रात के अंधेरे में कपिल मेहता की गाड़ी तेज़ी से सीलमपुर की तरफ बढ़ रही थी। आसमान में काले बादल छाए हुए थे, और हल्की बारिश ने शहर की सड़कों को गीला कर दिया था। गाड़ी की विंडशील्ड पर गिरती बारिश की बूंदें कपिल के गुस्से को ठंडा करने के बजाय और भी बढ़ा रही थीं। कपिल की आंखों में एक अजीब-सी चमक थी, एक ऐसी चमक जो बदले और खून की प्यास से भरी थी।
सीलमपुर की तंग गलियों में घुसते ही उसकी गाड़ी की हेडलाइट्स से गली के किनारे की जर्जर इमारतें झिलमिला उठीं। कपिल मेहता आज पागलों की तरह असलम और उसके आदमियों को खोज रहा था। उसका मन जल रहा था, जैसे कोई धधकता हुआ अंगारा। रंगा का खून, उस लड़के का अचानक से आकर सबकुछ तबाह कर देना, और असलम का गायब हो जाना – यह सब कपिल को अंदर ही अंदर खाए जा रहा था।
सीलमपुर के पास एक पुरानी फैक्ट्री थी, जिसे अब बंद कर दिया गया था। वही जगह अब कपिल के छोटे-मोटे कामों के लिए इस्तेमाल की जाती थी – खासतौर पर जब किसी से सख्त पूछताछ करनी हो। फैक्ट्री के अंदर की दीवारें टूट-फूट चुकी थीं और चारों ओर जंग लगी लोहे की मशीनें रखी थीं, जिन पर धूल की मोटी परत जम चुकी थी। अंदर की हवा में सीलन और जंग की बू थी, जो जगह की दयनीय हालत को और भी जाहिर कर रही थी।
कपिल मेहता वहां एक कुर्सी पर बैठा था, और उसके सामने घुटनों के बल बैठा एक आदमी हांफते हुए अपने दोनों हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रहा था। उसकी आंखों में डर साफ नजर आ रहा था। उसकी मां, जो थोड़ी दूरी पर खड़ी थी, कपिल के सामने गिड़गिड़ा रही थी, "बाबूजी, मेरे बेटे को छोड़ दीजिए, वो कुछ नहीं जानता।"
कपिल ने अपनी क्रूर मुस्कान के साथ उसकी ओर देखा, फिर ठंडे स्वर में कहा, "ठीक है, छोड़ दूंगा। लेकिन पहले इसे ये बताना होगा कि असलम किसे अपने साथ लेकर आया था।"
आदमी के चेहरे पर डर और भी गहरा हो गया। उसका चेहरा पसीने से तर था, और उसकी आंखें असहाय लग रही थीं। वह कांपते हुए बोला, "बॉस, हमें उस लड़के का नाम नहीं पता। कुछ दिनों पहले जब हम बिहार में उस पेन ड्राइव को लेने गए थे, तब उसी लड़के ने इस चोर को बचाया था। और अभी दो दिन पहले वो अचानक हमारे सामने आ गया और धमकी देने लगा कि उसे रंगा से मिलना है। असलम बॉस उससे डर गए और सोचा कि अब जो भी हो, रंगा और वो लड़का आपस में जो कर लें। जब असलम उसे रंगा से मिलाने ले गया, तो वहीं उसने रंगा बॉस को मार डाला। उसके बाद आपके डर से और उस लड़के के डर से हम सब लोग अंडरग्राउंड हो गए।"
कपिल की आंखों में गुस्से की लहर दौड़ गई, लेकिन उसने खुद पर काबू रखते हुए गहरी सांस ली और फिर धीरे से बोला, "और असलम? वो कहां है?"
