जैसे ही अभिमन्यु ने एक गार्ड की तरफ बंदूक तानते देखा, उसने बिना एक पल गवाए अपनी शर्ट की जेब से चमकता हुआ खंजर निकाला और उसे गार्ड के गले में सीधे धंसा दिया। कमरे में अचानक एक सन्नाटा छा गया, जैसे सब कुछ थम सा गया हो। गार्ड का शरीर धीरे-धीरे फर्श पर गिरने लगा, लेकिन अभिमन्यु ने इससे पहले ही उसकी बंदूक छीन ली। उसकी गति इतनी तेज थी कि कमरे में खड़े बाकी गार्ड्स को संभलने का मौका ही नहीं मिला।
अब अभिमन्यु ने उस बंदूक का मुंह सीधा रंगा की तरफ किया और एक गहरी, शांत लेकिन भयानक आवाज में बोला, "अगर जरा भी हिले तो तुम्हारे बॉस का भेजा तरबूज की तरह फट जाएगा।"
गार्ड्स अपनी जगह पर स्तब्ध खड़े हो गए, जैसे किसी अदृश्य रस्सी से बंधे हों। असलम का चेहरा सफेद पड़ गया था, उसकी धड़कनें इतनी तेज थीं कि वह खुद को संभाल नहीं पा रहा था। उसे अब अभिमन्यु से उतना डर नहीं था, जितना डर उसे रंगा से था। उसके दिमाग में यही सवाल गूंज रहा था, "अगर अभिमन्यु मारा गया, तो रंगा मुझे भी नहीं छोड़ेगा।"
रंगा जो अब तक खुद को एक बड़े माफिया की तरह पेश कर रहा था, अंदर से हिल गया था। उसका चेहरा अब भी गंभीर था, लेकिन उसकी आँखों में छिपा हुआ डर साफ नजर आ रहा था। उसने एक भारी आवाज में पूछा, "आखिर तुम चाहते क्या हो?"
कमरे में मौजूद सभी लोग इस सवाल का जवाब जानने को उत्सुक थे। असलम की सांसें थम सी गई थीं, जैसे उसके दिल की धड़कन भी इसी जवाब पर टिकी हो।
अभिमन्यु ने उसकी ओर देखते हुए बड़े ही ठंडे अंदाज में जवाब दिया, "कुछ खास नहीं... बस ये क्लब और पूरा पूर्वी दिल्ली।"
यह सुनकर रंगा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसने गुस्से में कहा, "सही-सही बोल, तुझे क्या चाहिए?"
लेकिन अभिमन्यु ने उसकी तरफ देखकर हल्के से मुस्कराते हुए कहा, "मैं एक ही बात दोहराना पसंद नहीं करता।" इतना कहने के बाद, उसने रंगा के माथे पर सीधा गोली मार दी। गोली की आवाज कमरे की साउंडप्रूफ दीवारों में घुल गई, और रंगा का शरीर सोफे पर बेहरकत गिर पड़ा। उसकी आँखें खुली थीं, लेकिन उसमें अब कोई जीवन नहीं बचा था। कमरे का सबसे बड़ा माफिया, जिसने खुद को इतना बड़ा दिखाने की कोशिश की थी, अब वहीं मर चुका था।
रंगा के मरते ही, कमरे में बची गार्ड्स की टीम अपनी बंदूकें निकालने की कोशिश करने लगी, लेकिन अभिमन्यु की गति उन्हें चौंका देने वाली थी। उसने झटपट दो गार्ड्स को निशाना बनाकर गोली मार दी और फुर्ती से सोफे के पीछे कवर ले लिया। कमरे में अब चार गार्ड्स बचे हुए थे, जो पूरी तरह से घबराए हुए थे। उनके चेहरे पर पसीना साफ झलक रहा था। उनमें से एक ने सोफे के पास आकर अभिमन्यु पर गोली चलाने की कोशिश की, लेकिन उससे पहले ही सोफे की तरफ से एक खंजर उड़ता हुआ आया और सीधे उसके एक आंख पर जा लगा। उसकी चीख पूरे कमरे में गूंज गई। खंजर उसकी आंख में धंसा हुआ था, और खून की धार उसके चेहरे पर बेतहाशा बहने लगी।
इतने में अभिमन्यु ने एक और गार्ड पर गोली चला दी, जो तुरंत जमीन पर गिर पड़ा। खून उसके शरीर से बहता हुआ फर्श पर फैलने लगा, और कमरे की ठंडी हवा में खून की तेज महक घुल गई। अब अभिमन्यु ने उस गार्ड के गले से खंजर निकाला, जो दर्द से तड़प रहा था। खंजर के हटते ही, खून और भी तेजी से बहने लगा, और कुछ ही सेकंड में वह गार्ड भी अपनी आखिरी सांसें लेने लगा।
