पहली परीक्षा पहला वार

मंदिर के अंदर गहरा अंधेरा था। हवा ठहरी हुई थी, और हल्की सी धुंध चारों ओर फैली थी। आरव ने भीतर कदम रखा, और उसकी नज़र सामने खड़े व्यक्ति पर पड़ी—लंबे बाल, सफेद दाढ़ी, और कंधे पर एक पुरानी तलवार। उनकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी।

"तू मुझे नहीं जानता, लेकिन मैं तुझे बचपन से जानता हूँ। हरीश ने मुझे सौंपा था तेरा भार। अब तुझे तैयार करना मेरी ज़िम्मेदारी है।"

आरव की आँखों में संदेह था। "आप कौन हैं?"

उस व्यक्ति ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "मेरा नाम भीष्म है।"

आरव ने उत्सुकता से पूछा, "लेकिन... आप इतने सालों से कहाँ थे? और आप अमर कैसे हैं?"

भीष्म ने गहरी सांस ली और बोला, "ये कहानी बहुत पुरानी है। मेरा असली नाम भीष्म नहीं था। सैकड़ों साल पहले, मैं एक योद्धा था—एक राजसी सेना का सेनापति। मेरी तलवार ने अनगिनत युद्ध लड़े, लेकिन एक दिन मैंने जाना कि असली युद्ध बाहरी दुश्मनों से नहीं, बल्कि अंदर के अंधकार से होता है।"

आरव ध्यान से सुन रहा था। "फिर एक दिन, मुझे एक रहस्यमयी किताब मिली—'अकाल ग्रंथ'। उसमें लिखा था कि जो कोई सच्ची निष्ठा और बलिदान की भावना से अपनी आत्मा को शुद्ध करेगा, वो मृत्यु को हरा सकता है। मैंने उसी ग्रंथ की साधना की। लेकिन यह आसान नहीं था। मुझे अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। मैं मरा... और फिर जन्मा। लेकिन इस बार मैं पहले जैसा नहीं था। मैं समय की सीमाओं से परे था। न मेरी आयु बढ़ी, न मेरा शरीर कमजोर हुआ। नियति ने मुझे वापस बुला लिया, क्योंकि मुझे तेरे पिता से मिलना था—हरीश से।"

आरव के रोंगटे खड़े हो गए। "मतलब, मेरे पापा आपको पहले से जानते थे?"भीष्म ने सिर हिलाया। "हाँ। तेरे पिता जानते थे कि जब समय आएगा, तो तुझे कोई ना कोई तैयार करेगा। और वो व्यक्ति मैं हूँ। अब तुझे तैयार होना होगा," भीष्म ने गंभीर स्वर में कहा।

आरव ने हिम्मत दिखाते हुए पूछा, "कैसे?"

"तुझे अपनी पहली परीक्षा से गुजरना होगा। यह परीक्षा तुझमें छुपी असली ताकत को जगाएगी। लेकिन याद रख, इसमें तुझे खुद को ही हराना होगा।"

"खुद को हराना?" आरव ने हैरानी से पूछा। भीष्म ने एक लंबी सांस ली। "हाँ। तेरी परीक्षा 'मायावी दर्पण' से होगी। यह दर्पण तेरे सबसे बड़े डर को जीवित कर देगा। अगर तू डर गया, तो ये तुझे हमेशा के लिए निगल जाएगा। लेकिन अगर तूने खुद को काबू में रखा, तो तू अपनी असली शक्ति को पा सकेगा।" भीष्म ने अपनी तलवार उठाई और उसे मंदिर के बीच बने एक पत्थर पर रखा। जैसे ही तलवार पत्थर से टकराई, ज़मीन काँप उठी। मंदिर की दीवारों से एक विशाल काले रंग का दर्पण प्रकट हुआ।

"ये रहा तेरा पहला इम्तिहान," भीष्म ने कहा।

आरव धीरे-धीरे दर्पण के पास पहुँचा। जैसे ही उसने उसमें देखा, उसका प्रतिबिंब हिलने लगा। अचानक, दर्पण से एक छाया निकली—वही आरव जैसा दिखने वाला, लेकिन आँखें जलती हुई लाल।

"मैं तेरा सबसे बड़ा डर हूँ, आरव!" छाया ने गरजकर कहा।

इस बीच, अंधेरे के गर्भ में, एक विशालकाय किले के अंदर, शैतानी राक्षस धीरे-धीरे अपनी शक्ति बढ़ा रहा था।

"28 साल हो चुके हैं," उसने गहरी, डरावनी आवाज़ में कहा। "अब समय आ गया है कि मैं अपना साम्राज्य बनाऊँ।"

