रहस्यमयी अतीत

जैसे ही हवेली हिलने लगी, आरव की आँखें बंद हो गईं। उसका सिर चकरा रहा था, जैसे किसी ने उसकी यादों में ज़बरदस्ती कुछ भर दिया हो। जब आँखें खुलीं, तो उसने खुद को एकदम अलग जगह पाया। वो वापस अपने घर में था!

आरव बिस्तर पर बैठा था। बगल में सुमित्रा बैठी थी, जो धीरे-धीरे उसके सिर पर हाथ फेर रही थी। वीर प्रताप पास में खड़े थे।

"यह... यह कैसे हुआ?" आरव ने घबराकर पूछा।

सुमित्रा की आँखों में आँसू थे। "बेटा, तू बेहोश हो गया था। हम तुझे लेकर यहाँ वापस आ गए।"

लेकिन कुछ ग़लत था।

आरव ने अपने आस-पास देखा। घर तो वही था, लेकिन… कुछ अजीब था। घड़ी रुकी हुई थी। खिड़कियों से कोई रोशनी नहीं आ रही थी। और… घर में एक अजनबी बैठा था!

"तो अब जाग गए, छोटे साहब?" अजनबी ने पूछा।

आरव ने चौंककर देखा। सामने कुर्सी पर एक 50-55 साल का आदमी बैठा था, जिसकी आँखों में एक अजीब-सा ठहराव था। उसके हाथ में एक पुरानी घड़ी थी, जिसे वह धीरे-धीरे घुमा रहा था।

"आप... आप कौन हैं?" वीर प्रताप ने पूछा।

आदमी ने मुस्कराकर घड़ी टेबल पर रख दी। "मैं? मैं वो हूँ जो तुम्हारी दुनिया को बदलने आया हूँ। और मैं आरव की सच्चाई जानता हूँ!"

आरव के दिमाग़ में बिजली-सी कौंधी। "कौन-सी सच्चाई?"

कमरे में गहरी खामोशी थी। हवा ठहरी हुई लग रही थी। बूढ़ा आदमी टेबल पर रखी घड़ी को धीरे-धीरे घुमा रहा था, जैसे समय को उल्टा मोड़ने की कोशिश कर रहा हो।

"आरव, तुझे पता भी है कि तू कौन है?" उसकी आवाज़ रहस्यमयी थी।

आरव ने उलझन में सिर हिलाया।

बूढ़े आदमी ने एक गहरी सांस ली और बोलना शुरू किया, "आज से 28 साल पहले, अमावस्या की काली रात में एक शैतानी राक्षस का जन्म हुआ था। वो कोई साधारण प्राणी नहीं था… वो शैतानों का राजा था! दानवी शक्तियां थी उसके अंदर, उसका जन्म शैतानी और प्रेत आत्माओं को पुनर्जीवित करने के लिए हुआ था उसे खत्म करने के लिए कई कोशिशें की गईं, लेकिन कोई भी उसे मार नहीं सका।"

वीर प्रताप और सुमित्रा सकते में थे।

"तो फिर क्या हुआ?" वीर प्रताप ने धीरे से पूछा।

"तब एक भविष्यवाणी हुई…" बूढ़े आदमी ने गहरी सांस ली। "उस रात कहा गया था कि 21 साल बाद पूर्णिमा की रात में एक चिराग जन्म लेगा, जो इस शैतानी राक्षस का अंत करेगा।"

आरव का सिर घूम गया।

"तब… क्या वो चिराग मैं हूँ?" आरव ने फुसफुसाते हुए पूछा।

बूढ़े आदमी ने सिर हिलाया। "हाँ, और इसी वजह से तुम्हारे पिता हरीश की मौत हुई।"

आरव और सुमित्रा सोच में पड़ गए।

"क्या?? मेरे पापा की मौत…" आरव ने पूछा

बूढ़े आदमी की आँखें गंभीर हो गईं। "जब तू सात साल का था, तब राक्षस को तेरे जन्म के बारे में पता चल गया था। वो तुझे खत्म करना चाहता था, लेकिन हरीश तेरा सबसे बड़ा रक्षक था। उसने अपनी जान की परवाह किए बिना तुझे बचाने की कोशिश की।"