अभिमन्यु ने सोफे के पीछे से हल्के से झांककर देखा। अब बस दो गार्ड बचे हुए थे, जिनमें से एक ने तेजी से सोफे के पास पहुंचकर उसे मारने की कोशिश की। लेकिन अभिमन्यु पहले से ही तैयार था। उसने एक हाथ से गन तान रखी थी और गार्ड जैसे ही उसके सामने आया, उसने बिना देर किए उसे भी गोली मार दी। गार्ड वहीं ढेर हो गया।
कमरे में अब खून से सनी दीवारें और फर्श पर बिखरे हुए शरीरों की बेकाबू तासीर थी। चारों तरफ एक भयानक सन्नाटा छा गया था, जैसे सब कुछ एक पल के लिए थम गया हो। न तो कोई हलचल थी, न कोई आवाज, बस एक अजीब सन्नाटा जिसने पूरे कमरे को अपनी गिरफ्त में ले लिया था।
कमरे के कोने में पड़ी लाशों से टपकते खून की बूंदें अब धीरे-धीरे फर्श पर गिर रही थीं, जिससे एक अजीब सी थाप गूंज रही थी, जैसे कोई घड़ी के कांटे टिक-टिक कर रहे हों। सोफे के पीछे छिपा हुआ अभिमन्यु, अब तक अपने हर एक मूवमेंट को बारीकी से मापते हुए, धीरे से बाहर निकला। उसके कदमों की आहट फर्श पर बिखरे खून के तालाब में डूबने लगी। उसकी निगाह अब कमरे के आखिरी तड़पते हुए आदमी पर थी, जो दर्द से कराह रहा था। उसकी आँखें खून से सनी थीं और चेहरा सफेदी में बदल चुका था, लेकिन वो अभी भी सांसें ले रहा था।
अभिमन्यु ने कोई जल्दबाज़ी नहीं की। उसने अपनी गन को बहुत ही आराम से तान रखा था, और उसकी चाल में एक बेपरवाही थी, जैसे उसे मालूम हो कि अब इस कमरे में उसकी मौत का कोई खतरा नहीं बचा। उसकी आँखों में अब कोई क्रोध या डर नहीं था, बल्कि सिर्फ एक शांत सुकून था, जैसे उसने अपनी लड़ाई जीत ली हो।
कमरे की भीनी रौशनी में खून की लाली और भी गहरी दिखने लगी थी। दीवारों पर टंगी तस्वीरें, महंगे झूमर और लकड़ी के भारी फर्नीचर इस खूनी मंजर के गवाह बन चुके थे। अभिमन्यु ने धीरे-धीरे अपनी बंदूक उठाई और अंतिम तड़पते गार्ड की ओर निशाना साधा। उसकी उंगलियों ने ट्रिगर को हल्के से दबाया और गोली की आवाज फिर से कमरे में गूंज उठी। गोली सीधे उस आदमी के सिर में लगी, और एक झटके में वह भी बेसुध होकर जमीन पर ढेर हो गया।
अब कमरे में बस एक बार फिर से मौत की खामोशी लौट आई थी। सोफे के पीछे से अभिमन्यु ने एक बार चारों ओर देखा, उसकी आँखों में कोई हिचक नहीं थी। उसने ये सब पहले भी देखा था। यह सब उसके लिए नया नहीं था। मौत का खेल, खून की बौछारें, और मरते हुए इंसानों की कराहें—ये सब उसके लिए एक परिचित अनुभव थे, जैसे ये सब अब उसकी जिंदगी का हिस्सा बन चुके हों। उसने धीरे-धीरे अपनी गन नीचे कर ली, मानो वह जानता हो कि अब उसका काम खत्म हो गया है।
फर्श पर खून से लथपथ लाशों के बीच बस दो लोग ही बचे थे—असलम और कमरे के कोने में सहमी हुई दो लड़कियाँ। दोनों लड़कियों के चेहरे पर गहरा डर साफ झलक रहा था। वे कांप रही थीं, उनकी आँखों में खौफ था और शरीर जैसे किसी बर्फीले सन्नाटे में ठहर गया हो। उनके होठों पर कोई शब्द नहीं थे, पर उनकी आँखें बिन बोले ही पूरी कहानी कह रही थीं—वो दहशत, वो डर, वो भयानक सच जिसे उन्होंने अपनी आँखों से देखा था।
असलम का चेहरा एकदम सफेद पड़ चुका था, उसकी आँखों में मौत का डर झलक रहा था। वह हिल भी नहीं पा रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या होगा। अभिमन्यु ने उसकी ओर देखा, लेकिन उसके चेहरे पर कोई खास भाव नहीं थे। वह पूरी तरह से शांत था, मानो यह सब कुछ उसके लिए बहुत सामान्य हो।