आदमी ने कांपते हुए कहा, "हमें नहीं पता, बॉस। उसने हमें कुछ नहीं बताया कि वो कहां जा रहा है। लेकिन हमें हाल ही में पता चला था कि करोल बाग में उसकी कोई गर्लफ्रेंड रहती है। शायद वो वहीं गया हो।"
कपिल ने ठंडे स्वर में कहा, "ठीक है, चल मेरे साथ।" फिर उसने अपने एक आदमी को इशारा किया, "एक स्केच आर्टिस्ट को बुलाओ और उस लड़के का स्केच बनवाओ।"
उस फैक्ट्री की अंधेरी दीवारों के बीच एक भयानक खामोशी छा गई। कपिल के लिए यह सिर्फ एक और दिन था – एक और कदम उस जाल को सुलझाने की ओर, जो अब उसकी जान पर भारी पड़ रहा था। वह जानता था कि असलम के गायब होने से उसके दुश्मनों को ताकत मिलेगी, और यह उसे बर्दाश्त नहीं था।
अगले दिन जब अभिमन्यु अपने काम में व्यस्त था, तभी उसके फोन पर अचानक असलम का कॉल आया। कॉल उठाते ही असलम की आवाज़ घबराई हुई थी, "छोटे बॉस, वो कपिल मेहता आपको पागल कुत्ते की तरह ढूंढ रहा है। उसने मेरे एक आदमी को पकड़ लिया है और अब वो मुझे और आपको ढूंढ रहा है।"
अभिमन्यु ने ठंडी आवाज़ में कहा, "हां, तो इसमें इतना टेंशन लेने की क्या बात है?"
असलम ने हड़बड़ाते हुए कहा, "लेकिन बॉस, वो—"
अभिमन्यु ने उसे बीच में ही रोकते हुए कहा, "जब तक कुछ इंपॉर्टेंट न हो, फोन मत करना।" इतना कहकर अभिमन्यु ने फोन काट दिया और वापस अपने कस्टमर्स को सर्व करने लगा। उसकी दुनिया में बाहर की हलचल का कोई खास असर नहीं था, वो अपने धंधे में मग्न था।
दूसरी तरफ, कपिल मेहता अपने ऑफिस में बैठा हुआ था, और उसके सामने एक आदमी आया जिसके हाथ में अभिमन्यु का स्केच था। कपिल ने उस स्केच को उन गार्ड्स और उन दोनों लड़कियों से कन्फर्म करवाया, जो उस रात क्लब में थे और जिन्होंने अभिमन्यु को देखा था। सबने एक बार उस स्केच को गौर से देखा और बिना हिचकिचाहट उसे पहचान लिया, "हां, यही वो लड़का था।"
कपिल ने गुस्से से कहा, "इस लड़के के बारे में सबकुछ पता करो। कौन है, क्या करता है, सब कुछ!" उसने अपने आदमियों को आदेश दिया ही था कि अचानक वहां कुछ लोग दाखिल हुए। ये कोई और नहीं बल्कि सूरज त्रिपाठी था, जिसके साथ शुक्ला और कुछ और आदमी थे। सभी ने काले रंग की शर्ट और पैंट पहने हुए थे, और त्रिपाठी ने सफेद कुर्ता और जींस पहनी हुई थी, माथे पर लाल तिलक और आंखों पर काले चश्मे के साथ। शुक्ला ने भी सिल्वर रंग का कुर्ता और जींस पहनी हुई थी और माथे पर लाल तिलक लगाया हुआ था।
त्रिपाठी ने जोश में हंसते हुए कहा, "क्या बात है मेहता, बड़ा एंग्री लग रहा है। क्या बिहार में हमने जो तुम्हारे आदमियों के साथ किया, इसलिए नाराज हो?"
कपिल, त्रिपाठी को वहां देखकर हैरान था। उसे समझ नहीं आया कि त्रिपाठी आखिर दिल्ली क्यों आया है। थोड़ी देर के लिए कपिल की मुस्कान झूठी लग रही थी, लेकिन उसने जल्दी से अपने भाव काबू में करते हुए कहा, "अरे नहीं त्रिपाठी भाई, हमारे धंधे में तो फायदा-नुकसान चलता रहता है। गलती हमारे आदमियों की थी कि उन्होंने आपको नाराज किया। और वैसे भी नुकसान भी हमारी लापरवाही की वजह से हुआ था जो उस चोर को अपने राज्य से भागने दिया। लेकिन आप बताइए, दिल्ली कैसे आना हुआ?"