"और फिर…?" सुमित्रा की आँखें भर आईं।

"फिर हरीश ने तुझे और सुमित्रा को एक रहस्यमयी दुनिया में भेज दिया, जहाँ तेरा बचपन सुरक्षित रह सके। लेकिन उसने अपनी जान दांव पर लगा दी।"

"क्या पापा की मौत उसी राक्षस ने की?" आरव के दिल में दर्द था, लेकिन अब गुस्सा भी था।

बूढ़ा आदमी चुप हो गया। उसकी आँखों में एक अजीब चमक थी।

"सच्चाई सिर्फ मैं जानता हूँ… और अब तुझे भी जाननी होगी।"

"लेकिन ध्यान रख, बेटा…" बूढ़े आदमी ने आरव की ओर इशारा किया, "अब जब तू इस दुनिया में लौट आया है, तो राक्षस को भी तेरे होने का अहसास हो गया होगा। वो अब तुझे खत्म करने आएगा!"

कमरे में सन्नाटा था। बूढ़ा आदमी अपनी कुर्सी पर हल्का सा झुका और आरव की आँखों में देखने लगा।

"तू जानना चाहता है कि मैं कौन हूँ?" उसकी आवाज़ धीमी लेकिन गहरी थी। आरव ने गहरी सांस ली। "हाँ। और ये भी कि तुम्हे कैसे पता चला कि मैं ही वो चिराग हूँ जो उस शैतानी राक्षस का अंत करेगा?"

बूढ़ा आदमी मुस्कराया। उसकी आँखों में अजीब-सा ठहराव था। उसने सामने रखी घड़ी उठाई और धीरे-धीरे उसकी सुइयाँ घुमाने लगा। बूढ़े आदमी ने अपनी जगह से उठकर खिड़की के पास जाते हुए कहा, "मेरा नाम है—व्यास। मैं समय का रक्षक हूँ।"

"समय का रक्षक?" वीर प्रताप ने चौंककर पूछा।

"हाँ, मैं एक साधारण इंसान था, लेकिन मुझे एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी दी गई थी। मुझे उन घटनाओं को देखना और संजोना था, जो इस दुनिया की कड़ी हैं। मैं भविष्य की झलक देख सकता हूँ, और अतीत के रहस्यों को पढ़ सकता हूँ।"

आरव के चेहरे पर संदेह था। "अगर तुम सब देख सकते हो, तो क्या तुमने मेरे पिता को मरते हुए भी देखा था?" व्यास की आँखों में दर्द था। उसने सिर झुका लिया और कहा - "हाँ… और यही सबसे बड़ा अफसोस है कि मैं उसे बचा नहीं सका।"

आरव की मुट्ठियाँ भींच गईं। "लेकिन अगर पापा मरे थे, तो उन्होंने हमें दूसरी दुनिया में कैसे पहुँचाया? और अगर उन्होंने हमें वहाँ सुरक्षित रखा था, तो हमारे साथ इतनी मुश्किलें क्यों आईं?"

व्यास ने गहरी सांस ली। "जब तेरा जन्म हुआ, तब तेरी रक्षा के लिए कई शक्तियाँ काम कर रही थीं। हरीश उन लोगों में से एक था, जो जानते थे कि तू ही राक्षस का काल बनेगा। लेकिन वो यह भी जानते थे कि जब तक तू बड़ा नहीं होता, तब तक तेरा सामना राक्षस से नहीं होना चाहिए।"

आरव चुपचाप सुन रहा था।

"इसलिए हरीश ने एक प्राचीन द्वार का इस्तेमाल किया। ये द्वार सिर्फ उन्हीं लोगों को ले जा सकता था, जिनकी नियति इस दुनिया से अलग लिखी गई हो। उसने तुझे और सुमित्रा को उस द्वार से दूसरी दुनिया में भेज दिया।"

वीर प्रताप ने बीच में टोका, "तो फिर वहाँ इतनी मुश्किलें क्यों आईं? अगर वो दुनिया सुरक्षित थी, तो…"

व्यास ने हल्की हँसी भरी। "यही तो खेल था। हरीश ने सोचा था कि उसने तुझे पूरी तरह छिपा दिया, लेकिन राक्षस की छाया इतनी मजबूत थी कि उसने दूसरी दुनिया में भी तुझे खोज लिया।"

सुमित्रा की आँखें डबडबा गईं। "मतलब वहाँ भी हम कभी सुरक्षित नहीं थे?"