उसने अपने चारों ओर इकट्ठी हुई आत्माओं को देखा—सैकड़ों शैतानी प्रेत, जो केवल उसके इशारे के इंतजार में थे। "अब अमावस्या की रात, आरव को खत्म करना ही मेरी प्राथमिकता होगी। क्योंकि वो जिंदा रहा, तो मेरा अंत निश्चित है।" उसने हवा में हाथ उठाया, और एक गहरी चीख पूरे माहौल में गूँज उठी। अंधकार और भी गहरा हो गया।

उधर, व्यास ने वीर प्रताप और सुमित्रा को एक गुप्त किताब दिखाई। "ये हरीश की आखिरी योजना थी," व्यास ने कहा। "उन्हें पता था कि वो राक्षस को खुद नहीं हरा सकते। इसलिए उन्होंने आरव के लिए यह योजना बनाई।" वीर प्रताप ने किताब खोलकर देखा। उसके अंदर एक नक्शा बना था, जिस पर एक रहस्यमयी गुफा का जिक्र था।

"इस गुफा में छुपी है एक अनोखी शक्ति। लेकिन उसे पाने के लिए आरव को कई कठिनाइयों से गुजरना होगा।" सुमित्रा ने चिंता से कहा, "लेकिन आरव अभी बहुत छोटा है। क्या वो ये सब सह पाएगा?" व्यास ने गंभीरता से कहा, "अब सवाल यह नहीं है कि वो तैयार है या नहीं। सवाल यह है कि उसके पास कोई और विकल्प नहीं है।"

इधर मंदिर के भीतर सन्नाटा था, लेकिन जैसे ही आरव ने दर्पण में झाँका, एक भयानक ऊर्जा पूरे माहौल में फैल गई। दर्पण से निकलती छाया अब पूरी तरह से सजीव हो चुकी थी—वही चेहरा, वही शरीर, लेकिन उसकी आँखों में जलती हुई लाल ज्वाला थी। "मैं तेरा सबसे बड़ा भय हूँ, आरव!" छाया की आवाज़ में गूँज थी।

आरव ने घूरकर देखा, "अगर तू मैं है, तो मुझे हराने की ताकत तुझमें नहीं हो सकती!"

भीष्म, जो अब तक गंभीरता से देख रहे थे, धीमे से मुस्कुराए। उन्होंने अपनी तलवार उठाई और ज़मीन पर ठोकते हुए कहा, "हर योद्धा की असली परीक्षा यही होती है कि वो अपने ही अंधकार का सामना कर सके। लेकिन याद रख, अगर डर गया, तो हमेशा के लिए इसी दर्पण में कैद हो जाएगा!"

भीष्म की आवाज़ में एक दैवीय शक्ति थी। वो सिर्फ एक गुरु नहीं, एक युगों से जीवित योद्धा थे। उनकी आँखों में वो ठहराव था, जो केवल युद्ध में तपे हुए योद्धाओं में होता है।

"तेरी परीक्षा अब शुरू होती है, आरव!" भीष्म ने कहा।

अचानक दर्पण की छाया ने आरव पर झपट्टा मारा। उसका हाथ आरव के सीने में समा गया, और पल भर में ही आरव की आँखों के सामने दुनिया बदल गई। वो अब एक अजीबोगरीब जगह पर था—चारों ओर सिर्फ अंधेरा। दूर कहीं आग की लपटें जल रही थीं, और हवा में सड़े हुए मांस की गंध थी। तभी उसे अपने सामने कुछ आकृतियाँ दिखीं—उसकी माँ, वीर प्रताप, और भीष्म, सब ज़मीन पर गिरे हुए, लहूलुहान!

"तेरी वजह से सब मर गए, आरव!" उसकी ही आवाज़ उसके कानों में गूँजी, लेकिन ज़्यादा भयावह, ज़्यादा गहरी।

"नहीं!" आरव ने घुटनों के बल बैठते हुए चिल्लाया।

क्या आरव अपने सबसे बड़े डर को हरा पाएगा, या वो हमेशा के लिए इस मायावी दर्पण में कैद हो जाएगा?

क्या भीष्म सच में अमर हैं, या उनके पीछे कोई और रहस्य छुपा है?

और उस शैतानी राक्षस की असली ताकत क्या है, जो अमावस्या की रात आरव को खत्म करने की योजना बना रहा है?

आपका क्या सोचना है—क्या आरव इस परीक्षा से बाहर निकलकर अपने असली मिशन की ओर बढ़ पाएगा?

जानने के लिए पढ़ते रहिए – "घर का चिराग – एपिसोड 8"