त्रिपाठी ने बड़े ही इत्मीनान से कपिल के सामने बैठते हुए कहा, "वो क्या है कि अब हमारी वजह से तुम्हारा इतना नुकसान हुआ, तो सोचा कि थोड़ी भरपाई कर दें। इसलिए बस एक बिजनेस ऑफर लेकर आए हैं।"
कपिल ने हल्की मुस्कान के साथ उत्सुकता दिखाते हुए पूछा, "अच्छा! किस तरह का ऑफर?"
त्रिपाठी ने हंसते हुए जवाब दिया, "तुम काफी समय से ड्रेक से दोस्ती करके अपना बिजनेस बढ़ाना चाहते थे, क्यों, सही कहा ना?"
कपिल थोड़ा चौंकते हुए बोला, "लगता है, तुम मुझपर काफी ध्यान देते हो।"
त्रिपाठी ने कंधे उचकाते हुए कहा, "क्या करें, यही धंधा है। खैर, मैं तुम्हारी ड्रेक के साथ मुलाकात करवा सकता हूं।"
ड्रेक एक बड़ा व्यवसायी था, जिसके कई तरह के छोटे-मोटे बिजनेस भारत में फैले हुए थे, पर ये सिर्फ एक बाहरी दिखावा था। असल में वह रूसी माफिया के लिए काम करता था, जो भारत में उसके सभी बिजनेस को नियंत्रित करता था। ड्रेक आधा मैक्सिकन और आधा भारतीय था, लंबा कद, चौड़ा शरीर, और लगभग 50 साल का था। उसके लगभग सारे बाल सफेद हो चुके थे, लेकिन यह उसके बुढ़ापे की वजह से था या जनेटिकली, इसका पता नहीं था।
सीन सेटिंग
सूरज ढल चुका था, और शहर की गलियां धीरे-धीरे सन्नाटे में डूब रही थीं। अंधेरा अपने पांव पसार चुका था, लेकिन शहर के कुछ हिस्से अभी भी हल्के रोशनी में झिलमिला रहे थे। कारों की हेडलाइट्स अंधेरे को चीरते हुए सड़क पर दौड़ रही थीं। ये एक बिजनेस मीटिंग थी, जो किसी भी आम सौदे की तरह नहीं थी। एक ऐसी मीटिंग, जहां दिखावे के पीछे काले सच छिपे थे।
कपिल और त्रिपाठी दोनों एक आलीशान रेस्टोरेंट में बैठे थे। चारों तरफ हल्की पीली रोशनी थी, मेहंगी शराब के गिलास टेबल पर रखे थे, और हल्की क्लासिकल म्यूजिक की धुन माहौल में एक गम्भीरता ला रही थी। कपिल मेहता एक बड़ा बिजनेस टाइकून था, लेकिन उसके असल धंधे अंधेरों में पलते थे। वहीं त्रिपाठी, जो खुद एक शातिर खिलाड़ी था, कपिल के सामने बड़े आराम से बैठा था, जैसे कोई बखूबी सोची-समझी चाल चलने के बाद अपने शिकार का इंतजार कर रहा हो।
डायलॉग और एक्सप्रेशन
कपिल ने, जिसे त्रिपाठी की चालाकी का अंदाजा था, उसे क्यूरियस होते हुए पूछा, "अच्छा किस तरह का ऑफर?"
त्रिपाठी ने एक हल्की सी मुस्कान फेंकी और कहा, "तुम काफ़ी समय से Drake से दोस्ती करके अपना बिजनेस बढ़ाना चाहते थे, क्यूं सही कहा ना?"
