अगले दिन सुबह रूही और अक्षत जैसलमेर पहुंच चुके थे रूही गाड़ी के बाहर देखे जा रही थी वो जैसलमेर की खूबसूरती को देख रही थी यहां एक अलग ही खूबसूरती थी
रेत के टीले और राजस्थान की रेत सोने की तरह चमक रही थी यह सब देखकर चेहरे पर हल्का सुकून था
वही अक्षत अपने लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था पशर उसकी नज़र रह रह कर रूही पर चली जाती...
जो बहार देखने मे बिजी थी
सुबह करीब 10:00 बजे अक्षत और रूही महल पहुंचते हैं महल किसी दुल्हन की तरह सजा हुआ था महल के गेट पर कई नौकर खड़े थे जैसे ही गाड़ी में महल मे इंटर करती है वहां फूल बरसने लगते हैं
एक नौकर जाकर अक्षत की गाड़ी का गेट खोलता है अक्षत गाड़ी से बाहर निकाल कर रूही की तरफ जा कर रूही का गेट खोलता है. और अपना हाथ आगे बढ़ता है रूही भी कुछ पल मे अक्षत के हाथ को देखती हैं लेकिन फिर वो अक्षत का हाथ पकड़ कर गाड़ी से बाहर आ जाती है
वह देखती है महल काफी बड़ा और सुंदर था कुछ पल में वह अपनी नजर नीचे कर लेती है इस वक्त अक्षत और रूही की जोड़ी बहुत प्यारी लग रही थी
अक्षत रूही का हाथ पकड़ कर महल के अंदर ले जा रहा था
अक्षत ने जब रूही का हाथ अपने हाथ मे देखा तभी उसे बहोत अच्छा लगा रहा था
रूही का छोटा सा गोरा और एकदम मुलायम हाथ अक्षत के बड़े हाथ मे काफ़ी प्यारा लगा रहा था
रूही को अपने हाथ पर अक्षत का गर्म हाथ महसूस हो रहा था जिससे उसे थोड़ी हिम्मत मिल रहिये थी
रूही भी धीरे-धीरे चल रही थी अक्षत रूही का हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले जाता है
उदय भी नौकरो को कुछ समझा रहा था
सभी नौकर हुकूमसा की शादी से बड़े खुश थे एक नौकर जो थोड़े बुजुर्ग थे वो कहते है अच्छा हुआ की हुकुमसा ने शादी कर लि अब इस महल और हुकूमसा की जिंदगी मैं भी खुशियां होंगी इतना कह वह भी मुस्कुरा कर अपने काम मे लग जाते है
अक्षत के कमरे में.....
अक्षत रूही को कमरे में लाकर छोड़ देता और कहता है अब तुम तैयार हो जाएं तुम्हे अपने किए की सजा हर रोज भुगतनी पड़ेगी इतना बोल वो रूही को वही छोड
बाहर छोड़कर निकल जाता है रूही ये सुन कर हल्का घबरा रहिये थी
अक्षत और उदय दोनों ऑफिस पहुंचते हैं
अक्षत उदय से कहता है उदय लंदन वाले प्रोजेक्ट का क्या हुआ ?
उदय कहता है वो हुकूमसा उसमें कुछ इश्यूज है एक बार आप देख लेना वरना शायद इस काम के लिए लंदन भी जाना पड़ेगा अक्षत भी ओके बोल अपने काम में लग जाता है....
वही महल में रूही को सुबह से शाम हो गई थी वह बस खिड़की के पास बैठकर अपनी और श्रेया की यादों को याद करें जा रही थी कुछ देर में वह अपने फोन से श्रेया को फोन कर देती है श्रेया भी कुछ देर में फोन उठा लेती है श्रेया की आवाज सुन रूही की आंखों में एक बार फ़िर आंसू तेर जाते हैं श्रेया भी वहा से hello कहती है श्रेया की आवाज सुन रूही का रोना और तेज हो जाता है
श्रेया रूही को समझाते हुए कहती है
""यार बस बंद कर रोना जो होता महादेव की मर्जी से होता है तू बस खुद का ध्यान रख रूही ने श्रेया को अपने और अक्षत के बारे मे सारी बातों बता दी थी श्रेया की आंखों में भी आंसू थे...
श्रेया थोड़े मजाक के अंदाज में कहती है क्या यार अब तेरे जाने के बाद में डेली उठने में लेट हो जाऊंगी और तेरे हाथ का बना टेस्टी खाना भी मिस करोगे
इतना सुनता रूही के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर जाती है....
दोनों थोड़ी देर बात करती रही फिर फोन रख दिया
रूही को उसके साथ जो जो हुआ सब याद आ रहा tha ऐसे ही सोचते सोचते सुबह से रात हो जाती है अक्षत अभी तक महल नहीं आया था
एक नौकर रूम का गेट खटखटाता है रूही भी उसे अंदर आने का बोल देती है वो नौकर वह कहता है
खाना तैयार है हुकुम रानीसा उसके कहने पर रूही उस नौकर से पोच ती है हुकूमसा नहीं आये है क्या?
