सच या साज़िश

रात का तीसरा पहर था। सुमित्रा के हाथ से दरवाजे की चौखट छूट चुकी थी। आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा। पुलिस अफसर के शब्द उसके कानों में हथौड़े की तरह गूंज रहे थे—

"हरीश शर्मा जी का एक्सीडेंट हो गया है… हमें उनकी लाश मिली है!"

"न...न...नहीं! यह नहीं हो सकता!"

वह धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ी। छोटे आरव ने घबराकर माँ का हाथ पकड़ लिया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अचानक क्या हो गया।

पास खड़ी बूढ़ी दादी भी फूट-फूट कर रो पड़ीं। घर का एकमात्र सहारा चला गया था।

पुलिस अफसर ने गंभीर आवाज़ में कहा, " हमें शक है कि यह कोई हादसा नहीं, बल्कि…"

उन्होंने रुककर चारों ओर देखा, जैसे कोई उनकी बातें सुन रहा हो।

"…एक सोची-समझी साज़िश हो सकती है!"

शहर के बाहर, सुनसान सड़क पर…

तीन आदमी अंधेरे में खड़े थे। उनकी आँखों में चमक थी, जैसे कोई बड़ा काम कर लिया हो।

एक ने धीमे से कहा, "काम हो गया। हरीश शर्मा अब इस दुनिया में नहीं हैं!"

दूसरे ने सिगरेट जलाते हुए हंसकर कहा, "अब आरव और उसकी माँ… हमारी मुट्ठी में हैं।"

अगली सुबह…

गली में चहल-पहल थी। लोगों की भीड़ घर के बाहर जमा थी। सफेद कपड़ों में लिपटा एक शरीर दरवाजे के बाहर रखा था। हरीश शर्मा की अर्थी सजाई जा रही थी। मोहल्ले के लोग अफसोस जता रहे थे—

"बेचारी सुमित्रा… विधवा हो गई!"

"छोटा बच्चा है… अब इनका क्या होगा?"

आंसुओं के बीच सुमित्रा ने हरीश का चेहरा देखा। उनकी आँखें अब हमेशा के लिए बंद हो चुकी थीं। वह कांपते हाथों से उनके चेहरे को सहलाने लगी।

"आप हमें छोड़कर कैसे जा सकते हैं…? आरव को तो आपके कंधों पर बैठकर दुनिया देखनी थी…"

छोटा आरव माँ से लिपट गया। उसकी मासूम आँखों में डर और उलझन थी।

चार लोगों ने आगे बढ़कर अर्थी को उठाया। श्मशान घाट की ओर जाते वक्त पूरा मोहल्ला उनके पीछे था। लेकिन सुमित्रा की दुनिया अब वीरान हो चुकी थी।

कुछ दिन बाद…

घर में सन्नाटा पसरा था। हवन की राख अब भी फर्श पर बिखरी थी।

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।

सुमित्रा ने धीरे से दरवाजा खोला। सामने वही पुलिस अफसर खड़ा था। उनके चेहरे पर कुछ संजीदगी थी।

"हमें आपके पति के एक्सीडेंट की कुछ रिपोर्ट मिली है… बात कुछ अजीब लग रही है।"

"मतलब?" सुमित्रा ने पूछा।

"एक्सीडेंट वहाँ हुआ, जहाँ अक्सर कोई गाड़ी नहीं जाती… और उनकी जेब से एक अधजला कागज़ भी मिला था, जिसमें कुछ अजीब बातें लिखी थीं।" पुलिस ऑफिसर ने जवाब दिया।

सुमित्रा की आँखों में बेचैनी झलकने लगी। पुलिस अफसर ने एक मुड़ा-तुड़ा कागज़ निकाला। उस पर अधूरी लिखावट थी—

"अगर मुझे कुछ हो जाए, तो समझ लेना कि यह…"

बाकी हिस्सा जला हुआ था।

"क्या आपके पति को किसी से कोई खतरा था?" अफसर ने पूछा।

सुमित्रा सोच में पड़ गई।

हरीश पिछले कुछ दिनों से परेशान थे। कई बार उन्होंने कहा था— "सुमित्रा, कुछ लोग हमारे पीछे पड़े हैं… लेकिन मैं सब संभाल लूंगा!"