व्यास ने सिर हिलाया। "नहीं। जब तक तू एक आम बच्चा था, तब तक तुझे कोई खतरा नहीं था। लेकिन जैसे ही तूने सात साल की उम्र पूरी की, तेरा खून जागने लगा। राक्षस को तेरा अस्तित्व महसूस होने लगा।" आरव के रोंगटे खड़े हो गए।

"यानी, जब तक मैं कमजोर था, वो मुझे नहीं ढूंढ सकता था। लेकिन जैसे ही मैं सात साल का हुआ, वो मुझे खोजने लगा?"

व्यास ने हामी भरी। "हाँ। और उसी वक्त हरीश को कुर्बानी देनी पड़ी।"

आरव अब काँपने लगा था। " इसका मतलब आप कह रहे हो कि पापा ने हमारी सुरक्षा के लिए अपनी जान दी थी?"

व्यास ने आरव की ओर देखा। "हाँ। और उन्होंने जानबूझकर तुझे इस दुनिया में वापस भेजा, ताकि तू अपनी असली नियति पूरी कर सके।" "लेकिन…" आरव की आँखें लाल हो गईं। "अगर उन्होंने हमें वहाँ भेजा था, तो फिर हमें वापस क्यों आना पड़ा?" व्यास ने अपनी घड़ी देखी और हल्की हँसी भरी। "क्योंकि अब समय पूरा हो चुका है।"

"कैसा समय?"

व्यास की आवाज़ भारी हो गई।

"28 साल पूरे हो चुके हैं उस राक्षस को जन्मे हुए। अब उस राक्षस की शक्तियां अपनी चरम सीमा पर है। दानवी शक्तियां उस राक्षस को और भी अधिक शक्तिशाली और सर्वशक्तिमान बना रही है और उसे सिर्फ एक ही व्यक्ति रोक सकता है—तू, आरव।"

कमरे में खामोशी छा गई। चारो तरफ सन्नाटा छा गया।

"अब तुझे तय करना होगा कि तू अपनी नियति को अपनाएगा या उससे भागेगा। लेकिन याद रख, अब कोई जगह सुरक्षित नहीं है।"

आरव के दिमाग में हलचल मच गई थी। इतनी कम उम्र में उसके पास इतनी बड़ी जिम्मेदारी आ गई जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलते है उस उम्र में आरव अपने और अपने परिवार और समस्त संसार की सुरक्षा करने का भार उठाने वाला था।

"तो अब क्या करना होगा? कैसे उस राक्षस का अंत होगा" आरव ने पूछा

व्यास ने आरव की ओर देखते हुए कह। "अब तुझे लड़ाई की तैयारी करनी होगी। क्योंकि अगली अमावस्या की रात… राक्षस तुझे खत्म करने आएगा। और उस रात तू बहुत कमजोर होगा और उस दिन उस राक्षस के अंदर सारी शैतानी शक्तियां उसके अंदर समा जाएगी।"

कमरे में अब भी सन्नाटा था। आरव की साँसें तेज़ हो रही थीं। वो सिर्फ़ सात साल का था, लेकिन उसे बताया जा रहा था कि एक भयानक राक्षस उसकी जान लेने आने वाला है।

"मैं… मैं इससे कैसे लड़ूँगा?" आरव की आवाज़ में डर था।

व्यास मुस्कराए, लेकिन उनकी आँखों में गंभीरता थी। "लड़ाई के लिए तैयार रहना होगा, छोटे साहब। और इसके लिए तुझे अपनी असली ताकत को पहचानना पड़ेगा।"

सुमित्रा ने व्यास की ओर देखा, "लेकिन आरव के पास कौन-सी शक्ति है? ये तो एक आम बच्चा है!"

