जब असलम ने उन्हें रुकते हुए देखा, तो उसने धीरे से एक गार्ड से कहा, "हमें रंगा भाई से मिलना है।"
गार्ड ने संदेह भरी निगाहों से दोनों को देखा, फिर अंदर गया और कुछ मिनटों बाद बाहर आकर कहा, "भाई बुला रहे हैं।"
अंदर कदम रखते ही, माहौल में एक अलग तरह की ठंडक और अधिकार का एहसास हुआ। केबिन के बीचों-बीच एक भारी, लकड़ी का टेबल था, जिसके पीछे रंगा भाई बैठा था। रंगा भाई लगभग 40 साल का, कद में छोटा, सिर पर एक भी बाल न था। उसने सफेद रंग का सूट पहना हुआ था, और उसके गले में मोटी सोने की चेन लटक रही थी। उसके बगल में दो खूबसूरत लड़कियां बैठी थीं, जिन्होंने बहुत ही आकर्षक और रिवीलिंग वाले कपड़े पहने थे, जो इस माहौल को और भी अजीब बना रहे थे। रंगा के चेहरे पर एक नकली मुस्कान थी, जो उसके असल इरादों को छुपाने में नाकाम थी।
रंगा भाई ने एक सिगार उठाया, उसे जलाते हुए अपनी गहरी आवाज में असलम से कहा, "क्या बे, असलम! तुझे बोला था न, अपनी शक्ल मत दिखाया कर। और ये चूज़ा काहे ले आया?"
असलम कुछ कहने को ही था कि अभिमन्यु ने बीच में ही हंसते हुए कहा, "चूज़ा? साला, मैं तो सोच रहा था कि तुम कुछ नया बोलोगे।"
इतना कहकर अभिमन्यु आराम से बगल के सोफे पर बैठ गया। यह देखकर रंगा के गार्ड्स तुरंत चौकन्ने हो गए और एक ने अभिमन्यु के कंधे को पकड़ते हुए उसे गिराने की कोशिश की, लेकिन अभिमन्यु ने एक झटके में उस गार्ड का हाथ पकड़कर उसे घुमा दिया। गार्ड को संभलने का मौका दिए बिना अभिमन्यु ने अपने घुटने से उसके पेट में एक ज़ोरदार लात मारी, जिससे वह दर्द से कराहता हुआ जमीन पर गिर पड़ा। अभिमन्यु ने फिर उसके मुंह पर एक और किक मारी और वापस अपनी जगह पर जाकर गंभीर आवाज़ में कहा, "इसी चूज़े ने तुम्हारे बिहार के आदमियों की धुलाई की थी। इसलिए तुम पेन ड्राइव नहीं ले पाए थे।"
रंगा ने गुस्से से दांत पीसते हुए कहा, "तो तू है वो? जिसकी वजह से मेरा अंगूठा कट गया?"
अभिमन्यु हंसते हुए बोला, "तो क्या, इसलिए तुमने असलम का अंगूठा काट दिया?"
रंगा गुस्से से बोला, "ख़त्म कर दो साले को!"
यह सुनते ही एक गार्ड ने अभिमन्यु पर बंदूक तान दी