लेकिन सुमित्रा ने इसे आम परेशानी समझकर नजरअंदाज कर दिया था।

अब लगता था कि यह कोई साधारण एक्सीडेंट नहीं था… बल्कि एक साजिश थी।

पुलिस ऑफिसर चला जाता है और सुमित्रा सोच में पड़ जाती है, और फिर समय बीतने लगता है।

और फिर.....

उसी रात, आरव अपनी माँ के पास लेटा था। उसकी मासूम आँखों में डर था।

"माँ, पापा क्यों नहीं आए?"

सुमित्रा ने बेटे को सीने से लगा लिया।

"पापा बहुत दूर चले गए, बेटा…"

"क्या मैं उनसे कभी मिल पाऊंगा?"

सुमित्रा की आँखों से आंसू बह निकले।

"नहीं, बेटा…"

आरव की मासूमियत अब भी बाकी थी, लेकिन उसकी किस्मत में मासूम रहना नहीं लिखा था।

अगली सुबह, सुमित्रा दरवाजा खोलने गई, तो नीचे एक कागज़ पड़ा था।

उस पर लिखा था—

"अगर जिंदा रहना चाहती हो, तो सच जानने की कोशिश मत करना!"

सुमित्रा के हाथ कांपने लगे। उसने चारों ओर नजर दौड़ाई, मगर कोई नजर नहीं आया।

अब यह साफ था— हरीश की मौत एक हादसा नहीं, बल्कि हत्या थी।

लेकिन कातिल कौन था? और वह क्यों चाहता था कि सुमित्रा सच से दूर रहे?

पूरे दिन सुमित्रा सोच में और डर के साए में रहती है,की कौन है ये लोग और हम लोगों से क्या चाहते है, क्या आरव की जान को भी खतरा है।

उस रात, घर में घना सन्नाटा था। हवाएं दरवाजों को रहस्यमय तरीके से हिला रही थीं। आरव अपनी माँ के पास सो रहा था, लेकिन सुमित्रा की आँखों में नींद नहीं थी।

तभी…

दरवाजे पर धीरे-धीरे दस्तक हुई। "ठक... ठक... ठक..."

"इतनी रात को कौन आ सकता है?"

सुमित्रा का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने कांपते हाथों से दरवाजा खोला…

पर बाहर कोई नहीं था।

लेकिन नीचे फिर से एक कागज़ पड़ा था।

इस बार उस पर सिर्फ़ एक नाम लिखा था—

"आरव"

अचानक बिजली कड़कती है!

तेज हवा का झोंका दरवाजे को ज़ोर से झटका देता है। घर का एक कोना अंधेरे में डूब जाता है।

सुमित्रा तेजी से मुड़ी… लेकिन उसके चेहरे की रंगत उड़ गई।

आरव बिस्तर पर नहीं था!

उसका कंबल फर्श पर पड़ा था… खिड़की का पर्दा हवा में लहरा रहा था।

"आरव आरव !!"

सुमित्रा की चीख पूरे घर में गूंज उठी।

सामने कोई खड़ा था…

सुमित्रा घबराकर पीछे हटी। सामने एक लंबा साया खड़ा था। अंधेरे में उसकी शक्ल नहीं दिख रही थी, लेकिन उसकी मौजूदगी से माहौल ठंडा पड़ गया था।

फिर… उसने धीरे से कुछ कहा—

"तुमने मुझसे कहा था कि यह खेल खत्म हो गया…"

"लेकिन खेल अभी शुरू हुआ है!"

सुमित्रा की साँसें रुक गईं।

क्या आरव सुरक्षित है?

कौन है यह रहस्यमयी इंसान?

हरीश की मौत का असली सच क्या है?

पढ़िए – घर का चिराग – एपिसोड 3!