Chapter 30 hotel me रहस्मय मुलाकाते

कपिल ने गुस्से में कहा, "इस लड़के ने सिर्फ उनकी पिटाई नहीं की, बल्कि उसने मेरे राइट हैंड रंगा को भी मार डाला।"

कपिल जो अभी-अभी अपने वाइन का सिप ले रहा था, अचानक से उसके मुंह से वाइन बाहर आ गई और उसे खांसी आने लगी। उसने अपनी खांसी रोकते हुए जल्दी से पूछा, "तो तुम्हारे आदमी रंगा को इसने मारा?"

कपिल ने गंभीर होकर पूछा, "इसके बारे में कुछ और बता सकते हो?"

त्रिपाठी कुछ देर के लिए शांत रहा, उसकी आंखों में गहराई थी। फिर उसने धीरे से कहा, " नही मैं इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता और न ही मेरा इसके साथ कोई संबंध है। वैसे मैं कुछ समय के लिए दिल्ली में ही हूँ। अगर और कुछ चाहिए हो तो मुझसे संपर्क कर सकते हो।"

इतना कहकर त्रिपाठी अपने आदमियों के साथ वहां से निकल गया। कमरे में अब सिर्फ कपिल और उसके कुछ भरोसेमंद लोग बचे थे। त्रिपाठी के जाते ही, कपिल के एक आदमी ने कहा, "वैसे बॉस, क्या सच में वो लड़का त्रिपाठी का आदमी होगा?"

कपिल मेहता ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, "नहीं, इतना तो समझ आ गया की ये लड़का त्रिपाठी का आदमी नही है। लेकिन हां, इन दोनों के बीच जरूर कोई कनेक्शन है। एक काम करो, त्रिपाठी पर नजर रखो, लेकिन उसे भनक न लगे।"

उस आदमी ने सिर हिलाते हुए कहा, "और बॉस, इस लड़के का क्या करना है?"

कपिल ने ठंडे स्वर में कहा, "इसके बारे में सबकुछ पता करो।"

आदमी ने सिर झुकाकर आदेश का पालन करने की हामी भरी और वहां से चला गया।

दूसरी तरफ...

त्रिपाठी और शुक्ला अपनी सफेद फॉर्च्यूनर में बैठे हुए थे। गाड़ी दिल्ली की सड़कों पर तेज़ी से दौड़ रही थी, और उसके पीछे चार काली स्कॉर्पियो गाड़ियां उनके आदमी लेकर चल रही थीं। त्रिपाठी ने अपने चेहरे पर गहरी सोच के भाव रखते हुए शुक्ला की ओर देखा और कहा, "पता करो कि ये अभिमन्यु इस वक्त कहां है।"

शुक्ला ने सिर झुकाते हुए कहा, "जी बॉस," और तुरंत अपने फोन पर कॉल करने लगा। उसके चेहरे पर गंभीरता थी, क्योंकि वह जानता था कि त्रिपाठी के आदेश का पालन करना आसान नहीं होता।

सड़कों पर गाड़ियों का काफिला बिन रुके आगे बढ़ता गया, मानो वह किसी अज्ञात खतरे की ओर बढ़ रहे हों।

त्रिपाठी जब तक दिल्ली में अपने होटल पहुंचा, तब तक शुक्ला ने कई जगहों पर अपनी तहकीकात शुरू कर दी थी।

कुछ देर बाद, शुक्ला तेज कदमों से त्रिपाठी के पास आया। उसका चेहरा थोड़ा चिंतित था। उसने सिर झुकाते हुए कहा, "बॉस, अभिमन्यु कुछ दिनों पहले बिहार से निकलकर दिल्ली आ चुका है, लेकिन यहां वो कहां है इसका हमें अब तक कोई पता नहीं चल पाया है।"

त्रिपाठी, जो होटल के लॉबी में अपने कमरे की ओर बढ़ रहा था, रुककर शुक्ला की ओर मुड़ा। उसकी आँखों में हल्की झुंझलाहट झलक रही थी। उसने गंभीरता से कहा, "जल्द से जल्द उसे ढूंढने की कोशिश करो। मुझे लगता है, वो ज्यादा दूर नहीं है। अगर वो दिल्ली आया है, तो उसे ढूंढना मुश्किल नहीं होना चाहिए।"

शुक्ला ने सिर हिलाते हुए कहा, "जी बॉस," और फिर वहां से तेजी से चला गया। उसकी चाल में अब और भी तेजी आ गई थी, क्योंकि त्रिपाठी का गुस्सा उसे कभी भी महंगा पड़ सकता था।

त्रिपाठी अपने होटल के कमरे की तरफ जा रहा था। जैसे ही वह लिफ्ट के पास पहुंचा, उसने देखा कि लिफ्ट के अंदर एक वेटर खड़ा था। वेटर के सिर पर एक काली कैप थी, जिस पर लिखा था "Café de Bonjour", और उसका चेहरा कैप के नीचे छुपा हुआ था। त्रिपाठी ने उसे देखा लेकिन ज्यादा ध्यान नहीं दिया। होटल में वेटरों का आना-जाना आम बात थी, खासकर इस होटल में जहां अक्सर ऐसे लोग काम करते थे।

लिफ्ट का दरवाज़ा बंद हुआ। अंदर की खामोशी में सिर्फ लिफ्ट के चलने की आवाज़ थी। अचानक, उस वेटर ने त्रिपाठी की ओर देखकर कहा, "तो तुम्हे लगता है मुझे ढूंढना मुश्किल नहीं होगा?"