नौकर भी है कहता है कि नहीं अभी तक तो नहीं आए रूही भी ठीक है बोल उसे जाने का बोल देती है
नौकर कुछ देर मे खाना रूम में रख चला जाता है रूही ने भी सुबह से कुछ भी नहीं खाया था...
इसलिए उसे भी भूख लगी थी वो भी हाथ मुँह धोकर खाना खाकर सो जाती है..
रात करीब 2:00 बजे अक्षत महल आता है
वह सीधा अपने रूम की तरह बढ़ जाता है वह आराम से गेट खुलता है जैसे उसकी नजरसोई हुई रूही पर पड़ती है वो कुछ पल के लिए रूही को देख ता है
वो इस वक्त बेहद मासूम और प्यारी लग रही थी उसके लंबे बाल बेड पर बिखरे हुए थे अक्षत धीरे से उस के पास आकर बैठता और उसे देखता है कुछ देर में
वो भी उठकर फ्रेश होकर वही रखे सोफे पर बैठ जाता है और न जाने कब रूही को देखते हुए उसकी आंख लग जाती है
सुबह 4:00 अक्षत की नींद रूही की पायल की आवाज से खुलती है जो नींद में करवट ले रही थी अक्षत उठ कर तुरंत फ्रेश होकर बाहर चला जाता है...
सुबह 5:00 रूही की नींद खुलती है वह देख ती है रूम में इस वक्त कोई भी नहीं था पर रूम इस वक्त हल्का सा
बिखरा हुआ था कपड़े सोफे पर पड़े हुए थे ड्रेसिंग टेबल पर भी घड़ी परफ्यूम सब ऐसी पड़ा हुआ था
रूही उठकर चारों तरफ देखती है उसे रूम में कोई नजर नहीं आता वो खुद से कहती हैं
""मतलब वह यहां आए और वापस चले भी गए वह इतना कह वह उठ जाती है और रूम को समटने
लगती है वह फ्रेश होने बाथरूम में चली जाती है वो नहा कर रूम मे आती है और अलमारी की तरफ बड़ जाती
है वहां उसकी जरूरत का सारा सामान वहां पर मौजूद था वह जल्दी से एक गुलाबी रंग का राजस्थानी पोशाक पहन लेती है और वह जल्दी तैयार हो चुकी थी
रूही इस वक्त बहुत प्यारी लग रही थी वह जैसे
बाहर आती है वो एक नौकर से पूछती है सुनिए ये हुकूम सा कहां है नौकर कहता है जी वो हुकूमसा सुबह दो बजे निकल गए
हुकूमरानी सा वो नाश्ता रेडी है रूही उस नौकर से mउसे मंदिर का पूछ पूजा करने चली जाती है वह पूजा करती है और नाश्ता कर महल देखने की लगती है
वो खुद से कहती है तो यह सजा दी है आपने हुकुम सा आप महल में आते हैं और चले जाते हैं बस मेरे सामने नहीं आ रहे इतना बोल वो गहरी सास ले कर खुद से ही कहती है "" जैसी महादेव की मर्जी ""
इतना कह वो घूमती घूमती गार्डन में पहुंच जाती है बगीचा बहुत ही सुंदर और बड़ा था वहांहर तरफ बहुत सुंदर-सुंदर फूल लगे हुए थे एक छोटा सा तालाब था जिसके आसपास गोल पत्थर लगे हुए थे
गार्डन में बैठने की भी बहुत सुंदर जगह बनाई हुई थी जिसमें व्हाइट टेबल और और कुर्सी थी
गार्डन में एक प्यारा सा झूला भी था गार्डन की सुंदर-सुंदर फूल और पानी को देखकर ना चाहते हुए भी रूही के चेहरे पर इस वक्त मुस्कान आ जाती है वो ऐसे ही गार्डन मे घमने लगती है वो खुद से कहती है नजाने किस बात की सजा मिल रही है मुझे यही की मैने एक आदमी के साथ गलत होने से रोका.. इतना सोचते हुए उसकी आँखों के सामने एक बार अक्षत का चेहरा घूम गया वो खुद से कहती है पता नहीं क्या है हुकूमसा कैसे मै इनके साथ इस महल मे रहोगी महादेव अब आप ही कोई रास्ता दिखाये....
आज के लिए इतना ही
क्या होगा अब रूही की जिंदगी मे क्या होगी अक्षत के मन की नफरत दूर जानने के लिए पढ़ते रहिये
रीडर्स please अगर आप को कहानी पसंद आ रही है तो review देना ना भूले.. Thank you ☺️☺️☺️☺️🍀
चेतना ☺️