कपिल ने एक पल के लिए उसकी आंखों में देखा, थोड़ी हैरानी के साथ कहा, "लगता है तुम मुझ पर काफी ध्यान देते हो।"
त्रिपाठी ने एक धीमे ठहाके के साथ जवाब दिया, "क्या करें, यही धंधा है।" फिर थोड़ा और नजदीक झुकते हुए उसने कहा, "खैर, मैं तुम्हारी Drake से मुलाकात करवा सकता हूं।"
ये सुनते ही कपिल का दिमाग तेज़ी से चलने लगा। Drake, एक बड़ा नाम, जिसके धंधे दुनियाभर में फैले थे। लेकिन असली खेल कुछ और था। Drake का असली रूप एक रसियन माफिया का आदमी था, जो अपने धंधों की आड़ में खतरनाक कामों को अंजाम देता था। उसकी उम्र लगभग पचास साल थी, लंबे कद और चौड़े शरीर वाला आदमी, जिसके ज्यादातर बाल सफेद हो चुके थे। ये बाल उम्र के कारण थे या उसके खतरनाक धंधों के बोझ से, कहना मुश्किल था।
कपिल ने थोड़ी हैरानी से त्रिपाठी की तरफ देखा और पूछा, "तुम उसे जानते हो?"
त्रिपाठी ने बड़े इत्मिनान से जवाब दिया, "अरे, हमारी अच्छी दोस्ती है। मैंने उसके साथ कई तरह के बिजनेस किए हैं। अगर तुम चाहो, तो मैं तुम्हारी दोस्ती भी उससे करवा सकता हूँ।"
कपिल की आंखों में हल्की सी शंका थी, पर उसने पूछा, "और बदले में तुम्हें कुछ नहीं चाहिए?"
त्रिपाठी ने मुस्कुराते हुए कहा, "बदले में मुझे बस तुम्हारी दोस्ती चाहिए।"
कपिल ने उसकी चालाकी को समझते हुए उसे गहरी नजरों से देखा और फिर एक हल्की मुस्कान के साथ कहा, "बेशक, क्यों नहीं।"
त्रिपाठी ने अपने गिलास की तरफ इशारा किया, "तो फिर एक-एक जाम हो जाए?" दोनों ने महंगी वाइन के गिलास उठाए और एक-दूसरे की ओर cheers करते हुए वाइन का स्वाद लिया।
इसी बीच त्रिपाठी की नजर अचानक टेबल पर रखे एक स्केच पर पड़ी, जो कपिल के सामने रखा हुआ था। स्केच में अभिमन्यु का चेहरा था। त्रिपाठी के चेहरे पर एक पल के लिए अजीब सी हलचल हुई, लेकिन उसने खुद को संयत करते हुए नजरें दूसरी तरफ मोड़ लीं।
पर कपिल की नज़र त्रिपाठी की हलचल पर पड़ चुकी थी। उसने सीधा पूछा, "क्या तुम इस लड़के को जानते हो?"
त्रिपाठी ने अपनी मुस्कान दबाते हुए जवाब दिया, "नहीं, व्यक्तिगत रूप से तो नहीं, पर हां, एकाध बार मिल चुका हूं इससे।"
कपिल ने झट से कहा, "तो ये तुम्हारा आदमी नहीं है? क्योंकि यही वो था जिसने उस चोर की मदद की थी। बाद में तुमने भी मेरे आदमियों को वहां काम करने से मना कर दिया था।"
त्रिपाठी ने तुरंत सफाई दी, "मैं इसे महज संयोगवश जानता हूं, बाकी मेरा इससे कोई कनेक्शन नहीं है।"
कपिल ने फिर एक टेढ़ी नजर से देखते हुए पूछा, "तो मैं अगर इसे जान से मार डालूं, तो चलेगा?"
त्रिपाठी ने बड़े ही हल्के अंदाज में कहा, "हां, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम इसके साथ क्या करते हो। वैसे तुम इसे मारना क्यों चाहते हो? मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे आदमियों की पिटाई करने पर तुम इतनी बड़ी सज़ा देते हो।"
कपिल ने गुस्से से कहा, "उसने सिर्फ उनकी पिटाई नहीं की, बल्कि मेरे राइट हैंड, रंगा को भी मार डाला।"
ये सुनते ही त्रिपाठी का चेहरा थोड़ा बिगड़ गया। वो अपनी वाइन का सिप ले ही रहा