व्यास ने सिर हिलाया, "नहीं। आरव आम नहीं है। ये तभी साबित हो गया था, जब इसने दूसरी दुनिया में रहते हुए भी उस राक्षस के प्रभाव को झेल लिया था। इसकी आत्मा में दिव्य ऊर्जा छिपी है। इसे सिर्फ़ जगाने की ज़रूरत है।"

वीर प्रताप ने गंभीर स्वर में पूछा, "लेकिन इसे ट्रेनिंग देगा कौन?"

व्यास ने गहरी सांस ली और मुस्कराया, "जिसने इसे दुनिया से छिपाने में मदद की थी, वही इसे इसकी असली पहचान तक पहुँचाएगा।" सुमित्रा चौक गई, "मतलब… हरीश?"

"हरीश अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसने अपनी सारी ताकत एक व्यक्ति को सौंप दी थी—अपने सबसे पुराने दोस्त को!"

"तो वो व्यक्ति कौन है?" आरव ने पूछा।

व्यास ने हल्का सा मुस्कुराया, फिर अपनी जेब से एक तांबे की अंगूठी निकाली। "ये अंगूठी तुझे वहाँ ले जाएगी, जहाँ तेरा गुरु तेरा इंतजार कर रहा है।"

"लेकिन कौन है वो?" वीर प्रताप ने पूछा।

"एक ऐसा व्यक्ति, जो खुद एक समय पर सबसे बड़ा योद्धा था। एक ऐसा व्यक्ति, जिसने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी, लेकिन नियति ने उसे लौटने पर मजबूर कर दिया।"

"क्या?" सुमित्रा चौंक गई।

व्यास ने आगे कहा, "वो एक बार मरा था, लेकिन अब अमर हो चुका है। क्योंकि वो इस लड़ाई का हिस्सा था और रहेगा।"

आरव के चेहरे पर उलझन थी। "तो हम उसे कहाँ ढूँढेंगे?" व्यास ने अंगूठी आरव की हथेली पर रख दी। "इस अंगूठी को पहन और अपनी आँखें बंद कर। जवाब खुद-ब-खुद तेरे पास आ जाएगा।"

आरव ने झिझकते हुए अंगूठी पहनी। जैसे ही उसने अपनी आँखें बंद कीं, एक झटका महसूस हुआ। उसके चारों ओर अंधेरा छा गया।

जब आरव ने आँखें खोलीं, तो वो खुद को एक वीरान मंदिर के बाहर खड़ा पाया। चारों ओर धुंध थी। मंदिर टूटा-फूटा लग रहा था, जैसे सदियों से वहाँ कोई नहीं आया हो। अचानक, मंदिर के दरवाजे खुद-ब-खुद खुलने लगे।

भीतर से एक गहरी, भारी आवाज़ आई— "आ गया तू, घर के चिराग?"

आरव ने भीतर कदम रखा, और उसके सामने एक तगड़ा, लंबे बालों वाला, सफेद दाढ़ी वाला व्यक्ति खड़ा था। उसकी आँखों में अजीब-सी चमक थी। उसके कंधे पर एक पुरानी तलवार टिकी थी। "तू मुझे नहीं जानता, लेकिन मैं तुझे बचपन से जानता हूँ। हरीश ने मुझे सौंपा था तेरा भार। अब तुझे तैयार करना मेरी ज़िम्मेदारी है।"

आरव ने हिम्मत जुटाकर पूछा, "आप कौन हैं?"

उस आदमी ने हल्का सा मुस्कुराया। "मेरा नाम है—भीष्म!"

भीष्म कौन है, और वो अमर कैसे हुआ?

आरव की पहली परीक्षा क्या होगी?

राक्षस अब तक क्या कर रहा है?

हरीश की आखिरी योजना क्या थी?

जानने के लिए पढ़िए— घर का चिराग – एपिसोड 7