त्रिपाठी अचानक चौंक गया। उसकी आँखें चौड़ी हो गईं, और उसने तुरंत उस वेटर की तरफ देखा। उसने अपनी कैप उतारी, और त्रिपाठी ने देखा कि ये कोई और नहीं, बल्कि अभिमन्यु था। अभिमन्यु के हाथ में एक छोटा सा बॉक्स था, जिसमें एक केक रखा हुआ था।

अभिमन्यु ने उसकी ओर गहराई से देखते हुए कहा, "मेरी तलाश करना बंद करो।"

त्रिपाठी ने थोड़ी घबराहट और गुस्से के साथ कहा, "तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हें मुझे बताना चाहिए था अगर तुम रंगा को मारने वाले थे?"

अभिमन्यु ने ठंडे स्वर में जवाब दिया, "मैं तुम्हें कोई बात बताना जरूरी नहीं समझता।" यह कहते ही लिफ्ट का दरवाज़ा खुल गया, और अभिमन्यु बाहर निकलकर सीधे कमरा नंबर 108 की ओर बढ़ा। उसने बेल बजाई, और कुछ ही पल बाद दरवाजा खुला। अभिमन्यु बिना किसी झिझक के अंदर चला गया, और दरवाजा धीरे-धीरे बंद हो गया।

कमरे के अंदर विक्रांत बैठा था, जो अभिमन्यु को देखकर थोड़ा चौंक गया। विक्रांत ने हंसते हुए कहा, "तू यहां क्या कर रहा है?"

अभिमन्यु ने मुस्कुराते हुए कहा, "सवाल ये है कि तू यहां क्या कर रहा है?"

विक्रांत ने अपने हाथों को फैलाते हुए कहा, "क्या करूं भाई, मेरा बर्थडे तेरे दो दिन बाद ही आता है। अब घर से भी निकाल दिया गया, तो मैंने सोचा कि दिल्ली में थोड़ा घूम-फिर लूं।"

अभिमन्यु ने उसे घूरते हुए पूछा, "और ये होटल बुक करने के पैसे कहां से आए?"

विक्रांत ने हंसते हुए जवाब दिया, "मां ने कुछ पैसे छुपाकर दे दिए थे, लेकिन अब मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं हैं, इसलिए मैंने सोचा कि तुझे ही याद कर लूं।"

अभिमन्यु ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, "अच्छी कहानी गढ़ी है।"

विक्रांत ने गंभीरता से कहा, "सच कह रहा हूं, मैं तेरे लिए ही आया था।"

अभिमन्यु ने फिर व्यंग्य किया, "तो ये इत्तेफाक ही होगा कि तू उसी होटल में है जहां त्रिपाठी भी ठहरा हुआ है?"

विक्रांत ने सिर हिलाते हुए कहा, "जब मैं यहां आया था, तो मैंने त्रिपाठी को इसी होटल में जाते हुए देखा, इसलिए मैंने यहीं रुकने का फैसला किया।"

अभिमन्यु ने कहा, "ठीक है, लेकिन अब मुझे चलना चाहिए।"

जैसे ही अभिमन्यु दरवाजे की ओर बढ़ा, विक्रांत ने उसे रोकते हुए कहा, "रुक, मेरे पास पैसे नहीं हैं, और मैं तुझे छोड़कर किसी और को नहीं जानता।"

अभिमन्यु ने थोड़ा सोचते हुए कहा, "तो अब तू कमाना शुरू कर। इस परीक्षा का असली मकसद यही है।"

विक्रांत ने झिझकते हुए कहा, "बस कुछ पैसे चाहिए, जब तक मुझे नौकरी नहीं मिल जाती।"

अभिमन्यु ने अपनी जेब से 100 रुपये निकालकर विक्रांत के हाथ पर रख दिए और कहा, "मेरे पास सिर्फ 100 रुपये हैं, इससे काम चला।" इतना कहकर वह दरवाजे की ओर बढ़ गया।

विक्रांत ने 100 रुपये अपनी जेब में डाले और फिर अचानक उसे याद आया कि अभिमन्यु केक भी अपने साथ ले गया था। वो तुरंत होटल से बाहर निकला और लिफ्ट की तरफ भागने लगा। लिफ्ट के दरवाजे बंद हो चुके थे, और अभिमन्यु लिफ्ट के अंदर जा चुका था। विक्रांत तेजी से लिफ्ट की तरफ दौड़ा ही था कि अचानक से शुक्ला सामने से आता हुआ उससे टकरा गया।

दोनों लड़खड़ा गए, और अभिमन्यु लिफ्ट से निकलने में सफल हो गया। विक्रांत धीमे से उठा और जैसे ही वह अभिमन्यु के पीछे जाने की कोशिश कर रहा था, शुक्ला ने उसे रोकते हुए कहा, "ओए, तुझे नहीं लगता कि तुझे मुझसे माफी मांगनी चाहिए?"

विक्रांत ने गुस्से से कहा, "माफी तो तुझे मांगनी चाहिए, तू मेरे रास्ते में आ गया और वो भाग गया!"

शुक्ला ने कड़कते हुए कहा, "लगता है तुझे बड़ों से बात करने की तमीज नहीं है।"

विक्रांत ने महसूस किया कि यह शुक्ला है, जो त्रिपाठी का दायां हाथ माना जाता है। लेकिन शुक्ला विक्रांत के बारे में कुछ नहीं जानता था। स्थिति को भांपते हुए विक्रांत ने कहा, "सॉरी, मुझसे गलती हो गई। मुझे इस कॉरिडोर में नहीं भागना चाहिए था